हिंदुस्तान में पाकिस्तान के उच्चायुक्त हैं अब्दुल बासित। लम्बी चौड़ी बातें करते हैं। आतंकी सलाउद्दीन उनकी नज़र में दहशतगर्द नहीं है बल्कि फ़्रीडम फ़ाइटर है। बासित की ज़ुबान यहीं नहीं रुकी, इसके बाद भी चलती रही। उन्होंने हिंदुस्तानी कैमरे के सामने यह कह दिया कि पाकिस्तान का लोकतंत्र मज़बूत हो रहा है। वहाँ की न्यायपालिका और मीडिया निष्पक्ष है। यह सब देश के सबसे तेज़ चैनल पर क़ैद होता रहा और टीवी के लिए इंटरव्यू करने वाली भद्र महिला के साथ दर्शक भी देखते-सुनते रहे। बासित ने यह जवाब उस सवाल पर दिया कि क्या पाकिस्तान में प्रधानमंत्री को लेकर नया संकट खड़ा हो गया।
बासित की बातों को समझना बड़ा आसान है। नवाज़ शरीफ़ से जुड़े सवाल पर उन्होंने हिंदुस्तान के लोकतंत्र पर तो कटाक्ष किया ही साथ ही न्यायपालिका और मीडिया की निष्पक्षता को कठघरे में खड़ा कर दिया। एक तरह से बासित ने यह जता दिया कि पाकिस्तान की न्यायपालिका, मीडिया और लोकतंत्र हिंदुस्तान से कहीं ज़्यादा बेहतर है।
बासित के इस इंटरव्यू पर हिंदुस्तानी राजनेताओं का क्या रूख होता है यह तो वो ही जाने पर बासित का ठक्का-ठाई जवाब आश्चर्यचकित करने वाला था। कश्मीर मुद्दे पर भी उन्होंने दो टूक कहा कि पाक कश्मीर मुद्दे पर बात करना चाहता है पर यहाँ की सरकार ऐसा नहीं चाहती।
मुल्क के नेताओं को बासित का दंभ सुनाई नहीं पड़ा। उन्हें तो इसकी भी फ़िक्र नहीं डोकलाम के बाद चीनी सेना के कुछ जवान उत्तराखंड की सीमा में एक किलोमीटर तक घुस आए। नेता तो दिन भर सदन में सियासी तवे पर 'लिंचिंग' की रोटी सेंकते रहे। विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त पर माथा पच्ची करते रहे।
जाने कब इस मुल्क के नेता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर एक होंगे। कब तक ये सियासी पहलवान बनकर नूरा कुश्ती लड़ते रहेंगे। कब तक जात-पात और धार्मिक आधार पर मुल्क की अवाम को बाँटते रहेंगे। पता नहीं कब चीन और पाकिस्तान के मुद्दे पर ये नेतागण एक राय होंगे। नेताओं की इसी मत भिन्नता की लाभ बासित जैसे लोग उठाते हैं और हमारी ही धरती पर बैठकर हमारे लोकतंत्र और न्यायपालिका को आईना दिखाते हैं।
आलेखों से आगे ..... भारतीय राज्य व्यवस्था के स्वरुप की एक
और झलक
इस आलेख में देखिये
भारत की धर्म निरपेक्षता एवं सहिष्णुता आज की
नहीं है बल्कि अति-प्राचीन है . भारतीय सनातनी व्यवस्था के चलते किसी की वैयक्तिक आस्था
पर चोट नहीं करता यह सार्वभौमिक पुष्टिकृत तथ्य है इसे सभी जानते हैं . जबकि विश्व
के कई राष्ट्र सत्ता के साथ आस्था के विषय पर भी कुठाराघात करने में नहीं चूकते.
कुछ दिनों से विश्व को भारत के नेतृत्व में कुछ नवीनता नज़र आ रही है ... श्रीमती
सुषमा स्वराज ने अपनी एक अभिव्यक्ति में कहा कि- संस्कृत में "वसुधैव कुटम्बकम"की अवधारणा
है. उनका यह उद्धरण इस बात की पुष्टि है कि भारत की सनातनी व्यवस्था में वृहद
परिवार की परिकल्पना बहुत पहले की जा चुकी. भारतीय सम्राट न तो
धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात करने के उद्देश्य के साथ राज्य
के विस्तारक हुए न ही उनने सेवा के बहाने धार्मिक विचारों को
छल पूर्वक विस्तारित किया .
जबकि न केवल इस्लाम बल्कि अन्य कई धर्म तलवार या व्यापार के
बूते विस्तारित हुए . आज भी जब पाक-आधित्यित-काश्मीर के शरणार्थी भारत आए तो
राष्ट्र ने उनके जीवन को पुनर्व्यवस्थित करने 5 लाख रूपयों की राशि प्रदान करने की
व्यवस्था की है . इसे सहिष्णुता ही कहेंगे जबकि चीन जैसे कम्युनिष्ट राष्ट्र ने
डोकलाम के मुद्दे पर विश्व और खुद जनता को गुमराह करने राष्ट्रवाद को हिन्दू
राष्ट्रवाद का नाम दिया . भारत के राष्ट्रवादी चिंतन को बीजिंग से परिभाषा दी जावे
इसके मायने साफ़ हैं कि बीजिंग भी अन्य धार्मिक आस्थाओं को उकसाने की फिराक में हैं
.
अमेरिकन फांसीसी व्यक्वास्थाएं अब घोर राष्ट्रवादियों के
हाथ में हैं उसे क्या परिभाषा दी जावेगी ये तो साम्यवादी राष्ट्र के विचारक ही बता
सकतें हैं पर यहाँ साफ़ तौर पर एक बात स्पष्ट होती है कि साम्यवादी राष्ट्र
से जो भाषा हम, तक आ रहीं हैं वो साम्यवादी
तो कतई नहीं हैं .
भारत के राष्ट्रवाद को हिन्दू
राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति है इस ओर विचारकों का
ध्यान जाना अनिवार्य है .
आज़कल लोगों के मन में एक सवाल निरंतर कौंध रहा है कि क्या चीन भारत के बीच युद्द होगा ..?
मेरे दृष्टिकोण से कोई भी स्थिति ऐसी नहीं है कि चीन और भारत के मध्य युद्ध हो.. युद्ध किसी भी स्थिति में चीन के लिए लाभदायक साबित नहीं होगा इस बात का इल्म चीन की लीडरशिप को बखूबी है. पर चीन का जुमले उछालने का अपना शगल है. मेरी नज़र में चीन उस पामेरियन सफ़ेद कुत्ते की तरह बर्ताव कर रहा है जो घर में आए मेहमान पर जितना भौंकता है उतना ही पीछे पीछे खिसकता है. यह राष्ट्र अपनी विचारधारा के चलते भय का वातावरण निर्मित करने में लगा है.
Shikha Patel is a craft student of balbhavan Jabalpur, One day she showed me her craftwork wich was made by unusefull material
i called to Art-Teacher and give congratulations to her .
After long conversation about shikha and her art-work . i instruct to shikha's Art-teacher Renu Pandey for more improvement and efficiency in shikha's work as well special attention for shikha . Shikha now selected for state label BalShri Camp .
Shikha's mother is house wife but part time sale's-girl her father working as motor Mechanic .The family of Shika is in the low-middle-income group. Those who live in two room houses with less comfort than four children.
पाकिस्तान केकितनेटुकड़े होंगे ?
कल के इस आलेख में यह समझाने का प्रयत्न किया
था कि"सनातन सामाजिक व्यवस्था"
क्या है ...? आइये उसी से आगे बात को लिए चलतें हैं....
क्या यह एक सम्प्रदाय है ... उत्तर स्वाभाविक रूप से न ही
है .. क्योंकि धर्म के अनुयाई सहमति असहमति के आधार पर अपने सुझाए मार्ग पर चलने
व्यवस्था बनाते हैं.. यह कार्य समूह का शिखर व्यक्तित्व करता है जिसे गुरू संबोधित
किया जा सकता है किन्तु मेरा आध्यात्मिक चिन्तन इनको प्रवर्तक मानता है .
हो सकता है आप असहमत हों . पर यही सत्य है.
धर्म क्या है ... इस पर बेहद विशद मंथन किया जा चुका है
होता भी रहेगा इससे कोई ख़ास अर्थ निकलने वाला नहीं . जैसे कि गाड अर्थात ईश्वर को
कोई न तो प्रूफ कर पाया है न ही ही किसी ने उसके अस्तित्व को बहुसंख्यक वैश्विक
आबादी ने स्वीकार्य ही किया है. विश्व का हर प्राणी ईश्वर को मात्र अनुभूत
करता है . धर्म उसी ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता है .
जो अन्य प्राणियों के प्रति सात्विकता पूर्ण व्यवहार के साथ
स्वयमेव प्रशस्त होता है. वाम मार्ग को यही सब खलता है उसे लगता है कि एक आकार हीन
आब्जेक्ट को लोग पूजते हैं जबकि उसका केवल एहसास मात्र कथित रूप से होता है ...
जबकि जीवितों को जिनका आकार है उसे उपेक्षित किया जाता है . वाममार्ग इसी उधेड़बुन में लगे लोगों में अनास्तिकता की विचारधारा को बीज रोपित करना है ! ---
वास्तव में वाममार्ग वैदेशिक आयातित-विचारधारा है ऐसी विचारधारा कदाचित भारत में प्रवर्तित
होती तो तय था का उसका स्वरुप इतना कठोर और विघटनकारी न होता कि पैररल सत्ता चलाने की
भारत में आवश्यकता हो नक्सल आन्दोलन इसी का एक उदाहरण है . भारत की सनातन सामाजिक व्यवस्था में अकिंचनों अर्थात
गरीबों को आर्थिक समृद्धि की व्यवस्था के प्रावधान मौजूद हैं. "सर्वे जना
सुखिना भवन्तु" का घोष बारबार सामाजिक साम्य की ओर इशारा है. अधिकाँश राजाओं
ने इसे स्वीकारा भी था राज्य के विस्तार से अधिक लोककल्याण के कार्यों के लिए अधिक सजग रहे किन्तु वैदेशिक आक्रान्ताओं के हमलों से भारत की अखंडता बनी न रह सकी .
2500 वर्षों में तो भारत का तेजी से विभक्त होना एक दुखद पहलू रहा है. विदेशी आक्रमण लूटपाट, वैचारिक बदलाव, सनातनी सामाजिक व्यवस्था को खंडित करने उद्देश्य से भारत आए . कालान्तर में आक्रमणकारियों की पीठ पर लद कर पंथों का प्रवेश हुआ. सनातनी व्यवस्थाओं में को क्षतिग्रस्त कर आयातित आचरण को बलपूर्वक भारत में लागू करने से साम्प्रदायिक वर्गीकरण तेजी से हुआ यही वर्गीकरण जातिगत विद्वेष का आधार भी इस वज़ह से बना क्योंकि बिना दरार के उनको घुसने का अवसर कदापि न मिलता . वाममार्ग की विशेषता है कि वह प्रोग्रेसिव होने के नाम पर वर्गीकरण करता वर्ग निर्मित करता है फिर लफ्फाजी के सहारे आतंरिक संघर्ष कराता है. इसकी जद में अक्सर कम ज्ञान रखने वाले सहज आ जाते हैं. अर्थात वाममार्ग का उद्देश्य किसी भी प्रकार से विकासोन्मुखी नहीं है . सनातन सामाजिक व्यवस्था की शल्यक्रियाओं में जितना आस्तिक पंथ प्रचारकों का योगदान था उससे अधिक इन नास्तिकों है. जबकि सनातन सामाजिक व्यवस्था जिसने चार्वाक को भी वैचारिक स्वातंत्रय का अधिकार दिया था को छिन्नभिन्न कर दिया . और प्रयास इस आलेख के लिखे जाने तक जारी है.
परन्तु सदी बीतते बीतते भारत में राष्टवाद का पुनर्जागरण का युग शुरू हुआ. जो नई सदी में पुख्ता होता नजर आ रहा है. 2050 तक भारत में इसी राष्ट्रवाद के सहारे सनातन सामाजिक व्यवस्था क्रमश: इतना सशक्त होगी जितनी इजराइल में हुआ है. सत्ताएं आएंगी जाएँगी पर राष्ट्रवाद के संकल्प के बिना कोई भी शक्ति सत्ता के शीर्ष पर नहीं टिक सकेगी.
तब तक अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो ( यद्यपि जो न होगा ) विश्व के नक़्शे में कई देशों के नक़्शे नए होंगें और न हुआ तो भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक परिदृश्य में सभी पंथ सौहार्द पूर्ण रूप से जीवित होंगें .
लेखक के रूप में मैं आशावादी हूँ क्योंकि जिस तेज़ी से मात्र 3 वर्षों में हमारी विश्वनीति सफल हुई है उससे इस बात की तस्दीक होती है कि हम तेज़ी से वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की आवाम के दिलों पर राज करेंगें . सनातन सामाजिक व्यवस्था सीमाओं को छीनने पर विश्वास नहीं रखतीं बल्कि चीन और पाक जैसे देशों को सीमाओं में रहने की नसीहत पर विश्वास रखतीं हैं. ( आलेख जारी है प्रतीक्षा कीजिये )
गिलगित - बालित्स्तान की सांस्कृतिक समारोह की तस्वीर
पाकिस्तान के कितने टुकड़े होंगे ये तो आने वाला समय बताएगा
किन्तु ये तयशुदा है जम्हूरियत पसंदगी आज के दौर की सबसे बड़ी ज़रूरत है और आम
नागरिक को प्रजातंत्र के लिए अधिक आकर्षण समूचे विश्व के चप्पे चप्पे में पसंद आ
रहा है. और यही भावना आने वाले दौर को और अधिक सशक्त बनाएगी. इसी जम्हूरियत पसंदगी
के चलते वे सारे राष्ट्र जहां जम्हूरियत का नामोंनिशान नहीं है उन देशों के राष्ट्र
प्रमुखों को खासतौर पर सोचना ज़रूरी है जो धर्माधारित राष्ट्र के प्रमुख हैं अथवा
किसी धार्मिक राष्ट्र की संस्थापना के चिन्तन में हैं.वे सभी भी जो सभी धर्मों को
उपेक्षा भाव से देखते हुए केवल ख़ास विचारधारा को जनता पर लादते हैं. अर्थात
प्रजातंत्र जहां धर्म संस्कृतियों को सहज स्वीकारने और अपने तरीके से जीने का
अधिकार जो राज्य देता है जनता उस राज्य की नागरिकता अधिक पसंद करेंगे . और विश्व
में भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के अधिकाँश अध्याय जुड़ेंगे . लोग उसे सहर्ष
स्वीकारेंगे .
भारत में हिंदुत्व नामक कोई अवधारणा या विचारधारा नहीं है
बल्कि सनातन सामाजिक व्यवस्था है. जो इतनी व्यवस्थित एवं स्वचालित है कि उसमें
किसी प्रकार की ऐसी कठोरता हो जो जनता को अस्वीकार्य हो. इसकी पुष्टि कुम्भों के
आयोजन से होती है. जहां भारत के सभी ऋषि, मुनि, संत, विद्वत समाज, आस्तिक एकत्र
होकर विगत 12 वर्षों में अपेक्षित व्यवस्थाओं की समीक्षा कर सनातन सामाजिक व्यवस्था को समयानुकूलित करने के लिए
नवीन बिन्दुओं का समावेश करते रहें हैं. यह परम्परा संसदीय थी सम्राट, रियासतों के
राजाओं एवं अन्य प्रशासनिकों को लागू करवाना होता था.
सनातन सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन न होता तो सनातन कठोर
होता जड़ता युक्त होता .. और यही जड़ता उसे क्षतिग्रस्त करती . और सनातन आज हम नहीं
स्वीकारते. क्योंकि नागरिक सदैव सहज जीवन जीना पसंद करते हैं. राजशाही / सामंत
शाही में धर्माचरण के निर्देश थे. बदलावों को सदैव ग्राह्य किया गया . पश्चिमी और
सनातन व्यवस्था में लचीलापन उसको स्थाईत्व देता है. मत भिन्नता को ग्राह्य करते
हुए सभी धर्मों का सम्प्रदायों में बंटना स्वाभाविक प्रक्रिया है जो धर्म की
स्थापना के बाद कालान्तर में होती है . एक ब्रह्म एकेश्वरवाद , द्वैत, अद्वैत,
निरंकार , साकार, शैव, शाक्त, वैष्णव, ट्रिनिटी , और अन्य सभी विचारधाराएं जो
मनुष्य की दिमागी उपज है उसी का अनुशरण राष्ट्र की जनता करती है जो उसे अधिक सहज
लगता है.
स्वामी शुद्धानंदनाथ ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था
कि- “देश-काल-परिस्थिति” के अनुकूल व्यवस्था ही धर्म है . उदाहरण के लिए यदि आप
सफर में और आप त्रिसंध्या के नियम का पालन नहीं कर सकते हैं तो आप मानस-पूजा के
ज़रिये अपने आराध्य की वंदना कीजिये. सनातन का यही लचीलापन उसे सर्वग्राह्य बनाता
है. सनातन व्यवस्था में बाह्य-आचरण की
व्यवस्थाएं दीं हैं . किन्तु आतंरिक आध्यात्मिक विकास के लिए अध्ययन, तप, योग,
ध्यान, चिंतन के बिन्दुओं का समावेश धर्म गुरु करते हैं. सनातनी धर्मगुरु मेकअप
कराकर मनमोहक वातावरण बनाकर भाषण नहीं देते थे . बल्कि समाज के छोटे छोटे समूह को
आध्यात्मिक एवं सनातनी सामाजिक व्यवस्था का शिक्षा देते रहे हैं . आज भी भारत में
धर्म और उसका आतंरिक तत्व अर्थात अध्यात्म बहुसंख्यक रूप से स्वीकार्य है. सनातन सामाजिक व्यवस्था सत्ताभिमुख होने की बजाय राष्ट्रधर्म के पालन को बढ़ावा देती है .
इससे पाकिस्तान में सत्ता का आधार ही कठोर है लोकप्रशासन भी बेहद लचर है . वहां कोई भी
बदलाव राज्य को ही अस्वीकार्य है तो जनता के मन में सदैव आशंका होती है . राज्य का
प्रबंधन की समझ रखने वाले प्रोग्रेसिव विद्वानों को वहाँ स्थान नहीं मिला इसी वज़ह
से प्रजातंत्र की रक्षा के तरीके न खोज सका पाकिस्तान और इसी के चलते 1971 यानी
मेरे जन्म के आठ वर्ष बाद उस देश को दो खंड में विभक्त होना पड़ा . 48 साल बाद उसे छल से छीनी भूमि बलोचस्तान, के साथ साथ गिलगित-बल्तिस्तान, सिंध,
आदि को खोना पड़ सकता है. पाकिस्तान का जन्म कायदे आज़म कुंठा और भ्रम से हुआ. कुंठा और भ्रम में
निर्मित कोई रचना दीर्घायु भला कैसे हो सकती है. पाकिस्तान का पंजाब सूबा देश का
सबसे कम आय-अर्जक है पर वहाँ (पंजाब में) शोषण करने वालों की संख्या अधिक है,
पाकिस्तान की जो भी विकास की नीतियाँ हैं उनका सीधा और सबसे अधिक लाभ केवल
पंजाब को हासिल है. शेष जैसे बलोचिस्तान, सिंध, गिलगित-बल्तिस्तान आदि की उपेक्षा
हुई है. 48 सालों में इन्हीं गलत एवं गैर-समानता वाली व्यवस्था के चलते पाकिस्तान
की फैडरल-व्यवस्था फिर से चरमराने लगी है
. जिससे आम शहरी बेहद घायल महसूस करता है . यहीं से रास्ते बनतें हैं जनक्रांति के
जो भौगोलिक सीमाओं में तक परिवर्तन ला सकती हैं. एक सत्य भी पाकिस्तानी सदर यानी
वहाँ के वजीर-ए-आज़म विश्व फॉर्म पर उजागर करते हैं हैं कि पाकिस्तान को आतंकवाद
सबसे अधिक क्षतिग्रस्त करता है . सत्य भी है पर इसके तीन कारण हैं ..
एक कि वो ऐसा कहकर वो विश्व समुदाय से सिम्पैथी हासिल करना
चाहता है जिससे उसकी करतूतों पर पर्दा डाला रहे
दूसरे उसको देश चलाने के लिए अमेरिकी डालर मिलते रहें . जिससे
उसके पंजाब सूबे की जनता का जीवन सामान्य हो सके.
तीसरा और सबसे अहम कारण है उसके पास अब इतना भी धन नहीं है
जिससे वो अपने पाले आतंकवादी संगठनों का खर्च भी उठा सके.
अक्सर भारत के कुछ विचारक भारत को कम आंककर अनाप-शनाप आरोप
लगाकर हमारी विदेशनीति पर सवाल खड़े करते हैं . लेकिन दिनांक 16 जुलाई 17 को आतंक
के खिलाफ दृढ़ता से आवाज़ उठाने वाले मनिंदर सिंह बिट्टा के संकल्प को समझाने की
ज़रूरत है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग को धार्मिक साँचें में ढालकर पेश न किया जाए.
अधिकाँश आयातित विचारधारा के पोषक सदा वर्गीकरण करतें हैं
ताकि व्यवस्था में उन्माद का प्रवेश हो तथा अंतर्कलह की स्थिति उत्पन्न हो .
किन्तु भारत ने विश्व को अपने मज़बूत कूटनीति से जिस तरह पाकिस्तान और उसके आका चीन
को पोट्रेट किया है उससे विश्व का भारत के प्रति झुकाव भी बढ़ा है . और हमारी
वैश्विक साख में इजाफा हुआ है.
जहां तक भारत के अल्पसंख्यकों का प्रश्न है वे चाहे यहूदी
हों बौद्ध, सिख, पारसी, ज्यूस्थ, जैन, अथवा मुसलिम हों उनको बहुसंख्यकों से भयातुर
होने की ज़रूरत कदापि नहीं . भारत सर्वधर्म समभाव का स्वप्रमाणित राष्ट्र है.
बावजूद इसके कि पश्चिम बंगाल सहित कई प्रान्तों में सनातनियों की स्थिति सामान्य न
हो .
परन्तु एक बाद सबको समझनी आवश्यक है कि पाकिस्तान को
सर्वाधिक क्षति चीन और उसके अपने बलोचस्तान, गिलगित-बल्तिस्तान, सिंध, के नागरिक
ही दे सकतें हैं.
A proud feeling one hour talk on" Spin-Orbitonics " ( an emerging & frontier technology of electronics and computer ) delivered by Dr Pramey Upadhyaya at Purdue University, Lafayette, Indiana, USA, on 6 July 2017 . Jabalpur based Dr. Pramey Upadhyay was a student of Christ Church higher secondary school and his father Dr. S.D Upadhyay is a professor in JNKVV jabalpur and his mother is also highly educated woman .
Education
University of California
Los Angeles Los Angeles PhD, Department Electrical Engineering 2011-2015
Thesis: Spin-orbitronics: Electrical control of magnets via spin-orbit
interaction University of California Los Angeles Los Angeles Master of Science,
Department Electrical Engineering 2009–2011 Indian Institute of Technology
Kharagpur Bachelor of Technology, Department Electrical Engineering 2005–2009
Research Interests
Topological phenomenon:
topological phases, skyrmion and domain wall dynamics { Spin superfluidity,
spin wave excitation in magnetic insulators and multiferroics { Spin-torques in
magnets and topological insulators with broken inversion symmetry { Spintronics
in anti-ferromagnets and 2d materials: graphene, MoS2, etc. { Application of
spintronics for low power memory and logic devices
Awards and Fellowships
Qualcomm Innovation
fellowship, 2013 (a highly competitive and prestigious award reserved for
Ph.D.candidates at top-notch universities)
Henry Samueli School of
Engineering and applied science, UCLA, department fellowship for securing rank
1 in Ph.D. prelims, 2011
Intel summer research
fellowship, Oregon, USA, 2011 : high frequency magnetization dynamics
IEEE fellowship: summer
school on Magnetics, New Orleans, USA, 2012
undergraduate summer
research fellowship, Trinity college Dublin, Ireland 2008
undergraduate summer
research fellowship, Virginia Commonwealth university, USA, 2007 : theoretical
study of Rashba-coupling induced spin texturing and optical transitions, resulted
in two first authored Phys. Rev. B publications
Publications
M. Montazeri∗
, P. Upadhyaya∗ , M.C. Onbasli, G. Yu, K.L. Wong, M. Lang, Y. Fan,
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Comm.); ∗ equal contribution
P. Upadhyaya, P.K. Amiri
and K.L. Wang, “Electric-field guiding of magnetic skyrmion", (in press
Phys. Rev. B) W. Jiang, P. Upadhyaya, W. Zhang, G. Yu, M.B. Jungfleisch, F.Y.
Fradin, J.E. Pearson, Y. 1/3 Tserkovnyak, K.L. Wang, O. Heinonen, S.G. te
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Nature Mater 13, 699 (2014); ∗ equal
contribution
G. Yu∗
, P. Upadhyaya∗ , Y. Fan, J. G. Alzate, W. Jiang, K.L. Wong, S. Takei,
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S. Bandyopadhyay and M. Cahay “Magnetic field effects on spin texturing in a
quantum wire with Rashba spin-orbit interaction", Phys. Rev. B, 77, 045306
(2008)
Contributed talks and
posters
"Voltage guiding of
magnetic skyrmion", 59th Magnetism and Magnetic materials Conference,
Hawaii, USA 2014 (poster)
"Electric-field
induced domain wall dynamics: depinning and chirality switching ", 12th
Joint Intermag/Magnetism and Magnetic materials Conference, Chicago, USA 2012
(poster)
"Bias dependence of
h/e and h/2e Aharonov-Bohm oscillations in topological insulators ",
American Physical Society March Meeting, Dallas, USA 2011 (contributed talk)
"Thermal stability
characterization of Magnetic Tunnel Junctions using hard-axis magnetoresistance
measurements", 55th Magnetism and Magnetic materials Conference, Atlanta,
USA 2010 (poster)
Professor Kang L Wang
(thesis advisor) Distinguished Professor and Raytheon Chair, Department of
Electrical Engineering, University of California Los Angeles { Professor
Yaroslav Tserkovnyak (thesis co-advisor) Department of Physics and Astronomy,
University of California Los Angeles { Professor Pedram Khalili Amiri Assistant
adjunct professor, Department of Electrical Engineering, University of
California Los Angeles
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जबलपुर के क्राइस्टचर्च के मैदान में असेम्बली के दौरान जब
भी स्कूली रिज़ल्ट की घोषणा की जाती तो प्राचार्य सदैव हर कक्षा के श्रेष्ठ तीन बच्चों के नामों की घोषणा करते पर
जब भी प्रमेय की कक्षा की बारी आती तो वे
यह पूछना नहीं भूलते “इस बार भी कौन फर्स्ट कौन होगा ? ” और भीड़ की समवेत आवाज़
गूंजती “अवश्य ही प्रमेय ...!”
यही प्रमेय अब नार्मदीय ब्राह्मण समाज के युवाओं के लिए यूथ
आयकान से अब कम नहीं हैं.
प्रमेय उपाध्याय नार्मदीय महिला मंडल जबलपुर की सचिव प्रमेय
सबसे उत्साही प्रेरक गणित विषय के
विशेषग्य कला संगीत साहित्य जैसी प्रतिभाओं की धनी श्रीमति ललिता एवं नार्मदीय ब्राह्मण समाज के
अध्यक्ष डा.एस.डी.उपाध्याय, कृषि नगर,
अधारताल, जबलपुर को यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया, लॉसएंजलिस ,
अमेरिका में डाक्टर ऑफ़ फिलोसाफी
उपरान्त पोस्ट डाक्टरल स्कॅालर हेतु चयनित किया गया ।
प्रमेय ने आई.आई.टी., खडगपुर से बी.टेक इलेक्ट्रीकल्स इंजीनियरिग (2009),
एम.एस. व पी.एच.डी. इलेक्ट्रीकल्स इंजीनियरिग (यूसी.एल.ए,
केलिफोर्निया) क्रमश: वर्ष 2011
व 2015 में उपाधियाँ अर्जित की हैं .
ये उपाधियाँ किसी अच्छे जॉब के लिए पर्याप्त हो सकतीं हैं .
परन्तु प्रमेय की के सपने प्रखर है .. और वे खुद सपनों को साकार करने के लिए कृतसंकल्पित हैं इस क्रम में यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रमेय को वर्ष 2007 व 2008 में स्टूडेन्ट रिसर्च फेलोशिप क्रमश: वरजिनिया कामनवेल्थ यूंनिवर्सिटी,
अमेरिका एवं ट्रिनिटी कालेज
डबलिन, आयरलैड
में उच्च अध्ययन हेतु प्रदान की गई ।
वर्ष 2013 में चि. प्रमेय को क्वालकम इनोवेशन फेलोशिप अवार्ड
से नवाजा गया । आपके 30 से अधिक शोध पत्र अंतर-राष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए है .
युवा प्रमेय स्वयेव एक ऐसा साध्य है जो लक्ष्य संधान का एक
श्रेष्ठतम उदाहरण हैं .ऐसे बिरले उदाहरण
को “यूथ-आयकान” का दर्ज़ा न देना प्रतिभा के प्रति इग्नोरेंस होता जो मेरे बस की
बात नहीं . नार्मदीय ब्राह्मण
समाज की ओर से अनवरत शुभकामनाएं ...... प्रमेय को ........ उनके अभिभावकों को
.....
चिरंजीव प्रमेय की उपलाब्धियों की
चर्चा करते हुए बेहद हर्षित हूँ वैसे भी मेरा लेखकीय दायित्व है कि प्रतिभाओं को सामने लाऊं जब सामाजिक अन्वेषण करता हूँ तो
पाता हूँ कि- नर्मदे युवा बेहद प्रतिभा संपन्न हैं किन्तु उनकी चर्चा बहुधा कम ही
होती है. . जबकि हमारा दायित्व है कि हम हर नए
अंकुरण को सराहें उसकी उपलब्धियां अपनों के बीच लाएं... समकालीन परिस्थितियों में भारतीय युवा पर विश्व सर्वाधिक चिंतन कर रहा है . मुझे
यकीन है कि भारतीय युवाओं का अगले पंद्रह
बरसों में वैश्विक विकास का सर्वाधिक
योगदान होगा. आशा है आप भी प्रतिभा परिचय अनुलेखन के लिए मुझ तक अवश्य
भेजेंगें .
राहत साहेब अपनी अबसे अच्छी रचना मानकर गोया हर मंच पर सुना रहें हैं . बेशक कलम के तो क्या कहूं उनकी प्रस्तुति के अंदाज़ पर बहुतेरे फ़िदा हैं.. राहत साहेब की ग़ज़ल के मुक़ाबिल आज मैंने एक सकारात्मक कोशिश की थी मुझे लगा कि मैं कामयाब हूँ सो आप सबको दे रहा हूँ.. इस मंशा से कि कभी भी कोई भारतीय कवि शायर किसी से इतना व्यक्तिगत दूर न हो जाए कि उसकी झलक उसकी शायरी में दिखाई दे ... सुधि जन हम इंसानियत के लिए लिखतें हैं .. हम वतन परस्त हैं हमारी कलम से किसी के लिए इतनी घृणा न हो कि वो लोगों को तकसीम करने की वजह बने . हम किसी सियासी वजूद से दूर क्षितिज से हौले हौले उभरता हुआ डूबा हुआ आफताब उगाते हैं जो तेज़ी से मुक्कदस ज़मीन को अपनी सोनाली-रश्मियों से ढँक लेता है. यही है कलम की ताकत ... इन दौनों ग़ज़ल में फर्क देखिये और जो कहेंगे ईश्वरीय प्रसाद मान कर ग्रहण करूंगा ........ तो सबसे पहले राहत_इन्दौरी साहेब की ग़ज़ल
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
अब प्रस्तुत है मेरी गजल ... उर्दू लिटरेचर के मापदंडों में उन्नीस-बीस हो सकती है पर सकारात्मक सृजन राष्ट्रीय चिंतन के बिंदु पर मुक्कमल मानता हूँ.. यकीनन आप भी मानेंगे.
जो खिलाफ हैं वो समझदार इंसान थोड़ी हैं जो वतन के साथ हैं वो बेईमान थोड़ी है ।।
लगेगी आग तो बुझाएंगे हम सब मिलकर बस्ती हमारी है वफादार हैं बेईमान थोड़ी हैं ।।
मैं जानता कि हूँ वो दुश्मन नहीं था कभी मेरा उकसाने वालों का सा मेरा खानदान थोड़ी है ।।
मेरे मुंह से जो भी निकले वही सचाई है मेरे मुंह में पाकिस्तानी ज़ुबान थोड़ी है ।।
वो साहिबे मसनद है कल रहे न रहे - वो भी मालिक है ये किराए की दूकान थोड़ी है