3.12.08

प्यारा भोपाल :मेरी बुआ का जर्जर शरीर

कला बुआ वाला भोपाल
मामाजी वाला भोपाल
मेरा नही हम सबका भोपाल
जिसे निगला था मिथाइल आइसो सायानाईट के
धुंएँ ने जो
समा गया था देहों में उन देहों में
जो निष्प्राण हो गयीं
जो बचीं वे ज़र्ज़र आज भी कांपते हुए जी रहीं हैं
उनमे मेरी कला बुआ जो देह में बैठे प्राण को आत्म-साहस के साथ
सम्हाले रखीं हैं ,
बुआ रोज जीतीं हैं एक नई जिंदगी
उन लोगों को याद भी करतीं हैं
शाह्ज़हानाबाद की आम वाली मस्जिद में उनके आसपास रहने वाली आशा बुआ, अब्दुल चाचा,
जोजफ सतबीर
यानी वो सब जिनकी अलग अलग इबादतगाहें हैं

4 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

स्मरण हो आया उस त्रासदी का . आह!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

श्रद्धांजलि उन भोपाल गैस काण्ड के दिवंगतों को ! देखते देखते कितना समय गुजर गया , पर दंश अभी भी वैसे के वैसे ही हैं !

राज भाटिय़ा ने कहा…

श्रद्धांजलि उन गैस काण्ड के दिवंगतों को !!जख्म नही भरते, चाहे समय कितना ही बीत जाये, यह ऎसे जख्म है

बेनामी ने कहा…

Marmsparshi abhivyakti.

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