मां सव्यसाची स्वर्गीया प्रमिला देवी |
ही क्यों कर सुलगती है वही क्यों कर झुलसती है ?
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
न खुल के रो सके न हंस सके पल --पल पे बंदिश है
हमारे देश की नारी, लिहाफ़ों में सुबगती है !
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
न खुल के रो सके न हंस सके पल --पल पे बंदिश है
हमारे देश की नारी, लिहाफ़ों में सुबगती है !
वही तुम हो कि जिसने नाम उसको आग दे डाला
वही हम हैं कि जिनने उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है भीतर से सुलगती वो..!
कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?
मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "मां " ही क्यों झुलसती है ?
तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके न थे-गहने मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर मेरी आंखैं छलकतीं हैं.
विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जननी तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
तेरी ही दी हुई धड़कन मेरे दिल में धड़कती है.
आज़ की रात फ़िर जागा उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ तो होगी इधर सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और उजला सा फ़लक भी है ! *
गिरीश बिल्लोरे मुकुल,जबलपुर
6 टिप्पणियां:
नमन माँ |
शुभकामनायें ||
aabhaar
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ दिवस विशेषांक - ब्लॉग बुलेटिन
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
माँ के लिए ये चार लाइन
ऊपर जिसका अंत नहीं,
उसे आसमां कहते हैं,
जहाँ में जिसका अंत नहीं,
उसे माँ कहते हैं!
आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "मां " ही क्यों झुलसती है ?
बहुत सुन्दर.मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत भावपूर्ण...आपने पहले एक बार सुनाई थी मुझे...
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