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गुरुवार, मार्च 15, 2012

आ मीत लौट चलें गीत को सँवार लें

आ मीत लौट चलें गीत को सँवार  ले
अर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें
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भूल हो गयी अगर गीत में या छंद में
जुट जाएं मीत आ सुधार के प्रबंध में
कोई रूठा हो अगर तो प्रेम से पुकार लें
आ मीत .................................!!
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कौन जाने कुंठित मन कितने घर जलाएगा
कौन जाने मन का दंभ- "कितने गुल खिलाएगा..?"
प्रेम कलश रीता तो, चल अमिय उधार लें ..!!
आ मीत .................................!!
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आत्म-मुग्धता का दौर,शिखर के लिये  ये दौड़
न कहीं सुकून है,न मिला किसी को ठौर
शंखनाद फिर  कभी ! आज  तो  सितार लें ॥!
आ मीत .................................!!
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