29.10.14

रेहाना को भावपूर्ण श्रृद्धांजलियां "ॐ शांति शांति शांति "

    रेहाना जब्बारी  गुनाह को उनके क़ानून ने 25 अक्टूबर 2014  को सज़ा-ए-मौत दे दी. इसका अर्थ साफ़ है कि न तो वे न ही उनकी अदालतें किसी सूरत में औरतों के अनुकूल नहीं हैं.  औरत के खिलाफ़ किसी भी देश का क़ानून ही हो तो उस देश में न तो औरतें सामाजिक तौर पर महफ़ूज़ हैं और न ही उस देश को मानवता का संरक्षक माना जा सकता. क़ानून और न्याय व्यवस्था केवल अपराध के खिलाफ़ हों ये सामान्य सिद्धांत हैं. किंतु  रेहाना जब्बारी के खिलाफ़ हुए फ़ैसला देते हुए न्यायाधीश ने साबित कर दिया कि यदि उसे अपनी जननी या बहन बेटी के खिलाफ़ ऐसे मामले की सुनवाई करनी हो तो वो उनके खिलाफ़ भी कुछ इसी तरह का न ठीक यही फ़ैसला देगा. भारतीय सामाजिक व्यवस्था इससे इतर मानवता की पोषक है तभी यहां के क़ानून न तो नस्ल आधारित हैं, न ही किसी लिंगभेद को बढ़ावा दे रहे हैं. रेहाना की कहानी आप जानते ही हैं. एक जासूस अब्दोआली सरबंदी  ने उन पर यौनाक्रमण किया रेहाना ने रसोई के चाकू से इस आक्रमण से बचाव के लिये वार किया और कामांध सरकारी जासूस मर गया.
  हम आप रेहाना के इस क़दम के कायल हैं. वास्तव में यह कोई हत्या न थी. आत्मरक्षा के प्रयास के फ़लस्वरूप एक व्यक्ति की जान जाना आत्मरक्षक का अपराध नहीं.  इस तरह के कार्य को सनातनी एवम अन्य सहिष्णु समूह एवम समाज  पूजन योग्य मानते हैं.. जबकि असहिष्णु समूह और समाज की नज़र में यह एक अपराध है. मेरा मत है कि "विक्टिम नेवर क्रिमिनल " वो जो भी करता है समय की ज़रूरत के मुताबिक करता है. रेहाना ने चंडिका का रूप लिया और जो भी किया सही किया. रेहाना ताउम्र किसी काक्रोच को भी मारने से संकोच करती थी उसने हत्या की भी है तो हत्या इस कारण नहीं मानी जा सकती क्योंकि वो किसी आसन्न आक्रमण को रोक रही थी. ठीक वैसे ही जैसे किसी मोटे मज़बूत बुलेट-प्रूफ़ सी कांच की दीवार को पूरे आवेग से आप पार करने की कोशिश करते हैं. और चोटिल हो जा गिरते हैं. अस्तु आप का रक्षा कवच से टकरा कर चोटिल हो जाना कवज़ को अपराधी साबित नहीं कर सकता अल्प बुद्धि न्यायाधीश के दिमाग़ में कितनी अक्ल है.. और उस देश के बीमार क़ानून को बनाने वाले की क्या दशा है आप समझ सकते हैं. जो भी हो समाज के ग़रीब, कमज़ोर, तबकों को जिस देश का क़ानून संरक्षण न दे सके उस देश में ऐसी रेहानाएं अक्सर सुपुर्दे-खाक होती रहेंगी ये तय है.  रेहाना को भावपूर्ण श्रृद्धांजलियां "ॐ शांति शांति शांति "    
रेहाना ने अपनी मां को लिखा था ये खत मरने से पहले जो इस बात का सबूत है कि वि बेशक आध्यात्मिक नारी थी हिंसक न थी उसने काक्रोच भी नहीं मारा .. पर यह भी साबित हुआ कि कई देश और उनकी  अदालतें आज़ भी मानवता विरोधी हैं 
{पत्र :भारत टाइम्स से साभार}  
री प्रिय मां, 

आज मुझे पता चला कि मुझे किस्सास (ईरानी विधि व्यवस्था में प्रतिकार का कानून) का सामना करना पड़ेगा। मुझे यह जानकर बहुत बुरा लग रहा है कि आखिर तुम क्यों नहीं अपने आपको यह समझा पा रही हो कि मैं अपनी जिंदगी के आखिरी पन्ने तक पहुंच चुकी हूं। तुम जानती हो कि तुम्हारी उदासी मुझे कितना शर्मिंदा करती है? तुम क्यों नहीं मुझे तुम्हारे और पापा के हाथों को चूमने का एक मौका देती हो?

मां, इस दुनिया ने मुझे 19 साल जीने का मौका दिया। उस मनहूस रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी। मेरा शव शहर के किसी कोने में फेंक दिया गया होता और फिर पुलिस तुम्हें मेरे शव को पहचानने के लिए लाती और तुम्हें पता चलता कि हत्या से पहले मेरा रेप भी हुआ था। मेरा हत्यारा कभी भी पकड़ में नहीं आता क्योंकि हमारे पास उसके जैसी ना ही दौलत है, ना ही ताकत। उसके बाद तुम कुछ साल इसी पीड़ा और शर्मिंदगी में गुजार लेती और फिर इसी पीड़ा में तुम मर भी जाती। लेकिन, किसी श्राप की वजह से ऐसा नहीं हुआ। मेरा शव तब फेंका नहीं गया। लेकिन, इविन जेल के सिंगल वॉर्ड स्थित कब्र और अब कब्रनुमा शहरे रे जेल में यही हो रहा है। इसे ही मेरी किस्मत समझो और इसका दोष किसी पर मत मढ़ो। तुम बहुत अच्छी तरह जानती हो कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं होती।


तुमने ही कहा था कि आदमी को मरते दम तक अपने मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। मां, जब मुझे एक हत्यारिन के रूप में कोर्ट में पेश किया गया तब भी मैंने एक आंसू नहीं बहाया। मैंने अपनी जिंदगी की भीख नहीं मांगी। मैं चिल्लाना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझे कानून पर पूरा भरोसा था।'

मां, तुम जानती हो कि मैंने कभी एक मच्छर भी नहीं मारा। मैं कॉकरोच को मारने की जगह उसकी मूंछ पकड़कर उसे बाहर फेंक आया करती थी। लेकिन अब मुझे सोच-समझकर हत्या किए जाने का अपराधी बताया जा रहा है। वे लोग कितने आशावादी हैं जिन्होंने जजों से न्याय की उम्मीद की थी! तुम जो सुन रही हो कृपया उसके लिए मत रोओ। पहले ही दिन से मुझे पुलिस ऑफिस में एक बुजुर्ग अविवाहित एजेंट मेरे स्टाइलिश नाखून के लिए मारते-पीटते हैं। मुझे पता है कि अभी सुंदरता की कद्र नहीं है। चेहरे की सुंदरता, विचारों और आरजूओं की सुंदरता, सुंदर लिखावट, आंखों और नजरिए की सुंदरता और यहां तक कि मीठी आवाज की सुंदरता।
मेरी प्रिय मां, मेरी विचारधारा बदल गई है। लेकिन, तुम इसकी जिम्मेदार नहीं हो। मेरे शब्दों का अंत नहीं और मैंने किसी को सबकुछ लिखकर दे दिया है ताकि अगर तुम्हारी जानकारी के बिना और तुम्हारी गैर-मौजूदगी में मुझे फांसी दे दी जाए, तो यह तुम्हें दे दिया जाए। मैंने अपनी विरासत के तौर पर तुम्हारे लिए कई हस्तलिखित दस्तावेज छोड़ रखे हैं।
मैं अपनी मौत से पहले तुमसे कुछ कहना चाहती हूं। मां, मैं मिट्टी के अंदर सड़ना नहीं चाहती। मैं अपनी आंखों और जवान दिल को मिट्टी बनने देना नहीं चाहती। इसलिए, प्रार्थना करती हूं कि फांसी के बाद जल्द से जल्द मेरा दिल, मेरी किडनी, मेरी आंखें, हड्डियां और वह सब कुछ जिसका ट्रांसप्लांट हो सकता है, उसे मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और इन्हें जरूरतमंद व्यक्ति को गिफ्ट के रूप में दे दिया जाए। मैं नहीं चाहती कि जिसे मेरे अंग दिए जाएं उसे मेरा नाम बताया जाए और वह मेरे लिए प्रार्थना करे।    

28.10.14

पोलिओ-प्रतिरोधक टीके के अविष्कारक जोनस साल्क को नमन

Credit: Image donated by Corbis-Bettmann
explorepahistory
Pioneering research led by Dr. Jonas Salk at
the University of Pittsburgh's Virus Research Laboratory
led to production of the world's first polio vaccine in 1955.
Subsequent inoculations of school children
eradicated polio in the United States by 1962.
जोनास सॉल्क  एक महान उपकारी विषाणु विषेशग्य थे. जिनका जन्म आज यानी 28 अक्टूबर 2014 को न्यूयार्क में हुआ. वे यहूदी अप्रवासी दम्पत्ति की संतान थे. सामान्य शिक्षित माता पिता ने उनको चिकित्सकीय शिक्षा दिलाई . न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में मेडिकल स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने एक चिकित्सक बनने की बजाए चिकित्सा अनुसंधान की ओर कदम बढ़ा कर अपने लिए अलग राह चुनी ।
मित्रो मेरे जन्म यानी 20.11.1963 के ठीक 09 माह बाद मुझे पोलियो हुआ .  जबकि पोलियो रोधक टीके का विकास एवम उसकी प्रस्तुति  12 अप्रेल सन 1955 में अमेरिका के पिट्सबर्ग  में  हो चुकी थी. अर्थात लगभग आठ बरस बाद भी  अमेरिका में विकसित यह टीका आज़ाद भारत में न आ सका था.
सॉल्क ने जब  पोलियो का टीका प्रस्तुत  किया था तब  तब पोलियो की बीमारी  एक विकराल समस्या ले चुकी थी. 1952 तक इस बीमारी से प्रतिवर्ष तीन लाख  लोग प्रभावित और 58 हज़ार लोग औसतन काल का ग्रास बन रहे थे. यह आंकड़ा  अन्य दूसरी संक्रामक बीमारी की तुलना में सबसे अधिक था और भयानक भी. । इनमें से ज्यादातर बच्चे थे। राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट इस बीमारी के सबसे ख्यात शिकार थे, साल्क ने Salk Institute for Biological Studies नाम से  सन  1963 एक संस्थान की स्थापना की जिसका उद्देश्य बीमारियों की रोकथाम के लिये अनुसंधान कर प्रतिरोधकों का विकास करना             23 जून 1995 को 80 वर्ष की उम्र में उनने दुनिया से विदा ली. 

21.10.14

जी हाँ मैं धर्म सापेक्ष हूँ ।

जी हाँ मैं धर्म सापेक्ष हूँ ।
            मेरा धर्म सनातन है शाश्वत सनातन है । वो सनातन इस वज़ह से है क्योंकि उसमें विकल्प  और नए मिश्रण किये जाने योग्य तत्व मौजूद हैं इसी वज़ह से सनातन होकर भी नया नया लगता है । जो रूढीयाँ हैं समयातीत हैं उसे हटाना या परामर्जित करना सम्भव है । धर्म को मैं सामाजिक सांस्कृतिक विधान मानता हूँ । ये मेरे विचार हैं मैं ऐसा सोचता हूँ आपकी सहमति मेरा उत्साहवर्धन कर सकती है तो असहमति मुझे निराश नहीं कर सकेगी बल्कि ताकत देगी कि मैं अपने कथन की पुष्टि के लिए अनुसंधान करूँ मैं बलात समर्थन का पक्षधर नहीं । धर्म के लिए न मैं बन्दूक उठाऊंगा न ही प्रलोभन दूंगा । अगर कोई हिंसा करेंगे तो मानवता की रक्षा के लिए आक्रामक हो सकता हूँ इसे मेरा कट्टर वादी होना साबित न किया जावे । क्योंकि जीव मात्र की रक्षा करना मेरा धार्मिक अधिकार है । तुम जिस धर्म की स्थापना आतंक के सहारे करना चाहते हो उसे मैं भी सम्मान देता हूँ पर तुम्हारे आतंक को नहीं । मैंने यहूदियों के बारे में कुछ जाना है उनकी संस्कृतियों के अंत के घटकों के बारे में सुना है चाहे जो भी हो ग़लत है सुनो बताता हूँ कि सत्य सदैव सनातन है सनातन पथ सर्वे जना सुखिना भवन्तु के दिव्य प्रकाश से दैदीप्यमान है । तुम अपने अबोध बच्चों को विद्वेष मत सिखाओ वरना सर्वे जाना सुखिना भवन्तु का भाव आ ही न सकेगा.
मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा है कि 
                                खुदा के वास्ते परदा ना काबे से उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा ना हो याँ भी वही काफ़िर सनम निकले
एक दिव्य सत्य कहा है मिर्ज़ा ने..  बेहतरी इसी में है कि बच्चों को इबादत सिखाओ इबादत जो विनम्र और ज़हीन बनाती है । मुझे भी इबादतगाहों में दिव्यानुभूतियाँ हो चुकीं है मुझे मंदिर में भी वही इहसास मिलता है । बच्चों को बताओ कि  धर्म जो वर्षों से मानवता का पोषक और संरक्षक है उसे सुरक्षित अथवा बचाने असलहे आवश्यक नहीं होते ! तो क्यों ये सब करते हो ?
सोचो सनातन में साम्य भी है लचीलापन भी है । हिंसा नहीं है ।

राम ने केवल मानवता की रक्षा एवं अति भोगवादी असहिष्णु रक्षसंस्कृति से रक्षार्थ युद्ध के लिए युवानर संगठित किये थे फिर युद्ध भी किया था  राम का यह प्रयास  किसी राज्य के अंत के लिए न था । अन्यथा वे लंका को भारत का उपनिवेश बनाते पर उनने द्वि राष्ट्रधर्म का पालन किया वे विभीषण को राजा बना आए । अर्थात सनातन विस्तार को अस्वीकारता है सहअस्तित्व का पोषक है सनातन अजर  है अमर है सार्वकालिक है क्योंकि वो साधने योग्य, समयानुकूलित एवं स्थानानुकूलित है । शायद आप इस बात को स्वीकारेंगे न भी स्वीकारें तो भी मेरे विचार हैं इस पर मेरा नैसर्गिक अधिकार है . 

11.10.14

भूत-प्रेत : बकौल राज भाटिया जी

मित्रो वैज्ञानिक युग में किसी को भी पारा जीवों के अस्तिव पर यकीं नहीं होगा मुझे भी नहीं था राज़ भाटिया की तरह पर उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता आज श्री राज दादाजी की आपबीती जो फेस बुक पर उनने भेजी है का प्रकाशन कर रहा हूँ ………राज जी जर्मनी में रहते है उनके ब्लॉग निम्नानुसार हैं

भूत प्रेत, आत्मा वगैरा को मै नहीं मानता था,लेकिन एक हादसा ऎसा हुआ कि आत्मा को मानने लगा, भूत प्रेत के बारे तो पता नही, मुझे कोमा से निकले करीब तीन सप्ताह हो गये थे, लेकिन अभी भी अपने बिस्तर पर बिना सहारे बैठ नही सकता था, शरीर पर एक बडा सा चोला ही था, जो मेरे घुटनो तक था, पानी का कप भी ऊठाने के लिये मुझे नर्स को सिंगनल दे कर बुलाना पडता था, अभी भूख भी नही लगती थी, सारे दिन मे पानी ओर पानी ही पीता था, 
एक दिन दोपहर को करीब एक बजे मै जाग रहा था, लेकिन नर्से ओर डाक्टर उस समय आई सी यू मे यानि मेरे कमरे मे नही थे, तभी एक महिला डाक्टर की ड्रेस मे आई, जिसे मैने कमरे मे घुसते देखा, फ़िर वो सभी रजिस्टर को देखने लगी, दो चार बार उलट पलट के देखा, फ़िर उस ने कई दराज खोले, मै उसे चुपचाप देखता रहा, उस ने कुछ दवाये अपनी जेब मे डाली ओर चली गई, तभी उस के जाने के बाद डाक्टर र नर्से आ गई, मुझे उस महिला की हरकते अच्छी नही लगी, तो मैने डाक्टर को बुलाया सिगनल दे कर, डाक्टर जब मेरे पास आया तो मै उस महिला के बारे बताने लगा, डाक्टर ने कहा कि ऎसी कोई भी महिला इस अस्पताल मे नही है, तभी वही महिला फ़िर से कमरे मे आई, मैने डाक्टर को उस की तरफ़ इशारा कर के बताया कि वो फ़िर आ गई, डाक्टर ने मुड के देखा तो मुझे कहा वहां तो कोई नही, मैने कहा अरे वो देखो डाक्टर ने फ़िर देखा ओर मना किया कि वहां कोई नही, र मेरे सर पे हाथ फ़ेर कर चला गया.
        अब वो महिला मेरे पास आई, मुझे वो महिला बिलकुल भी अच्छी नही लग रही थी, उस के बाल उस की आंखे, एक तरह से मुझे डर लग रहा था, मेरे पास आ कर वोली हाय, मैने भी जबाब मे हाय कह दिया, बोली तुम्हारा बडा अपरेशान हुआ है ना, मैने कहा हां, वोली दिखाओ, तो मैने कहा खुद देख लो मेरे मे हिम्मत नही, मेरी वाजू नही उठती, उस महिला ने मेरे चोला छाती से ऊपर किया तो मै थर थर कांपने लगा, मेरे सामने बाकी सभी लोग उस कमरे मे थे, लेकिन दूर थे,   

वो महिला मेरी छाती पर अपने नाखुन फ़िराने लगी तो पता नही कहां से मेरे मुंह से बहुत जोर से चीख निकली मैने उसे कहा-  मुझे अच्छा नही लग रहा, कृपया मुझे ढक दो, उस ने मुझे ढक दिया ओर वापिस चली गई उसी वक्त मेरे पास एक नर्स आई बोली सब ठीक हे... मैने पूछा वो कौहै..? जो उस जगह खडी हे, लेकिन नर्स को भी वो नही दिखी, अब मुझे वहां डर लगने लगा था, लेकिन वो महिला फ़िर नही आई, मैने सभी नर्सो से ओर डाक्टर से पूछा सब ने कहा – यहां  ऎसी डाक्टर या नर्स यहां कोई नहीं है. उस दिन वो सिर्फ़ मुझे सारा समय दिखी किसी र को नही दिखी , जब कि मै उस समय होश मे था ओर जाग रहा था....ओर उस ने मेरा नुकसान भी नही किया...... भूत प्रेत, आत्मा...????
आगामी पोस्ट में मेरा व्यक्तिगत अनुभव प्रतीक्षा कीजिये 

7.10.14

मन:स्थितियां


अति महत्वाकांक्षाएं 
हिलोरे लेतीं हैं..
व्यग्रता के वायु-संवेग से 
ऊपर और ऊपर उठतीं अचानक 
धराशायी हो जातीं लहरें
और मै भी गिर पड़ता हूं.. 
उसी आघात से.. 
पर फ़िर तलाशता हूं किसी सर को
जिस पर मढ़ देना चाहता हूं.. 
अपकृत्य की ज़वाबदेही.. 
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 एक अदद देवता की तलाश में पूरी उम्र बिता दी
 कदाचित आत्मचिंतन करता 
तो शायद देवत्व का सामीप्य अवश्य मिलता 
पर भीड़ का हिस्सा हूं उसका मान ज़रूर रखूंगा.. 
आपसे विदा लेते लेते किसी देवता की  
आखिरी सांस तक ... तलाश में...

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3.10.14

*लाडली लक्ष्मी योजना : बेटियों के प्रति सामाजिक सोच एवं विचारों में बदलाव*

आराध्या और आर्या यानि  लाड़लियों के पिता श्री संतोष रायकवार एवम मां श्रीमति रेखा रायकवार  एक निजी हास्पिटल में कंपाऊंडर है जबकि मां रेखा नर्सिंग प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं.  कर रहीं हैं . जबलपुर के गेट नम्बर 04 के पास वाली घनी बस्ती में रहने वाली मां रेखा उन लाखों माताओं के लिये आइकान क्यों न  हो .. जो भ्रूण के लिंग का पता लगाने के प्रयास में सक्रीय  हैं.
 आपको ये कहानी उन सबके लिए प्रेरणा दायक है बेटे के लिए बेटियों को कोख में निशाना साध के मारने का अपराध बेहद शातिर तरीके से करतें हैं . अथवा जो सामर्थ्य वान होकर भी बेटी का जन्म बर्दाश्त नहीं कर पाते हों. संतोष की कमाई 8000 /- प्रतिमाह से अधिक नहीं है. उस पर भी ज़िम्मेदारियां हैं.. दो छोटी बहनों की शादी करनी है. इन दो बेटियों को पढ़ाना है..
आराध्या और आर्या के  माता-पिता सामान्य रूप से शिक्षित हैं आय भी कम है पर समझदार है वो उन सब पढ़े लिखे मां-बाप से भी जो जन्म के पहले अथवा जन्म के बाद मार देते है . बाल विकास परियोजना जबलपुर क्र. एक के मदन महल गेट न. 4 इलाके के श्रीमति रेखा-संतोष रायकवार ने तीन साल पहले अपनी जुड़वां बेटियों के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की सलाह पर  परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया और अपनी जुड़वां बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन कराया भी.  
रेखा ने बताया- “दुनिया जिस तेजी से बदल रही है उसी तेजी से सोच भी बदलनी चाहिये. जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बहन जी ने समझाया कि बच्चों में फर्क नहीं करना चाहिए बेटा-बेटी सब सामान है . बस फिर क्या था हमने अपनी जुड़वां बेटियों आराध्या और आर्या के अच्छे कल के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया और बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन करा भी लिया”
 संतोष कहते हैं -  आज कन्या भोजन में आराध्या और आर्या ने अपने मनमोहक अंदाज़ में सबको खूब लुभाया. आराध्या बातूनी है .. उससे उलट आर्या शांत एवं अंतर्मुखी . दौनों बेटियों को लाडली लक्ष्मी योजना का प्राप्त है.  बेटियां घर की शान हैं. इनकी अनुपस्थिति में घर सूना सूना लगता है. निम्न आय वर्ग परिवार की इन बेटियों के माता पिता ने लाड़लियों के जन्म के बाद पुत्र की ज़रूरत न होने का ऐलान कर सबको चकित कर दिया.  

लाडली लक्ष्मी योजना के उद्देश्य में बेटियों के प्रति  सामाजिक सोच एवं विचारों में आ रहे बदलाव का सबसे सटीक उदाहरण है ये कहानी..  

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...