12.1.14

मकर संक्रान्ति : सूर्य उपासना का पर्व

आलेखसरफ़राज़ ख़ान

स्टार न्यूज़ एजेंसीआज़ाद मार्केट दिल्ली-6


भारत में समय-समय पर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं. इसलिए भारत को त्योहारों का देश कहना गलत होगा. कई त्योहारों का संबंध ऋतुओं से भी है. ऐसा ही एक पर्व है . मकर संक्रान्ति. मकर संक्रान्ति पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस त्योहार को मनाया जाता है. मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू हो जाती है. इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं. तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग शाम होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं और अग्नि को तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति देते हैं. इस पर्व पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं. देहात में बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं. बच्चे तो कई दिन पहले से ही लोहड़ी मांगना शुरू कर देते हैं. लोहड़ी पर बच्चों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है.

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है. इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है. 14 जनवरी से इलाहाबाद मे हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है. 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है. और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही दिया जाता था. मसलन विवाह आदि मंगल कार्य नहीं किए जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग काफी बदल गए है. 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आख़िरी नहान तक चलता है. संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है. उत्तराखंड के बागेश्वर में बड़ा मेला होता है. वैसे गंगा स्नान रामेश्वर, चित्रशिला अन्य स्थानों में भी होते हैं. इस दिन गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है. इस पर्व पर भी क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है. समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है. इलाहाबाद में गंगा, यमुना सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है.

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. ताल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है. लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं :- `तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं.

बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है. यहां गंगासागर में हर साल विशाल मेला लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था. इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं.

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है.पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे अंतिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकट्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद लेती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं. अन्य भारतीय त्योहारों की तरह मकर संक्रांति पर भी लोगों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)


“दुनिया एवं बघाड़ : जहां मेरा जाना असम्भव है..!!”


उमरिया जिले से सटे डिंडोरी जिले के गांव दुनिया एवं बघाड़ जहां मेरा जाना असम्भव है..!!” सीधी पर्वतीय राह से होकर पहुंचते हैं इन गांवों में . बहुत सोचा मन भी यही कह रहा था कि कलेक्टर श्रीमति छवि भारद्वाज  के नेतृत्व में  दुनिया एवं बघाड़ जाने वाली टीम के साथ मैं भी जाऊं . किंतु सहकर्मियों के आग्रह पर मैने वहां न जाने का निर्णय लिया. सो आनन-फ़ानन सारी तैयारियां की गईं . एक टीम को (जिसमें श्रीमति उर्मिला जंघेला , श्रीमति केतकी परस्ते एवम श्रीमति कौतिका धारणे मार्गदर्शन के लिये हमारे चौकीदार श्री धनीराम जिन्हैं सब दादा  से संबोधित करता हैं  के अलावा सशक्तिकरण विंग से  प्रोबेशनरी आफ़िसर श्री प्रकाश नारायण यादव एवम प्रोटेक्शन आफ़िसर श्री अशोक परमार ) भेजा .टीम अपने साथ थी आय वाई सी एफ़ की पुस्तिका की प्रतियां जो यूनिसेफ़ एवम बी.पी.एन.आई. का संयुक्त प्रयास है. ऊषा-किरण, मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना के आवेदनों का प्रारूप, कुछ प्रोटीन पावडर के डब्बे, ला्डली-लक्ष्मी आवेदन प्रपत्र .    
      पहाड़ियों से घिरे इन  गॉवों तक पहुंचना भले ही दुर्गम हो परंतु प्राकृतिक सौंदर्य किसी पिकनिक स्पाट से कम तर नहीं है.  कल-कल बहती जोहिला नदीमैदानी इलाके से करीब 1200 फुट नीचे बसे गॉव दुनिया एवं बघाड के पहाड़ियों का दुर्गम एवं टेढ़ी-मेढ़ी रास्तों का पैदल सफर करके कलेक्टर श्रीमति छवि भारद्वाज गॉवदुनिया एवं बघाड़ में जाकर शासन की योजनाओं की हकीकत को देखा इस कठिन सफर में वन विभाग का फारेस्ट गार्ड एवं दरोगा साथ में थे 
पूरा आलेख यहां देखें वनिता चेतना http://vanitachetna.blogspot.in/2014/01/blog-post.html 

7.1.14

मंहगा हुआ बाज़ार औ'जाड़ा है इस क़दर- किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!!

हमने उनको यक़ीन हो कि न हो हैं हम तो बेक़रार
चुभती हवा रुकेगी क्या कंबल है तारतार !!
मंहगा हुआ बाज़ार औ'जाड़ा है इस क़दर-
किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!!

हाक़िम ने  फ़ुटपाथ पे आ बेदख़ल किया -
औरों की तरह हमने भी डेरा बदल दिया !
सुनतें हैं कि  सरकार कल शाम आएंगें-
जलते हुए सवालों से जाड़ा मिटाएंगें !

हाक़िम से कह दूं सोचा था सरकार से कहे
मुद्दे हैं बहुत उनको को ही वो तापते रहें....!
लकड़ी कहां है आप तो - मुद्दे जलाईये
जाड़ों से मरे जिस्मों की गिनती छिपाईये..!!

जी आज़ ही सूरज ने मुझको बता दिया
कल धूप तेज़ होगी ये  वादा सुना दिया !
तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी
हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!

कहता हूं कि मेरे नाम पे आंसू गिराना मत
फ़ुटपाथ के कुत्तों से मेरा नाता छुड़ाना मत
उससे ही लिपट के सच कुछ देर सोया था-
ज़हर का बिस्किट उसको खिलाना मत !!
 गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

3.1.14

तो क्या अब तक का प्रजातंत्र सामंतशाही जैसा था ..?

आम जीवन का पावर की तरफ़
पहला क़दम ही तो है
साभार : ndtv के इस पन्ने से
बेशक कल आम-जीवन और
खास जीवन में कोई फ़र्क न होगा
तो क्या अब तक का प्रजातंत्र सामंतशाही जैसा था ..? यह सवाल  केज़रीवाल वाले प्रजातांत्रिक मोड तक आते ही तेज़ी से ज़ेहनों में गूंजने लगा है. ऐसे सवाल उठने तय थे अभी तो बहुत से सवाल हैं जिनका उठना सम्भव ही नहीं तयशुदा भी है . मसलन क्या वाक़ई हम आज़ादी से दूर हैं.. क्या सियासी एवम ब्योरोक्रेटिक सिस्टम के साथ आम आज़ादी एक आभासी आज़ादी से इतर कुछ भी न थी . ..? अथवा पावर में आते ही आम आज़ादी से परहेज़ होने लगता है.. !!
      वास्तव में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ़ जाते हुए नज़र आने वाले ये सवाल इस लिये उठ रहे हैं क्योंकि कहीं न कहीं आम-जीवन ये महसूस करने लगा था कि -"डेमोक्रेटिक-सिस्टम" में उसका हस्तक्षेप पांच बरस में बस एक बार ही हो सकता है. पांचवे बरस आते आते भोला-भाला आम-जीवन अपने आप को कुछ तय न कर पाने की स्थिति में पाता है. और तब जो भी कुछ तात्कालिक वातवरण आम जीवन के पक्ष में बनता है यक़ीनन आम जीवन उसी के साथ होता है. 
   पर भारतीय प्रज़ातांत्रिक व्यवस्था में की खूबी को नकारना बेमानी होगा जिसने आमूल-चूल परिवर्तनों के रास्ते की गुंजाइशें आमजीवन के वास्ते सुरक्षित रखीं हैं. वरना केज़रीवाल एंड कम्पनी को रास्ता क़तई न मिलता. 
     चलिये वापस सवालों की तरफ़ चलते हैं - आमजीवन से उभरे उन सवालों के उठने की वज़ह क्या थी..?
   वज़ह थी चुनाव प्रक्रिया में ढेरों कमियां, वास्तविक समस्याओं पर विमर्श का अभाव, तथा प्रजातांत्रिक अबोधता , पावर में बैठे लोगों के हथकंडे. जी हां इसके अलावा मध्यवर्ग की नकारात्मक सोच कि "कोऊ नृप होय हमैं का हानि " तथा निम्नवर्ग की वोट-बेचने की प्रवृत्ति .... जी हां यही सब  है जो सवाल खड़े करने की प्राथमिक वज़हें बने. पर अब लगता है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था अब सरलीकृत होने जा रही है.. लोग क्रांतियां करेंगे.. क्रांतियां अकेले अकेले भी होंगी आवाज़ें उठेंगी मुट्ठियां तनेंगी .. वो दिन दूर नहीं जब "पावर" ये न कह पाएगा कि -"हमने आपके लिये अमुक सुविधाएं जुटाईं " अगर कहेगा तो लोग साफ़ तौर पर कहेंगे- "श्रीमन ये आपका दायित्व था "
       आने वाले समय में चुनाव प्रक्रिया में निर्वाचन आयोग के कठोर प्रबंधन और अधिक सफ़ल होंगे निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल अभ्यर्थी अत्यधिक शालीन और शिष्ट होंगे . चुनाव से नवसामंत हट जाएंगे कमज़ोर-कृशकाय-भूखा-नंगा भी पावर में आएगा तो कोई बड़ी बात न होगी. पर ये सवाल कि - " क्या अब तक का प्रजातंत्र सामंतशाही जैसा था .." गले से नहीं उतर रहा आज़ भी शिष्ट और तृप्त लोग पावर में हैं .. ये अलग बात है कि उनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है.. दूसरा पहलू ये भी कि - ये समय वो समय है जो उन स्वार्थी मतदाताओं  के लिए भी अब आत्मचिंतन का अवसर दे रहा है.. अभी भी वक़्त है मित्रो भारतीय-प्रजातंत्र आज भी विश्व के "आकर्षण का केंद्र है" जो अब चरमोत्कर्ष पर होगा  
   

30.12.13

2014 कल तुम आओगे तब मैं

2014  कल तुम आओगे
तब मैं आधी रात से ही
तुमको दुलारने लगूंगा पुकारने लगूंगा तुम्हारी राह बुहारने लगूंगा शुभकामनाओं के फ़ूल बिखेर बिखेर अपने तुपने संबंध को मेरे अनुकूलित करने किसी पंडित को बुला पत्री-बांचने दे दूंगा उसे ... या तुम्हारे कालपत्रक पंचांग को पाते ही पीछे छपे राशिफ़ल को बाचूंगा.. घर में बहुत हंगामा होगा बाहर भी . फ़िर कोई कहेगा अर्र ये क्या अपना नया तो "ये नहीं गुड़ी पड़वा" को आएगा . उसकी कही एक कान से सुन दूजे निका दूंगा . हर साल वो यही कहता है पर मै नहीं सुनता उसको 
 सुनूं भी क्यों किसी की क्यों .. एक भी न सुनूं ऐसे किसी की जो  गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज़ी बताए .. !! अब भला सरकारी तनख्वाह अंग्रेजी कैलेंडर से ही महीना पूरा होते मिलती है.. है न .. कौन अमौस-पूनौ ले दे रहा है तनख्वाह  बताओ भला हमको तो खुश रहने का बहाना चाहिये. आप हो कि हमारी सोच पर ताला जड़ने की नाकामयाब कोशिश कर रहे हो . 
    अल्ल सुबह वर्मा जी, शर्मा जी वगैरा आए हैप्पी-न्यू ईयर बोले तो क्या उनसे झगड़ लूं बताओ भला . 
   चलो हटाओ सुनो पुराने में नया क्या खास हुआ  अखबार चैनल वाले बताएंगे हम तो आम आदमी ठहरे खास बातों से हमको क्या लेना . अखबार चैनल वालों की मानें तो नए  पुराने वर्ष कुल मिला कर एक सा होता है हर बार कोई न कोई अच्छाई या बुराई साथ लेके आते जाते रहते हैं.
               हम जो आम आदमी का जीवन जीते हैं बेशक़ खुशी के बहाने खोजते हैं. ज़रा सी भी खुशी मिले झूम जाते हैं. और और क्या बस आगे क्या कहूं सदा खुश रहिये .. वैसे मैं खुश नहीं हूं कुछ अतिमहत्वाकांक्षी एवम अपनी पराजय को पराए सर पे रखने के लिये चुगली करने वालों एवम वालिओं से परीशान हूं. 
Worm Welcome to 2014
   एक बात खास तौर पर बता दूं आप सबका सम्मान कीजिये केवल चुगलखोरों को छोड़कर ये लोग उतने ही बुरे होते हैं जितने कि  देशद्रोही
बहरहाल हेप्पी न्यू ईयर टू आल आफ़ यू



28.12.13

तुम बिन माँ भावों ने सूनेपन के अर्थ बताए !!

 मां सव्यसाची प्रमिला देवी की पुण्यतिथि 28.12.2013 पर पुनर्पाठ 

सव्यसाची स्व. मां 

      यूं तो तीसरी हिंदी दर्ज़े तक पढ़ी थीं मेरी मां जिनको हम सब सव्यसाची कहते हैं क्यों कहा हमने उनको सव्यसाची क्या वे अर्जुन थीं.. कृष्ण ने उसे ही तो सव्यसाची कहा था..? न वे अर्जुन न थीं.  तो क्या वे धनुर्धारी थीं जो कि दाएं हाथ से भी धनुष चला सकतीं थीं..?
 न मां ये तो न थीं हमारी मां थीं सबसे अच्छी थीं मां हमारी..! 
जी जैसी सबकी मां सबसे अच्छी होतीं हैं कभी दूर देश से अपनी मां को याद किया तो गांव में बसी मां आपको सबसे अच्छी लगती है न हां ठीक उतनी ही सबसे अच्छी मां थीं .. हां सवाल जहां के तहां है हमने उनको सव्यसाची   क्यों कहा..!
तो याद कीजिये कृष्ण ने उस पवित्र अर्जुन को "सव्यसाची" तब कहा था जब उसने कहा -"प्रभू, इनमें मेरा शत्रु कोई नहीं कोई चाचा है.. कोई मामा है, कोई बाल सखा है सब किसी न किसी नाते से मेरे नातेदार हैं.."
यानी अर्जुन में तब अदभुत अपनत्व भाव हिलोरें ले रहा था..तब कृष्ण ने अर्जुन को सव्यसाची सम्बोधित कर गीता का उपदेश दिया.अर्जुन से मां  की तुलना नहीं करना चाहता मैं क्या   कोई भी "मां" के आगे भगवान को भी महान नहीं मानता.. मैं भी नहीं... !                                   "मां"  तो मातृत्व का वो आध्यात्मिक भाव है जिसका प्राकट्य विश्व के किसी भी अवतार को ज्ञानियों के मानस में न हुआ था न ही हो सकता वो तो केवल "मां" ही महसूस करतीं हैं. दुनियां के सारे पुरुष क्या स्वयं ईश्वर भी मातृत्व का अनुभव नहीं कर सकते. मां शब्द ही माधुर्य, पवित्रता, और उससे भी पहले "पूर्णता का पर्याय" होता है. यानी मां में ही आप विराट के दर्शन पा सकते हैं. 
मां शब्द का अर्थ भी "स्वार्थ-हीन नेह" और जिसमें ये भाव है उसकी किसी से शत्रुता हो ही नहीं सकती.  जी ये भाव मैने कई बार देखा मां के विचारों में "शत्रु विहीनता का भाव " एक बार एक क़रीबी नातेदार के द्वारा हम सबों को अपनी आदत के वशीभूत होकर अपमानित किया खूब नीचा दिखाया .. हम ने कहा -"मां,इस व्यक्ति के घर नजाएंगे कभी कुछ भी हो इससे नाता तोड़ लो " तब मां ने ही तो कहा था मां ने कहा तो था .... शत्रुता का भाव जीवन को बोझिल कर देता है ध्यान से देखो तुम तो कवि हो न शत्रुता में निर्माण की क्षमता कहां होती है. यह कह कर  मां मुस्कुरा दी थी तब जैसे प्रतिहिंसा क्या है उनको कोई ज्ञान न हो .मर्यादा मे रहना सीखो 
मैने कह दिया था -मर्यादा गई राम के जमाने के साथ..
तब मैने मां के चेहरे पर मुस्कान देखी थी.. मुझे महसूस हुआ कि कितना गलत हूं
          मेरे विवाह के आमंत्रण को घर के देवाले को सौंपने के बाद सबसे पहले पिता जी को लेकर उसी निकटस्थ परिजन के घर गईं जिसने बहुधा हमारा अपमान किया करता . मां ने उस कुंठित रिश्तेदार को इतना स्नेह दिया कि  उसे अपनी भूलों का एहसास हुआ उसने  मां के चरणों को पश्चाताप के अश्रुओं से पखारा. वो मां ही तो थीं जिसने  उस एक परिवार को सबसे पहले सामाजिक-सम्मान दिया जिनको समाज ने अपनी अल्पग्यता वश समाज से अलग कर दिया था. मां चाहती थी कि सदा समभाव रखना ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य हो. 

सव्यसाची अलंकरण
इस वर्ष यह कार्यक्रम स्थगित है
                    जननी ने बहुत अभावों में आध्यात्मिक-भाव और सदाचार के पाठ हमको पढ़ाने में कोताही न बरती. हां मां तीसरी हिंदी पास थी संस्कृत हिन्दी की ज्ञात गुरु कृपा से हुईं अंग्रेजी भी तो जानती थी मां उसने दुनिया   खूब बांची थी. पर दुनिया से कोई दुराव न कभी मैने देखा नहीं मुझे अच्छी तरह याद है वो मेरे शायर मित्र  इरफ़ान झांस्वी से क़ुरान और इस्लाम पर खूब चर्चा करतीं थीं . उनकी मित्र प्रोफ़ेसर परवीन हक़  हो या कोई अनपढ़ जाहिल गंवार मजदूरिन मां सबको आदर देती थी ऐसा कई बार देखा कि मां ने धन-जाति-धर्म-वर्ग-ज्ञान-योग्यता आधारित वर्गीकरण को सिरे से नक़ारा  आज मां  यादों के झरोखे से झांखती यही सब तो कहती है हमसे ,... सच मां जो भगवान से भी बढ़कर होती है उसे देखो ध्यान से विश्व की हर मां को मेरा विनत प्रणाम 
पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
वही  क्यों कर  सुलगती है   वही  क्यों कर  झुलसती  है ?
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
न खुल के रो सके न हंस सके पल –पल पे बंदिश है
हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है !
वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला
वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!
 
कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?
मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ?
तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं.
विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख  माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जसुदा तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
उसी की दी हुई धड़कन इस दिल में धड़कती है.

आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ  तो  होगी  इधर  सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर  में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और  उजला सा फ़लक भी है !

        * गिरीश बिल्लोरे मुकुल,जबलपुर
  


मां.....!!
छाँह नीम की तेरा आँचल,
वाणी तेरी वेद ऋचाएँ।
सव्यसाची कैसे हम तुम बिन,
जीवन पथ को सहज बनाएँ।।


कोख में अपनी हमें बसाके,
तापस-सा सम्मान दिया।।
पीड़ा सह के जनम दिया- माँ,
साँसों का वरदान दिया।।
प्रसव-वेदना सहने वाली, कैसे तेरा कर्ज़ चुकाएँ।।

ममतामयी, त्याग की प्रतिमा-
ओ निर्माणी जीवन की।
तुम बिन किससे कहूँ व्यथा मैं-
अपने इस बेसुध मन की।।
माँ बिन कोई नहीं,
सक्षम है करुणा रस का ज्ञान कराएँ।

तीली-तीली जोड़ के तुमने
अक्षर जो सिखलाएँ थे।।
वो अक्षर भाषा में बदलें-
भाव ज्ञान बन छाए वे !!
तुम बिन माँ भावों ने सूनेपन के अर्थ बताए !!
 

Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...