15.1.17
Doobe Suraj main utha leta hoon....!
डूबे सूरज मैं उठा लेता हूँ भोर अपनी है बता देता हूँ
:::::::::::
“पूस की रात” पुआलों पे बिछे बारदाने
चिलम के साथ निकल आते किस्से पुराने ..
पेड के पीछे छिपे भूत से डरा था कल्लू
रोज़ स्कूल में हम सब लगे उसको चिढाने
चीख चमरौटी की सुनके गाँव डरता था
पहन चप्पल जो निकला वही तो मरता था
हमने झम्मन को चच्चा कहा तो सब हँसने लगे
पीठ पीछे हमको ताने कसने लगे ...!!
किसी को छूने से धर्म टूटता या बचता है ...!
न जाने कौन ? भरमजाल ऐसा रचता है ?
कितने सूरज बिन ऊगे ही डूब गए ...
दीप कितने कुछ पल में ही रीत गए
आज़कल खोज रहा हूँ डूबते सूरज
कहीं मिल जाते हैं उनको मैं उठा लेता हूँ
कभी कुरते के पाकिट में छिपा लेता हूँ !
वक्त मिलते ही उनको मैं उगा देता हूँ
भोर सूरज की है सबको मैं बता देता हूँ !!
please watch & like My Channel on youtube :- Girish Billore
14.1.17
अगर आप बेटियों को कमतर और उनके जन्म को अपना दुर्भाग्य तो आप सर्वथा गलत हैं.
संभागीय बालभवन जबलपुर की बाल कलाकार कुमारी उन्नति तिवारी का चयन ज़ी टीवी के लिटिल चैम्प शो के लिए दिनांक 10 जनवरी 17
को संपन्न ऑडिशन में कर लिया गया है. पंडित गौरीशंकर तिवारी एवम
श्रीमती शोभना तिवारी की द्वितीय पुत्री उन्नति बहुमुखी
प्रतिभा की धनी हैं .
गायन के अलावा वे तीन बार राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में टीम का
हिस्सा रह चुकीं हैं साथ ही राष्ट्रीय बालश्री 2016 के
लिए स्थानीय रूप से चयनित की जा चुकीं हैं.
विगत 18 नवम्बर स 20 नवम्बर 2017
को राज्य स्तरीय अंतर्बालभवन साहित्यिक एवम संगीत प्रतियोगिताओं में
उन्नति को 3 राज्यस्तरीय पुरस्कार अर्जित किये। 26
जून 2003 को जन्मी उन्नति की गायन
में रूचि अपने चचेरे भाईयों सत्यम शुभम के गायन से हुई , साथ ही
स्कूली अध्ययन में हमेशा उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली बाल प्रतिभा को हिंदी अंगरेजी एवम संस्कृत में गहरी रुची है.
केंद्रीय विद्यालय CMM में कक्षा 7 की विद्यार्थी अपनी सफलता का श्रेय बालभवन एवम संगीत गुरु
सुश्री शिप्रा सुल्लेरे को देते हुए कहतीं हैं कि - "मैं अपना अधिकतम
समय एकेडमिक पाठ्यक्रम के अलावा संगीत को देती हूँ जहां तक साहित्य का प्रश्न है
उसके लिए जब विचार आएं तब लिखने के लिए समय निकालना ही होता है."
बेटियों में टेलेंट देख मैं हतप्रभ हूँ बालभवन
में मेरी साहित्य कक्षा में उन्नति का एक कल्पनाशीलता भरा व्यक्तित्व नज़र आया है.
उसमें सभी धर्मों के प्रति सम्मान कूट कूट के भरा हैं. मैं सम्पूर्ण समाज से आग्रह
करूंगा कि वे बेटियों को मज़बूत बनाएं किसी भी स्थिति में वे बेटों से कमतर कहाँ.. ?
बेटियों के महत्व को जानिये उनको उनकी
उड़ान भरने से रोकिये मत ... अगर आप बेटियों को कमतर मानते हैं और उनके जन्म को
अपना दुर्भाग्य तो आप सर्वथा गलत हैं.
स्मरण हो कि
बालभवन जबलपुर की इशिता विश्वकर्मा एवम इशिता तिवारी एक अन्य टीवी चैनल के लिए
चयनित हैं
13.1.17
फौजी का वायरल वीडियो बनाम कार्मिक प्रबंधन में सुधार की ज़रुरत
वायरल वीडियो देख दु:ख हुआ कि न तो वीडियो वायरल होना था ही वीडियो पर मीडिया
में बहस होनी थी पर अब संभव नहीं क्योंकि पाकिस्तान के टीवी चैनल्स पर इस वीडियो
पर आधारित नकारात्मक कार्यक्रम पेश किये जा चुके हैं.
जो हुआ सो
हुआ पर अब सभी को व्यवस्था में अव्यवस्था पर कड़ी निगाह रखने की ज़रूरत है. ये
सर्वदा सत्य है कि प्रशासनिक व्यवस्था में डेमोक्रेटिक सिस्टम का होना ज़रूरी नहीं
है वरना अनुशासन हीनता की स्थिति में सदैव इजाफा होगा जो बेहद दुखद और घृणास्पद
स्थितियों को जन्म देगा.
जवान का
वीडियो वायरल करना उसी अनुशासन हीनता का एक परिणाम है परन्तु इस अनुशासन हीनता की
वज़ह “अधिकारियों में प्रबंधन क्षता का अभाव” केवल वो जवान
दोषी है यह अर्थ सत्य है दोषी अधिकारी भी हैं . जो प्रबंधकीय-क्षमता के अल्फाबेट
से गोया अपरिचित है.
केन्द्रीय
एवं राज्य सरकारों में मशीनरी के साथ अपनाए जा रहे व्यवहारों में प्रशासन का
आधिक्य है जबकि उसमें प्रबंधन की ज़रूरत है.
कर्मियों के
प्रति सदभावना विहीन व्यवहारों के किस्से दबी जुबान में आते रहते हैं . कई बार तो
ऐसे मुद्दे वर्ग संघर्ष को भी जन्म देते हैं. इन स्थितियों को मैंने अपनी सर्किट हाउस नामक दीर्घ कहानी में दर्शाया है. कथानक में कई चरित्र ऐसे
हैं जो उच्च प्रबंधकीय सदभाव से उपकृत्य हैं तो कई ऐसे भी हैं जो बेहद उपेक्षित
एवं शिकार होते हैं- कार्मिक प्रबंधन में कई खामियों के चलते हीन भावना उपजतीं है.
और व्यवस्था में सिन्कोनाइज़ेश्न समाप्त होने लगता है फिर वो भोजन का मुद्दा बन के
वायरल हो या आपसी संवाद के ज़रिये वायरल हो. इस प्रकार की गैर-बराबरी को महसूस किया
जा सकता.
जहां तक सुरक्षा संस्थानों का मुद्दा है सैनिकों को इतना उत्तेजित होना किसी भी तरह से अमान्य है.. अतएव व्यवस्था में आतंरिक सुधार की नितांत ज़रूरत है. अब तो प्रशासनिक और कार्मिक प्रबंधन के सुधार के लिए कदम तेज़ी से उठाने ज़रूरी हैं.
जहां तक सुरक्षा संस्थानों का मुद्दा है सैनिकों को इतना उत्तेजित होना किसी भी तरह से अमान्य है.. अतएव व्यवस्था में आतंरिक सुधार की नितांत ज़रूरत है. अब तो प्रशासनिक और कार्मिक प्रबंधन के सुधार के लिए कदम तेज़ी से उठाने ज़रूरी हैं.
देश के एक
महत्वपूर्ण विभाग के
कुछ अधिकारियों ने तो एक नए तरह के वर्ग संघर्ष के चलते “प्रमोटी अधिकारियों” का संघ भी बना रखा है जहां वे
अपना दर्द बाँट लेते हैं ..... किन्तु भोजन जैसे मुद्दे को लेकर वायरल हुआ ये
वीडियो बेहद नि:शब्द करने वाला है. अगर मुद्दा सेना का न होता तो इतनी पीढा न होती
पर सेना जिसे सामान्य व्यक्ति पैरा सैनिक बल सेना ही मानता है तो देश के कार्मिक
विभाग को उसे सामान्य सैनिक मानने में परेशानी नहीं होनी चाहिए..?
हम जन सामान्य के रूप में पुलिस के प्रति भी सदभावी विचारों के हिमायती हैं क्योंकि वे सामान्य जीवन त्याग विपरीत परिस्थितियों में काम करते हैं. किन्तु कुछ सोच ऐसी नहीं हैं.. देश जो युगों युग से सिगमेंट में जीने का आदी है उसमें बदलाव लाने के लिए बड़े कदंम उठाने ही होंगे सरकारी और सामाजिक दौनों तौर पर
सच माने या न मानें मैं भी इस व्यवस्था जिसमें द्वेष पूर्णता मौजूद है का शिकार होता रहा हूँ.. पर संस्कारवश नियंत्रित हूँ .......
हम जन सामान्य के रूप में पुलिस के प्रति भी सदभावी विचारों के हिमायती हैं क्योंकि वे सामान्य जीवन त्याग विपरीत परिस्थितियों में काम करते हैं. किन्तु कुछ सोच ऐसी नहीं हैं.. देश जो युगों युग से सिगमेंट में जीने का आदी है उसमें बदलाव लाने के लिए बड़े कदंम उठाने ही होंगे सरकारी और सामाजिक दौनों तौर पर
सच माने या न मानें मैं भी इस व्यवस्था जिसमें द्वेष पूर्णता मौजूद है का शिकार होता रहा हूँ.. पर संस्कारवश नियंत्रित हूँ .......
12.1.17
लूट लाए थे मुफलिस दुकानें आज कपड़ों की – बाँट पाए न आपस में, सभी के सब कफ़न निकले !!
गिरह खोली गिने हमने, हमारे गम भी कम निकले
नमी क्यों आपकी आँखों में मेरे गम, तो सनम निकले .
रोज़ बातें अंधेरों की,
फसानों के बड़े किस्से -
खौफ़ खाके जो तुम निकले, उसी दहशत में हम निकले .
किसी शफ्फाक गुंचे पे, यकीं बेहद नहीं करना –
सिपाही कह रहे थे – “गुंचों में कई बार बम निकले ..!!”
लूट लाए थे मुफलिस, दुकानें आज कपड़ों की –
बाँट पाए न आपस में, सभी के सब कफ़न निकले !!
ख्वाहिशें पाल मत यारां , कोई ग़ालिब नहीं है तू –
हज़ारों ख्वाहिशें हों और, हर ख्वाहिश पे दम निकले ?
हज़ारों ख्वाहिशें हों और, हर ख्वाहिश पे दम निकले ?
*गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”*
11.1.17
9.1.17
*संगीत कक्ष से उपजी एक कविता*
वहीं पे मैं जहां भी हारता हूँ
लिखा करता हूँ
किसी दीवार पे
मैं जीत लूंगा ...
जीतना मेरी ज़रूरत है..
ज़रूरत है ज़रुरत है..
मुझे ये ओहदे सितारे कुर्सियां
और दर्ज़ा कुछ नहीं भाता !
इन्हें जीत लेना –
सच मानिए मुझको नहीं आता..
कोई बच्चा जिससे मेरा
नहीं है कोई भी नाता ...
वो जब पर्दा हटाके मुस्कुराके . कहता है
. गुड मार्निग सर
तभी मुझको जीत का एहसास होता है..
चले आओ मेरे दफ्तर ये मंजर
हर रोज़ मेरे पास होता है.
देखकर मुझको बेहतर सुनाने की गरज से
सिखाए पाठ टीचर के
बच्चे भूल जाते हैं ...
तभी हम उनमें अपनेपन का मीठा स्वाद पाते हैं
टीचर भी मुस्कुरातीं हैं ... बच्चे समझ जाते हैं..
सच कहो क्या जीत ऐसी आप पाते हैं..?
*गिरीश बिल्लोरे
मुकुल*
7.1.17
बॉबी नाटक : छोटे परिवारों की बड़ी समस्या का सजीव चित्रण
बॉबी टीम का तआरुफ़ कराते आर्टिस्ट दलविंदर भाई नाट्यलोक के अध्यक्ष |
मशहूर नाटक लेखक स्व. विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित कथानक पर आधारित बाल-नाटक "बॉबी" का निर्माण संभागीय बालभवन जबलपुर द्वारा श्री संजय गर्ग के निर्देशन में तैयार कराया गया है. जिसकी दो प्रस्तुतियां भोपाल में दिसंबर माह में की जा चुकीं है.
जहाँपनाह की जहाँपनाह बॉबी |
सुभद्रा कुमारी चौहान जी के गीतों से भरा पूर्वरंग |
बॉबी
नौकरी पेशा माता पिता की इकलौती बेटी है जिसे स्कूल से लौटकर आम बच्चों की
तरह माँ की घर से अनुपस्थिति बेहद कष्ट पहुंचाने वाली महसूस होती है. उसे टीवी खेल
पढने लिखने से अरुचि हो जाती है. स्कूली किताबों के पात्र शिवाजी, अकबर बीरबल, आदि से उसे घृणा होती है. इतिहास के के
इन पात्रों की कालावधि याद करना उसे बेहद उबाऊ कार्य लगता है. साथ ही बाल सुलभ
रुचिकर पात्र मिकी माउस, परियां गौरैया से उसे आम बच्चों की
तरह स्नेह होता है. और वह एक फैंटेसी में विचरण करती है. शिवाजी, अकबर बीरबल, से
वह संवाद करती हुई वह उनको वर्त्तमान परिस्थियों की शिक्षा देती है तो परियों
गौरैया मिकी आदि के साथ खेलती है. अपनी पीढा शेयर करती है... कि उसे माँ और पिता
के बिना एकाकी पन कितना पीढ़ा दायक लगता है.
फुदक चिरैया के साथ बॉबी |
बॉबी एक ऐसा चरित्र है जो हर उस परिवार का हिस्सा होता है जो माइक्रो परिवार हैं. जिसके माता पिता जॉब करतें हैं। स्कूल से आने से लेकर शाम को माँ और पिता के लौटने तक वास्तविकता और स्वप्नलोक तक विचरण करने वाली बॉबी अपनी फैंटेसी के बीच झूलती है. इस अंतर्द्वंद को बहुतेरे बच्चे झेलते हैं परंतु माता-पिता को इस स्थिति से बहुधा अनभिज्ञ रहते है। बॉबी यानी श्रेया खंडेलवाल यह सिखाने समझाने में सफल रहीं।
महानगरों की तरह अब मध्य-स्तरीय शहरों तक संयुक्त परिवार के बाद तेज़ी से परिवारों का छोटा आकार होने लगे हैं तथा उससे बालमन पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रभावी तरीके से इस नाटक में उकेरा गया है.
मिकी चूहे के साथ नृत्य करती बॉबी |
बालरंग निर्देशकों द्वारा बच्चों के ज़रिये ऐसे कथानक के मंचन का जोखिम बहुधा काम ही उठाया होगा लेकिन संस्कारधानी के इस नाटक को देखकर अधिकांश दर्शकों की पलकें भीगी नज़र आईं थी संस्कारधानी में बालरंग-कर्म की दिशा में कार्य करने वाले नाट्य-निर्देशक संजय गर्ग एवम बालभवन जबलपुर के बालकलाकारों की कठिन तपस्या ही मानेंगे कि नाटक दर्शकों के मन को छूने की ताकत रख सका.
मंचन की सफलता से भावविभोर बेटियाँ |
मुख्य
पात्र बॉबी के चरित्र को जीवंत बनाने में बालअभिनेत्री श्रेया खंडेलवाल पूरे नाटक
में गहरा प्रभाव छोड़तीं है. जबकि अकबर -प्रगीत शर्मा , बीरबल
हर्ष सौंधिया, मिकी समृद्धि असाटी , शिवाजी
-सागर सोनी, के अलावा पलक गुप्ता (गौरैया) ने अपनी भूमिकाओं में प्रोफेशनल होने का आभास करा ही दिया। इसके अलावा मानसी सोनी, मिनी दयाल, परियां- वैशाली बरसैंया, शैफाली सुहानी, आकृति वैश्य, आस्था अग्रहरी , रिद्धि
शुक्ला, दीपाली ठाकुर, का अभिनय भी
प्रभावी बन पड़ा था.
बॉबी की नसीहत फैंटेसी में बनी मित्र मंडली को |
नाटक की
प्रकाश, ध्वनि एवम संगीत की ज़िम्मेदारी सुश्री शिप्रा
सुल्लेरे सहित कु. मनीषा तिवारी , कुमारी महिमा गुप्ता, के ज़िम्मे थी जबकि बाल गायक कलाकार - उन्नति तिवारी, श्रेया ठाकुर, सजल सोनी, राजवर्धन
सिंह कु. रंजना निषाद, साक्षी गुप्ता, आदर्श
अग्रवाल, परिक्षा राजपूत के गाये गीतों से नाटक बेहद असरदार बन
गया था.
अपने माता पिता को पाकर आया धीरज बॉबी को |
संभागीय बालभवन के संचालक ने बताया कि - "बच्चों से ऐसे विषय पर मंचन कराना बेहद कठिन काम है किन्तु निर्देशक श्री संजय गर्ग इस नाटक के ज़रिए उन चुनिंदा लोगों में शुमार हो गए हैं जिनको भारत में ख्याति प्राप्त हुई है. भोपाल में समीक्षकों ने बॉबी नाटक को उत्कृष्ट बता कर पुनः मंचन कराया था."
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