4.8.10

विभूति नारायण जी अपनी लेखिका पत्नि के बारे में विचार कर लेते तो शायद ऐसा अश्लील शब्द मुंह से न उगल पाते

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जी हां एक शरीर से एक लेखक मर गया है उसकी स्मृतियां शेष रह गय़ीं यह मानते हुए अब एक शोक सभा ज़रूरी है विभूति नारायण राय  की देह मे रह रहा एक विचारक लेखक  दिवंगत हो गया . उनका बयान वास्तव में हिन्दी साहित्य जगत का सबसे घृणित बयान है जिसकी पुनर्रावृत्ति यहां करना मेरे बस की बात तो क़तई नहीं.   मैत्रेयी पुष्पा जी ने मोहल्ला लाईव पर जितने  भी सवाल विभूति से किये हैं वाज़िव हैं  . और उनके पास  विभूति नारायण राय सरकारी पुलिसिया जीवन के दौरान सरे आम जिस भाषा का प्रयोग करते रहे  उसी का प्रयोग कर रहें हैं. कपिल सिब्बल जी का के आश्वस्त कराये जाने के बावज़ूद अथवा ताज़ा खबरों के मुताबिक उनके माफ़ी नामे के बावज़ूद इनका अपराध कदापि कम नहीं होता. न तो वे साहित्यकार रह गये हैं और न ही अब किसी संवैधानिक पद पर बने रहने का उनको अधिकार ही है. इससे कम पर कोई बात स्वीकार्य नहीं है. साथ ही साथ मेरा अनुरोध यह भी है जिस व्यक्ति को देश में नारी का सम्मान करना नहीं आता उसे साहित्यकार के रूप में स्वीकारना सर्वथा अनुचित ही है. मोहल्ला लाइव पर छपी इस बात को देखिये कि-”कार्रवाई की बात पर मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि हम वीसी को बर्खास्त नहीं कर सकते। 
[library]

 ”यदि विभूति नारायण जी स्वयम पानी दार इंसान हैं तो उनको स्वयम ही पद से मुक्ति ले लेनी चाहिये. साथ ही साहित्यिकारों के सूची  से ऐसे व्यक्ति का नाम विलोपित करना अब हमारी ज़वाब देही है. आप सोच रहे होंगे कि इतने कठोर निर्णय कैसे लिये जा सकते हैं तो सच मानिये ठीक वैसे ही जैसे एक पागल को शाक ट्रीटमेंट देकर दुरुस्त किया जाता है. ऐसा उपचार ज़रूरी है वरना कल कोई और इतनी ज़ुर्रत कर सकेगा. वैसे एक बार  विभूति नारायण जी अपनी लेखिका  पत्नि (जो मेरे लिये पूज्य हैं) के बारे में विचार कर लेते तो शायद ऐसा अश्लील शब्द मुंह से न उगल पाते . उनके असभ्य बयान ने साबित कर दिया कि  विभूति नारायण राय न तो साहित्यकार थे न हैं न ऐसे लोगों को साहित्यकार का दर्ज़ा दिया जाना चाहिये. आज़ मुझे इतनी पीड़ा हो रही जितनी कि द्रोपदी के चीरहरण के समय समकालीन समाज को हो रही होगी.   वैसे विभूति नारायण राय के   खिलाफ़ वर्धा थाने में एफ़ आई आर दर्ज़ होना एक ज़रूरी एवम उचित क़दम है  . इस एफ़ आई आर के आधार पर उनको पद्च्युत किया जा सकता है. 
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28.7.10

तलाश है---------------------- इस कविता के कवि की ..............................

आज सुनिए देवेन्द्र पाठक जी(मेरा भाई ) की आवाज में एक कविता ---जो बरसों से उनके जेहन में बसी है ---
अगर आप इसके रचयिता के बारे में जानते हो तो जरूर बताएं..........................(उनसे बिना अनुमति लिए यहाँ सुनवा रही हूँ मै -----माफ़ी चाहती हूँ.............)

27.7.10

आहत मन का छलकता गर्व--------------------आप भी महसूस कीजिए-------------------

आज सुनिए------------सतीश जी का ये गीत जो उन्होंने बीस साल पहले लिखा था...............आज भी ताजा- सा लगता है ...........
 १---



 इसे फ़िर सुने ----------------कुछ इस तरह से ........................
२---

 सतीश जी      के बारे में----

25.7.10

गुरू पूर्णिमा पर विशेष प्रार्थना-------------------------------------

सभी गुरूजनों के सादर चरण-स्पर्श करते हुए......आज समर्पित करती हूँ एक प्रार्थना----जो हम अपने घर में करते हैं --------------यह प्रार्थना किसी एक गुरू के लिये नहीं है -----------इसमें सभी धर्मों के गुरूओं द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का निचोड /सार है ------------------इसे रचना और उसकी बेटी  निशी ने नासिक से रिकार्ड करके भेजा और बाद मे मैने अपनी भाभी उर्मिला पाठक के साथ इन्दौर से स्वर मिलाया-----------
आज गुरूपूर्णिमा पर नमन किजीये अपने सभी उन गुरूओं को जिनसे आपने अपने जीवन में कभी भी कुछ अच्छा सीखा हो----------साथ ही सुनिये---रचना,निशी,अर्चना व उर्मिला  के स्वर में ये प्रार्थना---------
 

20.7.10

भय बिन होत न प्रीत


                         

http://lh6.ggpht.com/_gonR097kmxE/SVucWX01aQI/AAAAAAAAFJc/zbqHRW80o1E/scared_thumb%5B2%5D.png?imgmax=800
भय बिन होत न प्रीत एक गहन विमर्श का विषय है. सामान्य रूप से सभी स्वीकार लेते हैं . स्वीकारने की  वज़ह है
    http://pix.com.ua/db/art/misc/art_of_antiquity/b-503064.jpg
  1. भय के बिना कोई भी अनुशासन की डोर से बंध नहीं सकता:- जी हां, यह एक पुष्टिकृत [प्रूव्ड] सत्य है. अगर दुनिया भर में व्यवस्था को चलाने के लिये कानूनों के उल्लंघन की सज़ा के प्रावधान न होते तो क्या कोई इंसान कानून को मानता ? कदापि नहीं अधिकारों और कर्तव्यों के साथ साथ सर्व  जन हिताय दण्ड का प्रावधान इस लिये किया गया है कि आम आदमी अपने हित के लिये दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण न करे. कानून के साथ दिये गये दाण्डिक प्रावधानों से समाज में एक भय बनता है जो अनुशासन को जन्म देता है.  
  2. भय सामाजिक-सिस्टम को संतुलित रखता है  एवम सुदृढता करता है :-  समाज के रिवाज़ नियम उसके आंतरिक ढांचे को संतुलन एवम सुदृढता [स्ट्रैबिलिटी] देता है.   समाज के संचालन के लिये में रीति-रिवाज़ बनाये गये हैं जो देश-काल-परिस्थितियों के अनुसार तय होते हैं सामाजिक-व्यवस्था के लिये ज़रूरी हैं.... जैसे परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता दौनों की समाज़ ने तय की हुई है यदि कोई भी एक निडर होकर इस व्यवस्था को तोडने की कोशिश करेगा तो परिवार टूट सकता है यदि इस बात का भय न हो तो प्रेम-के धागों से बंधा परिवार छिन्न-भिन्न हो जाता है. यानि परिवार के टूटने के भय से सभी को एक सूत्र में बाधे रखता है. संतुलन एवम सुदृढता   का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है ?
  1. प्रकृति के अनुशासन को तोडने से आने वाले संकटों का भय- जिसका  जिक्र हम और आप निरंतर मीडीया में देखतें हैं दून की वादियों में सुन्दर लाल जी बहुगुणा का आंदोलन याद करते हुये मैं कहना चाहती हूं कि संकटों के भय  से अगर हम भयभीत न होते तो हमारे ह्रदय में पर्यावरण के प्रति प्रीत न जागती .सही तो कहा है किसी ने भय बिन होत न प्रीत
  2. रामयण काल में समुद्र का भयभीत होना  :- समुद्र से रास्ता मांगते राम को समुद्र ने न तो तब तक रास्ता सुझाया जब तक कि उसे दण्डित करने का भय न दिखाया गया . आज़ विग्यान  के दौर मे यह बात मानी जाये या न माने जाये किंतु एक संदेश ज़रूर माना जायेगा भय बिन होय न प्रीत
सभी चित्र गूगल बाबा से सभार  

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