24.3.10

समयचक्र को निरंतरता देता एकलव्य बनाम महेन्द्र मिश्र पाड्कास्ट भाग एक

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy5SwRFbp0nznkVpVPX8pgjd5QplXWFIQFT2_ugqhdeoL4Isbnf8EC99qnjtkqjhutmI31jqChUgYg5N-9rrfxOV1ixq5AwKMJmJvxbdJQe9wRvbvAQw-ptekfj0JePgCxr-ZNiGb_FiMV/s45/DSCN0032.jpgऐसा नहीं है कि आज एकलव्य की अनुकृतियां न हों  अन्तस से भावुक, सदैव तत्पर महेन्द्र मिश्र अपने आप में एक जोरदार व्यक्तित्व को जी रही हैं.... आप सुनिये उनसे उनके दिल की बात आज़ उनकी वसीयत ज़रूर देखिये उनके ब्लाग ”समयचक्र” पर.......शहीद भगत सिंह को याद किया उनने निरंतर पर . मिश्र जी में  भोले भाले शिव के अंश को नकारना गलत होगा........... किंतु शान्त चित्त हो कर जब वे सृजन करतें हैं तो बस भूल जाते हैं समय को भूलें क्यों न समयचक्र चला भी तो रहे हैं वे ही. 

7 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

आभार...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सूचना प्रकाशित करने का शुक्रिया!

Yatish ने कहा…

बहुत ही अच्छा अनुभव

रानीविशाल ने कहा…

Bahut bhadiya baatchit rahi ...Mishra ji ke vicharon acche se jaanane ka mauka mila...Abhar.

शरद कोकास ने कहा…

मिश्र जी को बधाई और आपको धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया रहा मिश्र जी से मिलना!
आपके सौजन्य से मिश्र जी का मधुर स्वर भी सुन लिया!

संजय भास्‍कर ने कहा…

मिश्र जी को बधाई और आपको धन्यवाद

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