आराध्या और आर्या यानि लाड़लियों के पिता श्री संतोष रायकवार एवम
मां श्रीमति रेखा रायकवार एक
निजी हास्पिटल में कंपाऊंडर है जबकि मां रेखा नर्सिंग
प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं. कर रहीं
हैं . जबलपुर के गेट नम्बर 04 के
पास वाली घनी बस्ती में रहने वाली मां रेखा उन लाखों माताओं के लिये आइकान क्यों न
हो .. जो भ्रूण के लिंग का पता लगाने के
प्रयास में सक्रीय हैं.
आपको ये कहानी उन सबके
लिए प्रेरणा दायक है बेटे के लिए बेटियों को कोख में निशाना साध के मारने का अपराध
बेहद शातिर तरीके से करतें हैं . अथवा जो सामर्थ्य वान होकर भी बेटी का जन्म
बर्दाश्त नहीं कर पाते हों. संतोष की कमाई 8000 /- प्रतिमाह से अधिक नहीं है. उस पर भी ज़िम्मेदारियां हैं.. दो
छोटी बहनों की शादी करनी है. इन दो बेटियों को पढ़ाना है..
आराध्या और आर्या के माता-पिता सामान्य रूप से शिक्षित हैं आय भी कम
है पर समझदार है वो उन सब पढ़े लिखे मां-बाप से भी जो जन्म के पहले अथवा जन्म के
बाद मार देते है . बाल विकास परियोजना जबलपुर क्र. एक के मदन महल गेट न. 4 इलाके के श्रीमति रेखा-संतोष रायकवार ने तीन साल पहले अपनी
जुड़वां बेटियों के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की सलाह पर परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया और
अपनी जुड़वां बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन कराया भी.
रेखा ने बताया- “दुनिया जिस तेजी से बदल रही है उसी तेजी से
सोच भी बदलनी चाहिये. जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बहन जी ने समझाया कि बच्चों में फर्क
नहीं करना चाहिए बेटा-बेटी सब सामान है . बस फिर क्या था हमने अपनी जुड़वां बेटियों
आराध्या और आर्या के अच्छे कल के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया
और बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन करा भी लिया”
संतोष कहते हैं - आज कन्या भोजन में आराध्या और आर्या ने अपने
मनमोहक अंदाज़ में सबको खूब लुभाया. आराध्या बातूनी है .. उससे उलट आर्या शांत एवं अंतर्मुखी . दौनों बेटियों को लाडली लक्ष्मी योजना का प्राप्त है. बेटियां घर की शान हैं. इनकी अनुपस्थिति में घर
सूना सूना लगता है. निम्न आय वर्ग परिवार की इन बेटियों के माता पिता ने लाड़लियों
के जन्म के बाद पुत्र की ज़रूरत न
होने का ऐलान कर सबको चकित कर दिया.
लाडली लक्ष्मी योजना के उद्देश्य में बेटियों के प्रति सामाजिक सोच एवं विचारों में आ रहे बदलाव का
सबसे सटीक उदाहरण है ये कहानी..