12.11.14

वर्ल्डविज़न का भारत की छवि को गिराने वाला आपत्तिजनक ई संदेश


आज एक मेल देखा. वर्ल्ड विज़न www.worldvision.in मेल का स्नेपशाट देखिये
 लाल रंग से रेखांकित लाइन के पढ़ते ही लगा जैसे कि देश में भयावह स्थिति आ गई जो वर्ल्ड विज़न के अलावा अन्य किसी के विज़न में नहीं हैं. एक स्थापित एन जी ओ के रूप में यह संस्थान प्रभावी कार्य भले कर रहा हो पर बच्चों के  भूखे रहने के नाम पर स्पांसर शिप मांगना किस हद तक सही है. मेरी तरह की मेललिस्ट में कई देशी-विदेशी लोगों के पते होंगे जहां ये मेल पहुंच रहे होंगे. और लोग भारत में भूख की स्थिति पाए जाने की बात से सहमत हो गए होंगे तथा  प्रेरित होकर स्पांसर-शिप के लिये तत्पर भी होंगे ।     मेरा खुला आग्रह है कि  वर्ल्ड विज़न www.worldvision.in  इस तरह के विज्ञापन तुरंत बंद कर सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त करे।  इस संस्था ने कहीं भी अपना मेल पता वेब पर अंकित नहीं किया है. जो एक  आपत्ति-जनक बिंदु है.  
_______________________________
प्रति 
वर्ल्ड विज़न टीम
World Vision India
 No. 16, VOC Main Road,
 Kodambakkam, Chennai - 600 024.

     हार्दिक-शुभकामनाएं
आपका ई संदेश मिला . आपके बाल कल्याण के लिये कार्य करने की सराहना अवश्य करता
हूं किंतु आपके द्वारा जो स्पांसरशिप के लिये संदेश दिया है घोर आपत्तिजनक है.
मेल संदेश के प्रारंभ में ही Feed a Hungry Child लिखा जाकर दान मांगना
 सर्वथा ग़लत एवं भारत की छवि को धूमिल करना है. खासकर मध्य-प्रदेश सहित भारत
में शायद ही कोई ऐसा प्रांत हो भूखे बच्चों वाली स्थिति होगी. भारत में बाल
विकास सेवाऎं, बाल-गृह, अनाथ बच्चों के लिये आश्रम संचालन हेतु अनुदान, शासकीय
तौर पर मुहैया कराए जाते हैं साथ ही विभिन्न धर्मों की धार्मिक, आध्यात्मिक ,
सामाजिक संस्थाएं बिना इस तरह के वाक्यों के सहारे कार्य कर रहें हैं. अगर आप
सर्वे करें तो निश्चित ही आप पाएंगे कि लाखों नागरिक  बिना किसी प्रदर्शन के
बच्चों के लिए भोजन आवासीय  शिक्षा आदि के लिये  प्रायोजक भी हैं  .मैंने अपने  सार्वजनिक जीवन  एवं सरकारी  सेवा के कालखंड  में आपके द्वारा इंगित स्थिति नहीं पाई है. आप के इस मेल से मुझे घोर आपत्ति है. 
कृपया मेरी आहत  भावना के प्रति सहिष्णुता पूर्वक नज़रिया रखिये. 
सादर 
अनवरत शुभ की कामनाओं के साथ 
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"
स्वतंत्र-लेखक, विचारक, साहित्यकार   

9.11.14

तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे..!!

 
गो हाथ को जुम्बिश नहीं हाथों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे…!

                       बात यूं तो एहसास करने की है. लिखना भी नहीं चाहता पर क्या करूं लेखक जो ठहरा लिखे बिना काम भी तो नहीं चलता.कब तक छिपाए बैठूंगा अपना दर्द सीने में जो मेरा मित्र है . सोचता हूं कि आत्महिंसा कितनी ज़ायज़ है ? 
उत्तर मिलता है- मात्रा में पूछोगे तो कहूंगा कि लेशमात्र भी नहीं अवधि में ? तो निमिष मात्र भी नहीं....कदापि नहीं..!
तो क्या लड़ जाऊं ..?
न इसकी ज़रूरत ही नहीं है.. !
तो क्या करूं.. 
बस खुद से बातें करो खुद को प्रेम से समझाओ.. और जिसने तुम पर अनाधिकृत दबाव डाला है उसे एहसास करा दो कि - भाई, अब सीमाएं पार होती नज़र आ रहीं हैं.. मेरे खिलाफ़ होते अपने आचरण में बदलाव लाओ. अत्यधिक सहनशीलता दिखाने की ज़रूरत नहीं. क्यों कि यही है "आत्म-हिंसा..!"
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                 मित्रो, एक मित्र के सार्वजनिक आचरण से आघातित हो मैने स्वयं से सलाह ली. फ़िर वही किया . क्योंकि खुद पर हो रही हिंसा का प्रतिहिंसक हो ज़वाब देना गलत है सो बेहतर है कि आत्महिंसा के मूलकारण की ओर  खिलाफ़ क़दम ताल की जावे पूरी दृढ़ता से.. किया भी यही मैने . 
          फलस्वरूप मित्र ने मुझे  फ़ेसबुक पर अनफैंड कर लिया. उसका निर्णय मुझे अच्छा लगा. चूंकि मैं हिंसक नहीं हूं अतएव मैने अपनी ओर से सहज समझाइश से इतर कुछ भी नहीं किया. 
                साथ ही  मैं उन रिश्तों को ढोना भी नहीं चाहता जो सिरे से अप्रिय हों. पर व्यवसायिक मज़बूरियां हों कि उनको जीवंत रखा जावे. इन मज़बूरियों के सामने घुटने टेक होना आत्महिंसा है.    
                                                     ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
               मुझे अच्छी तरह याद है.. कुछ लोग मेरी शिकायतें लेकर ओहदेदारों तक जा पहुंचे. सबके सब जब एक्सपोज़ हुए तो मैने उनसे पूछा भी. पर उनके झूठ बोलते चेहरों को माफ़ करना ही मैने उचित समझा क्योंकि जब मैं उनमें से कुछेक से पूछ रहा था तो चचा ग़ालिब बोले :- 
मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे पीछे?
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे
 . मै जानता हूं कि दुनिया का असली चेहरा यही है. इससे इतर कुछ भी नहीं और फ़िर दुनियां मेरे लिये क्या है इस बारे में चचा ग़ालिब मेरे जन्म के पहले ही लिख चुके हैं :- 
बाजीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनियाँ मेरे आगे
होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे..!! 
           मित्रो ये फ़साना है मेरा न हमारा हमारे इर्दगिर्द बारहा ये फ़साना मुसलसल ज़ारी है ईमां और कुफ़्र के बीच के सवाल पर कुछ न कहो शांत रहे मन जो कहे वो करो  चचा ग़ालिब की मानो यक़ीनन खूब सही कहा है उनने कि सदा ईमान को मित्र बनाए रखो 
इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
क'अबा मेरे पीछे है क़लीसा मेरे आगे  
          ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
 अब रात का तीन बज़ चुका है सोना भी ज़रूरी है... चलो सोता हूं किसी की नींद उड़ा के.. पर अब आत्महिंसा न होने दूंगा.. मिसफ़िट हूं आप कहां फ़िट करेंगे इस वाक़्ये को आप जाने ..... अब तो बस चचा का ये शेर गुनगुनाके सो जाऊंगा
(भले वो मेरे बारे में खूज़ खबर ले )
   नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क़ से गुज़रा
  क्यूँ कर कहूँ लो नाम न उसका मेरे आगे .

8.11.14

एक कविता : फ़ेसबुक से / प्रस्तुति रीता ज़मींदार क़ानूनगो

तब टूटती थी प्लेट
बचपन में तुमसे
अब माँ से टूट जाये
तो कुछ भी ना कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे गुब्बारा
बचपन में माँ से
अब माँ चश्मा मांगे
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे चॉकलेट
बचपन में माँ से
अब माँ मांगे दवाई
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब डाटती थी माँ
शरारत होती थी तुमसे
अब वो सुन ना सके
तो बुरा उसे ना कहना..
👓🍫🍏
जब चल नहीं पाते थे तुम
माँ पकड़ के चलाती थी
अब चल ना पाए वो
तो सहारा तुम देना..
👓🍫🍏
जब रोते थे तुम
माँ सीने से लगाती थी
अब सह लेना दुःख तुम
माँ को रोने ना देना..
👓🍫🍏
जब पैदा हुए थे तुम
माँ तुम्हारे पास थी
जब माँ का अंतिम वक़्त हो
उसके पास तुम रहना.

Rita Zamindar Kanungo 

6.11.14

ढोली अविरल बजाएगा ढोल : ढमन कड्डन.. कड्डन... कड्डन

मास्टर अविरल
गले में ढोल यूं लटकाते हैं
बड़े बड़े शरमा जाएं 

 यूं तो मास्टर अविरल  की उम्र छै: बरस
की पिछले महीने ही हुई है पर इन लिटिल-मास्टर साहबान में  सिद्धहस्त
 ढोली बनने के सारे गुण मौजूद हैं वो भी तीन बरस की उम्र से . अविरल की
माताजी श्रीमती रिंकी के अनुसार -"पाँव तो पालने में ही नज़र आ चुके थे. अवी
ने एक बरस की उम्र से  दौनों हाथों से टेबल बरतन को बजा बजा के बताने की
कोशिश की कि उसके साथ एक कलाकार भी जन्मा है माँ ..! "
 
व्हीकल-फैक्ट्री में कार्यरत श्री मनीष को माँ ने अपने पुत्र के अंतस के
कलाकार के बारे में बताया तो वे भी प्रभावित हुए. संकट इस बात का था कि क्या किया
जाए. समय बीतते बीतते
 अविरल का अन्य बच्चों की तरह  स्कूल जाना प्रारम्भ हुआ . परंतु ताल ने अवि
से नाता बनाए रखा. अखबारों के ज़रिये जब पता चला कि बालभवन में  “किलकारी
2014” के लिए आडिशन हो रहा है तो अवि के दादाजी और माँ रिंकी को राह मिल गई घरेलू
कामकाज के साथ तालमेल बैठाकर वे मास्टर अविरल को लेकर आ गए  बालभवन . बालभवन
की सदस्यता के साथ अब रोज़ अविरल बालभवन आते हैं.   वीरेन्द्र सिद्धराव और इंद्र पांडेय इनकी
प्रतिभा को मांजने में जुट गए हैं. बालभवन इस बार बालदिवस 2014  किलकारी
के रूप में शहीद-स्मारक भवन में आयोजित कर रहा है ... प्रशिक्षक मानते हैं कि – “अविरल
की  प्रस्तुति धमाकेदार होगी 






5.11.14

अमृत वृद्धाश्रम : विजय सपत्ति

||| एक नयी शुरुवात |||

मैंने धीरे से आँखे खोली, एम्बुलेंस शहर के एक बड़े हार्ट हॉस्पिटल की ओर जा रही थी। मेरी बगल में भारद्वाज जी, गौतम और सूरज बैठे थे। मुझे देखकर सूरज ने मेरा हाथ थपथपाया और कहा, “ईश्वर अंकल,आप चिंता न करे, मैंने हॉस्पिटल में डॉक्टर्स से बात कर ली है, मेरा ही एक दोस्त वहाँ पर हार्ट सर्जन है,सब ठीक हो जायेंगा। “ गौतम और भारद्वाज जी ने एक साथ कहा, “हाँ सब ठीक हो जायेंगा। “ मैंने भी धीरे से सर हिलाकर हाँ का इशारा किया। मुझे यकीन था कि अब सब ठीक हो जायेंगा।

मैंने फिर आँखे बंद कर ली और बीते बरसो की यात्रा पर चल पड़ा। यादो ने मेरे मन को घेर लिया।

||| कुछ बरस पहले |||

कार का हॉर्न बजा। किसी ने ड्राइविंग सीट से मुंह निकाल कर आवाज लगाई, “अरे चौकीदार, दरवाज़ा खोलना। 
मैंने आराम से उठकर दरवाज़ा खोला। एक कार भीतर आकर सीधे पार्किंग में जाकर रुकी। मैं धीरे धीरे चलता हुआ उनकी ओर बढा। कार में से एक युवक और युवती निकले और पीछे की सीट से एक बूढी माता। युवक कुछ बोलताइसके पहले ही मैंने कहा, “अमृत वृद्धाश्रम में आपका स्वागत है, ऑफिस उस तरफ है। 

मैंने गहरी नज़रों से तीनो को देखा। ये एक आम नज़ारा था इस वृद्धाश्रम के लिए। कोई अपना ही अपनों को छोडने यहाँ आता था। सभी चुप थे पर लड़के के चेहरे पर उदासी भरी चुप्पी थी। लड़की के चेहरे पर गुस्से से भरी चुप्पी थी और बूढी अम्मा के चेहरे पर एक खालीपन की चुप्पी थी। मैं इस चुप्पी को पहचानता था। ये दुनिया की सबसे भयानक चुप्पी होती है। खालीपन का अहसास, सब कुछ होते हुए भी डरावना होता है और अंततः यही अहसास इंसान को मार देता है।

तीनों धीरे धीरे मेरे संग ऑफिस की ओर चल दिए। मैं बूढी अम्मा को देख रहा था। वो करीब करीब मेरी ही उम्र की थी। बहुत थकी हुई लग रही थी, उसके हाथ कांप रहे थे। उससे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था। अचानक चलते चलते वो लडखडाई तो मैंने उसे झट से सहारा दिया और उसे अपनी लाठी दे दी। लड़के ने खामोशी से मेरी ओर देखा। मैंने बूढी अम्मा को सांत्वना दी। ठीक है अम्मा। धीरे चलिए, कोई बात नहीं। बस आपका नया घर थोड़ी दूर ही है। मेरे ये शब्द सुनकर सब रुक से गए। युवती के चेहरे का गुस्सा कुछ और तेज हुआ। लड़के के चेहरे पर कुछ और उदासी फैली और बूढी माँ के आँखों से आंसू छलक पडे। युवती गुर्राकर बोली, “तुम्हे ज्यादा बोलना आता है क्या ? चौकीदार हो, चौकीदार ही रहो”। मैंने ऐसे दुनियादार लोग बहुत देखे थे और वैसे भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मैं इन जमीनी बातो से बहुत ऊपर आ चुका था। मैंने कहा, “बीबीजी, मैंने कोई गलत बात तो नहीं कही, अब इनका घर तो यही है। युवती गुस्से से चिल्लाई, “हमें मत समझाओ कि क्या है और क्या नहीं। युवक ने उसे शांत रहने को कहा। बूढी अम्मा के चेहरे पर आंसू अब बहती लकीर बन गए थे।

ये शोर सुनकर ऑफिस से भारद्वाज और शान्ति दीदी बाहर आये। उन्होंने पुछा, “क्या बात है ईश्वर किस बात का शोर है ?”मैंने ठहर कर कहा”जी, कोई बात नहीं,बस ये आये है। बूढी अम्मा को लेकर।“ युवती फिर भड़क कर बोली, “तुम जैसे छोटे लोगो के मुंह नहीं लगना चाहिए।“ भारद्वाज जी सारा मामला समझ गए। उन्होंने शांत स्वर में कहा, “मैडम जी, यहाँ कोई छोटा नहीं है और न ही कोई बड़ा। ये एक घर है,जहाँ सभी एक समान रहते है। और मुझे बड़ी ख़ुशी होती अगर ऐसा ही घर समाज के हर हिस्से में भी रहता !”
पूरी कहानी के लिये 
"कहानियों के मन से पर क्लिक कीजिये "
या इस पते को कापी पेस्ट कीजिये http://storiesbyvijay.blogspot.in/2014/10/blog-post.html

3.11.14

कलेक्टर श्री रूपला ने मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार की राशि कैंसर ग्रस्त मरीजों की मदद के लिये दी

रीवा जिले में कृषि उत्पादन में वृद्धि के प्रयासों में मिली जबरदस्त कामयाबी के लिए कलेक्टर शिवनारायण रूपला को आज भोपाल के लाल परेड ग्राउण्ड पर आयोजित मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के राज्य स्तरीय समारोह में मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार से नवाजा गया है । मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इस समारोह में श्री रूपला को यह पुरस्कार प्रदान किया ।  पुरस्कार के रूप में उन्हें प्रशस्ति पत्र और पचास हजार रूपए की राशि का चेक प्रदान किया गया ।
                ज्ञात हो कि श्री रूपला ने रीवा जिले का कलेक्टर रहते हुए कृषि के क्षेत्र में कई ऐसे अनूठे प्रयोग किये थे जिनकी वजह से इस जिले के कृषि उत्पादन में महज तीन साल में साढ़े तीन गुना की वृद्धि दर्ज की गई । रीवा जिला जो खाद्यान्न की अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए दूसरे जिलों पर निर्भर रहा करता था वह महाराष्ट्र को भी गेहूं और चांवल की आपूर्ति करने लगा ।
                कृषि के क्षेत्र में रीवा जिले के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए श्री रूपला ने कृषि विभाग के अमले और कृषि वैज्ञानिकों को साथ लेकर अपने प्रयासों की शुरूआत वर्ष 2011-12 से की ।  उन्होंने पिछड़ेपन के कारणों का पता लगाने के लिए न केवल गांवों का सर्वे किया बल्कि खेत-खलिहानों तक पहुंचकर किसानों से सीधे संवाद कायम किया और उनकी समस्यायें जानी । श्री रूपला ने किसानों को कृषि की नवीनतम तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया और अच्छी किस्म के बीजों, उन्नत कृषि यंत्रों एवं संतुलित खाद का उपयोग करने की सलाह दी ।
                श्री रूपला ने अपने प्रयासों को केवल यहां पर ही विराम नहीं दिया । बल्कि उन्होंने गांव-गांव में कृषक संगोष्ठियों एवं कृषक प्रशिक्षण के कार्यक्रमों का आयोजन किया ।  उन्होंने रीवा जिले के कृषकों को मालवा जैसे उन क्षेत्रों के भ्रमण पर भी भेजा जो कृषि की दृष्टि से उन्नत माने जाते हैं । श्री रूपला ने रीवा जिले में सिंचाई के साधनों से विकास की कार्ययोजना तैयार की और उसका क्रियान्वयन भी किया । बड़ी संख्या में किसानों के क्रेडिट कार्ड बनवाये और उन्हें शासन की नीतियों के तहत कृषि ऋण उपलब्ध कराया । मिट्टी का परीक्षण कराकर मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाये और किसानों को बीज एवं उर्वरकों का संतुलित उपयोग करना सिखाया ।
श्री रूपला ने गांव-गांव में कृषकों की कार्यशाला कराई और किसानों को छिटकवा पद्धति की जगह कतार से बुआई करने, देर से नहीं समय पर बोनी करने, खेत को पड़ती नहीं रखने, गहरी जुताई करने, अंतरवर्ती फसल लेने, समय पर फसल की कटाई करने, बुआई के लिए रिज-फरो एवं एस.आर.आई. पद्धति अपनाने, मंूग उड़द की खेती खरीफ में नहीं करके जायद में करने, परंपरागत खेती की जगह खेती की वैज्ञानिक पद्धति अपनाने, जैविक खेती अपनाने, बीज उपचार करने एवं फसलों को रोग मुक्त रखने, वर्षा जल का संचय करने, नलकूप और नहरों के पानी को व्यर्थ न जाने देने, सूक्ष्म सिंचाई पद्धति को अपनाने और गेहूं एवं धान की फसल को उपार्जन केन्द्रों पर ही बेचने जैसे कई संकल्प दिलवाये ।
कलेक्टर के इन सब प्रयासों का परिणाम यह निकला कि रीवा जिले ने वर्ष 2010-11 की तुलना में वर्ष 2013-14 तक खरीफ फसलों में 313 और रबी फसलों के उत्पादन में 195 फीसदी की वृद्धि दर्ज की । कीमत के रूप में देखा जाये तो इस जिले का कृषि उत्पादन जो वर्ष 2010-11 में 676 करोड़ रूपये का हुआ करता था वह 330 फीसदी बढ़कर वर्ष 2013-14 में बढ़कर 2 हजार 231 करोड़ रूपये का हो गया ।  धान की उत्पादकता में 175 फीसदी और गेहूं की उत्पादकता में 122 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई । रीवा जिले में पहली बार 2012-13 से ग्रीष्मकालीन मूंग और मक्का की खेती प्रारंभ की गई ।

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कलेक्टर श्री  रूपला ने मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार की राशि  कैंसर ग्रस्त मरीजों की मदद के लिये दी 
                                                 कलेक्टर श्री शिवनारायण रूपला ने आज यहां मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार के रूप में उन्हें प्राप्तपूरी राशि कैंसर पीड़ितों के इलाज और देख-रेख के पुनीत कार्य के लिए समर्पित की। वे अपनी धर्मपत्नी एवं बेटी के साथ कैंसर पीड़ितों के इलाज के लिए ख्यात विराट हास्पिस पहुंचे थे । श्री रूपला ने ब्राहृर्षि मिशनसमिति द्वारा रामपुर तिराहा के समीप दीक्षित इन्क्लेव में संचालित विराट हास्पिस के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अखिलेश गुमाश्ता को 27 हजार 727 रूपए की पुरस्कार राशि का चेक प्रदान किया। उल्लेखनीय है किगत 1 नवम्बर को राज्य स्तरीय मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह में मुख्यमंत्री ने कलेक्टर श्री रूपला को मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार प्रदान किया था ।


साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी द्वारा स्थापित इस चिकित्सा संस्थान में मुख्यत: ऐसे कैंसर पीड़ितों की चिकित्सा और देख-रेख की जाती है जो हर दृष्टि से निराश और निरूपाय हो जाते हैं। यहां मरीजों को भोजन  एवं रहवास की नि:शुल्क सुविधा मुहैया कराई जाती है । यही नहीं संस्थान द्वारा मरीजों को रेडियोथेरेपी एवं अन्य इलाज के लिए संस्थान के खर्च पर नाम-चीन चिकित्सालयों को भी भेजा जाता है । आठ बिस्तरों से आरंभ हुए इस संस्थान में बीते डेढ़ वर्षों में बिस्तरों की संख्या दोगुनी हो गई है । जाहिर है गंभीर रूप से कैंसर ग्रस्त मरीजों की मदद का जज्बा दूसरों के लिए भी प्रेरक बनता है । निश्चय ही कलेक्टर श्री रूपला द्वारा अपने जन्मदिन पर कैंसर पीड़ितों को राशि समर्पित करना समाज के अन्य संवेदनशील लोगों को भी प्रेरित करेगा ।

शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन...फ़िरदौस ख़ान

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को ख़िराजे-अक़ीदत पेश करते हुए ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती फ़रमाते हैं-
शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन
दीन अस्त हुसैन, दीने-पनाह हुसैन
सरदाद न दाद दस्त, दर दस्ते-यज़ीद
हक़्क़ा के बिना, लाइलाह अस्त हुसैन...
इस्लामी कैलेंडर यानी हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है. हिजरी सन् का आग़ाज़ इसी महीने से होता है. इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है. साथ ही इस माह में रोज़ा रखने की ख़ास अहमियत बयान की गई है. 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है. इस दिन अल्लाह के नबी हज़रत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था.

कर्बला के इतिहास मुताबिक़ सन 60 हिजरी को यज़ीद इस्लाम धर्म का ख़लीफ़ा बन बैठा. सन् 61 हिजरी से उसके जनता पर उसके ज़ुल्म बढ़ने लगे. उसने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इनकार कर दिया, तो उसने इमाम हुसैन को क़त्ल करने का फ़रमान जारी कर दिया. इमाम हुसैन मदीना से सपरिवार कुफ़ा के लिए निकल पडे़, जिनमें उनके ख़ानदान के 123 सदस्य यानी 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. यज़ीद सेना (40,000 ) ने उन्हें कर्बला के मैदान में ही रोक लिया. सेनापति ने उन्हें यज़ीद की बात मानने के लिए उन पर दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने अत्याचारी यज़ीद का समर्थन करने से साफ़ इनकार कर दिया. हज़रत इमाम हुसैन सत्य और अहिंसा के पक्षधर थे. हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म के उसूल, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और ईश्वर के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार थे. यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन और उनके ख़ानदान के लोगों को तीन दिनों तक भूखा- प्यास रखने के बाद अपनी फ़ौज से शहीद करा दिया. इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की तादाद 72 थी.

पूरी दुनिया में कर्बला के इन्हीं शहीदों की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. दस मुहर्रम यानी यौमे आशूरा देश के कई शहरों में ताज़िये का जुलूस निकलता है. ताज़िया हज़रत इमाम हुसैन के कर्बला (इराक़ की राजधानी बग़दाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा क़स्बा) स्थित रौज़े जैसा होता है. लोग अपनी अपनी आस्था और हैसियत के हिसाब से ताज़िये बनाते हैं और उसे कर्बला नामक स्थान पर ले जाते हैं. जुलूस में शिया मुसलमान काले कपडे़ पहनते हैं, नंगे पैर चलते हैं और अपने सीने पर हाथ मारते हैं, जिसे मातम कहा जाता है. मातम के साथ वे हाय हुसैन की सदा लगाते हैं और साथ ही नौहा (शोक गीत) भी पढ़ते हैं. पहले ताज़िये के साथ अलम भी होता है, जिसे हज़रत अब्बास की याद में निकाला जाता है.

मुहर्रम का महीना शुरू होते ही मजलिसों (शोक सभाओं) का सिलसिला शुरू हो जाता है. इमामबाड़े सजाए जाते हैं. मुहर्रम के दिन जगह- जगह पानी के प्याऊ और शर्बत की छबीलें लगाई जाती हैं. हिंदुस्तान में ताज़िये के जुलूस में शिया मुसलमानों के अलावा दूसरे मज़हबों के लोग भी शामिल होते हैं.

विभिन्न हदीसों, यानी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथन व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता और इसकी अहमियत का पता चलता है. ऐसे ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का ज़िक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा है. इसे जिन चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है.

एक हदीस के मुताबिक़ अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि रमज़ान के अलावा सबसे अहम रोज़े (व्रत) वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं. यह फ़रमाते वक़्त नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाज़ों के बाद सबसे अहम नमाज़ तहज्जुद की है, उसी तरह रमज़ान के रोज़ों के बाद सबसे अहम रोज़े मुहर्रम के हैं.

मुहर्रम की 9 तारीख़ को जाने वाली इबादत का भी बहुत सवाब बताया गया है. सहाबी इब्ने अब्बास के मुताबिक़ हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख़ का रोज़ा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ़ हो जाते हैं और मुहर्रम के एक रोज़े का सवाब 30 रोज़ों के बराबर मिलता है.
मुहर्रम हमें सच्चाई, नेकी और ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है.
हुस्ने-क़त्ल असल में मर्गे-यज़ीद है
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद...

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धर्म और संप्रदाय

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