मप्र के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एवं साहित्यकार श्री जब्बार ढाकवाला और उनकी पत्नी मोहतरमा तरन्नुम की शुक्रवार 7 मई 2010 को उत्तराखंड के पास जब वे उत्तर काशी से चंबा की ओर लौट रहे थे, अचानक उनकी कार गहरी खाई में गिर गई। एम.ए. एल-एल.बी. तक शिक्षित श्री ढाकवाला शेर—शायरी, उपन्यास व व्यंग्य लिखने के शौकीन थे। वे संचालक पिछड़ा वर्ग कल्याण,संचालक आयुर्वेद एवं होम्योपैथी,संचालक रोजगार एवं प्रशिक्षण,संचालक लघु उद्योग तथा बड़वानी कलेक्टर रहे है।जबलपुर में जब भी उनका निजी अथवा सरकारी प्रवास होता तो वे स्थानीय साहित्यकारों से अवश्य ही मिला करते थे . विगत वर्ष जबलपुर में 25/09/09 को :श्री जब्बार ढाकवाला साहब की सदारत में एक गोष्ठी का आयोजन "सव्यसाची-कला-ग्रुप'' की ओर से किया गया . श्री बर्नवाल,आयुध निर्माणी,उप-महाप्रबंधक,जबलपुर के आतिथ्य में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया थे.गिरीश बिल्लोरे मुकुल के संचालन में होटल कलचुरी जबलपुर में आयोजित कवि-गोष्ठी में इरफान "झांस्वी",सूरज राय सूरज,डाक्टर विजय तिवारी "किसलय",रमेश सैनी,एस ए सिद्दीकी, और विचारक सलिल समाधिया के साथ स्वयम ज़ब्बार साहब ने भी रचना पाठ किया
जिंदगी के हर लमहे का मज़ा लीजिये
यहाँ पर टेंसन की जेल में, उम्रकैद की सजा लीजिये
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यहाँ पर टेंसन की जेल में, उम्रकैद की सजा लीजिये
मूक अभिनय करते करते बोलने लगे हैं वो
सूत्रधार की उपेक्षा कर मुँह खोलने लगे हैं वो
तरक्की के नाम पर इतने धोखे खाए हैं कि
अपने रहनुमाओं के बीच के दिल टटोलने लगे हैं वो
मन में मेरे अदालत जिन्दा है
क्या करुँ अन्दर छिपा एक परिंदा है
नहाता तो हूँ नए नए हम्मामों में आज भी
गुनाह नहीं मगर जेहन शर्मिंदा है
सूत्रधार की उपेक्षा कर मुँह खोलने लगे हैं वो
तरक्की के नाम पर इतने धोखे खाए हैं कि
अपने रहनुमाओं के बीच के दिल टटोलने लगे हैं वो
मन में मेरे अदालत जिन्दा है
क्या करुँ अन्दर छिपा एक परिंदा है
नहाता तो हूँ नए नए हम्मामों में आज भी
गुनाह नहीं मगर जेहन शर्मिंदा है
आईएएस अधिकारी एवं साहित्यकार श्री जब्बार ढाकवाला और मोहतरमा तरन्नुम के असामयिक निधन पर हम सब स्तब्ध हैं. हमारी श्रद्धांजलियां
12 टिप्पणियां:
बेहद अफ़सोस हुआ !!
अत्यंत दुखद समाचार...श्रद्धाँजलि!!!
दुखद
हार्दिक श्रद्धाँजलि!
Dukhad.. bahut hi dukhad soochna.. 2 minute kja maun rakhna chaahoonga..
अत्यंत दुखद समाचार.......श्रद्धाँजलि!!!
ve mere bhi parammitr the. raipur ke hi they. maine bhi unko yaad kiyaa hai. apne doosare blog ''sadbhavana darpan'' mey. (http://girish-pankaj.blogspot.com) dekh lena.श्रद्धाँजलि.
sarkar men baithe ek hi to zinda aadmi the.unhen dily khirkje akidat gaffur snehi
श्री जब्बार ढाकवाला एवम मोहतरमा तरन्नुम के दुख़द निधन
पर स्तब्ध हूँ
- विजय तिवारी 'किसलय'
, जबलपुर
जब्बार ढाकवाला का जाना साहित्य जगत के लिए विशेषकर व्यंग्य विधा के लिए के लिए एक बड़ी क्षति है। विनम्र श्रद्धांजलि ।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
बेहद अफ़सोस हुआ...
विनम्र श्रद्धांजलि...
भोपाल से मित्र सुरेश स्वप्निल का मेसेज आया कि जब्बार ढाकवाला नहीं रहे । बहुत सदमा पहुंचा है यह खबर सुनकर । जब्बार भाई से जब भी मुलाकात होती थी बहुत अपनापन लगता था । अब क्या कहूँ.. कैसे हो गया यह सब ..?उनके दो बेटे है एक पुणे मे है एक बंगलोर मे उनके सहित सब परिवार जनो को दुख सहन करने की क्षमता मिले बस यही प्रार्थमा ।
ज़ब्बार साहब से बात हुई थी कि जब भी भोपाल आया तो ज़रूर मिलूंगा. किंतु बस पिछले कई महीनों से किसी न किसी वज़ह से यात्रा यो स्थगित हुई अथवा उसी दिन घर वापसी की मज़बूरीयां फ़िर हमने तय किया अबके बार मई जून में सिर्फ़ उनसे और बटुक जी से मिलने जाउंगा तयशुदा कुछ: होता कुछ बस फ़ुरसत वाली भोपाल यात्रा न हुई एक सच्चे इंसान से आख़िरी मुलाकात 25/09/09 के बाद सिर्फ़ फ़ोन पे हो सकी थी . gaffur snehi जी आपने सही कहा सरकार में ज़िंदा शख्सियत थे.
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