लेखक : ज़हीर अंसारी |
बासित की बातों को समझना बड़ा आसान है। नवाज़ शरीफ़ से जुड़े सवाल पर उन्होंने हिंदुस्तान के लोकतंत्र पर तो कटाक्ष किया ही साथ ही न्यायपालिका और मीडिया की निष्पक्षता को कठघरे में खड़ा कर दिया। एक तरह से बासित ने यह जता दिया कि पाकिस्तान की न्यायपालिका, मीडिया और लोकतंत्र हिंदुस्तान से कहीं ज़्यादा बेहतर है।
बासित के इस इंटरव्यू पर हिंदुस्तानी राजनेताओं का क्या रूख होता है यह तो वो ही जाने पर बासित का ठक्का-ठाई जवाब आश्चर्यचकित करने वाला था। कश्मीर मुद्दे पर भी उन्होंने दो टूक कहा कि पाक कश्मीर मुद्दे पर बात करना चाहता है पर यहाँ की सरकार ऐसा नहीं चाहती।
मुल्क के नेताओं को बासित का दंभ सुनाई नहीं पड़ा। उन्हें तो इसकी भी फ़िक्र नहीं डोकलाम के बाद चीनी सेना के कुछ जवान उत्तराखंड की सीमा में एक किलोमीटर तक घुस आए। नेता तो दिन भर सदन में सियासी तवे पर 'लिंचिंग' की रोटी सेंकते रहे। विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त पर माथा पच्ची करते रहे।
जाने कब इस मुल्क के नेता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर एक होंगे। कब तक ये सियासी पहलवान बनकर नूरा कुश्ती लड़ते रहेंगे। कब तक जात-पात और धार्मिक आधार पर मुल्क की अवाम को बाँटते रहेंगे। पता नहीं कब चीन और पाकिस्तान के मुद्दे पर ये नेतागण एक राय होंगे। नेताओं की इसी मत भिन्नता की लाभ बासित जैसे लोग उठाते हैं और हमारी ही धरती पर बैठकर हमारे लोकतंत्र और न्यायपालिका को आईना दिखाते हैं।
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जय हिन्द
ज़हीर अंसारी