ब्लागरों की ब्ला-ब्ला सच बला बला के रूप में मुझे तो दिखाई दे रही है मुझे तो अंदेशा है कि इस पोस्ट को लिखा नहीं लिखाया गया है सो मित्रों आज पांडे जी के ज़रिये को साफ़ साफ़ बता दूँ की मुझे जबलपुर को लेकर किए गए इस कथन से आपत्ति है जो उन्हौनें लिखा हिन्दूवादी ब्लागरों को दूर रखकर आयोजक सेमिनार को साम्प्रदायिका के तीखे सवालों पर जूझने से तो बचा ले गये लेकिन विवाद फिर भी उनसे चिपक ही गये। सेमिनार से हिन्दूवादी या, और भी साफ शब्दों में कहें तो धार्मिक कटटरता की हद तक पहुंच जाने वाले तमाम ब्लागर नदारद रहे। यहां न तो जबलपुर बिग्रेड मौजूद थी और न साइबर दुनिया में भी हिन्दूत्तव की टकसाली दुनिया चलाने में यकीन रखने वाले दिखायी पडे। इस सवाल पर जब कुछ को टटोला गया तो कुछ ब्लागरों ने अपने छाले फोडे और बताया कि दूसरे ब्लागरों को तो रेल टिकट से लेकर खाने-पीने और टिकाने तक का इंतजाम किया गया लेकिन उन्हें आपैचारिक तौर से भी नहीं न्यौता गया। अब वे आवछिंत तत्व की तरह इसमें शामिल होना नहीं चाहते है। उन्होंने इस आयोजन को राष्टीय आयोजन मानने से भी इंकार कर दिया। अब उनकी इस शिकायत का जवाब तो भाई सिद्वार्थ शंकर ही अच्छी तरह से दे सकते हैं।
जहां तक वांछित अवांछित होने का निर्णय है सो सभी जानतें हैंकौन इस देश में "सत्यनाराण की पोथी बांच के "देर रात जाम चटकाते सर्वहारा के बारे में चिंतितहोता है [चिंतित होने का अभिनय करता है ] जबलपुर ने कामरेट "तिरलोक सिंह जी "को पल पल मरते देखा है. रहा हम पर तोहमतों का सवाल सो आप गोया परसाईजी से लेकर ज्ञानरंजन जी तक की सिंचित साहित्यिक पौध को अपमानित कर रहें हैं . यानी उन दौनों को भी........?
अब बताएं आज सुबह सुबह वज़न मशीन पर हम खड़े हुए तो हमारा वज़न उतना ही निकला जितना चार दिन पहले था किंतु जबलपुर ब्रिगेड और साम्प्रदायिकता को युग्मित कर आपका वज़न ज़रूर कम हुआ है.....?हजूर इधर अनूप जी से रात को ही बात हुई थी मेरी व्यस्तता और नेट की खराबी के कारण प्रयाग के बारे में मुझे ज़्यादा कुछ जानकारी नहीं थी सो मित्रों उनने मीट के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी पर पंडित जी ने यह नहीं बताया की हमको क्यों नहीं न्यौता गया हिमांशु जी निकले तेज़ चैनल अन्दर की ख़बर ले आए। अरे भैया हिन्दुस्तान में ब्लागिंग के विकास पर कोई रपट देते तो मालिक हम सच आपको नरमदा के पवित्र जल से अभिषिक्त कर देते पर आपने हमें कुतर्कों विरोध करने परही साम्प्रदायिक करार दिया सो जान लीजिए यहां "धुँआधार" भी है ....आगे.....बला बला......ब्ला ...ब्ला ......।
कृपया माफ़ करें जो सच है बोल दिया
12 टिप्पणियां:
http://twitter.com verlangt einen Benutzernamen und ein Passwort. Ausgabe der Website: "Twitter API"
भाई जब भी हम टिपण्णि देने आते है यह बार बार खुलता है ओर लोग तंग हो कर भाग जाते है....
ye twitter ka link hatayen, ye apne aap hat jayega
बला बला......ब्ला ...ब्ला ......।
hmmmmm
राज जी की बात पर ध्यान दे।
गिरीश बिल्लोरे जी ने जिस पोस्ट को लेकर यह बात लिखी है उस पर अपनी पहली ही टिप्पणी मे मैने कहा था " यह विवेक पूर्ण विश्लेषण पसन्द आया यद्यपि शुरुआत मे ऐसा लगा जैसे आप किसी पक्ष विशेष की ओर से कोई बात रखने जा रहे हैं ।"
यह बात मुझे भी कुछ अजीब लगी कि यहाँ जबलपुर ब्रिगेड जैसे शब्द का प्रयोग क्यों किया गया । ब्लॉगर समीर लाल जी विदेश मे है लेकिन मूल जबलपुर का होने के कारण उन्होने भी इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया । इंटरनेट पर वैश्विक स्तर पर ब्लोगिंग करते हुए हमे इस तरह किसी शहर के बारे मे व्यंजना मे ही सही कहने का क्या हक है ? गिरीश जी को जबलपुर की पूरी परम्परा की दुहाई देनी पड- रही है, कॉमरेड तरलोक सिंह जिन्होने जीवन भर लोगों को मार्क्सवादी साहित्य पढ़ाया ,ज्ञानरंजन जी जिन्होने मार्क्स्वादियो को सत्ता से निकट होते देखा तो संगठन से त्यागपत्र दे दिया , परसाई जी को तो उनके वामपंथी तेवर के लिये समस्त विश्व जानता है , डॉ. मलय , राजेन्द्र दानी , और जाने कितने लोग जबलपुर की पहचान हैं इसलिये गिरीश जी का इस तरह प्रतिक्रिया देना स्वाभाविक है ।
एक आयोजन के सकारात्मक पक्ष पर विशेष रूप से यह कहना चाहता हूँ कि इस आयोजन के बाद भी जितनी प्रतिक्रियाएँ आईं( और लगातार आ रही है ),कार्यक्रम के दौरान जितनी रुचि वहाँ उपस्थित और हम जैसे अनुपस्थित लोगों ने ली , कार्यक्रम का जैसा लाइव प्रस्तुतिकरण ब्लॉग्स पर हुआ ,जितनी तस्वीरें हम लोगों ने देखीं मित्रों से फोन पर और एस एम एस के माध्यम से सम्वाद हुआ , कार्यक्रम के चलते चैट और टाक से जानकारी का आदान-प्रदान हुआ, भोजन आवास के बारे मे चर्चा हुई, मुद्दों पर सीधे सुझाव दिये गये और सम्बन्धित लोगो तक प्रतिक्रियाएँ पहुंचाई गई यह मैने आज तक किसी साहित्यिक,संस्थागत या राजनीतिक कार्यक्रम के आयोजन मे नही देखा । अखबारों मे तीन कालम की खबर और टीवी पर दो मिनट की क्लिपिंग से ज़्यादा आज तक किसी कार्यक्रम को तवज़्ज़ो नही मिली ।इस बात से अन्य लोग ईर्ष्या भी कर सकते हैं । इस आयोजन मे मिलने वाले न सिर्फ पहले से परिचित हैं बल्कि नेट के माध्यम से उनमे रोज ही सम्वाद होता है ।यद्यपि यह इस माध्यम पर उपस्थित "हज़ारो"ब्लॉगरों के बीच एक छोटा सा समूह है । यह सिर्फ और सिर्फ इस ब्लॉगर परिवार के आपसी सम्बन्ध की वज़ह से है और इसे कोई भी महान साहित्यकार ,पत्रकार ,राजनेता या प्रशासनिक अधिकारी नही समझ सकता । मै एक लेखक /कवि हूँ और विगत 30 वर्षों से ऐसे आयोजन कार्यक्रम अटेंड कर रहा हूँ । यहाँ जुडे भी एक उल्लेखनीय समय तो हो चुका है इसलिये मै कह सकता हूँ कि यह एक ऐसा समाज है जिसने यह सब अपने श्रम और ज्ञान तथा निरंतरता से अर्जित किया है इसलिये इसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती ।यह् समाज बहुत ज़्यादा निराश भी नहीं होता न बहुत ज़्यादा उत्साहित होता है , न ज़्यादा उद्वेलित होता है न भयभीत होता है । इसका संतुलन ही इसकी विशेषता है । हम क्यों न इसके उजले पक्ष को सँवारते हुए इसके उज्वल भविष्य की कामना करें।
सटीक विचार है ....
ापनी तो राम राम बस हम किसी झगडे मे नहीं। शुभकामनायें
आप क्या सोच रहे हैं
कि वे मान जायेंगे कि
लिखवाया गया है।
ऐसा प्रयास मत कीजिए
जिसका हल न निकले
तसल्ली पाने दो उसे।
कमाल है! हमें तो यही समझ नहीं आ रहा है कि ससुरा ये कैसा ब्लागर सम्मेलन था...जिसमें सम्मिलित होने वाला भी दुखी ओर जो सम्मिलित नहीं हो पाए या नहीं किए गए..वो भी दुखी !!
वत्स जी
सादर अभिवादन
अपन बिल्ल्कुल्ल नहीं रोये
इलाहाबाद कब जातें
हैं आप को तो मालूम हैं
अब बताएं कि इधर सी एम साहब
का आना था सो हमको बुलाते तो भी
न जा पाते ... रहा सवाल मीट का हमेशा
स्वागतेय है
जबलपुर ब्रिगेड का सादर
नर्मदे हर हर
शरद जी
सादर-प्रणाम और आभार स्वीकारिये
आपकी पोस्ट पर भी मैं भाई हिमांशु पाण्डेय जी की पोस्ट 'ब्लागरों की ब्ला-ब्ला ' पर की गयी टिप्पणी मूलतः पोस्ट कर रहा हूँ....
भाई हिमांशु पाण्डेय जी
हमारा अभिवंदन और ब्लागर्स सम्मलेन के लिए बधाई.
व्यस्तताओं के चलते अंतर जाल के माध्यम से तो नहीं लेकिन दूर भाषों के के माध्यम से
इलाहाबादी ब्लागर्स सेमीनार की गूँज जब मेरे कानों तक पहुँची तो माथे पर जबलपुरिया ठप्पा होने के कारण मेरी जिज्ञासा आपकी पोस्ट तक पहुँचा गयी. अपनी बात कहूँ अथवा दूसरे शब्दों में यूँ कहूँ कि अपनी आपत्ति दर्ज करूँ इसके पूर्व आपकी पोस्ट की दो पंक्तियाँ बताना चाहता हूँ --
""सेमिनार से हिन्दूवादी या, और भी साफ शब्दों में कहें तो धार्मिक कटटरता की हद तक पहुंच जाने वाले तमाम ब्लागर नदारद रहे। यहां न तो जबलपुर बिग्रेड मौजूद थी और न साइबर दुनिया में भी हिन्दूत्तव की टकसाली दुनिया चलाने में यकीन रखने वाले दिखायी पडे।""
कृपया अपनी अधूरी अभिव्यक्ति को पूर्णता प्रदान करें ताकि आपकी विद्वत अभिव्यक्ति को हम जैसे सामान्य ब्लागर्स
संशय मिटाकर आपकी बात का आशय समझ सकें.
मैं अपना संशय आपकी सुविधा के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ.
१- पहले तो मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि मुझे आपके द्बारा लिखे गए " जबलपुर ब्रिगेड " जैसे शब्दों से कोई आपत्ति नहीं है.
२- मुझे आपत्ति इस बात की है कि आपने हिन्दुत्त्व और धार्मिक कट्टरता के प्रवाह में जबलपुर ब्रिगेड को भी बहा
ले गये ? यदि ऐसा नहीं ही तो ब्लॉग की पोस्ट में न सही अपने स्पष्टीकरण में स्पष्ट करे तो आपकी भलमनसाहत के हम शुक्र गुजार होंगे !!!!
३. कृपया ये भी बता दें कि जबलपुर ब्लॉगर समूह को " जबलपुर ब्रिगेड " के नामकरण कि कैसे सूझी ?
मुझे तो अंशतः आभास हो रहा है कि आपकी मानसिकता हम जबलपुरियों के प्रति इतनी निम्न और घ्रणित नहीं हो सकती कि आप की सोच में हम साम्प्रदायिक हो सकते हैं ?
शुभ भावनाओं सहित आपकी निष्पक्ष टीप के इन्तजार में.....
- विजय तिवारी " किसलय"
विनोबा भावे द्बारा नामित संस्कार धानी जबलपुर
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