25.12.11

ओबामा के पुनर्निर्वाचन का तुरुप का पत्ता तेहरान के पास है :डैनियल पाइप्स ( हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी)


15 दिसम्बर को इराक में औपचारिक रूप से युद्ध की समाप्ति के पश्चात पडोसी ईरान 2012 के अमेरिकी राष्ट्रपतीय चुनाव में एक प्रमुख अनिश्चित तत्व हो गया है।
पहले सिंहावलोकन कर लें: 1980 में ईरान के मुल्लाओं को अमेरिकी राजनीति प्रभावित करने का अवसर पहले ही प्राप्त हो चुका है। तेहरान में अमेरिकी दूतावास को 444 दिनों तक बंधक बनाने से राष्ट्रपति जिमी कार्टर के पुनर्निर्वाचन के अभियान को गहरा धक्का लगा था इसके साथ ही कुछ अन्य घटनाक्रम के चलते जैसे बंधकों को छुडाने का असफल प्रयास और एबीसी चैनल द्वारा America Held Hostage कार्यक्रम के प्रसारण ने उनकी पराजय में योगदान किया। अयातोला खोमेनी ने कार्टर की सम्भावनाओं को धता दिया कि आश्चर्य ढंग से बंधकों को अक्टूबर में मुक्त करा लिया जाये और रही सही कसर तब पूरी कर दी जब रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय ही इन बंधंकों को मुक्त कर दिया।
आज एक बार फिर ओबामा के पुनर्निर्वाचन में ईरान की दो प्रमुख भूमिका है एक तो इराक में बाधक की भूमिका या फिर अमेरिका के आक्रमण का शिकार बनना। आइये दोनों पर ही विचार करते हैं।
किसने इराक गँवाया? हालाँकि जार्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने इराकी सरकार के साथ इस बात का समझौता किया था कि , " 31 दिसम्बर 2011 तक अमेरिका की सारी सेना इराकी राज्यक्षेत्र से बाहर चली जायेगी" ओबामा द्वारा यह निर्णय लेने से कि कोई भी पूरक सेना भी इराक में शेष नहीं रहेगी पूरी तरह से उनका निर्णय और उनका बोझ था। इससे उन पर जोखिम बढ गया है यदि 2012 तक इराक में स्थितियाँ बुरी होती हैं तो इसके लिये निंदा का पात्र बुश को नहीं उनको बनना होगा। दूसरे शब्दों में ईरान के शीर्ष मार्गदर्शक अली खोमेनी ओबामा का जीना दुश्वार कर सकते हैं।
खोमेनी के पास अनेक विकल्प हैं: वे उन अनेक इराकी नेताओं के ऊपर अपना दबाव बढा सकते हैं जो कि शिया इस्लामवादी हैं और ईरान समर्थक भाव रखते हैं और उनमें से कुछ तो ईरान में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उदाहरण के लिये प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी इस श्रेणी में पूरी तरह योग्य हैं। ईरान अपने देश की खुफिया सेवा के माध्यम से भी इराक की राजनीति को प्रभावित कर सकता है जिसमें कि उनका प्रवेश काफी हद तक हो भी चुका है। या फिर अब हजारों हजार की अमेरिकी सेना के इराक के उत्तरी सीमा से चले जाने के बाद वे अपनी मनमर्जी से इराक में सेना भेज कर किसी भी शरारतपूर्ण कृत्य में लिप्त हो सकते हैं। अंत में वे मुक्तदा अल सद्र जैसे अपने छ्द्म संगठनों को सहयोग कर सकते हैं या फिर आतंकवादी एजेंट को भेज सकते हैं।
1980 में ईरानियों ने बंधक बनाकर अमेरिका की राजनीतिक प्रकिया में हस्तक्षेप किया था अब 2012 में इराक उनके लिये अवसर प्रदान करता है। यदि ईरान के शासक 6 नवम्बर से पहले समस्या उत्पन्न करते हैं तो रिपब्लिकन प्रत्याशी " इराक को गँवाने" के लिये ओबामा को दोष देंगे। ओबामा द्वारा लम्बे समय से युद्ध का विरोध करना उनके लिये भारी पडेगा।( इसके विकल्प के तौर पर ईरानी अपना रुख बदल कर अपनी धमकी को चरितार्थ कर हारमुज के जलडमरूमध्य को रोक सकते हैं जिस जलमार्ग से विश्व का 17 प्रतिशत तेल जाता है और इस प्रकार वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं).मुल्लाओं ने 1980 में कमजोर होते डेमोक्रेट को क्षतिग्रस्त किया था और वे इस बार भी ऐसा कर सकते हैं या फिर उन्हें यह लगे कि ओबामा उनकी रुचि के हैं और ऐसे किसी प्रयास से स्वयं को बचा लें। मुख्य बिंदु यह है कि सेना की वापसी ने उन्हें अतिरिक्त विकल्प दे दिया है। ओबामा को चुनावों के बाद तक सेना को रोकना चाहिये था ताकि बाद में वे आत्मविश्वास पूर्वक कह पाते कि " मैंने वह सब किया जो कर सकता था" । 
               ईरानी परमाणु पर बम गिराओ? प्रायः दो वर्ष पूर्व जबकि ओबामा के पास अमेरिकावासियों के मध्य लोकप्रियता +3 प्रतिशत थी तब भी मैंने सुझाव दिया था कि ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी आक्रमण से ओबामा के कार्यकाल के निष्प्रभावी पहले वर्ष की यादें स्मृतिपटल से हट जायेंगी और घरेलू राजनीति का परिदृश्य बदल जायेगा जो कि उनके हित में रहेगा। एक ही कार्य के द्वारा वे अमेरिका को एक खतरनाक शत्रु से मुक्ति दिला सकते है और चुनावी प्रतिस्पर्धा को नया स्वरूप दे सकते हैं। " इससे स्वास्थ्य कल्याण का मुद्दा अलग चला जायेगा और रिपब्लिकन भी डेमोक्रेट के साथ कार्य करने को विवश होंगे, इससे सोशल मीडिया वाले राजनीतिक कार्यकर्ता भौचक रह जायेंगे, निर्दलीय पुनर्विचार को बाध्य होंगे और कंजर्वेटिव खुशी से पागल हो जायेंगे"। अब जबकि ओबामा कि लोकप्रियता ‌‌‌‌-4.4 प्रतिशत तक गिर गयी है और चुनावों में एक वर्ष से भी कम समय बचा है तो ईरान पर बम गिराने के उनके उपाय की महत्ता अधिक बढ गयी है और यह ऐसा बिंदु है जिसकी चर्चा सार्वजनिक रूप से अमेरिका के अनेक वर्ग के लोगों ने की है ( सराह पालिन, पैट बुचानन, डिक चेनी, रोन पाल, इलिओट अब्राम्स, जार्ज फ्रीडमैन, डेविड ब्रोडर, डोनाल्ड ट्र्म्प)। स्वास्थ्य कल्याण, रोजगार और ऋण का प्रस्ताव राष्ट्रपति के लिये अधिक सम्भावना लेकर नहीं आते , वामपंथ पूरी तरह निराश है और स्वतन्त्र मतों को अपनी ओर किया जा सकता है। वर्तमान स्थिति में प्रतिबंध और ड्रोन को लेकर चल रही मुठभेड केवल ध्यान बँटाने का कार्य है ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर 2012 के प्रथम चरण में आक्रमण की सम्भावना दिखती है और यह समय अमेरिका में चुनावों के निकट है यह तो स्वतः स्पष्ट है। निष्कर्ष यह है कि खोमेनी और ओबामा दोनों एक दूसरे के लिये समस्यायें खडी कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो ईरान और इराक राष्ट्रपति चुनाव में आवश्यकता से अधिक बडी भूमिका निभायेंगे और तीस वर्षों से अमेरिकी राजनीति के लिये एक समस्याग्रस्त शिशु की इनकी भूमिका जारी रहेगी।

24.12.11

हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह् आज :पण्डित रवींद्र बाजपेई एवं आशीष शुक्ला सम्मानित होंगे

स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त मधुकर  
  हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह्  में आज हिंदी एक्सप्रेस जबलपुर के पण्डित रवींद्र बाजपेई को स्व० हीरालाल गुप्त स्मृति अलंकरण  एवं आशीष शुक्ला  यश भारत को सव्यसाची प्रमिला देवी स्मृति अलंकरण से विभूषित किया जा रहा है. वर्ष 1997 से जारी हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह् प्रति वर्ष 24 दिसंबर को जबलपुर में आयोजित होता है.                                                            
                                               मधुकर अलंकरण श्री ललित बक्षी जी 1998,बाबूलाल बडकुल 1999,निर्मल नारद 2000,श्याम कटारे 2001,डाक्टर राज कुमार तिवारी "सुमित्र"2002,पं ० भगवती धर बाजपेयी 2003,मोहन "शशि" 2004

"पं०हरिकृष्ण त्रिपाठी एवं 2005,प्रो० हनुमान वर्मा को (संयुक्त रूप से सम्मानित)अजित वर्मा 2006,पं०दिनेश् पाठक 2007,सुशील तिवारी 2008,श्री गोकुल शर्मा दैनिक भास्कर जबलपुर 2009,श्री महेश मेहेदेल स्वतंत्र-मत,जबलपुर,  एवं श्री कृष्ण कुमार शुक्ल   2010
सव्यसाची  प्रमिला देवी बिल्लोरे    
 
                 हमारी इस पहल को माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे ने नयी पीड़ी के लिए भी प्रोत्साहन के लिए परिवार से सम्मान देने की पेशकश की और पिता जी श्री काशी नाथ बिल्लोरे ने युवा-पत्रकार को सम्मानित करने की सामग्री मय धनराशी के दे दी वर्ष 2000 से
01.श्री मदन गर्ग 2000
02." हरीश चौबे 2001
03." सुरेन्द्र दुबे 2002
04." धीरज शाह 2003
05." राजेश शर्मा 2004,
माँ प्रमिला देवी के अवसान 28/12/2004 के बाद मेरे मित्रों ने इस सम्मान का कद बढाते हुए "सव्यसाची प्रमिला देवी अलंकरण " का रूप देते हुए निम्नानुसार प्रदत्त किये
"सव्यसाची प्रमिला देवी अलंकरण "
1.श्री गंगा चरण मिश्र भास्कर.टी.वी. 2005
2." गिरीश पांडे दैनिक-भास्कर 2006
3." विजय तिवारी नई-दुनिया 2007
4.“श्री पंकज शाह राज केबल 2008
5.* ” श्री सनत जैन भोपाल 2009*हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लागर  श्री महेंद्र मिश्रा 

6. श्री ओम कोहली, डिजी-केबल  जबलपुर एवं हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लागर : समीरलाल,कनाडा, श्री लिमटी खरे नई दिल्ली   2010,

21.12.11

मेरी कविता - मेरी आवाज

पिछले दिनों बेटे ने ये करवाया मुझसे .....कहता है कभी खुद का भी पढ़ो....तो ये पॉडकस्ट उसी का नतीजा है...अब सुनिये.....
मेरी कविता -- मेरी आवाज में

19.12.11

ब्लाग क्यों बांचें भई ?

साभार: रायटोक्रेट कुमारेंद्र जी के ब्लाग से 
हिंदी ब्लागिंग अब व्यक्तिगत-डायरी की संज्ञा से मुक्ति की पक्षधर नज़र्  आ रही है. इस विषय की पुष्टि इन दिनों आ रही पोस्ट से सहज ही हो जाती है . कुछ ब्लाग्स पर गौर करें तो बेशक वे सामयिक परिस्थितियों पर त्वरित अभिव्यक्ति की तरह सामने आ रहे हैं. इतना ही नहीं कुछ ब्लाग्स अपनी विषय परकता के कारण पढ़े जा रहे हैं.   यानी  एक ग़लत फ़हमी थी बरसों तक कि ब्लाग केवल व्यक्तिगत मामला है किंतु हिन्दी ब्लागिंग में माइक्रो ब्लागिंग साइट ट्विटर को छोड़ दिया जाए तो अब ऐसी स्थिति नहीं अब तो ट्विटर पर भी विषय विस्तार लेते नज़र आ रहे हैं. हिंदी ब्लागिंग का सकारात्मक पहलू ये है कि अब लोग स्वयम से आगे निकल कर बेबाक़ी से अपनी बात सामाजिक राजनैतिक वैश्विक मामलों पर रखने लगे हैं. ज़ी-न्यूज़ दिल्ली के सीनियर प्रोड्यूसर खुशदीप सहगल के ब्लाग देशनामा www.deshnama.com  पर समसामयिक मसलों पर  आलेखों की भरमार है तो दिल्ली के मशहूर व्यवसायी राजीव तनेजा आम जीवन से जुड़ी घटनाऒं एवम परिस्थियों से उपजे हास्य को पेश करते नज़र आते हैं अपने ब्लाग “हंसते-रहो” ( http://www.hansteraho.com), भाषा,शिक्षा और रोज़गार(http://blog.eduployment.in) ब्लाग पर आपको शिक्षा और रोज़गार से सम्बंधित ताज़ा तरीन सूचनाएं मिल जाएंगी. उधर एक अनाम ब्लागर भारतीय नागरिक ब्लाग(http://indzen.blogspot.com) पर सामयिक परिस्थितियों पर तल्ख त्वरित टिप्पणी सरीखे आलेख मिल ही जाएंगें.  पश्चिम बंगाल कलकत्ता के  अमिताभ मीत जी एक संगीत भरा किससे कहें (http://kisseykahen.blogspot.com) ब्लाग चलाते हैं. जिसमें हिन्दुस्तानी फ़िल्म एवम फ़िल्मों से हटकर संगीत से सम्बंधित सूचनाएं अटी पड़ीं हैं.    रविरतलामी जी हिंदी ब्लागिंग में नवीन तम तक़नीकों के अनुप्रयोग के लिये साधन एवम जानकारी “छींटे और बौछारें” (http://raviratlami.blogspot.com) पर देते हैं . ये केवल उदाहरण है कमोबेश सभी ब्लाग्स जो विषयाधारित आलेखन कर रहे हैं उन पर पाठकों की निर्बाध आवाजाही आज़ भी जारी है जब कि एग्रीगेटर्स का टोटा है यदि एग्रीगेटर है भी तो वे ब्लागवाणी अथवा चिट्ठाजगत का स्थान नही ले पाए. फ़िर भी संगीता पुरी जैसी ब्लागर लाख पाठक जुटाने में कामयाब हुईं हैं. तो हम भी पचास हजारी हो ही चुके हैं.  अमीर धरती गरीब लोग, स्वास्थ्य-सबके लिए, आरंभ Aarambha, गिरीश पंकज, अभिनव अनुग्रह, तीसरा खंबा, ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र, भारतीय नागरिक-Indian Citizen, अविनाश ,अर्पित सुमन :तेरा साथ वाचस्पति, आर्यावर्त, उच्चारण, जैसे ब्लाग नियमित रूप से बांचे जा रहे हैं...इनकी पठनीयता का कारण इनमें पठनीय-तत्व का होना है. ये ही नहीं और भी कई ऐसे ब्लागस हैं जिन तक पाठकों का पहुंचना तय है.

17.12.11

अन्ना गए नेपथ्य में आज तो दिन भर वीना मलिक को तलाशते रहे लोग !!

खबरों ने इन्सान की सोच का अपहरण कर लिया वीना मलिक का खो जाना  सबसे हाट खबर  खबरिया चैनल्स के ज़रिये समाचार मिलते ही बेहद परेशान लोग "आसन्न-स्वयम्बर" के लिये चिंतित हो गये. एक खबर जीवी प्राणी कटिंग सैलून पे बोलता सुना गया:-"बताओ, कहां चली गई वीना ?"
भाई इतना टेंस था जैसे वीना मलिक के  क़रीबी रिश्तेदार  हों. जो भी हो एक बात निकल कर सामने आई ही गई कि "मीडिया जो चाहता है वही सोचतें हैं लोग...!"
   आप इस बात से सहमत हों या न हों मेरा सरोकार था इस बात को सामने लाना कि हमारे आम जीवन की ज़रूरी बातौं से अधिक अगर हम जो कुछ भी सोच रहें हैं वो तय करता है मीडिया..? ये मेरी व्यक्तिगत राय है. रहा बीना मलिक की गुमशुदगी का सवाल वो एक आम घटना है जो किसी भी मिडिल-क्लास शहर, कस्बे, गांव में घट जाती है वीना मलिक जैसी कितनी महिलाएं ऐसी अज्ञात गुमशुदगी का शिक़ार गाहे बगाहे हो ही जाती हैं. आप को याद भी न होगा अक्टूबर माह में अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग जिले के सेपा में कामेंग नदी पर बने पुल के ढह जाने के बाद  25 लोग लापता हो गए थे.  मेरे हिसाब से हम असामान्य घटनाओं के लिये  उतने सम्वेदन-शील हैं ही नहीं जितना कि वीना मलिक को लेकर हैं. यानी हम वही सोच रहे हैं जितना अखबार अथवा खबरिया चैनल्स सोचने को कहते हैं. 
         हाल ही अन्ना जी,सिब्बल जी, चिदम्बरम जी, को लेकर प्रकाशित एवम प्रसारित हो रहीं खबरों में  लोग खोये ज़रूर किंतु शायद ही किसी ने खबरों को एक स्वस्थ्य-नज़रिये से देखा समझा हो. (यहां हम उन आम लोगों की बात कर रहे हैं जिनका ओहदा केवल; एक आम आदमी का है जो क्रिटिक/जानकार/विषेशज्ञ नहीं हैं) लोग अपमे अपने सतही तर्क के साथ व्यवस्था के विद्रोही हो जाते हैं बेशक व्यवस्था में कमियां हैं पर क्या केवल वही सही है जो दिखाया पढ़ाया जा रहा है..? क़दापि नहीं एक मित्र की राय थी कि-”बेशक़,लोकपाल पास कर दिया जा सकता है..? सी बी आई को शामिल किया जावे इसमें !"
 दूसरा मित्र बोला -"जांच कर्ता एजेन्सी के रूप में एक नई एजेन्सी बना दी जानी चाहिये..?"
पहला मित्र:-"सी.बी.आई. क्यों नहीं ? "
   आम आदमी के पास केवल एक दिमाग है जो खुद नहीं बल्कि इर्द-गिर्द का वातावरण उसको सोचने को मज़बूर कर देता है क्या वो खुद किसी बिंदू पर सोचता है मेरे हिसाब से शायद नहीं ..  

16.12.11

एक बार फ़िर आओ कबीर

                              दिशा हीन क्रांतियां, क्रांतियों में भ्रांतियां.. एक अदद क़बीर की ज़रूरत है.कबीर जो क्रांतियों को एक दिशा देगा कबीर जो बिगड़ते आज को सजा देगा  हां उसी क़बीर की जिसने राम रहीम का तमीज़ सिखाया बेशक़ उसी कबीर की बात कर रहा हूं जो अहर्निश चिंतन करघे से बुनता रहा सम्वेदनाओं आसनी.और चदरिया . जी हां उसी क़बीर की प्रतीक्षा है. 
 कबीर मुझे सुनो मेरी चादर तार तार है.. आसनी उफ़्फ़ क़बीरा वो तो बैठने लायक न रही. जिसे देखो कोई मेरी चादर कोई मेरी आसनी खैंच रहा है अबकी ऐसी बुन देना कि अमर हो जाए.. मैं मर जांऊं पर न आसनी फ़टे न चादर झीनी हो. क्या सम्भव है ये..? 
 आओ जुलाहे एक बार आ ही जाओं सब राम रहीम सब को भूल गये इनके राम को ये भूल गए उनके उनको याद दिलाओ कबीर कि "राम रहीमा  बंदूक बम तलवार में नहीं बसते
    कुछ मूरख "अल्ला" की हिफ़ाज़त करने निकले हैं बन्दूकें हाथ लिये क़बीर तुम भी हंसोगे इन मूर्खों की करतूतों पे ये मूरख नहीं जानते  परमपिता को कोई मार सका है..? न ये मनके मनके फ़ेर न पाए अब तक बस दिये जा रहे हैं बांग और पिता तो...!और हां  कुछ  मूरख तो राम को बचाने सायुध निकले राम जो अंतस की ज्योति है..उस.राम के बिना ये न जीवन था न है...और  न ही रहेगा .पर कौन समझाए कैसे समझाए तुम वही राह बताने आ जाओ क़बीर .

14.12.11

जी रहे हैं हम सिग्मेंट में

पृथ्वीराज चौहान
"क्या खबर लाए हो खबरची...!" मोहम्मद गोरी ने पूछा
खबरची-ज़नाब, हिंदुस्तानी राजा की फ़ौज में खाना चल रहा
किस तरह खाना खा रहे हैं..?
गुस्ताख़ी माफ़ हो हुज़ूर...! आम इंसान जैसे
फ़िर से जाओ.. गौर से देखो..
   खबरची फ़िर गया.. और फ़िर अबकी बार वो बता पाया कि सैनिक अपने अपने ओहदों के हिसाब से खेमों में भोजन कर रहे हैं..
    खाने के लिये बिछे दस्तरख़ान पर गोरी ने उस खबरी को अपने क़रीब बैठाया सभी ने बिस्मिल्लाह की खाते खाते गोरी  तेज़ आवाज़ में बोला-’दोस्तो, इस बात को मैं पहले से ही जानता हूं. ये लोग खा-पी एक साथ नहीं रहे हैं.. इनको हराना उतना मुश्कि़ल नही है. तभी तो मैं बार बार कहता हूं हम ज़रूर जीतेगें.. हुआ भी यही.
                     यही है आज़ का  सच !  आज़ भी हम हमेशा हार जाते हैं,एक नहीं हैं न..?
हममें ऐसा भारत पल रहा है जो हमने खुद अपने लिये बनाया है. ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों के अपने अपने भारत हैं, हिंदी वाला,मराठी वाला, गुजराती वाला, मद्रास वाला, जाने कितने भारत बना लिये इतने तो महाभारत में भी न थे. तभी तो   कसाब-अफ़ज़ल हमारे आंसुओं पर हंसते हैं. हम हैं कि उस सिग्मेंट का मुंह ताक रहे जिसे हम नज़र ही नहीं आते..
                          काश राम लीला मैदान से एक चौथाई हिस्से में ही सही एक बार तो हम  अफ़ज़ल के अंत के लिये जमा हो जाते.. किंतु होते कैसे हम जो जी रहे  हैं सिग्मैंट में..!!

Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...