15.4.10

वापस आ जाओ आस्तीन में

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5AIB7rLBa2E8MO_z8NFHRD5tOoB4u5SChNbi1x2SklOjsHQdnrDw4nEba3ZllUyDxrz_Qdi5enNTk28zPoB7jfPf2AJU1jptRYsApbo4gz7nyGXSam4hyphenhyphenYh47GcyKKqAh3Onf0v2oJYw/s320/cobra.jpgप्रिय तुमने जबसे मेरी आस्तीन छोड़ी तबसे मुझे अकेलापन खाए जा रहा है । तुम क्या जानो तुम्हारे बिना मुझे ये अकेला पन कितना सालता है । हर कोई ऐरा-गैरा केंचुआ भी डरा देता है।

भैये.....साफ-साफ सुन लो- "दुनियाँ में तुम से बड़े वाले हैं खुले आम घूम रहें हैं तुम्हारा तो विष वमन का एक अनुशासन है इनका....?"जिनका कोई अनुशासन है ही नहीं ,यार शहर में गाँव में गली में कूचों में जितना भी विष फैला है , धर्म-स्थल पे , कार्य स्थल पे , और-तो-और सीमा पार से ये बड़े वाले लगातार विष उगलतें हैं....मित्र मैं इसी लिए केवल तुमसे संबंध बनाए रखना चाहता हूँ ताकि मेरे शरीर में प्रतिरक्षक-तत्व उत्पन्न  विकसित हो सके.
जीवन भर तुम्हारे साथ रह कर कम से कम मुझे इन सपोलों को प्रतिकारात्मक फुंकारने का अभ्यास तो हों ही गया है।भाई मुझे छोड़ के कहीं बाहर मत जाना । तुम्हें मेरे अलावा कोई नहीं बचा सकता मेरी आस्तीनों में मैनें कईयों को महफूज़ रखा है। तुम मेरी आस्तीन छोड़ के अब कहीं न जाना भाई.... । देखो न आज़ कल तुम्हारे विष के महत्व को बहु राष्ट्रीय कम्पनीयां महत्व दे रहीं हैं.वे  तुम्हारे विष को डालर में बदलने के लिए लोग तैयार खड़े हैं जी । सुना है तुम्हारे विष की बडी कीमत है । तुम्हारी खाल भी उतार लेंगें ये लोग , देखो न हथियार लिए लोग तुम्हारी हत्या करने घूम हैं । नाग राज़ जी अब तो समझ जाओ । मैं और तुम मिल कर एक क्रांति सूत्र पात करेंगें । मेरी आस्तीन छोड़ के मत जाओ मेरे भाई।
मुझे गिरीश कहतें हैं कदाचित शिव का पर्याय है जो गले में आभूषण की तरह तुमको गले में सजाये रहते हैं हम तो बस तुमको आस्तीन में बसा लेना चाहतें हैं. ताकि वक्त ज़रूरत अपनी उपलब्धियों के वास्ते ‘पक्के-वाले‘ मित्रों के सीनों पर लोटने तुमको भेज सकूं . ये पता नहीं किस किस को सीने पे लोटने की अनुमति दे रहे हैं आज़कल ?
प्रिय विषधर, अब बताओ तुम्हारे बिना मेरा रहना कितना मुश्किल है.  कई दिनों से कुछ दो-पाया विषधर मुझे हडकाए पडे हैं मारे डर के कांप रहा हूं. अकेला जो हूं ..... हम तुम मिलकर शक्ति का भय दिखायेंगे . तुम्हारा विष ओर मेरा दिमाग मिल कर निपट लेंगें दुनियां से इसी लिये तो दोस्त तुमसे अनुरोध कर रहा हूं दोस्त ज़ल्द खत मिलते ही चले आओ ......वरना मुझे तुमको वापस लाने के सारे तरीके मालूम हैं.
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25 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

"... कई दिनों से कुछ दो-पाया विषधर मुझे हडकाए पडे हैं .."

गिरीश, सन्देह है कि इन दो-पाये विषधरों से तो तुम्हें तुम्हारा साधारण विषधर बचा पायेगा या नहीं?

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

अवधिया जी
शुक्रिया
बात तो सही कहे हैं आप

Arvind Mishra ने कहा…

इधर शिव की नगरी में भेज सकते हैं !

डॉ प्रमोद कुमार पुरी "मनमौजी " ने कहा…

bahut badhiya aapke vichar bahut acche or samay ke hisab se hai.........likhte rahiye.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

प्रिय तुमने जबसे मेरी आस्तीन छोड़ी तबसे मुझे अकेलापन खाए जा रहा है । तुम क्या जानो तुम्हारे बिना मुझे ये अकेला पन कितना सालता है । हर कोई ऐरा-गैरा केंचुआ भी डरा देता है।

लीजिये महफूज़ जी देखी अपनी धाक .....हर जगह आप के ही चर्चे हैं .....!!

आखिर ये महफूज़ भाई गए कहाँ जो आप वापस बुला रहे हैं ....??

अगर गए हैं तो आ भी जायेंगे .....टी शर्ट लेकर ....

विवेक सिंह ने कहा…

आस्तीन से फिर भाग गया क्या !

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

धाक तो वाकई है उन की तभी तो..?

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

विवेक भाई
सच्ची भाग निकला मुआ
हकीर जी
वैसे सारे निशाने सटीक गये !
मिश्रा जी
शिव का तो ब्रह्माण्ड सुना था आप बता रहे हैं कोई नगरी भी है.... यही कह रही है पोस्ट....... वैखरी में लिखी ज़रूर है फ़िर भी परा-ध्वनियां स्पस्ट सुनाई दे रहीं हैं सुनने की कोशिश तो कीजिये शायद कुछ हाथ लग जाये

दिलीप ने कहा…

वरना मुझे तुमको वापस लाने के सारे तरीके मालूम हैं.
waah kya likha sir...maza aa gaya....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

Kulwant Happy ने कहा…

चंदन तुम्हें बुलाए... आ जा रे भाई

महेन्द्र मिश्र ने कहा…
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महेन्द्र मिश्र ने कहा…
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महेन्द्र मिश्र ने कहा…

asteen ke sapo se bachen bhai . pahale ki teep dilit kar di hai ...

M VERMA ने कहा…

आस्तीन की सलामती भी तभी है जब आस्तीन में साँप रहें

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

वर्मा जी ने सूत्र सही पकडा

विवेक रस्तोगी ने कहा…

एक बार आस्तीन से निकलने के बाद वापिस थोड़े ही आता है :)

बहुत बढ़िया

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…
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सर्वत एम० ने कहा…

क्या जमाना आ गया, सांप को सावधान करना पड़ रहा है. विषय बहुत प्यारा चुना आपने. व्यंग्य की धार का जवाब नहीं.

घटोत्कच ने कहा…

आस्तीन में सांप के साथ संपोलिए भी पलते हैं।
जरा देखिए, कहीं वे ना डेरा डाल दिए हों।

लेकिन आप कब से संपेरे हो गए
यह समझ में नही आया दादा

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

घटोत्कच भाई
सांप वापस आ गया है उसने बताया कि आप की शिनाख्त के वास्ते गया था .्मुझे आपका बायोडाटा दे दिया उसने
हा हा हा

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

आस्तीन की सलामती भी तभी है जब आस्तीन में साँप रहें....बहुत सही ....

सपेरा ने कहा…

बहुत खूब कहे सरकार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

साक्षात्कार बढ़िया रहा!

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

शास्त्री जी साक्षात्कार कहां है

बवाल ने कहा…

भैया यह सब अपने ब्लॉगजगत के सर्पमित्रों (समझ जाइए) की साज़िश नज़र आ रही है।
इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा, सर्पट्टा तेरा
हमरी ना मानो, महफ़ूज़वा से पूछो
जिसकी अदा ने हाय छीना, सर्पट्टा तेरा

Wow.....New

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