3.11.08

विषय

"विषय '',
जो उगलतें हों विष
उन्हें भूल के अमृत बूंदों को
उगलते
कभी नर्म मुलायम बिस्तर से
सहज ही सम्हलते
विषयों पर चर्चा करें
अपने "दिमाग" में
कुछ बूँदें भरें !
विषय जो रंग भाषा की जाति
गढ़तें हैं ........!
वो जो अनलिखा पढ़तें हैं ...
चाहतें हैं उनको हम भूल जाएँ
किंतु क्यों
तुम बेवज़ह मुझे मिलवाते हो इन विषयों से ....
तुम जो बोलते हो इस लिए कि
तुम्हारे पास जीभ-तालू-शब्द-अर्थ-सन्दर्भ हैं
और हाँ तुम अस्तित्व के लिए बोलते हो
इस लिए नहीं कि तुम मेरे शुभ चिन्तक हो
मेरा शुभ चिन्तक मुझे
रोज़ रोटी देतें है
चैन की नींद देते हैं

6 टिप्‍पणियां:

समीर यादव ने कहा…

गिरीश भाई यह तो आपका अपना अधिकार क्षेत्र है....सदैव की भांति उम्दा.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

BHAI SAHAB
AABHAREE HOON

समयचक्र ने कहा…

विषय जो रंग भाषा की जाति
गढ़तें हैं ........!
वो जो अनलिखा पढ़तें हैं ...
sundar abhivyakti. dhanyawaad.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत उम्दा रचना ! बधाई सर जी !

sandhyagupta ने कहा…

Bahut achchi rachna. Likhte rahiye.

guptasandhya.blogspot.com

बवाल ने कहा…

ख़ूबसूरत पेशकश मुकुल भाई.

Wow.....New

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