30.3.12

राजेश उत्साही के ब्लाग गुल्लक पर देखिये भवानी प्रसाद मिश्र की तीन कविताएं




          29 मार्च कवि भवानी प्रसाद मिश्र का जन्‍मदिन है। प्रस्‍तुत हैं उनकी तीन कविताएं।

अबके
मुझे पंछी बनाना अबके
या मछली
या कली
और बनाना ही हो आदमी
तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहां यहां से बेहतर आदमी हो

आगे कविताएं पढ़ने यहां चटका लगाएं "राजेश उत्साही के ब्लाग गुल्लक "
             ***

21.3.12

ज्ञान जी को कविता का बहुत गहरा ज्ञान है : मनोहर बिल्लौरे


                        बात उन दिनों की है जब  ज्ञानरंजन  जी नव-भास्कर का संपादकीय पेज देखने जाते थे। सन याद नहीं। तब वे अग्रवाल कालोनी (गढ़ा) में रहा करते थे. सभी मित्र और चाहने वाले अक्सर शाम के समय, जब उन के निकलने का समय होता, पहुँच जाते. चंद्रकांत जी दानी जी मलय जी, सबसे वहाँ मुलाकात हो जाती। आज इंद्रमणि जी याद आ रहे हैं। वे भी अपनी आवारा जिन्दगी में ज्ञान जी के और हमारे निकट रहे और अपनी आत्मीय उपसिथति से सराबोर किया।
उस समय जब ज्ञान जी ने संजीवनीनगर वाला घर बदला और रामनगर वाले निजी नये घर में आये तब काकू (सुरेन्द्र राजन) ने ज्ञान जी का घर व्यवसिथत किया था. जिस यायावर का खुद अपना घर व्यवसिथत नहीं वह किसी मित्र के घर को कितनी अच्छी तरह सजा सकता है, यह तब हम ने जाना, समझा। ज्ञानरंजन की बदौलत हमें काकू (सुरेन्द्र राजन) मिले. मुन्ना भाइ एक और दो में उनका छोटा सा रोल है। बंदिनी सीरियल में वे नाना बने हैं। उन्हें तीन कलाओं में अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड मिले है। वे कहते हैं कि फिल्म में काम हम इसलिये करते हैं ताकि महानगर में रोटी, कपड़ा और मकान मिलता रहे।
ज्ञानरंजन जी,
प्रमुख और जरूरी सामान घर आ चुका था। केवल कुछ पुस्तकों और पत्रिकाओं के पुराने बंडल भर आना बाकी थे। उस समय गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं। मैंने काम की मस्ती में यह काम तुरत-फुरत निपटा दिया। उन बंडलों में कुछ पुरानी जर्जर पुस्तकें तथा पुरानी पत्रिकाओं के महत्वपूर्ण और सामान्य अंक  थे। मेरा उनके प्रति सम्मान-भाव तब और उत्साहपूर्ण हो गया, जब उन्होंने मुझे पुरानी पत्रिकाओं के वे बंडल रखने और उपयोग करने के लिये दे दिये। उस समय मेरी श्रम के प्रति आस्था देखकर उन्होंने एक वाक्य बहुत विश्वास  के साथ कहा था - ''यह उत्साह यदि बनाये रख सके तो बहुत आगे जाओगे। बाद में कितना विपरीत समय आया. संघर्ष की कितनी परिसिथतियों से गुजरना पड़ा, ऐसे समय में हमेषा उनका संबल साथ रहा और किसी तरह उनसे उबरता रहा. समय के गर्भाशय में क्या कुछ पल रहा है कैसे बताया जा सकता है?
और सच में तब से मैंने आर्थिक प्रगति भले न की हो परंतु मानसिक प्रगति निषिचत रूप से थोड़ी ही सही करता रहा हूँ। बाद में संयोगवष उन्होंने मेरी एक कविता सुनकर 'पहल के 46 वें अंक में तीन-चार और कविताओं के साथ प्रकाषित की थीं। उस समय तक मेरी कविताएं किसी साहि्त्यिक पत्रिका में प्रकाशित  नहीं हुइ थी। अखबारों में ज़रूर यहाँ वहाँ छप जाती थीं।

रामनगर से मेरा और चंद्रकांत जी का घर मुश्किल से एक किलोमीटर पड़ता है। उनके घर तक अब पैदल जाया-आया जा सकता है। शाम या सुबह की सैर उनके साथ करना संभव है, बल्कि की जाती है। कितनी-कितनी बातें वे बताते जाते हैं पैदल घूमते समय। 'दुनिया-भर की। विषय कोइ भी हो, वे उसका किसी ऐसी रासायनिक विधि से विष्लेषण-संष्लेषण कर निष्कर्ष पेश करते हैं कि संवुष्ट होना ही पड़ता है। तर्क बचते ही नहीं। नयी से नयी, पुरानी से पुरानी कोर्इ भी खास घटना हो उन्हें मालूम रहती है। खबरें अखबारों से नहीं आयेंगी तो फोन से आ जायेंगी। देष से नहीं आयेंगी तो विदेष से आ जायेंगी। उन्हें समाचारों तक जाने की आवश्यकता नहीं। संजीवन अस्पताल के पास, रामनगर अधारताल, जबलपुर के 101, नम्बर घर में बिना खास उपकरणों के खास-खबरें दौड़ती चली आती हैं। यहाँ तक कि लोग खबरें देने सदेह पहुँचते रहते हैं। इस दौरान कितने-कितने भाव उनके चेहरे और देह-भाषा द्वारा प्रकट होते हैं यह बस महसूस करने भर की बात है, बयान करने की नही । कितना प्यार भरा है उनकी डांट और फटकार में यह उनके गहरे साथी ही जान और महसूस कर सकते हैं अन्य कोइ और नहीं। उनके अंदर कितना 'ज्ञान है - इसके अंक और मापक हमारे छोटे पड़ जाते हैं।

बहरहाल, हम शहीद स्मारक में मिलते, कुछ देर वहीं - साहित्यिक-असाहित्यिक गप्पें हांकते। घूमते... फिरते... काफी हाउस या किसी और सुथरे रेस्टारेन्ट में बैठते या चहलकदमी करते हुए कहीं कुछ खाते पीते और लौटते। जब कभी मैं और ज्ञान जी कमानिया गेट की तरफ से घर की ओर लौटते। उन्हें चीजों की अच्छी पहचान है। सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम और परफेक्ट उनके अंतरंग शब्द हैं। उनका अनुशासन बड़ा तगड़ा है। कर्इ लोग तो उनसे दूर इसी कारण हो जाते हैं, क्योंकि वे इस पाठषाला के अनुषासन का पालन नहीं कर पाते। स्वावाभिक है लापरवाह और स्वार्थी आदमी उनके पास अधिक देर टिक नहीं पाता। कुछ हैं जो उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से घबराकर उनके निकट आने से घबराते हैं।

तो बात कमानिया की चल रही थी। वे खूब खिलाते पिलाते और बातें करते रहते। बस छेड़ भर दिया जाये। कमजोर और गलत, हल्की और थोथी बातें उनके बर्दाष्त के बाहर हैं। ऐसे समय पूरे विश्वास के साथ वह बरस पड़ते हैं. और बेरहमी से हमला करते हैं। पर सब पर नहीं अपनों पर, अपने दोस्तों पर। यह उनकी आदत में शुमार है।  लौटते समय साइकिल रिक्षे पर बैठने से पहले वे कभी चने, कभी मूंगफली, या कोइ इसी तरह का, कुछ और टाइम-पास जो अच्छा भर नहीं,  सर्वोत्तम , सर्वोत्कृष्ट हो, वे लाते और इस तरह हम कुछ खाते-पीते साइकिल रिक्शे पर बैठकर घर की ओर लौटते। रास्ते भर कुछ न कुछ बातें होती रहतीं। कभी रिक्षे वाले से वे बातें करने लगते या उससे कुछ पूछते। वे बताया करते - 'बिल्लौरे जी मेरे पास कुछ नहीं था। न घर न फर्नीचर, न किसी तरह का कोर्इ भी ग्रहस्थी का सामान... सब किराये का था। धीरे-धीरे सब कुछ नये सिरे से एक-एक कर जोड़ना पड़ा...।

ऐसा नहीं है कि वे, उनके मित्र साहित्य या संस्कृति, कला या समाज से जुड़े सकि्रयतावादी ही रहते हों और वे केवल ऐसे ही उत्कृष्ट लोगों से सबंध रखते हों। उनके घर का माली, पहल-पैकर, बाइन्डर, कामवाली, दूकान का नौकर या कोइ और अन्य नया पुराना सामान्य व्यकित हो, वह प्यार करते हैं, टूटकर; और आपको झुकना पड़ता है नीचे अपने आप, स्वयंमेव। सहायता के लिये उनकी दोनों बाहें, खुली रहती हैं। उनके अंदर ममत्व है। कोइ उनसे जुड़कर उनसे अलग हो पाये यह अपवाद ही हो, तो हो, नियम या सिद्धांत तो बिल्कुल नहीं है। हाँ एक बात ज़रूर है -  कोइ   स्वार्थी, लंपट, धोखेबाज, चालबाज, लेंड़ू किस्म का जीव क्या ऐसी कोर्इ चीज भी उनके पास क्षण भर टिक नहीं सकती। वे उसे भगायेंगे या दुत्कारेंगे नहीं, पर ऐसा कुछ ज़रूर करेंगे कि सामने वाले की हिम्मत आँख मिलाने की नहीं होगी। वे स्पष्ट वक्ता हैं। अपने सिद्धांतों में पूरी तरह ढले। जिसे उनके अनु्शासन में रहना है पूरे मान से रहे, वरना...!

ज्ञान जी को कविता का बहुत गहरा ज्ञान है। उन्होंने कहीं लिखा है - 'मैं कहानी लिखने के पहले कविताएं जोर-जोर से पढ़ता था। उनसे दनिया भर की कविता के बारे में बात कर लो, राय ले लो, उनकी टिप्पणी सुन लो। किसी भी भाषा के पुरातन और नव्यतम कवि के बारे में बात कर लो, वे विशिष्टताएं बताने लगेंगे। जो खास है, उनके पास है। नहीं है तो आ जायेगा।

कुछ बातें सुननयना जी के बारे में। भाभी जी के घर कोर्इ पीये भले न, खाये बिना जा नहीं सकता। ज्ञान जी जब कभी घर पर नहीं मिलते तो उनसे देर तक बातें की जा सकती हैं। यदि आप आते, जाते रहते हैं। पता नहीं खाने का शौक उन्हें कितना है, पर बनाने का - और उसे कई  लोगों को खिलाने-पिलाने का उन्हें बड़ा शौक है। आप कुछ न कुछ ऐसा जरूर खाकर आयेंगे जो संभवत: पहले कभी आपने कहीं और न खाया-पिया होगा। कुकिंग से उन्हें बड़ा प्रेम है। हमें उस घर में  बड़ा सुकून मिलता है। उनका व्यक्तित्व उनके घर में पूरी तरह रौशन है। ज्ञान की तरह।
आलेख - मनोहर बिल्लौरे,1225, जेपीनगर, अधारताल,जबलपुर 482004 (म.प्र.)मोबा. - 8982175385
प्रस्तुति गिरीश बिल्लोरे मुकुल जबलपुर म.प्र. 

18.3.12

A TRIBUTE TO SHIRDEE SAI BABADEVOTIONAL ALBUM "BAWARE FAQEERA"

A TRIBUTE TO SHIRDEE SAI BABADEVOTIONAL ALBUM



                                 "BAWARE FAQEERA"
                              VOICE :- 
                              *ABHAS JOSHI -*SANDEEPA PARE
                             MUSIC:- 
                             *SHREYASH JOSHI 
                              LYRICS:- 
                             *GIRISH BILLORE"MUKUL" 










 _____________________________

 ______________________________
 _____________________________

 ______________________________

15.3.12

आ मीत लौट चलें गीत को सँवार लें

आ मीत लौट चलें गीत को सँवार  ले
अर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें
********************
भूल हो गयी अगर गीत में या छंद में
जुट जाएं मीत आ सुधार के प्रबंध में
कोई रूठा हो अगर तो प्रेम से पुकार लें
आ मीत .................................!!
********************
कौन जाने कुंठित मन कितने घर जलाएगा
कौन जाने मन का दंभ- "कितने गुल खिलाएगा..?"
प्रेम कलश रीता तो, चल अमिय उधार लें ..!!
आ मीत .................................!!
********************
आत्म-मुग्धता का दौर,शिखर के लिये  ये दौड़
न कहीं सुकून है,न मिला किसी को ठौर
शंखनाद फिर  कभी ! आज  तो  सितार लें ॥!
आ मीत .................................!!
********************

बावरे-फ़क़ीरा की लांचिंग को चार बरस पूरे :गिरीश बिल्लोरे

१४ मार्च २००९ की शाम कुछ यादें

आराधना और प्रभू का आभार  
विकलागों की सेवा का संकल्प लेकर उसे पूरा करना उसे आकार देना अनुकरणीय है.मुझे बेहद प्रसन्नता है की सव्यसाची कला ग्रुप जबलपुर द्वारा जिस भक्ति एलबम “बावरे-फ़कीरा” का लोकार्पण किया जा रहा है सराहनीय कार्य है “-तदाशय के विचार दिनांक 14 मार्च 2009 को सायं:07:30 बजे स्थानीय मानस भवन में आयोजितभक्ति एलबम “बावरे-फ़कीरा” का लोकार्पण समारोह अवसर पर ईश्वर दास रोहाणी ने व्यक्त किये . कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मुकेश गर्ग महानिदेशक संगीत संकल्प ने कार्यक्रम के उद्द्येश्य की सफलता के लिए समुदाय से अनुरोध किया जबकि अस्थि रोग विशेषज्ञ डाक्टर जितेन्द्र जामदार के बावरे-फकीरा एलबम टीम के सदस्यों आभास जोशी,गिरीश बिल्लोरे,श्रेयस जोशी,सहित सभी सदस्यों के कृतित्व पर प्रकाश डाला. डाक्टर जामदार का कथन था कि “गिरीश और ज़ाकिर हुसैन वो लोग हैं जो बैसाखियों से नहीं बैसाखियाँ उनसे चलतीं है.
जाकिर हुसैन 
बेहद अध्यात्मिक-उर्जा से परिपूर्ण वातावरण में एलबम का विमोचन कराने साईं बाबा बने एक बच्चे ने मशहूर पोलियो ग्रस्त गायक जाकिर हुसैन एवं आभास जोशी को मंच पर लाया गया . अतिथियों के अलावा बावरे फकीरा टीम के सदस्यों तथा श्रीमती पुष्पा जोशी श्री काशीनाथ बिल्लोरे की उपस्थिति में एलबम का विमोचन किया गया .
इस अवसर अंध-मूक-बधिर-विद्यालय के छात्र विशेष रूप से आमंत्रित थे .इस अवसर पर स्थानीय कलाकारों श्री चारु शुक्ला {मंडला},विदिशा नाथ .मृदुल.श्रृद्धा बिल्लोरे.अक्षिता ,आकाश जैन ,दिलीप कोरी ,राशि तिवारी.शेषाद्री अय्यर के अलावा आभास जोशी एवं वाइस आफ इंडिया द्वितीय के गायक श्री ज़ाकिर हुसैन तथा संदीपा पारे द्वारा मनोरंजक गीत-संगीत निशा स्वर बिखेरे . आयोजकों के अनुसार एलबम के विक्रय से संगृहीत राशि संस्था द्वारा व्यय किया जावेगा.वर्तमान में इस हेतु लाइफ लाइन एक्सप्रेस को सहयोग हेतु एलबम के प्रथम संस्करण से प्राप्त लाभांश राशि जिला प्रशासन जबलपुर को सौंपी जावेगी.
श्री युत  रोहाणी जी 
अचानक हाल में आभास का पीछे से प्रवेश  
आयोजन में उन व्यक्तियों को भी सम्मानित किया गया जिन्हौने वाइस आफ इंडिया प्रथम के दौरान आभास-जोशी-स्नेह मंच जबलपुर के आव्हान पर आभास जोशी के समर्थन में वातावरण निर्माण हेतु सहयोग किया. ,श्री रोहित तिवारी “हीरा”,प्रहलाद पटेल मित्र गरीब मदद संस्था संस्थापक अध्यक्ष ,गनपत पटेल,प्रमोद देशमुख,अशोक जैन सुप्रभात क्लब जबलपुर,,श्री रमेश बडकुल ,यशो,श्री पंकज भोज,दीपांशु दुबे,अनुराग वरदे,आभास जोशी स्नेह मंच ,जबलपुर डाक्टर संध्या जैन श्रुति ,डाक्टर प्रशांत कौरव,जितेन्द्र चौबे,आभास जोशी स्नेह मंच ,भोपाल,के संजय चौरे,आभास जोशी स्नेह मंच खंडवा योगेन्द्र जोशी,श्री गोविन्द दुबे,आभास के ज्योतिषी माधव यादव मनीष शर्मा,महावीर महिला मंडल महावीर कालोनी गुप्तेश्वर श्रीमती वन्दना जोशी,लता श्रीवास्तव,प्रवीणा टाक,सिमरन सूरी,कॅनॅडा से आए ब्लॉगर श्री समीर लाल,महिला परिषद् शिवनगर श्रीमती नीलम जैन ,श्रीमती आरती जैनमंजू जैन,समीर विश्वकर्मा,योगेश गोस्वामी नितिन अग्रवाल, को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया.







सतीश बिल्लोरे जिनने मेरा सपना
साकार किया 



प्रेस कांफ्रेंस 

दर्शक दीर्घा में ब्लागर्स 



संगीतकार श्रेयस जोशी 

आप यहां से पहुँचिये
बावरे फकीरा सुनने
"बावरे-फकीरा"
माँ स्व. प्रमिला देवी 
मेरी बिटिया श्रद्धा 

11.3.12

50 वर्ष पूर्व अरबवासियों के प्रति दृष्टि :डैनियल पाइप्स


डैनियल
पाइप्स





1962 में अत्यंत आकर्षक, चिकने आवरण पर 160 पृष्ठों की The Arab World शीर्षक की पुस्तक में तात्कालिक रूप में कहा गया, "कभी अत्यन्त समृद्ध और फिर पराभव को प्राप्त विस्तृत अरब सभ्यता आज परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। कुछ फलदायक अव्यवस्था प्राचीन जीवन की निश्चित परिपाटी को बदल रही है" ।
इस संस्करण ने इस बात का दावा किया कि इसकी तीन विशेषतायें आधी शताब्दी के बाद भी इसे समीक्षा के लिये बाध्य करती हैं। पहला, उस समय की उच्चस्तरीय अमेरिकी साप्ताहिक पत्रिका लाइफ ने इसे प्रकाशित किया जिसमें कि सांस्कृतिक केंद्रीयता निहित थी । दूसरा, एक सेवा निवृत्त विदेश मंत्रालय के अधिकारी जार्ज वी एलेन ने इसकी प्रस्तावना लिखी थी जिससे कि पुस्तक के मह्त्व की ओर संकेत जाता था। तीसरा, एक ख्यातिलब्ध ब्रिटिश पत्रकार, इतिहासकार और उपन्यासकर्ता डेसमन्ड स्टीवर्ट ( 1924 – 1981) ने इस पुस्तक को लिखा ।
द अरब वर्ल्ड अत्यंत प्रभावी रूप से दूसरे काल के समय को प्रस्तुत करता है; वैसे तो पूरी तरह अपने विषय को बहुत मधुर बनाकर नहीं रखा है लेकिन स्टीवर्ट ने सहज और शालीन भाव से अपनी बात रखी है जो कि आज के सबसे मुखर लेखक को भी चुप कर देगा। उदाहरण के लिये वे कहते हैं कि जब पश्चिमी पर्यटक अरब भाषी देशों में प्रवेश करते ही " अलादीन और अली बाबा के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं जहाँ कि लोग उन्हें उनकी बाइबिल की व्याख्या की याद दिलाते हैं" अल कायदा के इस युग में उनकी भावना से किंचित मुठभेड की जा सकती है।
सबसे रोचक यह है कि इस पुस्तक से यह प्रदर्शित होता है कि किस प्रकार एक प्रमुख विश्लेषक भी बडे चित्र को पढने में गलती कर बैठता है।
जैसा कि इसके शीर्षक से स्पष्ट है कि पुस्तक की विषयवस्तु मोरक्को से इराक तक एक अरब जन का अस्तित्व है ऐसे लोग जो कि इस प्रकार परम्परा से आबद्ध हैं कि स्टीवर्ट ने पक्षी इसकी तुलना करते हुए लिखा है, " अरबवादियों की एक अलग सामान्य संस्कृति है जिसे वे इसे हमिंग पक्षी के घोंसले की भाँति चाह कर भी हर बार फेंक नहीं सकते" अरबवासियों द्वारा अपने देशों को एक रख पाने में असफल रहने के पिछले रिकार्ड की अवहेलना करते हुए स्टीवर्ट भविष्यवाणी करते हैं कि, " कुछ भी हो अरब संघ की शक्ति बनी रहेगी"। 1962 के बाद शायद ही ऐसा सम्भव रह सका कि अरबी भाषा ही केवल जन की परिभाषा कर सकी और इतिहास और भूगोल नकार दिये गये।
उनकी विषयवस्तु की दूसरी महत्वपूर्ण चीज इस्लाम है। स्टीवर्ट लिखते हैं कि इस सामान्य आस्था ने मानवता को नयी ऊँचाइयों की ओर पहुचाया है और यह " शांतिवादी ना होकर भी इसका मुख्य शब्द सलाम या शांति है" वे इस्लाम को एक " सहिष्णु धर्म मानते हैं" और अरबवासियों को परम्परागत रूप से " सहिष्णु आक्रांता" और " सहिष्णु स्वामी मानते हैं"। मुसलमानों ने यहूदियों और ईसाइयों के साथ सहिष्णुता पूर्वक व्यवहार किया" । वास्तव में तो अरबवासियों की सहिष्णुता एक संस्कृति तक फैल गयी। सहिष्णुता के प्रति स्टीवर्ट की इस दृष्टि से वे आग्रहपूर्वक लेकिन अयुक्तिपूर्ण ढंग से इस्लामवाद की अभिव्यक्ति को नकार देते हैं, जो उनकी नजर में, " एक पुरानी पीढी की चीज है जिसके प्रति नयी पीढी में कोई आकर्षण नहीं है"। संक्षेप में स्टीवर्ट इस्लामवाद के आरम्भ से आधुनिक काल तक इसकी सर्वोच्चता को लेकर इसके बारे में कुछ भी नहीं जान सके।
तीसरी महत्वपूर्ण चीज अरबवासियों का आधुनिता के प्रति प्रतिबद्धता : " आश्चर्यों में से एक यह है कि बीसवीं शताब्दी के अरब मुस्लिमों ने आधुनिक विश्व के परिवर्तनों को स्वीकार किया है" । सउदी अरब और यमन को छोड्कर हर स्थान पर उन्हें मिला कि, " अरब आधुनिकता दिखाई देने वाली शक्ति है" (इसलिये परिवर्तन की हवा मेरा पहला शब्द है) । महिलाओं के प्रति उनकी एकांगी चिंता पढने वाले को सन्न कर देती है: " हरम और इसके मनोवैज्ञानिक स्तम्भ बीसवीं शताब्दी में आये हैं"। आर्थिक मामलों में महिलायें लगभग पुरुषों के बराबर हैं। वे वही देख रहे हैं जो वह चाहते हैं और वास्तविकता से उनके ऊपर कोई असर होता नहीं दिखता ।
अपनी व्यापक दृष्टि के आशावाद को जारी रखते हुए स्टीवर्ट को लगता है कि अरब भाषी अपने प्राचीन काल से बाहर आने को प्रतिबद्ध हैं। वह सातवीं शताब्दी के बारे में लिखते हैं जिस प्रकार कि अब कोई भी साहस नहीं कर सकेगा विशेष रूप से जार्ज ड्ब्ल्यू बुश की इराकी मह्त्वाकाँक्षा और बराक ओबामा के लीबिया के खतरनाक मिशन के बाद। "पहले चार खलीफा ब्रिटेन के विलियम ग्लैडस्टोन की भाँति लोकतांत्रिक थे यदि अमेरिका के थामस जेफरसन की भाँति नहीं तो," स्टीवर्ट तो यह भी दावा करते हैं कि " अरब सभ्यता पश्चिमी संस्कृति का भाग है न कि पूर्वी संस्कृति का" इसका अर्थ कुछ भी हो ।
पचास वर्ष पूर्व इस्लाम के सम्बंध में जानकारी कितनी कम थी कि लाइफ पत्रिका के दो दर्जन कर्मचारी पुस्तक के सम्पादकीय स्टाफ के रूप में एक चित्र पर इस गलत सूचना के साथ अंकित थे कि इस्लाम की तीर्थयात्रा " प्रत्येक वर्ष बसंत में होती है" ( हज प्रत्येक वर्ष के कैलेंडर के आरम्भ होने से 10 या 11 की तिथि को होता है)
किसी के पूर्वाधिकारी की भूलों का प्रभाव होता है। मेरे जैसे विश्लेषक को आशा करनी चाहिये कि डेसमन्ड स्टीवर्ट और लाइफ की भाँति अस्पष्टता ना हो ताकि समय व्यतीत होने के साथ बुरे रूप में न देखा जाये। इसलिये निश्चित रूप से मैं इतिहास इस भाव से पढता हूँ कि व्यापक दृष्टि बने और तात्कालिक अवधारणाओं तक सीमित न रहे । 2062 में यह बतायें कि मैं कैसा कर रहा हूँ ।

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...