कभी-कभी बच्चे ऐसी सीख दे जाते हैं कि हम सोचने पर मजबूर हो जाते है- कि हम ऐसे क्यों नही है? क्यों हमारी सोच बडे होने पर संकीर्ण होती जाती है। अपनी गलती को स्वीकार करने मे कितनी देर लगा देते है हम ।
मै एक स्कूल में काम करती हूँ , इसलिए बच्चों से ही मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है-------
कई बार बच्चे स्कूल में झगडते रहते हैं ----मेडम इसने "ऐसा " कहा----नो मेडम, इसने पहले कहा , किसी से भी पूछ लिजिए ।----और हम उनके झगडे को , सुलझाने को पूछते रहते हैं----क्यो आपने "ऐसा" कहा?----नो मेडम----फ़िर दूसरे से भी वही सवाल---- क्यों आपने?---नो मेडम!!!!! तो फ़िर झगडा क्यों?
और इसके बाद उन्हें वही कहानी सुना देते है----कि एक बार एक संत किसी पेड के नीचे बैठे थे ।एक आदमी आकर उन्हे गंदी-गंदी गाली देता है फ़िर भी वे शांत बैठे रहते है , थोड़ी देर बाद वो आदमी थक कर चला जाता है । उसके जाने के बाद सब उस संत से पूछते है----आपको वो इतनी गालीयाँ दे रहा था ,आपने उससे कुछ कहा क्यों नही? वे संत जबाब देते है---- " मैने गालीयाँ उससे ली ही नहीं , वो तो उसके पास ही रह गई।"
( हम बडे ये बात क्यों नहीं समझ पाते कि किसी के कुछ कह देने से कोई फ़र्क नही पडता अगर हम सही हैं तो हमेशा सही ही रहेंगे )
पर इस बार ऐसा नहीं हुआ था ५ वीं कक्षा के कुछ बच्चों की शिकायत एक बच्चे के बारे मे थी ----
---मेडम, इसने गंदी बात बोली।
---क्यों ?
---नो मेडम-
--- फ़िर ये सब क्यों कह रहे है?---
---मेडम ये हमारा झूठा नाम फ़ंसा रहे है--- किसी से भी पूछ लिजिए----
---वो क्यों? (तभी बाकी बच्चे बोल पडे मेडम ये क्लास में भी ऐसे ही बोलता है।और तब तक मैं भी जान चुकी थी कि इसी बच्चे की गलती है।)
मैंने बच्चे से कहा- ठीक है आप जिससे कहेंगे उससे पूछ लेंगे , और पहले बाकी बच्चों से पूछा----चलो कौन इसकी तरफ़ है? हाथ उठाओ ----- ( किसी भी बच्चे ने हाथ नही उठाया ) ,
मैंने पूछा इसका बेस्ट फ़्रेंड कौन है? सबने एक बच्चे की ओर इशारा किया । मैंने उससे पूछा----क्यों आप बताओ?----बच्चा बडी ही मासूमियत से ना मे सिर हिलाकर बोला----कभी-कभी तो गंदी बात बोलता है ये मेम ।
अब मैंने उस बच्चे की ओर देखा और कहा----आप ही किसी की ओर इशारा कर दो जिस पर आप को भरोसा हो कि वो आपकी तरफ़ बोलेगा । बच्चे ने नजरें झुका ली---बोला हम बोलते हैं गंदी बात ।
- --तो??? अछ्छी बात है ???
---नो मेम-----सॉरी -----
इससे क्या होगा???,सजा तो आपको लेना पडेगी । कुछ सोच कर मैने सजा सुनाई----आप आज खेलोगे नहीं ,मैदान से बाहर ही खडे रहोगे । ठीक है??? , उसने हाँ मे सिर हिलाया , , इतनी आसानी से सजा मान लेने पर मैने आगे कहा----और सुनो अगले हफ़्ते इसी पिरियड मे अगर एक भी बच्चा तुम्हारी तरफ़ हो गया तो तुम्हें खेलने मिलेगा , और यदि एक भी बच्चे ने कहा- कि आपने फ़िर से गंदी बात बोली है तो आप बाहर ही खडे रहोगे ठीक है??? बच्चे ने फ़िर हाँ मे सिर हिलाया ।
मैने सभी बच्चों को हिदायत दी कि सब सच ही बताएंगे मुझे। मै इस बात को भूल ही गई थी ।अगली बार जब उस क्लास का गेम्स पिरियड आया बच्चे मेरे पास आते ही बोले मेडम इस पूरे हफ़्ते में इसने किसी को भी बुरा नहीं बोला है , और अगर गलती से बोला भी है तो सॉरी कहा है ।
मै सुनकर हैरान रह गई , एक छोटे से बच्चे ने , जो कक्षा मे औसत दर्जे का कहलाता था , अपनी इच्छाशक्ति के बल पर कम समय मे ही खुद पर नियंत्रण करना सीख लिया था । अपनी एक गलती को आदत बनने से रोक दिया था उसने । क्या हम , बडे होकर भी , अपनी बुरी आदतों---जैसे सिगरेट , बीडी पीना , नशा करना , झूठ बोलना , अपशब्द बोलना , बेईमानी करना ( अनगिनत हो सकती है ---अपने मे ढूँढिए ) आदी -आदी छोड नही सकते ???
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Wow.....New
विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस
जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...
-
सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौरा...
-
संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चा...
-
मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक...
7 टिप्पणियां:
सही जीवन दर्शन तो वही है जो हम अपने जीवन मे व्यावहारिक रूप से पाते हैं ।
एक छोटे से बच्चे ने , जो कक्षा मे औसत दर्जे का कहलाता था , अपनी इच्छाशक्ति के बल पर कम समय मे ही खुद पर नियंत्रण करना सीख लिया था । अपनी एक गलती को आदत बनने से रोक दिया था उसने । क्या हम , बडे होकर भी , अपनी बुरी आदतों---जैसे सिगरेट , बीडी पीना , नशा करना , झूठ बोलना , अपशब्द बोलना , बेईमानी करना ( अनगिनत हो सकती है ---अपने मे ढूँढिए ) आदी -आदी छोड नही सकते ???
अति सुन्दर शानदार
वाह क्या बात है
सबक देता आलेख. इच्छाशक्ति में बहुत ताकत है.
doosre bachhon ko sabak seekhna chahiye
bahut hi sahi baat kahi aapne....
I like your title"Come a little like a child thinking",it explains some meaning..
एक टिप्पणी भेजें