26.3.20

आपदाओं से जूझने हमें चिकित्सा व्यवस्था सुधारनी ही होगी

फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा को फ्री शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी दी थी. कृति हजार जनसंख्या पर 8 चिकित्सक क्यूबा में मौजूद है. जबकि भारत में प्रति हजार के विरुद्ध मात्र पॉइंट 008 चिकित्सक मौजूद है. क्यूबा और भारत की चिकित्सकीय व्यवस्था बेहद बड़े अंतराल के साथ है. बावजूद इसके भारत में उसका अपना आयुर्वेदिक सिस्टम भी संचालित है. आजादी के बाद से आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली पर एक लंबी अवधि तक कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया. जबकि इस चिकित्सा प्रणाली को संजीवनी देना इस पर रिसर्च जारी रखना सरकार का दायित्व था. ठीक उसी तरह शिक्षा व्यवस्था पर भी भारत की सोच बेहद लचर और उसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण महसूस नहीं किया गया है. लेकिन कम संसाधनों और अच्छी शिक्षा प्रणाली के महंगे होने के बावजूद भारतीय युवा खासतौर पर मध्यमवर्गीय परिवारों से निकला युवा अपने संघर्ष और आत्मशक्ति के बलबूते पर वह सब हासिल कर लेता है जो क्यूबा में वहां का युवा हासिल करता है. सुधि पाठकों आज से कुछ साल पहले जब मैं वैचारिक रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के संबंध में विचार कर रहा था तो मैंने पाया कि वास्तव में भारत को अगर बहुत तेजी से आगे बढ़ना है तो उसे अपनी शिक्षा प्रणाली को बेहद सहज और सब्सिडाइज करना ही होगा. परंतु आरक्षण और उपेक्षा जैसी व्यवस्था के कारण शैक्षणिक व्यवस्था चरमरा गई है. इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा के कई सारी केंद्र खुले परंतु अधिकांश अब पढ़ने वालों  की कमी जैसी स्थिति में है. कला साहित्य अर्थशास्त्र समाजशास्त्र साइकोलॉजी भाषा विज्ञान जैसे विषयों के प्रति भारतीय मध्यवर्ग की उपेक्षा के कारण की शिक्षा का स्तर अचानक गिरा है. निजी कंपनी के मैकेनिक बन कर रह जाते हैं इंजीनियर. जबकि चिकित्सकों की आवश्यकता है और आपूर्ति के मामले में शैक्षणिक व्यवस्था में ऐसा कोई सकारात्मक विचार 45 के बाद से अब तक जनसंख्या के सापेक्ष कोई खास परिवर्तन नहीं आया है. अपने उक्त आर्टिकल में मैंने यह भी लिखा था कि वास्तव में संपूर्ण विकास के लिए अन्य विषयों पर ना तो सरकार का ध्यान है ना ही अभिभावकों का. परंतु सक्षम एवं उच्च स्तरीय आय समूह के बच्चे विदेशों से इन विषयों पर शिक्षा विदेशों से प्राप्त कर सकते थे और मध्यवर्ग पूर्णतः है कुकुरमुत्तों जैसे खेतों में भी बने इंजीनियरिंग महाविद्यालयों ने पढ़ाई पूर्ण करते हैं. और अब भी पढ़ाई के सापेक्ष अधिकतम 25 से 30000 प्रतिमाह का पैकेज हासिल कर पा रहे हैं. अधिकांश बच्चे साइबर लेबर की तरह काम कर रहे हैं. यहां सरकार ने उन विषयों पर ध्यान ही नहीं दिया जो विषय निकट भविष्य में उपयोग में आने वाले थे. कुल मिलाकर विदेशों में वह कर साइबर लेबर की तरह काम करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर इतना कुछ हासिल नहीं कर पाए जितना कि डॉलर से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाया. वैसे यह एक अच्छी बात है परंतु इन साइबर लेबर के दिए अगर भारत में ही पहले बाजार उपलब्ध करा दिया जाता तो वे लेबर की तरह काम ना करके एक प्रोपराइटर की तरह काम करते. अब हम मूल प्रश्न पर आते हैं कि क्या भारत की चिकित्सा व्यवस्था फुल प्रूफ है ? तो दावे के साथ यह कहा जा सकता है कि भारत की चिकित्सा व्यवस्था फुलप्रूफ कदापि नहीं है.
 अपने पुराने लिख में सरकार को हमने आगाह कर दिया था कि अगर कोई महामारी फैलती है तो उसका नुकसान अगर हम उठाएंगे तो उसका मूल कारण हमारी चिकित्सा व्यवस्था में चिकित्सकों का अभाव ही होगा.
महामारी से जो स्थिति उत्पन्न हो सकती है वह आर्थिक व्यवस्था पर गहरा संकट है. अर्थशास्त्री और विचारक मानते हैं कि पूरे विश्व भर में कोरोना वायरस से फैली महामारी विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है. कोई चमत्कार ही है जो महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रख सकता है परिस्थितियां अनुकूल नजर नहीं आ रही है.
आज दिनांक 24 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री ने संपूर्ण भारत में लॉक डाउन को 21 दिन के लिए और बढ़ा दिया है. यह निर्णय बेहद कठोर होगा परंतु बेहतर व्यवस्था और मानवता की रक्षा के लिए यह जरूरी है इसके अलावा कोई अच्छा विकल्प नजर नहीं आ रहा. इसका प्रभाव निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है. लेकिन अगर यह नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था पर जो प्रभाव पड़ेगा वह और भी भयंकर हो सकता है. विश्व की सरकारों के ऐसे निर्णय सराहनीय है क्योंकि अगर मानव शक्ति मौजूद रही तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है. पाठको यहां समझने की जरूरत है कि हर एक राष्ट्र को स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिकतम खर्च करते रहना चाहिए. भारत सरकार की अर्थव्यवस्था शुरू से जीवन बीमा और बचत पर केंद्रित रही इसके अपने फायदे थे लेकिन सामान्य बीमा कंपनियां विकसित राष्ट्रों में जिस तरह से सक्रियता से काम करती हैं भारत वहां बहुत पीछे नजर आता है. हर सरकार को चाहे वह किसी छोटे राष्ट्र की सरकार हो यह भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की सरकार हो उसका कोई भी दृष्टिकोण हो उसे भविष्य के प्रावधानों खासतौर पर युद्ध महामारी और प्राकृतिक आपदा से जूझने के लिए आवश्यक प्रावधान अब कर ही लेने होंगे. खासतौर पर चिकित्सकीय व्यवस्था फुलप्रूफ होनी चाहिए. शायद विश्व के राष्ट्र इस भाषा को समझ पाएंगे.
भारत को क्या करना चाहिए? इस प्रश्न के उत्तर में केवल यह कहना चाहूंगा कि जिस तरह से भारत जैसे विकासशील देश ने तरक्की का रास्ता अपनाया है ठीक उसी तरह सामाजिक मुद्दों पर नजर डालना बहुत जरूरी है. प्रत्येक जीवन को अधिकार है कि उसे प्राकृतिक मृत्यु का अधिकार सुनिश्चित कर देना चाहिए. आपदा युद्ध और महामारी जैसी स्थितियों से जूझने के लिए सदा तैयार होना चाहिए. इसके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर ना केवल अधिक खर्च करना होगा बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान रूप से शिक्षा के अधिकार का सृजन जरूरी है.
सरकार को उसकी अर्थव्यवस्था में सपोर्ट करने वाले मध्यमवर्ग जिसका सहयोग सकल घरेलू उद्योग एवं बचत में 60 प्रतिशत से 70% तक की भागीदारी होती है के अधिकार सुनिश्चित करने होंगे.
मित्रों- इसके अतिरिक्त आयुष्मान योजना की लाभ की परिधि में लाने के लिए 10 करोड़ से अधिक और 50 करोड़ से कम आबादी को लाना ही होगा. परंतु सरकार की माली हालत यह आंकड़ा एकदम हासिल नहीं कर सकती. उसे 50 करोड़ की आबादी को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत शामिल करने के लिए कम से कम 5 साल की कोई कार्य योजना प्रस्तावित की जानी चाहिए और उस पर काम भी करना चाहिए. कराधान व्यवस्था को यद्यपि पिछले 10 वर्षों में काफी लाभकारी बनाया गया है किंतु इस पर और काम करने की जरूरत है.
आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को अनदेखा करना भारत को बहुत महंगा पड़ा है. मुझे प्रतिवर्ष कफ और कोल्ड के कारण अपनी वार्षिक आय का 7% वह करना होता था. इस वर्ष मुझे सर्दियों के समय आयुर्वेदिक इलाज के जरिए यह खर्च मात्र ₹500 के भीतर करने का मौका मिला. यहां व्यक्तिगत उदाहरण इसलिए दिया गया ताकि आयुर्वेदिक प्रणाली को सरकार को स्वीकार देना चाहिए और उसमें अनुसंधान को बढ़ावा देना  इलाज के लिए योग की तरह प्रोत्साहन देना जरूरी है.
सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे इतिहास में एलेग्जेंडर यानी सिकंदर को बचाने वाला बेहद साधारण सा वैद्य था. अर्थात हमारी प्राचीन चिकित्सा व्यवस्था को प्रोत्साहन एवं उसके संवर्धन की अत्यंत जरूरत है. यदि हम कोरोना वायरस  पर समय रहते काबू ना पा सके तो मानिए कि हम स्वयं को माफ़ नहीं कर पाएंगे.

16.3.20

"Don't Panic" - Aabhas-Shreyas Joshi

  ( This video recorded by Girish billore for district administration Jabalpur )
"Don't Panic" - Aabhas and Shreyas appeal on Corona Virus.
Famous singer Abhas and Shreyas Joshi came to Jabalpur to pay tribute To there grandmother late Shrimati Pushpa Joshi. Old old age film artist It was first Holi festival at Jabalpur after Har death. As per DM Jabalpur Mr Bharath Yadav's advice both artist appeal on prevention of coronavirus. Video attached herewith for further necessary action please use this video in Public Interest.

21.2.20

शक्ति आराधना के बिना शिव आराधना स्वीकारते नहीं

स्वर :- इशिता विश्वकर्मा

जीवन सृजन का कारण शिव है संरक्षक भी वही है संहार कर्ता तो है ही । इतना महान क्यों है...? सृजन का कारण शक्ति का सहयोग है इसलिए शिव बिना शक्ति की आराधना के अपनी आराध्या को स्वीकार नहीं करते। इसका आप मनन चिंतन कर सकते हैं फिलहाल मेरी यही अवधारणा है
जीवन में सब कुछ वेद उपनिषद पुराणों के अनुकूल घटता है । सनातन यही कहता है कि *एकsस्मिन ब्रह्मो :द्वितीयोनास्ति* शिवरात्रि इसी चिंतन का पर्व है । शिव शून्य है अगर शक्ति नहीं है साथ तो उनका कोई अस्तित्व नहीं । शिव अपनी पूर्णता अर्धनारीश्वर स्वरूप में रेखित करते हैं ।
*My friend asked me Tar bhai I dont know how to discover Lard Shiva*
मित्र से पूछा....
*आज घर जाकर पत्नि से पूछना तुम दिनभर में घर के कितने चक्कर लगाती हो लगभग 300 से अधिक की जानकारी मिलेगी । फिर अनुमान लगाना पता चलेगा वो 15 से 20 किलोमीटर वो चली 30 दिन में वो....450 से 600 किलोमीटर चलती है*
Yes
*तुम 2 किलोमीटर से अधिक नहीं चलते यानी महीने में केवल 60 या 65 किलोमीटर बस न ।*
सच है ऐसा ही है !
तब असाधारण कौन तुम या पत्नि ?
बेशक पत्नी ही है ।
जब वह जन्म देती है तो उसे कितना कष्ट होता है इसका अनुमान है आपको बच्चे तो होंगे तुम्हारे..?
अनुमान तो नहीं लगा सकता क्योंकि उसको हम महसूस नहीं कर पाते हैं पुरुष है ना पर सुना जरूर है...!

तो सुनो ये सब वही सह सकता है जिसमें धैर्य क्षमता और प्रबंधन के गुण हों ।
सच है पर इसका लार्ड शिवा से क्या रिश्ता ? उसने पूछा ।
उत्तर ये था हमारा-..रिश्ता है तुमको ऊर्जा कौन देता है और फिर उस ऊर्जा का स्तर मेंटेन कौन रखता है ?
    जन्मते ही मां फिर बहन और माँ फिर पत्नी ।
उसने कहा... हाँ सच है !
तो लार्ड शिवा की शक्ति का स्रोत नारी ही है ।
पर वो तो अदृश्य हैं ?
न बिल्कुल नहीं हम हैं उनका स्वरूप हर प्राणी में होता है । हम शिवांश हैं ।
    हम व्यवस्थापक हैं उपार्जन के उत्तरदायी भी हैं । तो भारतीय सन्दर्भ में नारी हमारी शक्ति है....यानि हमारा युग्म सरल शब्दों में स्त्री पुरूष संयुक्त स्वरूप का अस्तित्व भौतिक रूप में लार्ड शिवा है । अब इसमें शिव को डिस्कवर करने की ज़रूरत क्या ?
बायोलॉजिकल वो अलग है भावात्मक रूप से एक अंतर है कि *नारी आल टाइम केयरिंग है यानि सबकी चिंता करती है ।
    तुम्हारी पत्नी तुम्हारी मां भी है । सदा करुणा भाव से तुम्हारे बारे में चिंतन करती है ।
अगर कोई नारी आपकी बायोलॉजीकल मदर न भी हो तो वो सबकी केयर करती है । उसे एक खास नज़रिए से मत देखो।
     इंडस वैली सिविलाइजेशन की खुदाई में कुछ देवियों की मूर्तियां मिलीं और एक शिव लिंग जो शिव का प्रतिमान है । के वैदिक काल में भी यही था यज्ञादि कर्म वामा के बग़ैर महत्वहीन थे ।
    गार्गी मैत्रेयी जैसी हज़ारों देवीयों को रेखांकित किया गया है सनातन शास्त्रों में ।
कुल मिला कर अगर शिव को डिस्कवर करना है आत्म अनुशीलन करो और  शक्ति-स्रोत को डिस्कवर करो माँ के अस्तित्व को प्रधान स्वीकृति दो । फिर देखना शिव स्वयम तुम्हारे चिंतन में आ बैठेंगे ।
          मित्र के साथ हुए इस संवाद में उसका एक सवाल आया -"तुम कहते हो हमेशा नारी को ईश्वर ने वो दिया जो पुरुष को कभी नहीं मिलता ?
*शिव ने जो नारी को सहज दिया वो पुरुषों को घोर तपस्या के बाद भी न मिल पाएगा... यह सत्य है नारी को सार्वकालिक मातृत्व भाव दिया है ब्रह्म ने । जो उसके साथ हर पल रहता है... और तुमको भी एक अति पावन भाव दिया है शमशान वैराग्य वह भी अधिकतम 10 मिनिट का वो भी केवल तब तक जब तक तुम चिता के सामने होते हो .. है न..?*
समय अवधि की तुलना में सर्वाधिक किसे दिया ब्रह्म ने सिर्फ नारी को न ?
हाँ सच है ...!
💐💐💐💐💐💐
*सुधि पाठको आज केवल इतना ही पर ध्यान रहे यह शिव पूजन ही नहीं शक्ति के साथ शिव पूजन का पर्व है इसे प्रतिदिन दोहराना होगा*
【आज का आलेख का स्रोत मित्रों से कुछ दिन पूर्व हुए संवाद का प्रतिफल है ।】

5.2.20

ये क्या कहा तुमने

Yah kya kaha Tumne
यह क्या कहा तुमने यह मंजर वह नहीं है सोचते हो जैसा तुम।
कोई हुक्मरान
हवाओं से नहीं कुछ पूछता है....!
ना कोई जंजीरें लिए घूमता है...!!
ना रंगों पे कोई बंदिश
ना लहरें गिनता है कोई?
वह अकबर था जिसका...हुक्म था लहर गिन लो !
किसी ने कहा था
जा रहे हो दर्शन को
जरा सा धन भी गिन दो।
इस गुलशन के जितने रंग है
सब हमारे और तुम्हारे हैं।
हमारे बुजुर्गो ने
खून देकर
ये सब रंग संवारे हैं।
इशारों में जो तुमने कह दिया...!
तुम्हारी सोच को क्या हो गया है?
बता दोस्त क्या कुछ खो गया है?
तुमसे उम्मीद ना थी। नज़्म तुम ऐसी लिखोगे ?
ज़हीनों की बस्ती में अलहदा दिखोगे ?
गोया विज्ञान तुमने रंगों का पढ़ लिया होता
सात रंगों के मिलने का मतलब गढ़ लिया होता ।
हवा और लहरें
रुक कि जो सैलाब होती हैं
तो जानो
बदलाव की हर कोशिशें आफताब होती हैं।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

19.1.20

बिना विवेकानंद जी को समझे विश्व गुरु बनने की कल्पना मूर्खता है


100 से ज्यादा वर्ष बीत गए , विवेकानंद को समझने में भारतीय समाज और राजनीति दोनों को ही बेहद परिश्रम करना पड़ रहा है मुझे तो लगता है कि अभी हम समझ ही नहीं पाए कि विवेकानंद  किस मार्ग के पथिक रहे और इस मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने भारत सहित विश्व को प्रेरणा दी । अगर ऐसा होता तो विवेकानंद के बताए मार्ग पर हम स्वतंत्रता के पहले से ही चलने लगते और अब तक हम उस शिखर पर होते जिस का आव्हान आज भारत कर रहा है.... विश्व गुरु की धरती पर विश्व गुरु का टैग लगाना बहुत मुश्किल नजर आ रहा है तब 19वीं शताब्दी में स्वामी ने साफ कर दिया था कि कैसा सोचो यह सनातन में साफ तौर पर लिखा है उसके अभ्यास में लिखा है कैसा जिओ इस बारे में स्वामी ने साफ कर दिया था यूरोप की यात्रा से लौटकर जब उन्होंने लोक सेवा का संकल्प लिया और पूरे भारत में एक अलख सी जगा दी थी । भारत में स्वामी के उस सानिध्य को भी अनदेखा किया जिसका परिणाम आप देख रहे हैं । अगर विवेकानंद को समझने की कोशिश अब तक नहीं हुई है तो करना ही होगा बच्चों को इस तरह के पाठ पढ़ाने ही होंगे अब जब यह एलानिया तौर पर कहा जा रहा है कि भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसरित है जैसा आप कह रहे हो नेता कह रहे हैं मुझे लगता है कि बुद्ध कृष्ण महावीर और विवेकानंद को अपने साथ रखें बिना ऐसा कहना भी मूर्खता है । खुले तौर पर यह कह देना चाहता हूं कि हमें सनातन के सार को जो इन महापुरुषों ने हमें दिया है समझ लेना चाहिए खासतौर से विवेकानंद जी को तो समझना बेहद जरूरी है मुझे उम्मीद है कि बिना इन महान हस्तियों को समझे आप एक ही बिंदु पर खड़े होकर व्यायाम शाला में ट्रेडमिलिंग करते हुए नजर आते हैं । भारतीय समाज जिसमें हिंदू मुसलमान सिख ईसाई पारसी आदि आदि मतों को मानने वाले रहते हैं.... सबको स्वामी के बारे में समझना चाहिए नानक भी इसी श्रेणी में आते हैं खालसा पंथ अध्यात्म की वह महत्वपूर्ण वाटिका है जहां बलपूर्वक मानसिकता और व्यवस्था को बदलने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को रोकने का संदेश दिया गया है लेकिन ब्रह्म के सार्वभौम होने का ऐलान भी किया है खालसा सैनिक नहीं समाज का धर्म है अक्सर देखता हूं कि अगर कोई दुखी अगर किसी सिख के सामने होता है तो वह सरदार चैन से नहीं रहता जब तक उसका दर्द अपने हाथों से खत्म ना कर दे सरदार व्याकुल रहता है । लेकिन औसत समाज ऐसा नहीं सड़क पर कोई घायल है मदद के हाथ बहुत कम होते हैं और सवाल पूछने वाली जीभों की संख्या असीमित होती है एक ऐसा ही दृश्य 1989 से अब तक हमने देखा कश्मीरी पंडितों और डोगरा लोगों के प्रति हम कितने संवेदित रही हैं । मामला वर्ग संघर्ष का नहीं है मामला मानवता की रक्षा का है अगर आपका पंथ संप्रदाय समूह विश्व के लिए मानवतावादी अप्रोच से काम नहीं करता तो तय है कि भारत विश्व गुरु तो क्या अपने उपमहाद्वीप के लिए आइकॉन भी नहीं बन सकता । उन संकल्पों का क्या हुआ जो सामाजिक न्याय की दिशा में दिए जा रहे थे बस्तों में बांध दी गई हैं ऐसी कोशिशें यहां आप सोच रहे होगे की ओशो की धरती से ओशो को मैंने इस बात में शामिल नहीं किया हां बिल्कुल नहीं किया मैंने तो गांधी को भी शामिल नहीं किया है उसके कारण है गांधी प्रयोग धर्मी  थे । ओशो भी ऐसा ही कुछ करने के गुंताड़े में थे। गांधी के प्रयोग भी समाज को लेकर हुआ करते थे उसने भी वही किया परंतु ना तो अहिंसा का संदेश बेहद प्रभाव से रह पाया और ना ही समाज सुधार की तह में ओशो जा पाए। ऐसा नहीं है कि मैं इनसे सहमत हूं अथवा इन का विरोधी हूं हो सकता है कि आप में से कोई मेरी इस बात का बतंगड़ बना दे क्योंकि सवाल तो आपके जेहन में बहुत हैं आप आरोप भी लगा सकते हैं शाम 5:00 बजे के बाद घर का टेलीविजन लगाओ तो बच्चे लड़ना ही सीखते हैं चीख चीख कर अपने आप को ब्रह्म वाक्यों को प्रतिपादित करने वाला साबित करने वाला साबित कर देते हैं । मित्रों भारतीय दर्शन यह नहीं है । भारतीय दर्शन उत्कृष्टता के लिए श्रेष्ठतम प्रयासों की पहचान करना सिखाता है भारतीय सनातन भारतीय दर्शन है सनातन को धर्म कहने की गलती मत करो सनातन श्रेष्ठतम अध्यात्म है शुरू की पंक्तियों में ही विवेकानंद ने खुले तौर पर अभिव्यक्त कर दिया था भारतीय दर्शन धर्मों की जननी है । विश्वास नहीं हो तू विवेकानंद की अभिव्यक्ति को देख लीजिए यहां क्लिक कर  क्लिक कीजिए  और समझने की कोशिश कीजिए शायद आपकी मदद से भारत विश्व गुरु बन जाए परंतु मुझे मालूम है ऐसा होगा नहीं होगा तो तब जबकि आप दर्शन के मूलभूत तत्व को पहचानेंगे ।
*ॐ राम कृष्ण हरि:*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

14.1.20

कल्लू का सोशियो-पॉलिटिकल चिंतन : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

हमारे कल्लू भाई दिन भर काम धंधे में मशरूफ रहते हैं . सुबह उठते गर्म पानी रखते अपने लिए और दो कप चाय एक खुदके और एक अपनी पत्नी परमेसरी के लिए  बना देते हैं । 
      तब जाकर परमेसरी बिस्तर से बाहर निकलती वह भी ऐसी अंगड़ाई लेते हुए जैसे सपेरे की टोकरी से वह निकलती है  जिसका नाम आमतौर पर हमारे यहां रात में नहीं लेते ।  कल्लू भाई की सुबह  तो यूं ही होती है  । 
      बड़ी मुश्किल परमेसरी रोते झीकते  कलेवा बनाती कल्लू  कलेउ के तौर पर रोटी और अथाना प्याज के साथ निपटा के निकलते और सीधे थोक सब्जी मंडी में जाकर सब्जियां खरीदते फिर.... गली-गली चलाना पड़ता आलू ले लो प्याज ले लो टमाटर ले लो की टेर के साथ  । 
लगभग तीन चार  बजे तक सब्जी बेच के कल्लू भाई ₹500/ -₹600/ तक कमा लेते हैं । 
       उन्हें पेट भरने के लिए इतना पर्याप्त समझ में आता पर हालात तब मुश्किल में आ जाते जब कभी परमेसरी बीमार हो जाती ।  यूं तो वह अक्सर बीमार रहती बीमारी क्या आराम करने की इच्छा हो तो बीमार होने का ऐलान करना परमेसरी की मूल प्रवृत्ति में शामिल है । 
    और इसी के सहारे परमेसरी को  आराम मिल जाता और कल्लू को ओवरटाइम  ।        
कल्लू एक प्रतीक हैं उस निम्न मध्यवर्ग के जिनको सम्पूर्ण विकास का अर्थ नहीं मालूम । अर्थ तो बहुतेरों को भी नहीं मालूम जिनके कांधे पे आज-कल-परसों की ज़वाबदेही है जैसे नेता, मंत्री, संत्री, हीरो हीरोइन, बालक,  किशोर, युवा,  जेएनयू जाधवपुर आदि के छात्र छात्राएं ।
  किसी ने बताया है कि इस साल कल्लू सोच रिया है कि 15 अगस्त नहीं मनाएगा ! उसने टीवी पे देखा लौंडे जिन्ना वाली आज़ादी मांग रए हैं ? गांधी वाली कल्लू के बाप के ज़माने की है वो समझ गया इस बार नई वाली आज़ादी मिलेगी । अरे बच्चे मांग कर रहे हैं तो मिलेगी है न पाठकों ?  
    कोई रैली को विकास मानता है तो कोई आज़ादी को जिन्ना वाली  भी मानने लगे हैं  कल्लू क्या जाने यह दौर भीषण बेवकूफी भरा दौर बस जलाओ पुलिस को गरियाओ सवाल उठाओ ट्रेन फूंको, 
  कल्लू ऐसा नहीं करता वो आंदोलित नहीं वो आदर्श भारतीय है बच्चे के निजी स्कूल की फीस टाइम पर देता है । डाक्टर को फीस देता है भले कर्ज़ा काढ़ के दे देता है । भले ही लोग उसे बेवकूफ समझें 

कल्लू और उसकी बचत
कल्लू 400 से 500 रुपए बचा पाता है । बचत के नाम पर 2500 भी बचाना चाहता है... वो ताक़ि उसका राशिफल सही हो जाए पर न तो बचत होती न ही राशिफ़ल सही निकलता ! 
कल्लू के कुछ दोस्तों ने छपाक कुछ ने देखी तानाजी भी पर उसने नहीं । उसकी यही आदत फ़िज़ूल खर्ची से बचाती है और कमीने मित्र उसे बेवकूफ समझतें हैं । 
       अब बताइए फ़िल्म देखेगा तो उसका पैसा फ़िल्म दिखाने वाले थियेटर मालिक से लेकर प्रोड्यूसर यूनिट में बंट जाएगा । उससे छपाक वाली लक्ष्मी जैसी बेचारियों को क्या लाभ होगा ? कोई चैरिटी थोड़े न कर देगी फिलम कम्पनी बताओ भला ? 
हालांकि कल्लू ने ये सोचके फ़िल्म न देखी हो ऐसा नहीं उसे तो फिल्मी के अर्थशास्त्र अल्फा-बेट भी नहीं मालूम । हमने तो यूं ही लिख दिया ताकि आपको समझ आ जाये 😊 ?
कुल मिलाकर कल्लू की बचत करने की कोशिश की तारीफ करने की कोशिश कर रहा हूँ हमारे मोदी जी बोले थे न मेडिसन-स्कैवर पर हम पर्सनल सैक्टर को विकसित करेंगे ? 
अरे पर्सन अगर बचत करे पाया तो  पूंजी बनेगी, पूंजी बनेगी तो पर्सनल सैक्टर नज़र आएगा पर ये सब भाषण की बातें हैं इन पर अधिक मत सोचो बुद्धू बने रहो कल्लू जैसे । 
और हां आज तो बस इतनी बात जान लो कल्लू फिल्म नहीं देखता है केवल प्रमेसरी और उसका लड़का फ़िल्म देखता है । 

कल्लू का डेमोक्रेसी में योगदान 

           कल्लू मुन्ना चाचा जिसको बोलते उसे वोट दे देता है,उसका एक कारण है ।  हुआ यूँ कि जब से वोट दे रहा है उसका कैंडिडेट हार जाता था । उसे बड़ा दुःख होता , इस दुःख का ज़िक्र उसने मुन्ना चाचा से किया । मुन्ना चाचा ने कहा अबसे हम जिसको कहें उसका ईवी एम बटन दबाना । बस तब से अब तक कल्लू का घोर भरोसा है मुन्नाचाचा पर ।  कल्लू आदर्श निम्न मध्यम वर्गीय भारतीय है ।  जिसे भाषण सुनाई तो देता है पर समझ में नहीं आता ..हाँ उसे पता है जब भी आंदोलन होते हैं तब उसका टैक्स का कुछ रोकड़ जलता है जैसा मुन्ना चाचा बतातें हैं । पर कैसे और क्यों जलता है कल्लू के लिए विचारणीय नहीं । कुल मिला कर कल्लू मस्त लाइफ जी रहा है । उसका बेटा भी सब्जी का ठेला लगाएगा बस और क्या ? कल्लू के बहाने किसको हमने किसको और कितना निपटाया आप खुद समझो मीज़ान लगालो भई ....!

5.1.20

कब होगा अनहक बुलंद, कब राम राज फिर आएगा



हम देखेंगे...!!
अमन ज़वां फिर से होगा, वो वक़्त  कहो कब आयेगा जब
बाज़ीचा-ए-अत्फालों में जब, बम न गिराया जाएगा
कब होगा अनहक बुलंद, कब राम राज फिर आएगा
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन, वो दिन जरूर फिर आयेगा .
पेशावर जैसा मंज़र भी , फिर न दोहराया जाएगा
ननकाना जैसा गुरुद्वारों  पर फिर संग न फैंका जाएगा
वादा कर दो तुम हो ज़हीन, शब्दों के जाल न बुनना अब
हाथों में बन्दूक लिए कोई कसाब न आयेगा ..!
आवाम ने जो भी सोचा है,उस पे अंगुली मत अब तू उठा
जब आग लगी हो बस्ती में, तो सिर्फ तू अपना घर न बचा
ख़ल्क़-ए-ख़ुदा का राज यहाँ जहां मैं भी हूँ और तुम भी हो
ये घर जो तेरा अपना है, हमसाये का तारान यहाँ तू न गा ।
गुस्ताख़ परिंदे आते हैं, खेपें बारूदी ले लेकर -
बेपर्दा होतें हैं जब भी तब- बरसाते
अक़्सर पत्थर ।
न ख़ल्क़ वहां, न स्वर्ग वहां, सब बे अक्ली की बातें हैं-
कोशिश तो कर आगे तो बढ़, हर घर ख़ल्क़ हो जाएगा ।।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल





Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...