24.11.21

आभासी खनक पर भारत सरकार का हथौड़ा चल सकता है..?

आभासी खनक पर  भारत सरकार का हथौड़ा चल सकता है
                   गिरीश बिल्लोरे मुकुल

       4 फरवरी 2021 डाज़ी क्वाइन  2013 में प्रस्तुत की गई थी जिसे प्रमोट करके एलन मस्क ने अचानक लगभग 34 बिलियन डालर का  व्यवसाय तक बढ़ा दिया। एलन मस्क जैसा व्यक्ति  अगर किसी प्रोडक्ट को प्रमोट किया है तो लोगों का विश्वास पर बढ़ जाएगा । 
              चित्र स्रोत यहां है
      डॉज़ी क्वाइन की वैल्यू 69% बढ़ गई। जब अचानक सबके दिमाग में खलबली मची तब आप सोच रहे होंगे कि क्या वजह है कि भारत सरकार क्रिप्टो करेंसी पर हथोड़ा चलाने की बात कर रही है। अगर आपने बजट पूर्व 10 जनवरी 2021 के आसपास प्रकाशित समाचार पत्रों को ध्यान से पढ़ा होगा तो आपको पता चल गया होगा कि-"भारत सरकार और उसका रिजर्व बैंक भारत में क्रिप्टो करेंसी पर नकेल कसने वालें हैं ।
   ऐसा नहीं है कि रिजर्व बैंक ने क्रिप्टो करेंसी को प्रतिबंधित ना किया हो जी हां याद कीजिए सन 2018 में क्रिप्टो करेंसी पर भारतीय रिजर्व बैंक के जरिए भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया था।
   सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद यह प्रतिबंध हट गया था।
क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध लगने के कई कारण थे । कारणों कि पहले हम जान लेते हैं क्रिप्टो करेंसी का का इतिहास क्या है ?
क्रिप्टो करेंसी एक ऐसी परिकल्पना का आकार है जिसकी बुनियाद 1983 में अमेरिका के डेविड चाउम ने की थी। वे चाहते थे कि करेंसी डिजिटल भी हो सकती है। यहीं से शुरू हुई क्रिप्टो करेंसी की कल अपनी की यात्रा। पैसे का डिजिटल ट्रांसफर जिसे अमेरिका ने डिजीकैश के रूप में परिभाषित किया और इसी क्रम में जापान के एक कंप्यूटर विशेषज्ञ या कहा जाए डेवलपर सतोषी डाकामोटो ने 2009 में बिटकॉइन की शुरुआत की। इसके पहले बिटकॉइन की तरह किसी ने भी केंद्रीकृत आभासी करेंसी का प्रयोग नहीं किया था। अब तक दुनिया में 25 प्रकार की क्रिप्टो करेंसी प्रचलन में है। 
( क्रिप्टो करेंसी की सूची विकिपीडिया पर उपलब्ध है । )
   क्रिप्टो करेंसी पूरी तरह से डिजिटल करेंसी है। ना तो आप इसे छू सकते हैं ना ही इसकी खनक सुन सकते हैं।
   इसके बहुत से फायदे हो सकते हैं लेकिन इससे होने वाली फजीहतों को देखते हुए भारत सरकार ने इस पर एक बिल लाने की तैयारी कर ली है।
    क्योंकि यह करेंसी अंतरजाल पर होने के कारण हैकर द्वारा है की जा सकती है। करेंसी का धारक किसी जालसाजी का शिकार हो सकता है। इस करेंसी पर भारत की परंपरागत करेंसी की तरह यह नहीं लिखा जाता कि मैं धारक को ..... रुपए अदा करने की गारंटी देता/देती हूं।
    उपरोक्त के अलावा इसे वैश्विक अधिमान्यता नहीं है।
दक्षिण एशियाई देशों में भारत एक ऐसा देश है जो आतंकवाद एवं मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। यह करेंसी ब्लैक मनी बनाती है। और भारत सरकार का इनकम टैक्स विभाग रिजर्व बैंक इससे मिलने वाले लाभ पर ना तो कर लगा सकता है ना ही जीएसटी वसूल कर सकता है। एक समानांतर आर्थिक सत्ता स्थापित हो जाने से भारतीय प्रशासनिक आर्थिक और सामाजिक ढांचा भविष्य में गड़बड़ भी हो सकता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
   ऐसी स्थिति में भारत सरकार भारत में 16 एक्सचेंज के माध्यम से निवेश करने वाले 10 करोड़ भारतीय निवेशकों को सुरक्षा देना चाहती है।
   यद्यपि यह करेंसी अमेरिका और जापान में विकसित हुई है परंतु इसके निवेशक भारत में सर्वाधिक है जो लगभग 10 करोड़ भारतीय नागरिक के रूप में पहचाने गए हैं। एक मजेदार तथ्य है कि अधिकांश निवेशक औसतन 24 वर्ष की उम्र वाले हैं। चलिए अब हम जानते हैं कि भारत के अलावा शेष तीन और कौन से देश है जहां क्रिप्टो करेंसी सर्वाधिक रूप से प्रचलित है जी हां इनमें अमेरिका जहां लगभग दो करोड़ व्यक्ति रूस और नाइजीरिया जहां एक करोड़ से अधिक लोग क्रिप्टो करेंसी में अपनी धनराशि निर्देशित कर चुके हैं। टर्की में इस आभासी खनक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
क्रिप्टो करेंसी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्व से अनुरोध किया था कि इससे आतंकवादियों ड्रग माफिया जैसे वर्ग को सबसे ज्यादा लाभ हो रहा है और यह करेंसी अगर रेगुलेट नहीं होती है तो विश्व के लिए भी खतरा है। आप सोच रहे होंगे कि मोदी जी डिजिटल करेंसी को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन इस डिजिटल करेंसी को बढ़ावा क्यों नहीं दिया जा रहा..?
   आपका सवाल बिल्कुल वाजिब है किंतु आप जानिए एक समानांतर अर्थव्यवस्था जैसा मैंने पूर्व में कहा किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को चौपट कर सकती है। यह अर्थव्यवस्था वैसी ही है इसमें राष्ट्र को पूर्व में वर्णित लाभ यथा आयकर जीएसटी इत्यादि नहीं मिलती दूसरे यह करेंसी अवैधानिक कार्यों को अंजाम देने के लिए बेहद आसान संयंत्र भी है।
    आज मेरे मित्र पूछ रहे थे इन 10 करोड़ निवेशकों का क्या होगा अगर भारत में निजी क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध लगेगा..?
    एक भारतीय के नाते उन्हें यह सुझाव मान लेना चाहिए कि वह अपना निवेश क्रिप्टो करेंसी में अब ना करें और जो किया है उसे वापस प्राप्त करलें । अगर निवेशकों को क्रिप्टो में ही निवेश करना ही है तो प्रतीक्षा करें शायद रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल करेंसी जारी कर दे। क्योंकि रिजर्व बैंक करेंसी धारक को राशि अदा करने की गारंटी अवश्य ही देगी।

What is Melody of Life मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?

मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?
      इसे समझने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए। पर मेरे पास बहुत बड़ा दिल नहीं है तब मैं किस तरह जीवन के आल आपको सुन सकूंगा या उस अलाप की अनुगूंज का आभास कर सकूंगा। दरअसल मेलोडी ऑफ लाइफ वीतरागियों को  हासिल होती है सबको यह सब हासिल कैसे हो सकता है?
   अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
   परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
    जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
   मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सदगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*
*चिंतन*

*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?*
      इसे समझने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए। पर मेरे पास बहुत बड़ा दिल नहीं है तब मैं किस तरह जीवन के आल आपको सुन सकूंगा या उस अलाप की अनुगूंज का आभास कर सकूंगा। दरअसल मेलोडी ऑफ लाइफ वीतरागियों को  हासिल होती है सबको यह सब हासिल कैसे हो सकता है?
   अक्सर हम बड़े बुजुर्गों को टोका टाकी करते हुए देखते हैं। पर इग्नोर इसलिए करते हैं कि वह उम्र के उस पड़ाव पर है जहां से उन्हें नए सिरे से कोई शिक्षा नहीं दी जा सकती। देना भी नहीं चाहिए वे मां बाप भाई मित्र या कोई भी हो सकता है।
   परंतु इसका अर्थ यह नहीं की ऐसी स्थितियां दिल को कचोटती ना हो ।
    जीवन आनंद का उत्सव है जीवन प्रेम का पंथ है। जीवन शोषण का और शोषित करने का मौका नहीं है।
   मैं अगर ईश्वर वादी हूं तो मुझे अपने साथ बाकी सब को ईश्वर का अंश मानना ही होगा। पर मैं ऐसा नहीं करता हूं अपने आपको तो ईश्वर का अंश मान लेता हूं परंतु दूसरे को नहीं। ऐसी स्थिति में दूसरों गलतियां कमियां और उससे उत्पन्न विशाद मन पर हावी हो जाता है। मन की आज्ञा अनुसार हम वैसे ही कर्म करने लगते हैं। और यह कर्म हमें उत्तेजना एवं क्रोध यहां तक कि हिंसा की ओर ले जाते हैं। और यह नकारात्मक भाव मेरे डीएनए का स्वरूप ही बदल देता है। और फिर क्रोध और हिंसा भाव वंशानुगत पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। मुझे विश्वास है सतगुरु ने कहा था कि शरीर याद रखता है उन सब बातों को जो आपके जन्म के पूर्व ही हैं? मैंने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है और फिर यह विचार कायम हुआ कि सद्गुरु बिल्कुल सही कह कहते हैं
वास्तव में हमारी मानस में जो भी घट रहा होता है उसका संचय हमारे डीएनए में आसानी से हो जाता है। और वही सब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को जाने-अनजाने सौंप देते हैं। चलिए विचार करते हैं इस पर फिर देखते हैं कि मन का *मनका* कितना परिष्कृत हुआ है।
*निरन्तर जारी...*

*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* (द्वितीय सोपान)
      प्रेम ही संसार नीव है। स्वामी शुद्धानंद नाथ जी की इस एक पंक्ति मैं जीवन का रहस्य छुपा हुआ है। प्रेम में अपेक्षा और उपेक्षा जो नींबू का रस या टाटरी का प्रयोग करना प्रेम के मूल तत्व को विघटित कर देता है। कुछ दिनों पूर्व की घटना है गली में एक कुत्तिया अपने कुछ बच्चों के साथ आई। मोहल्ले में एक शिक्षक था जो निजी तौर पर कोचिंग क्लास चलाता था। उसके मन में करुणा भाव उन्हें देखकर अचानक संचारित हो गया। उसने उन बच्चों और उस कुतिया को अपने आवास स्थल पर संरक्षण दे दिया। और उनकी सेवा करने लगा। इस बात का ज्ञान जब हम सबको हुआ तो हमने देखा कि हमारी भतीजी ने उस करुणा को विस्तार दे दिया। वर्क फ्रॉम होम करते हुए बिटिया ने कुछ समय उनकी सेवा सुश्रुषा के लिए निकाला। उन पर नजर रखी। गंभीरता से देखभाल करने लगी।
   और धीरे-धीरे एक से विचारधारा वाले लोग उन बच्चों के प्रति समर्पित होने लगे। बच्चे कुत्ते के थे इनसे हमारा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं बल्कि इससे हमें यह है स्वभाविक है कि यह काटेंगे और जिस के दुष्प्रभाव गंभीर रूप से होंगे। बस सही भी है परंतु एक दिन अचानक मुझे सूचना मिली की सभी कुत्तों को टीके लगवा दिए गए हैं। और मन में कौतूहल पैदा हुआ। मैंने उस डॉग लवर से बातचीत भी की उसने बताया कि वह उनकी सेवा इसलिए करता है कि उसे आत्म प्रेरणा मिली। कहानी पूरी तरह से साफ और प्रेरक थी मेरे लिए। यद्यपि मैंने सिर्फ उन कुत्तों को स्नेह भाव से देखता मात्र था। जबकि कई लोग उनकी सेवा स्वरूप उन्हें भोजन कराते दूध ब्रेड दूध रोटी आदि उपलब्ध कराते थे। एक दिन अचानक उनमें से एक कुत्ता मर गया पता चला कि शैशव काल में ही किसी संक्रमण के कारण अधिकतर कुत्ते जीवित नहीं रह पाते। एक दिन दफ्तर से लौटकर देखा तो पाया कि शेष कुत्तों के इलाज के लिए डॉक्टर उनका इलाज कर रहा है। मुझे अच्छी तरह से याद है कोविड-19 के पहले दौर में भयभीत लोग अपने अपने घर के भीतर थे परंतु सरकारी कर्मचारी पूरी मुस्तैदी से फील्ड में घूम रहे थे।  मेरे दो सहकर्मी अक्सर अपनी कार में ₹700 का चारा खरीदते थे तथा सड़क के किनारे खड़ी भूखी गायों को खिलाया करते हैं। तभी पता चला की कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सुबह से जब लोक सेवा के लिए जाती थी तो साथ में अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ बिस्किट और कुछ रोटी या खाद्य पदार्थ लेकर जाती थी। यकीन मानिए उन दिनों मेरी दोस्ती गिलहरी से हो चुकी थी सुबह 5:00 बजे नींद खुलती थी और मैं छोटे से कटोरी में पानी तथा कुछ दाने वगैरह डाल दिया करता था। गिलहरियां आती दाने खाती और चली जाती। लेकिन एक दिन बहुत देर से उठने के कारण गिलहरियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उस दिन कि सुबह अच्छे से याद है जब 8:00 बजे सुबह गिलहरियों के शोर ने मुझे अंततः जगा ही दिया बाहर जाकर देखा उनकी वह आवाज खुशी में बदल गई। मेरी ना उठने की स्थिति में श्रीमती जी ने पहले ही गाने और पानी की व्यवस्था कर दी थी। परंतु मेरी अनुपस्थिति शायद गिलहरियों को खल रही थी। उनका यह प्रेम देखकर ईश्वरी सत्ता पर विश्वास हो गया। हां तो मैंने इस कहानी के पहले कुत्तों के बारे में बात की थी तो यह बता दूं कि हम अकेले ही नहीं हजारों हजार लोग मूक प्राणियों की सेवा में लगे हैं गौ सेवा गौरैया की सेवा चीटियों की सेवा करते हुए परम सुख की प्राप्ति और उसका आनंद ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव है और ईश्वर का सम्मान है। यही तो है मेलोडी ऑफ लाइफ। आपको याद होगा कि एक आईटी प्रोफेशनल विदित शर्मा ने स्वप्रेरणा से कोविड-19 काल से ही एनसीआर क्षेत्र में अपनी शादी के लिए संचित राशि से गली के कुत्तों को भोजन का अभियान शुरू किया है। यह अभियान अब तक जारी है जिसका जिक्र प्रधानमंत्री स्वयं कर चुके हैं।
   मौत के मुहाने पर खड़ी थी दुनिया दुनिया ने तक जाना करुणा का अर्थ। मेरे हिसाब से तो करुणा दया प्रेम ईश्वर सबको समान रूप से देता है लेकिन महत्वाकांक्षा अहंकार क्रोध कुंठा जैसे भाव इन भावों पर हावी हो जाते हैं।
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*मेलोडी ऑफ लाइफ क्या है ?* भाग 03
     लघु कणों में  भी भयानक विस्फोट की क्षमता होती है। यह आप सब जानते हैं मुझे भी पता है। हिरोशिमा नागासाकी से अब तक हजारों खबर हम पढ़ चुके हैं। पृथ्वी हिल जाती है मानवता तबाह हो जाती है। इसके अलावा आप देखते हैं कि रेत के कणों का क्या आकार होता है पर रेत का पहाड़ अगर किसी रास्ते में आ जाए तो सारे के सारे पथ चलने योग्य कहां होते हैं। किसे मालूम था कि अदृश्य सा कोविड-19 का विषाणु समूची सभ्यता को निगल जाने की तैयारी कर चुका था, भयातुर मानव समूह जीवन के लिए सशंकित रहा है।
   ज़हर अगर एक बूंद भी होता है या उससे आधा भी असर जरूर करता है। बहुत दिनों तक किसी सरफेस को आप अनदेखा करें तो पाएंगे कुछ दिनों में उस सरफेस पर आपका अधिकार ना होकर धूल के कणों का अधिकार हो जाता है।
     जीवन के लिए यही एक सिद्धांत है कि अपने मानस पर जम रही धूल को हटाते जाइए। किसी के प्रति नजरिया नेगेटिव रखिए तो वह व्यक्ति बहुत भयानक नजर आएगा। मन उसके आते ही उत्तेजना से भर जाएगा और सुलगने लगेंगी विध्वंसक आग। और यही आग बन जाती हैं दावानली लपटें !
    किसी से घृणा का आधार कुछ भी नहीं होता बल्कि यह एक मनोरोग है।
घृणा करने के कई कारण होते हैं-
[  ] आप दुनिया को अपनी तरीके से चलाना चाहते हैं और जो आप के तरीके को स्वीकार नहीं करता उससे आप घृणा करने लगते हैं। हम मूर्ति पूजा करते हैं जबकि इस्लाम कहता है मूर्ति पूजा हराम है और मूर्तिपूजक काफ़िर है। काफिर को मारना अल्लाह की आज्ञा है जो प्रॉफिट ने कुरान में दर्ज कर दी है। धर्म विवाह शिक्षा यह कुल मिलाकर व्यक्तिगत मामले हैं परंतु संप्रदाय कहता है नहीं उन्हें जीने का हक नहीं है जो क़ाफ़िर हैं । सोचिए क्या यह जायज है नहीं यह बिल्कुल जायज नहीं है। तो जायज क्या है..? इस दुनिया में हम भी ऐसे कुछ मंतव्य स्थापित करना चाहते हैं जो हमारे हैं !
          और जब हम अपने नैरेटिव को इस्टैबलिश्ड नहीं कर पाते तब हमें क्रोध आता है। क्रोध की जीवन अवधि संभवत 2 मिनट से भी अधिक नहीं होती। लेकिन यह 2 मिनट का क्रोध हमारे जीवन की संचित पुण्य पूंजी का 100% तक हिस्सा हथिया लेता है।
[  ]   इस तरह क्रोध का आधार अति महत्वाकांक्षा और ईश्वर के प्रति श्रद्धा ना रखते हुए स्वयं को महान कर्ता के रूप में प्रदर्शित करने की लालसा भी है।
[  ] अक्सर जब आप किसी के लिए कुछ करते हैं या पारिवारिक रिचुअल्स में अर्थात पारिवारिक परंपराओं के कारण कुछ आर्थिक मानसिक शारीरिक रूप से करते हैं यह कार्य ईश्वर के अलावा किसी के कारण नहीं होता। अपने कार्यों का बखान करवाना करना तथा जिसके लिए कार्य किया है उसे अपना जरखरीद गुलाम मान लेना और जब वह व्यक्ति परिस्थिति वश आप की गुलामी ना स्वीकार करें तो उसे बेइज्जत करना या बार-बार उसे एहसास दिलाना या उस पर क्रोध व्यक्त करना कुटिल तथा व्यंगात्मक शैली में बोलना क्रोध और कुंठा का जनक है ।
[  ] स्वामी शुद्धानंद नहीं अपने सूत्र में लिखा है कि- दुर्बल व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता और प्रेमी कभी दुर्बल नहीं हो सकता..!
    स्वामी जी का यही सूत्र वाक्य घोषित करता है कि क्रोध और कुंठा कुल मिलाकर मनोरोग है और जो अत्यंत क्रोधी होते हैं वह मनोरोगी होते हैं।

19.11.21

सांप्रदायिकता बनाम बेतरतीब सृजित मंतव्यों की स्थापना के प्रयास


  बहुत दिनों से कन्वेंशनल एवं सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत है कि कहीं से सकारात्मक वातावरण की उत्पत्ति होती है उसका स्वागत करना चाहिए। इन सवालों से ऊपर है काफिर और गज़वा ए हिंद जैसे शब्द..!

   मनुष्य एक मानव का जन्म लेता है और फिर वह अपनी मान्यता के अनुसार या कहीं परंपरा के अनुसार उस मत को स्वीकार कर लेता है . 

   वह या तो मूर्ति पूजक हो जाता है या निरंकार ब्रह्म की उपासना में अपने आपको पता है। इन दिनों जो वातावरण निर्मित किया गया है वह है सनातन के विरुद्ध शंखनाद रने का। निरंकार  ब्रह्म तथा साकार ब्रह्म की उपासना पर किसी को कोई संघर्ष जैसी स्थिति निर्मित नहीं करनी चाहिए। जब स्वयं सिद्ध है कि भारतीय एक ही डीएनए के हैं तो सांस्कृतिक एकात्मता गुरेज़ कैसा. ?
 इस सवाल की पतासाजी करने पर पता चला कि लोग एक दूसरे की पूजा प्रणाली पर भी सवाल उठाने लगे। काफिर का मतलब है कि जो बुरा है और बुरा वह है जो मूर्ति की पूजा करता है या जो उन डॉक्ट्रींस को नहीं मानता जो किसी ने कहे हैं। भाई यही संघर्ष का कारण है। अगर मैं कहूं कि मैं क़यामत का इंतजार नहीं करता बल्कि मुमुक्ष होकर  जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्ति की उम्मीद करता हूं । 
और उसके लिए साधना करना यदि अब्राहिम अवधारणा पर आधारित एक संप्रदाय कोम मानने वालों को, एतराज़ नहीं करना चाहिए। 
और यदि मैं कहूं कि अब्राह्मिक संप्रदायों पूजा प्रणाली ग़लत है तो मैं स्वयं ही ग़लत हूं मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए । अर्थात एक दूसरे की पूजा पद्धतियों का सम्मान करना चाहिए जैसा भारत आमतौर पर करता है। परंतु मूर्तिपूजक हमेशा काफ़िर कहे जाते हैं यह कहां तक न्याय पूर्ण है ? और यह भी कहाँ जायज़ है कि तलवार के दम पर या किसी तरह की स्ट्रेटजी बना कर आपके विश्वास को बदलने के लिए बाध्य किया जाए। 

       यहां हम कलाम साहब बाबा भीमराव अंबेडकर सहित हजारों उन लोगों को याद करना चाहते हैं जो अप्रासंगिक मान्यताओं के विरुद्ध अपनी रख चुके हैं। उन्होंने क्या कहा था उसे बिना याद किए बताना जरूरी है कि सांप्रदायिक सहिष्णुता त्याग मांगती है और हम वर्षों से ऐसा त्याग करते चले आ रहे हैं। यह सनातन विचारधारा का मौलिक आधार भी है। हम विश्व बंधुत्व की बात करते हैं हम अनहलक अर्थात एकस्मिन ब्रह्म: द्वितीयो नास्ति ..

  भारतीय दर्शन में धर्म का यही विशाल इनपुट भारतीय दर्शन को मजबूती देता है और उससे झलकती है भारतीय सामाजिक व्यवस्था में सहिष्णुता । और जो काम गुरुद्वारे ने किया वह उनके सहिष्णुता आधारित संस्कार  के कारण हुआ। गुरु तेग बहादुर और उनके चारों साहबजादे बहुत याद आते हैं ऐसा लगता है यह सब घटनाक्रम इतिहास में नहीं बल्कि हमारी आंखों के सामने हो रहा था। 16 महाजनपद भारतीय प्रशासनिक प्रबंधन व्यवस्था के मूल आधार थे। इन महाजनपदों में विश्व व्यापार विभिन्न महाद्वीपों में सत्ताओं के साथ  अंतर्संबंधों के प्रमाण कोणार्क के सूर्य मंदिर में नजर आते हैं । आप जाकर देख सकते हैं । सनातन सार्वकालिक  सहिष्णु है ।  इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। परंतु जब हम देखते हैं कि हमारी सामाजिक धार्मिक एवं एथेनिक व्यवस्था को खंडित किया जाता है तो हम विध्वंसक को किस तरह से दीर्घकाल तक स्वीकार कर सकते हैं।

    वैसे इन दिनों हिंदू और हिंदुत्व जैसे शब्दों पर भी अल्प ज्ञानी विशद व्याख्या करने को उतारू हैं ! हिंदुत्व एक एब्स्ट्रेक्ट है हिंदुत्व को हिंदू जब एग्जीक्यूट करता है तो वह विभिन्न प्रकार से परंपराओं, रीतियों, और आज्ञाओं  का परिपालन करता है। इसमें कहां हिंसा है बताएं शायद कहीं भी नहीं। जब हिंसा नहीं है तो दिवाली होली दशहरा जैसे पर्व टारगेट किए जाते हैं। मात्र 4 दिन का दीपावली पर्व पर मुख्य रूप से झोपड़ियों से अट्टालिकाओं को ज्योतिर्मय करना कहां प्राकृतिक छेड़छाड़ है। हां पटाखे चलाए जाते हैं। इन पटाखों से अवश्य कुछ प्रतिशत पर्यावरण प्रभावित होता है परंतु उपभोक्तावादी वैश्विक सामाजिक व्यवस्था के लिए जो कारखाने खोले गए हैं उनका क्या ?

    मामला 365 दिनों का अगर है तो जायज है सवाल उठाना ! परंतु केवल पर्व को दोषी साबित कर देना अथवा होली पर पानी की कमी का रोना रोना क्या सनातनीयों को टारगेट करने का प्रयास नहीं है। सनातन तो नहीं कहता कि किसी पर्व पर पशुओं की बलि देना इकोसिस्टम को गंभीर रूप से प्रभावित करता है? फिर किस आधार पर हिंदुत्व दूषित है या दोषपूर्ण है या उस पर अंगुलियां उठाई जाती हैं। सामाजिक व्यवस्था में हमारी परंपराओं एवं हमारे एथेनिक संकेतों को लक्षित करना न केवल अन्याय है बल्कि हिंदुओं पर अघोषित प्रहार भी है। तथाकथित बुद्धिजीवियों को समझ लेना चाहिए कि- यज्ञ और साधनाएं जिसमें हवन शामिल हैं से पर्यावरण संरक्षण होता है। कोशिश करें समझने की..,  कि सनातन क्या है हर बात में सियासत अच्छी नहीं ।

   समाज समाज की परंपराएं उस क्षेत्र की जलवायु भौगोलिक परिस्थिति एवं वहां रहने वाले लोगों की प्राचीन से परिष्कृत होते हुए वर्तमान तक की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था से बनती है। भारत कृषि प्रधान देश रहा है उसकी अपनी प्राचीन सामाजिक व्यवस्था एवं प्रणाली है जो दिनोंदिन परिमार्जित होती रहती है। जबकि कुछ व्यवस्थाएं बदल ही नहीं पातीं । परिस्थिति जो भी हो अपनी राजनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ना बहुत बड़ा अपराध होगा और आने वाली नस्लें ऐसे किसी प्रयास को माफ नहीं कर सकती ।जहाँ तक गुरुद्वारे में विधर्म आराधाना की अनुमति देने का वाकया है.... उसके आधार में प्रबंधन कमेटी के पदाधिकारियों को पूज्य गुरु तेग बहादुर जी  एवम साहिबजादों का  बलिदान याद नहीं । अभागे लोग हैं । 

16.11.21

भारत के संदर्भ में राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति की अवधारणा
    आजकल राष्ट्रवादी विचारधारा बेहद प्रासंगिक और प्रभाव शिल्पी है। बावजूद इसके खुद को राष्ट्रवादी साबित करने के लिए लोग यह प्रयास करते हैं कि वह धर्म की वकालत करें या उस पर चर्चा करते रहे।
    और जो अपने आप को राष्ट्रवादी नहीं मानते वह भी इतने कुंठा ग्रस्त नजर आते हैं कि किसी बहुसंख्यक आबादी को निशाना बनाने से खुद को बचा नहीं पाते। जहां तक भारत के संदर्भ में राष्ट्रवाद का प्रश्न है राष्ट्रवाद की परिभाषा का पुनरीक्षण या उसकी स्पष्ट व्याख्या जरूरी है।
  वर्तमान में जो परिभाषा दी है सबसे पहले उसे देख लेते हैं:-
"राष्ट्रवाद (nationalism) यह विश्वास है कि लोगों का एक समूह इतिहास, परंपरा, भाषा, जातीयता या जातिवाद और संस्कृति के आधार पर खुद को विभाजित करता है। इन सीमाओं के कारण, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उन्हें अपने स्वयं के निर्णयों के आधार पर अपना स्वयं का संप्रभु राजनीतिक समुदाय, 'राष्ट्र' स्थापित करने का अधिकार है।"
    बुद्धिमान और विद्वान इस संदर्भ में मौन है। और उनकी यही चुप्पी न केवल राष्ट्रवाद को सही तरीके से प्रस्तुत होने दे रही है और ना ही उसे अच्छी तरह प्रस्तुत किया जा रहा।
   राष्ट्रवाद में जाति का या जाति समूह परंपरा भाषा आदि आदि को घटक के रूप में शामिल कर कुल मिलाकर मानवता के विरुद्ध परिभाषित करने की कोशिश की है। स्पष्ट रूप से देखा जाए तो राष्ट्रवाद को सार्वभौमिकता की भारतीय अवधारणा से जिसमें वसुधैव कुटुंबकम सूत्र वाक्य का उल्लेख किया गया है को मानवता का विरोधी माना है।
    वास्तव में राष्ट्रवाद राष्ट्र की भौगोलिक सांस्कृतिक एवं परंपरागत यह कुल मिलाकर सभ्यता के विकास का प्रयास है ।
   प्रचलित परिभाषा हिटलर के डोर वाले जर्मन के नाजीवाद की छवि के आधार पर बनाई गई है। भारत जैसे देश जहां की मूल अवधारणा में वसुदेव कुटुंबकम वहां यह परिभाषा लागू करना ऐतिहासिक भूल है।
    भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा क्या होनी चाहिए...?
     इस विषय पर अब विमर्श की आवश्यकता है .. !
    मेरे दृष्टिकोण से भारत के संदर्भ में "हम भारत के लोग अपनी भौगोलिक सीमाओं के भीतर समतामूलक समाज की परंपराओं का पालन करते हुए शांति सद्भाव एवं समन्वय के साथ राष्ट्र की प्रभुसत्ता, एवं आंतरिक एवं बाहरी सुदृढ़ता के लिए प्रतिबद्ध हैं..! हम अपनी इस प्रतिबद्धता के लिए भारत के संविधान में सन्निहित बिंदुओं के लिए वचनबद्ध हैं । यही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है यही हमारा राष्ट्रवाद है। हम वैश्विक संस्कृतियों के सम्मान के साथ अपनी संस्कृति के प्रकटीकरण के अधिकार की रक्षा करते हैं। हमारा राष्ट्रवाद किसी संप्रदाय के सम्मान के साथ उनके द्वारा हमारे आत्मसम्मान की रक्षा पर आधारित है।"
     प्रचलित परिभाषा में राष्ट्रवाद को एक अवधारणा Concept माना गया है जबकि उपरोक्त अनुसार दी गई परिभाषा में राष्ट्रवाद कांसेप्ट नहीं एक डिक्लेरेशन अर्थात उद्घोषणा है।
    यहां स्वर्गीय बापू श्री मोहनदास करमचंद गांधी जी अर्थात बापू जी के उस उत्तर से सहमति नहीं है कि राष्ट्रवादी भटके हुए हैं।
   राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी भारतीय संदर्भों में सहिष्णुता की सबसे बेहतरीन मिसाल है ।
   भारतीय राष्ट्रवाद को सूक्ष्म नजर से देखा जाए तो भारतीय राष्ट्रवाद सेवा और समानता का एक अमूर्त किंतु सर्वमान्य दस्तावेज है। भारत में राष्ट्रवाद सनातन धर्म  तथा उसमें अंतर्निहित समुदायों तथा अन्य विदेशी संप्रदायों के साथ प्रारंभिक तौर पर ही सम्मानजनक व्यवहार करता है। अतः आवश्यक नहीं है कि पृथक से सेक्युलर होने की कोई गारंटी दी जावे।
    भारतीय राष्ट्रवाद किसी आक्रांता भयभीत करने वाली ताकतों संस्कृति एवं धार्मिक कटाक्ष की निंदा करता है। सनातन धर्म में अंतर्निहित प्रावधान डॉक्ट्रींस एवं एडवाइजरी बहुविकल्पीय होने के कारण देश काल परिस्थिति के साथ परिवर्तित होती रहती हैं। किंतु किसी के व्यक्तिगत हित के लिए इसे परिवर्तित नहीं किया जाता और ना ही ऐसी करने की कोई अनुशंसा ही की गई है। अतः यह समझना जरूरी है कि भारतीय राष्ट्रवाद एक तरह से सतर्क एवं सचेत जीवन शैली भी है ।
    यह जीवन शैली परंपराओं एवं सामाजिक सांस्कृतिक प्रथाओं के परिपेक्ष में स्वयं अनुकूलित हो जाती है।
     मूल रूप से भारत में जाति प्रथा नहीं है। वास्तव में यह वर्ण व्यवस्था है जिसका सीधा संबंध अर्थ उपार्जन की प्रक्रिया से है। कालांतर में सोने का काम करने वाला सोनी हो गया तो लोहे का काम करने वाला लोहार हो गया। क्योंकि उन्हें एक ही प्रकार का एनवायरमेंट प्राप्त था अतः वे उसी समूह में रहने लगे और उन्हीं के साथ सामूहिक सामाजिक व्यवहार रीति रिवाज आदि का पालन करने लगे यह दीर्घकालीन परिणाम है ना कि भारतीय दर्शन में इसका कोई अस्तित्व रहा है। इसे समझने के लिए वैदिक व्यवस्था को समझना होगा।
  विदेशी आक्रांताओं के आक्रामक रवैया से तदुपरांत फूट डालो राज करो के सिद्धांत के आधार पर सामाजिक विघटन मध्यकाल के आते आते वृहद रूप से हो गया और इसे स्थायित्व मिला। यद्यपि यह विषय बहुत अधिक विचार का है परंतु इस विषय पर विमर्श आयातित विचारधाराओं के प्रभाव से बेहद नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है। अब तो ना शास्त्रार्थ होते नाही विमर्श होते। अब केवल अपनी मत एवं मंतव्य की स्थापना के प्रयास बौद्धिक स्तर पर भी होने लगे हैं। अस्तु भारतीय राष्ट्रवाद किसी जाति धर्म संप्रदाय वर्ग वर्ण भाषा क्षेत्र से विरत एकात्मता की परिभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। यहां जर्मन की तरह कभी कोई कोई बंधन नहीं था या नहीं है कि भारत में रहकर आप अपनी स्वधर्म का या सांप्रदायिक मूल्यों का पालन नहीं कर सकते। इसका उदाहरण पूर्व काल में भारत में गिरजाघर और प्रार्थना स्थल के लिए हमारे पूर्वज भूमि और संसाधन भी प्रदान करते थे।

उत्तर पूर्वी सीमाओं पर भारत का पहरेदार S-400


एस-400 ट्रिम्फ एक विमान भेदी हथियार एस-300 परिवार का नवीनीकरण के रूप में रूस की अल्माज़ केंद्रीय डिजाइन ब्यूरो द्वारा 1990 के दशक में विकसित विमान भेदी हथियार प्रणाली है। यह 2007 के बाद से ही रूसी सशस्त्र सेना में सेवा कर रही है। (Wikipedia)
    रूस में विकसित यह मिसाइल रूस की एक और रक्षा प्रणाली S-300 का एडवांस रूप है . इस रक्षा प्रणाली पर भारी मात्रा में पैसे खर्च करने के औचित्य को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं परंतु इसी रक्षा प्रणाली के खरीदने के लिए जिन तथ्यों को महत्वपूर्ण माना जाता है उनमें लाल साम्राज्य अर्थात चीन की विस्तार वादी नीति सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अपने व्यवसाय हित को साधने के लिए चीन पूर्वोत्तर राज्यों में भी अपना हक जमाना चाहता है और उसकी कोई भी अंतरराष्ट्रीय संधि ऐसी नहीं है जिसमें चीन ने अपना लाभ ना देखा हो।
*S400 की सप्लाई प्रारंभ।*
   चीनी विस्तार वादी नीति के विरुद्ध भारत ने विलंब से किंतु जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि है की S400 के आने के बाद पूर्वोत्तर शक्ति संतुलन की स्थिति निर्मित हो जावेगी। कुछ विद्वानों का यह मानना है कि इससे उत्तेजित होकर चीन अपने हथकंडे अपनाने शुरू कर देगा।
     मेरा मानना है कि वर्तमान में चीन की आंतरिक व्यवस्था बेहद खतरनाक एवं तनावपूर्ण है। इसका उदाहरण चीन में हुए लगभग 150 बम विस्फोट से लगाया जा सकता है। बावजूद इसके कि- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जिंग पिंग के हाथ मजबूत किए हैं।
     विश्व राजनीतिक पटल पर राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी भी इसी फैक्ट को पुष्ट करती है।
   ऐसा नहीं है कि  S400 की तैनाती केवल उत्तर पूर्वी सुरक्षा के लिए की जाएगी बल्कि माना जा रहा है कि यह पाकिस्तान को भी कवर करने के लिए कारगर साबित होने वाली एक बेहतरीन मिसाइल है।
     इस मिसाइल को लेकर सबसे ज्यादा उत्तेजक वातावरण पाकिस्तान के मीडिया जगत में देखा गया।
भारत के अधिकतम प्रयासों के बावजूद भारत की पश्चिमी एवं उत्तर पूर्वी सीमाओं पर पिछले कई वर्षों से तनाव एवं झड़प की स्थिति को देखते हुए भारत के इस निर्णय पर विश्व वैश्विक स्तर पर सराहना स्वभाविक है। चीन की विस्तार वाली नीति को लेकर विश्व न केवल नाराज है बल्कि कोविड-19 से प्रभावित सभी  देश और उसकी आबादी चीन के प्रति बेहद आक्रोशित है।
    विगत रात्रि एक रक्षा विशेषज्ञ व्यवसाई श्री पराग द्वारा अपनी टि्वटर हैंडल से यह बात अभिव्यक्त की कि भारत निकट भविष्य में पूर्वोत्तर सीमा और पाकिस्तान को कवर कर लेगा यह कार्य आज से 20 वर्ष पूर्व कर लेना था। जो नहीं हो पाया।  राष्ट्र की संप्रभुता एवं उसके अस्तित्व की रक्षा करना राष्ट्र प्रमुख की जिम्मेदारी है।
     अब मीडिया के बढ़ते हस्तक्षेप के मद्देनजर वैश्विक राजनीति से परिचित होना बहुत जरूरी है। वैश्विक राजनीति का प्रभाव भारतीय अप्रवासियों पर भी पड़ता है। मेरे एक मित्र रमेश सूरी जी एवम विशेष जी कहते हैं कि वास्तव में हमें जो सम्मान अब मिल रहा है उसे हम हासिल कर पाने में पहले असमर्थ रहे हैं।
   वैश्विक राजनीति के संदर्भ में देखा जाए तो भारत ने कोविड-19 में जो प्रदर्शन किया उससे भारत की स्थिति बेहद मजबूत हुई है। पराग जी के मत के अनुसार विश्व में उसे ही श्रेष्ठ माना जा रहा है जिसका मेडिकल क्षेत्र में रक्षा क्षेत्र में दबदबा कायम हो तथा आर्थिक मॉडल उत्कृष्ट हो वह देश इन दिनों प्रासंगिक है। इस शताब्दी में पराग जी के इस कथन को अस्वीकार करना बहुत कठिन है। इसमें कोई शक नहीं कि एस 400 महंगा सौदा है परंतु विपरीत परिस्थितियों में जैसा की बहुत संभव है भारत यह सिद्ध कर पाएगा कि यह समझौता कितना महत्वपूर्ण और समकालीन परिस्थितियों में प्रासंगिक है। रूस से यह समझौता अमेरिकन दबाव के बावजूद करके भारत एवं रूस ने यह संदेश दिया है कि आत्मरक्षा का कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता। भारतीय रक्षा व्यवस्था में सुधार लाना उसे परिमार्जित करना एक प्रभावी प्रणाली है और इसका स्वागत और सम्मान करना ही होगा। अगर इस रक्षा सौदे को लेकर किसी भी तरह का कन्फ्यूजन हो तो हम गलवान से लेकर अब तक के जिनपिंग के नकारात्मक प्रयासों को देख कर ही समझ सकते हैं ।

12.11.21

ऊन-सलाई वाले दिन..!


  वो दिन जो अब कभी नहीं लौटेंगे यकीन कर लो कभी नहीं लौटेंगे । न मां तुम हो ना तुम्हारी वह सखियां जो सर्दियों वाली दोपहरी में आंगन भर देती थीं गौरैया तब परेशान हो जाती थी फिर भी बगल में सूख रहे अनाज को चुग ही लेती थी। मां तब तुम थी जब मिट्टी के आंगन में दिवाली के बाद दोपहर रोज दिवाली हुआ करती थी। हंसी ठहाको के अचानक पटाखे फूटा करते थे। तो कभी पता नहीं चलता था कि किसी के दुख में मुंह में ऊपर वाले तालु और जीव के बीच से आप सब किच्च किच्च की आवाज निकाल रही हैं या गौरैया के झुंड से चिक चिक की आवाज निकल रही है। कभी कभार पता चल जाता था जब कोई सखी साड़ी के पल्लू से कोरों को सुखाती । 
   परिवार के हर सदस्य के  लिए हर साल एक नया स्वेटर बुनने वाली तुम और तुम्हारी सखियां ऊन वाले से बहुत रिक झिक करतीं थीं । आखिर हारता वही था।
     मां मुझे याद है और जिसे याद ना होगा याद आ जाएगा सड़क पर फेरी लगाता ऊन वाला पूरे गांव में- ले ल्यो ऊन लेल्यो केशमी उन वाल्या कुल 200 या 300 रुपयों में गांव भर को ठंड से बचने का साधन दे जाता था। और फिर शुरू होती थी आप सब की साधना। रोज दोपहर 12 बजे से शाम तक स्वेटर की बुनाई का दौर बचा खुचा काम हम सब को खिलाने पिलाने के बाद लालटेन की जीवनी रोशनी महिंद्रा देती थी। हमें मालूम था कि हमारी स्वीट मां तुम जरूर बुनोगी ।
   हाथ बुनाई की स्वेटर अलग-अलग डिजाइन में पूरा वातावरण कलरफुल और जाड़ा उससे तो पूरा गांव कह दिया करता था- जाड़ा तो क्या जाड़े का बाप भी आ जाए तो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमें मालूम नहीं कब सोती थी कब जाती थी सोती हुई थी या नहीं भगवान जाने।
    अब तो ऊन-सलाई, ऐसा लगता है इतिहास है। मुझे याद है एक बार जब मैं जॉब पर लगने के बाद किसी आंगनवाड़ी के इंस्पेक्शन पर गया तो देखा कि- वह वर्कर स्वेटर बुन रही है। खाली समय था मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी परंतु अकारण भय वश वह उसे छुपाने की कोशिश की अपनी लगी..!
   और जब मैंने उससे कहा जरा दिखाओ तो डरते कांपते उस महिला ने जब स्वेटर दिखाई तब मुझे तुम्हारी बहुत याद आई थी। मैंने उससे कहा था कि आज तुमने मेरी मां की याद दिला दी। डिजाइन बहुत अच्छी बनाई है।
  औरतें तब पिछड़ी नहीं थी कुछ किताबें पढ़ कर कोई पढ़ा लिखा नहीं बन जाता। यह औरतें तब आत्मनिर्भर थी हर घर में सिलाई मशीन हर घर में ऊन-सलाई पुराने ऊन के गोले, जो अक्सर नई डिजाइन में बनी स्वेटर के साथ फिर हमारे सीने से जा सकते थे। मां तुम बहुत याद आती हो सीने पर चिपके हुए उन स्वेटर्स को याद करता हूं तो बहुत याद आती हो। याद है मौसी और मंगला दीदी ने भी फूल भी बुनकर टाक दिए थे मेरी हरी और सफेद ट्विटर पर। बहुत कठिन बुनाई थी।
     वह अब वह कला वह आत्मनिर्भरता
ना गांव में है ना शहर में। पता नहीं तुम सब जो आठवीं या मैट्रिक तक भी पढ़ीं न थीं । कुछ तो निरक्षर ही थी और कुछ 2-3 क्लास पढ़ी हुई । पर ऊन के गोले में लपेट कर बखूबी बचत को जमा कर घरेलू बचत को हिफाजत से रख देती थीं । न अब किसी के पास स्वेटर बुनने का वक्त है और ना ही स्वेटर की गर्मी में अपनी ममत्व की गर्मी को समाहित करके पहनाने की हिम्मत ही शेष है। सुना है टाइम किसी के पास नहीं है। अब हमारी गली से ऊन वाला नहीं निकलता । ना वह दोपहर की आंगनवाली सभाएं सजतीं । तब आप नई बेटियों और बहुओं को जीवन के संकल्प समझाती। मां आप आंगन नहीं सजते । 
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

10.11.21

freedom movement for sindhudesh in Pakistan

पिछले आर्टिकल में आपने बलोच फ्रीडम मूवमेंट के बारे में पढ़ा था कि किस तरह से पाकिस्तान में फ्रीडम मांग रहे हैं वहां के बलूचिस्तानी। वास्तविकता यह है कि जितना बलूचिस्तान के लोग परिपक्वता के साथ आंदोलन को आगे ले जा रहे हैं उसके सापेक्ष परिपक्व नहीं है। ट्विटर स्पेस चलाने वाले कुछ हैंडल को सुन कर  यह स्पष्ट होता है कि अल्ताफ हुसैन की कोशिश को आई एस आई एवं आर्मी की साजिशों का ना काम करने की कोशिश कर रही है। एक राष्ट्र में यह स्वभाविक कि वह किसी भी अलगाववादी आंदोलन को दबाए और वह ऐसे प्रयास करता है । 
   लेकिन आंदोलनों को दबाने की विधि पूरी तरह से अमानुष एवं वर्तमान संदर्भ में कहा जाए तो मानव अधिकारों के खिलाफ है। यहां भी वही स्थिति है जैसा कि बलूचिस्तान में पाकिस्तानी प्रशासन कर रहा है। लोगों को उठाकर ले जाना और फिर उनकी ला से अज्ञात खाली जमीन पर फेंक देना जैसे मुद्दे इन स्पेस  में सम्मिलित पाए गए।
   लोगों का कहना है कि सरकारी नौकरियों में सिंध के कोटे के साथ भी हेरफेर किया जाता है। सोशल मीडिया पर यह भी खुलकर सामने आया है कि सिंध क्षेत्र आर्थिक तौर पर बहुत समृद्ध है।
     बलूचिस्तान और सिंध देश आजादी की मांग ठीक उसी तरह करने पर आमदा है जिस तरह बंगबंधु मुजीब उर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाकर किया है। वास्तव में जो मैच्योरिटी पूर्वी पाकिस्तान में थी वह मैच्योरिटी यद्यपि इन दोनों आंदोलनों में नजर नहीं आती। परंतु यह भी उससे बड़ा सत्य है कि पाकिस्तान के पंजाब सूबे के खिलाफ अब आवाज तेजी से बुलंद होती जा रही है। संजरानी नामक एक टि्वटर आईडी के द्वारा भी सिंधुदेश के लिए निरंतर आवाज उठाई जा रही है।
  बलूचिस्तान एवं अल्ताफ हुसैन की लीडरशिप में चलाए जा रहे हैं सिंधु देश की मुक्ति के लिए चलाए जा रहे इस आंदोलन के कमजोर होने की कई सारी वजह हो सकती हैं उनमें से सबसे प्रमुख है कि वे अब एक ऐसी पाकिस्तान आर्मी के सामने हैं जो कुछ ज्यादा ही चतुर एवं चालाक लोगों के हाथों में है।
   दक्षिण एशिया में अगर कोई सबसे अशांत देश है तो उसमें इस सबसे पहला है चीन जिसकी अशांति विश्व के सामने तक पहुंच क्यों नहीं रही है पर इंटरनल जबरदस्त लावा देख रहा है। उसके बाद अफगानिस्तान पाकिस्तान अपने आप को इस सूची में लाने में सफल है। सिंधु देश के लिए आंदोलन करने वालों के साथ सोनम महाजन भी पिछले कुछ दिनों से देखी जा रहीं है । इसका अर्थ क्या निकलता है यह एक अलग बात हो सकती है परंतु सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की स्वतंत्रता के मंतव्य को विस्तारित तो किया जा सकता है परंतु स्वतंत्रता मिलना ना मिलना वहां के आंदोलनकारियों की रणनीति पर निर्भर करता है।
यहां एक बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि पंजाब सिंध प्रांत के अनुपात में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए अन उत्पादक श्रेणी का इलाका माना जाता है । जबकि बलूचिस्तान प्राकृतिक संपदा ओं से भरा पड़ा है। जिसके दोहन की क्षमता पाकिस्तान की पूर्व आर्मी डेमोक्रेटिक सरकार के पास ना तो कभी थी ना है और ना रहेगी। पाकिस्तान का चिंतन यह है कि वह किसी भी तरह से एक ऐसा वतन बनके रहे जहां हुक्मरान और गरीब आवाम हमेशा जिंदा रहे। यही है पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमजोरी। आपने आज तक कोई भी ऐसा इन्वेंशन नहीं सुना होगा जो पाकिस्तान में हुआ हो। वह 70 वर्ष तक अमेरिका और अन्य देशों के हाथों की कठपुतली बना रहा। बोरिस जॉनसन ने पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी के लिए जो शब्द कहे की एक सूर्य है एक प्रकृति है और एक नरेंद्र मोदी है। इसका अर्थ यह है कि विश्व भारत की क्षमताओं एवं उसकी शक्ति को पहचान चुका है। और यही सब हमारे पड़ोसी देश को पसंद नहीं। विश्व राजनीति को भारतीय समझाने में सफल हुआ है कि आतंकवाद अंततः है अंतररष्ट्रीय बुराई है

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