13.5.12

छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए : मातृ दिवस पर एक गीत



मां सव्यसाची स्वर्गीया प्रमिला देवी




ही क्यों कर सुलगती है वही क्यों कर झुलसती है ?
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
खुल के रो सके हंस सके पल --पल पे बंदिश है  
हमारे देश की नारी, लिहाफ़ों में सुबगती है !              
                                                                       
वही तुम हो कि जिसने नाम उसको आग दे डाला
वही हम हैं कि जिनने उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है भीतर से सुलगती वो..!
कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?

मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई जाए
कभी इक बार सोचा था कि "मां " ही क्यों झुलसती है ?

तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके थे-गहने मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर मेरी आंखैं छलकतीं हैं.

विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जननी तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
तेरी ही दी हुई धड़कन मेरे दिल में धड़कती है.

आज़ की रात फ़िर जागा उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ तो होगी इधर सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और उजला सा फ़लक भी है ! *

 गिरीश बिल्लोरे मुकुल,जबलपुर
            यही गीत youtube par सुनिये 

8.5.12

"फ़िज़ूल का रोना धोना छोड़ो.. पहले देश के हालात सुधारो फ़िर रोकना हमें..!!"


         हज़ूर की शान में कमी आते ही हज़ूर मातहओं को कौआ बना  देने में भी कोई हर्ज़ महसूस नहीं करते.  मार भी देते हैं लटका भी देते हैं .. सच कितनी बौनी सोच लेकर जीते हैं तंत्र के तांत्रिक .जब भी जवाव देही आती है सामने तो झट अपने आप को आक्रामक स्वरूप देते तंत्र के तांत्रिक बहुधा अपने से नीचे वाले के खिलाफ़ दमन चक्र चला देते हैं. कल ही की बात है एक अफ़सर अपने मातहतों से खफ़ा हो गया उसके खफ़ा होने की मूल वज़ह ये न थी कि मातहत क्लर्कों ने काम नहीं किया वज़ह ये थी कि वह खुद पत्र लिखने में नाक़ामयाब रहा. और नाकामी की खीज़ उसने अपने मातहतों को गरिया  के निकाली.                    
                       नया नया तो न था पर खेला खाया कम था पत्रकारों ने घेर लिया खूब खरी खोटी सुनाई उसे . शाम खराब हो गई होगी उसकी ..अगली-सुबह क्लर्क को बुलाया आर्डर टाइप कराया एक मातहत निलम्बित. दोपहर फ़ोन लगा लगा के पत्रकारों को सूचित करने लगा-”भाई साहब एक कौआ मार दिया है.. कल से व्यवस्था सुधर जाएगी..!” फ़ोन सुन कर  एक पत्रकार बुदबुदाया  -”"स्साला कल से स्वर्ग बन जाएगा शहर लगता है..!”
Image             ”Lick Upper & Cick Below” तंत्र में आपकी सफ़लता का राज़ हो सकता है अंग्रेज़ शायद यही तो सिखा गये हैं. न भी सिखाते तो हमारे संस्कार भी कमोबेश वैसे ही तो हैं.जिस “तंत्र के तांत्रिक” ने इस मंत्र सिद्ध कर लिया तो भाई उसका कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता. आपकी सफ़लता का एक मात्र रहस्य यही तो है. कभी एकांत में अपनी आत्मा से पूछना क्या हम इसी के लिये जन्मे हैं. अधिकांश युवा प्रतिभाएं भारत से केवल यहां की वर्किंग-कंडीशन की वज़ह से पलायन कर रहीं है भले ही यह  कारण पलायन के अन्य  कारणों में से एक हो पर कम विचारणीय नहीं. मेरे भतीजे को बार बार आई.ए.एस.  की तैयारी की सलाह देने पर वह मुझसे कटने लगा फ़िर एक दिन उसने कहा-”चाचा, भारत महान तो है पर यहां की वर्किंग कंडीशन्स उसकी महानता पर एक धब्बा है..आप तो विचारक हो न ? बताओ क्या मैं झूठ बोल रहा हूं..”
       झूठा न था वो युवा उसने परख ली थी देसी-व्यवस्था.. विदेशी नौकरी उसे आज जो स्तर दे रही है वो हमको कभी मय्यस्सर हो ही नहीं सकती. ये अलग बात है कि हम अब आदि हो गये हैं सतत अपमान सहने के. करें तो करें भी क्या समझौते तो करना ही है. बच्चे जो पालने है.उसे अच्छा लगा होगा जब सुना होगा उसने कि उसका एक कार्यक्रम सरकार ने स्वीकार लिया पूरे प्रदेश में लागू किया.फ़िर एक दिन अचानक जब उस व्यक्ति ने देखा कि सारा का सारा श्रेय एक चोर को दे दिया गया है वो भौंचक रहा बेबस उदास और हताश लगभग रो दिया. ऐसी स्थिति को क्या आज़ की नौज़वान पीढ़ी स्वीकारेगी न कदापि नहीं उसके पास सपने है युक्तियां हैं.. विचार हैं.. वो स्वतंत्र भी तो है उड़ जाता है परिंदा बन कर नहीं बनना उसे तंत्र का तांत्रिक..! क्यों वो बिना एथिक्स के सिर्फ़ एक पुर्ज़ा बन के काम करेगा .?.उसकी उड़ान को गौर से देखिये- मुड़ मुड़ के रोकने वालों को कहता है-”फ़िज़ूल का रोना धोना छोड़ो.. पहले देश के हालात सुधारो फ़िर रोकना हमें हम रुक जाएंगे सच यहीं जहां अपनी ज़मीन है अपना आकाश भी.. “ 
       

7.5.12

यशभारत जबलपुर में गिरीश और फ़िरदौस के आलेख

यशभारत जबलपुर के ताज़ा यानि रविवार 6.5.12 के अंक में 
http://yashbharat.com/city_page/56_06%20Page%2007.pdf

मिसफ़िट के पिछले अंक पर यशभारत
की नज़र
Stories written by firdauskhan

फ़िरदौस खान (अतिथि संपादक) 
फ़िरदौस ख़ान पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी ' गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में समूह संपादक हैं...

http://firdaus-firdaus.blogspot.in/2012/04/blog-post_13.html
                                                                          मेरी डायरी

1.5.12

सर्वदा उदार प्रेयसी है वो..!!

छवि: साभार-बीबीएन
 मृत्यु तुमसे भेंट तय है. तुम से  इनकी उनकी सबकी   भेंट भी तय है. काल के अंधेरे वाले भाग में छिप कर बैठी है अनवरत लावण्या  तुम्हारी प्रतीक्षा है मुझे. अवशेष जीवन के निर्जन प्रदेश में अकेला पथचारी यायावर मन सहज किसी पर विश्वास नहीं कर पाता. सब कुछ उबाऊ जूना सा पुराना सा लगता है. 
                मदालस-अभिसारिका यानी मृत्यु सामने होती हो तो सब के सब सही सही  और बेबाक़ी से बयां हो जाता है. कुछ तो तुम्हारे सौंदर्य से घबरा जाते हैं.. हतप्रभ से अवाक अनचेते हो जाते हैं. उसके आलिंगन से बचने बलात कोशिशों में व्यस्त बेचारे क्या जाने कि जब मृत्यु आसक्त हो तब स्वयं विधाता भी असहाय होता है..कुछ न कर सकने की स्थिति में होता है  सुन नहीं पाता रिरियाती-याचना भरी आवाज़ों को . सच्चा प्रेमी कभी भी मृत्यु से भयातुर नहीं होता न ही बचाव के लिये विधाता को पुकारता है. बस  नि:शब्द बैठा अपलक  पास आते तुम्हारे मदिर लावण्य को निहारता है.और जब क़रीब आती है तो बस कुछ खो कर बहुत कुछ पाने का एहसास करता हो जाता है बेसुध.. अभिसाररत.. 
       कोई भी बात अधूरी नहीं रहती उस के मन में.. न ही वो किसी  का विरही होता है न ही  किसी के लिये अनुराग बस वो तुम्हारे मादक-औदार्य-सौंदर्य का रसास्वादन करने बेसुध हो जाने को बेताब होता है.
          प्रेयसियां सहचरियां उतनी उदार नहीं होतीं जितना कि तुम सब के लिये सहज सरल कभी भी स्वगत... न कभी भी नहीं.
          मुझे ऐसी ही सर्वदा उदार प्रेयसी की प्रतीक्षा है.. जो बिना किसी दुराव के मुझे अपने में समाहित कर ले. अवश्य आएगी तब तुम न रोना हां तुम भी न सुबकना.. अरे ये क्या तुम अभी से सुबकने लगे .. न ऐसा न करना.. मेरी अनंत-यात्रा में तुम दु:खी हो .. ? कभी तो मेरे बिना जीवन को स्वीकारो.  वीतरागी भाव का वरण करोगे न जन मेरी चिता की लपटें आकाश छूने की असफ़ल कोशिश करेंगी. अवश्य ऐसा ही होगा तुम्हारे मन में एक बैरागी उभरेगा तत्क्षण.. तो फ़िर नाहक रोना धोना मत. मैं  उस नायिका के साथ रहूंगा जो  सर्वदा उदार प्रेयसी है वो..!!

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...