22.10.08

भारत में महाभारत

"अनूप जी"की एक लाइना देख कर लगता है की एक दूसरे से जुड़ने में कितना आनंद है । 'अनपेक्षित विवाद
को लेकर जो बबाल मचा "उस पर अनूप जी ने बस इतना कहा लिखते रहिए !" वास्तव में लिखने की धारा में कमी हो उनका उद्द्येश्य है इसके पीछे । इसमें बुराई क्या है अगर बुराई है तो "इनके"कार्यो में रचनात्मकता की चेतना के अभाव को देखा जा सकता है । राज ठाकरे जैसे व्यक्तियों को कितना भी को हजूर के कानों में जूँ भी न रेंगेगी तो ये भी जान लीजिए हजूर "जिंदगी "से हिसाब मांगती रहेगी कल की घड़ी तब आप भौंचक रह जाएंगे और तब आपके आंसू निकल आएँगे ये तय है। ये हम नहीं लोगों का कहना है जिन को आप क्षेत्र,भाषा,धर्म,प्रांत,के नाम पर तकसीम कर रहें हैं । "वशीकरण, सम्मोहन व आकर्षण हेतु “' किसी का या "मन्त्र"-का उपयोग करिए । "ताना-बाना"बिनतीं, विघुलता का स्वागत
विघुलता जी एक अच्छी साहित्य कार होने के साथ साथ पत्रकारिता से भी सम्बद्ध हैं -का उनका हार्दिक सम्मान
आपका स्नेह एवं कभी कभार कोप भाजन किए ।
जी हाँ तो मैं कह रहा था कि नारी लिए कुछ तो " आरम्भ"-करना ही होगा जैसा संजीव तिवारी कर रहे हैं ।
इस देश को राज ठाकरे जी "
पराया देश" मान के "भारत " में एक और महाभारत - " को "महाराष्ट्र - '' के रास्ते
से ले जा रहे हैं ।
खैर सभी को शुभ कामनाएं



21.10.08

"आओ मुझे बदनाम करो.....!!"



उस दिन शहर के अखबार समाचार पत्रों में रंगा था समाचार "श्रींमन क के विरुद्ध जन शिकायतों को लेकर हंगामा, श्रीमान ख के नेतृत्व में आला अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा गया ?"
नाम सहित छपे इस समाचार से श्री क हताशा से भर गए वे उन बेईमान मकसद परस्तों को अपने आप में कोसते रहे किंतु कुछ न कर सके राज़ दंड के भय से बेचारगी का जीवन ही उनकी नियति बन गया .
श्री क अपने एक पत्रकार मित्र से मिलने गए उनने कहा-"भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ? "
यदि है भी तो भैया जी, मैं क्या करुँ मेरी भी तो ज़िंदगी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ.....!
तो ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में !
ये कहकर श्रीमान क ने अपनी उपलब्धियों को गिनाया जो वे सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते थे . उनकी बात सुन कर संजय ने कहा "भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ?"
श्रीमान क -"अनोखी बात.......?"
संजय ने पूछा -अरे हाँ, जिस बात को लेकर आपको सरकार ने कोई इनाम वजीफा,तमगा वगैरा दिया हो....?
"भाई,मेरी प्लान की हुई योजनाओं को सरकार ने लागू किया "
संजय:-''इस बात का प्रमाण,है कोई !''
क:-.................?
बोलो जी कोई प्रमाण है ?
नहीं न तो फ़िर क्या करुँ , कैसे आपकी तारीफ़ छापून भैया जी
न संजय तारीफ़ मत छापो मुझे सचाई उजागर करने दो आप मेरा वर्जन लेलो जी
ये सम्भव नहीं है,मित्र,आप ऐसा करो कोई ज़बरदस्त काम करो फ़िर मैं आपके काम को प्राथमिकता से छाप दूंगा
जबरदस्त काम .....?
संजय :अरे भाई,कुत्ता आदमीं को काटता है कुत्ते की आदत है,ये कोई ख़बर है क्या,मित्र जब आदमी कुत्ते को काटे तो ख़बर बनातीं है .तुम ऐसा ही कुछ कर डालो
श्रीमान क के जीवन का यही टर्निंग पाइंट था वे निकल पड़े कुत्तों की तलाश में . उनको मिले एक नहीं कई "कुत्ते" जी में आया सालों को काट लिया पर फ़िर मन ने कहा "तुम तो आदमियत से खलास मत हो "
मन की बात की अनुगूंज लेकर "क" घर में उदास अकेले बैठे प्रेमचंद के नमक के दरोगा बनने का खामियाजा भुगत रहे थे कि बाहर से निकलते गुप्ताजी,शर्मा जी बिना उनको आवाज लगाए पान खाने निकल गए , खिड़की से श्री क ने उनका निकलना देख लिया था .
उपेक्षा अपमान भोगते "क" को लगा कि ज़िंदगी अब जीना सम्भव नहीं है सो वे अनमने से महीनो घर में बंद रहे . उनके ख़िलाफ़ चली जांच में वे बेदाग़ हुए तो लोगों ने कहा:-"भाई,आपतो बड़े छुपे रुस्तम निकले,कितने में मामला सुलता..?"
श्रीमान क उनकी बातों पे मुस्कुरा दिए कभी कोई उत्तर न दिया बेअक्लों को .

20.10.08

मन का पंछी खजाने उंचाइयां !!

मन का पंछी
मन का पंछी खोजने ऊँचाइयाँ,
और ऊँची और ऊँची
उड़ानों में व्यस्त हैं।
चेतना संवेदना, आवेश के संत्रास में,
गुमशुदा हैं- चीखों में अनुनाद में।
फ़लसफ़ों का ,
दृढ़ किला भी ध्वस्त है।
मन का पंछी. . .
कब झुका कैसे झुका अज्ञात है,
हृदय केवल प्रीत का निष्णात है।
सुफ़ीयाना, इश्क में अल मस्त है-
मन का पंछी. . .
बाँध सकते हो तो बाँधो,
रोकना चाहो तो रोको,
बँधा पंछी रुका पानी,
मृत मिलेगा मीत सोचा,
उसका साहस और जीवन
इस तरह ही व्यक्त है।।
मन का पंछी. . .

19.10.08

पड़ोसी के घर की गन्दगी

(फोटो:साभार गूगल )

(यह बोध कथा मेरी लिखी तो नहीं है पर जिसने भी लिखी है ज़बदस्त लिखी है कल ही मेरे घर सत्य साईं सेवा समिति के स्टडी-सर्कल में मेरे मित्र अविजय ने उदाहरण के तौर पर अपने वक्तव्य में कोड की जो आपके लिए सादर पोस्ट कर रहा हूँ रोचक बनाने के लिए कुछ हेरा फेरी कर रहा हूँ )
एक से दूसरे घर मुंबई में इतने करीब होते हैं कि उनमें तांक-झाँख को कोई रोके सम्भव नहीं . दीपाली के पति मुंबई में पोस्टेड हुए . पोस्टिंग क्या शादी के तुंरत बाद की ऐसी पोस्टिंग बहुधा लंबे हनीमून का रस देती है.फुर्सत में दीपाली को समझ नहीं आता कि वो करे तो करे क्या ? पति सुदेश के ऑफिस जाते ही फुल टाइम बोरियत से बचने थोडी देर टी वी देखना,फ़िल्म लगा लेना,अखबार पढ़ना, धीरे-धीरे उसे उबाऊ लगाने लगे ये काम . एक दिन रेशमी परदा खोलते ही पास वाली सोसायटी के उस फ्लेट पर नज़र टिक गई जिसमें सब कुछ गंदा दिखा दीपाली को . अब रोज़ गंदे से फ्लेट की तांक-झाँक का क्रम जारी हो गया उस फ्लैट में , इस रोजिया कारोबार से दीपाली को मज़ा आने लगा . फ़िर उस घर की गन्दगी को चटकारे लगा के शाम सुदेश को सुनाना उसका नियमित कारोबार हो गया !
महीनों बीत गए एक दिन अचानक दीपाली के चेहरे की उदासी देख कर सुदेश बोले-"क्यों क्या हुआ भई..? हमसे कौन सी गुस्ताखी हो गयी जो आज आप उखड़ी हुईं हैं हमसे ?
"सुदेश,तुम बड़े गंदे हो,जो मेरी बात गंदे फ्लेट वालों तक पहुंचा ही दी न ?
"मैंने ?"
"हाँ,सुदेश तुम नहीं तो और कौन होगा........?
"दीप,मैं तो उनको जानता भी नहीं ?
"झूठे हो तुम...!देखो आज कितना सुंदर लग रहा है वो घर जो कल तक बेहद गंदा दिख रहा था ज़रूर आपने उनको कहा होगा"
हाँ,प्रिये मुझसे एक गलती ज़रूर हुई है इस मामले में ...? आज मैंने आपकी मदद करने अपनी खिड़की के शीशे साफ़ करे हैं शायद उसके कारण तुमको ...............!
पति की बात सुनकर किंकर्तव्यविमूढ़ सी दीपाली उस खिड़की को अपलक निहारने लगी जिससे पूनम का चाँद पूरी रोशनी भेज रहा था ।
[इस लिंक पर भी कथा उपलब्ध है:-ह्त्त्प://सव्यसाची.म्य्वेब्दुनिया.कॉम/2008/१०/१९/१२२४४०४८८००००.हटमल ]

12.10.08

"संस्कारधानी जबलपुर की चर्चित कोरीओग्राफ़र :स्वर्गीय भारती सराफ "




14 अक्टूबर 1976 को पिता श्री भगवान दास सराफ - माता श्रीमती विमला देवी के घर दूसरी बेटी को रूप में जन्मी " भारती सराफ " जो एक दिन कत्थक का माइल -स्टोन बनेंगी कोई नहीं जानता था.... ! किंतु पत्थरों के इस शहर की तासीर गज़ब है कला साधना करते यहाँ कोई हताश कभी न हुआ था न होगा ये तो तय शुदा है......!
कुमारी भारती सराफ का जीवन कला साधना का पर्याय था ।शरदोत्सव 07 की एक शाम मुझे अच्छी तरह याद है जब मुझे भी ज़बावदारी का एहसास करा गयी थी भारती जी हाँ ......मुझे याद आ रहा है वो चेहरा सांवली गुरु गंभीर गहरी आंखों वाली भारती पिछले बरस अपने कलाकारों को इकट्ठा कर साधन का इंतज़ार कर रही थी मैंने उसे उस बस में बैठा ना चाहा जो कलाकारों को लाने ले जाने मुझे लगा भारती के चेहरे पर कोई चिंता है सो पूछ ही लिया -क्या,कोई परेशानी है ?
"सर,बस तो गलियों में नहीं जाएगी "
"हाँ,ये बात तो है...! फ़िर क्या करुँ.....?"
"................"एक दीर्घ मौन गोया कह रही हो की सर कोई रास्ता निकालें...?
मैंने आगापीछा कुछ न सोचते हुए अपनी सरकारी जीप में बैठने को कहा । क्षमता से ज़्यादा लोगों के बैठनै से गाड़ी चलाने में रोहित को असुविधा तो हो रही थी लेकिन भारती की चिंता अब मेरे चितन का विषय बन चुकी थी सो मेरे कारण मातहत ड्रायवर भी आसन्न संकटों से बचाने मान नर्मदा को प्रणाम कर जबलपुर शहर को चल पडा आख़िर जिम्मेदारी भी कोई चीज़ है...!
जब सारे कलाकार बच्चे छोड़ दी गए उनके-अपने अपने घरों में तब राहत मिली थी भारती को । किंतु बार बार मुझे कृतज्ञ भाव से देखती भारती की आँखें विनम्र थीं ।
आख़िर कह उठी "आपका आभार कैसे कहूं ?"
मुझे लगा कह दूँ की जिम्मेदारी का एहसास कराने वाला व्यक्तित्व तुझे मै प्रणाम करता हूँ किंतु मैंने उससे बस इतना कहा था:"बेटे,इसकी कोई ज़रूरत नहीं ?"
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पाँच अप्रेल 2008 को जाने किस तनाव ने भारती सराफ को "आत्म हन्ता बना दिया ?"
उस कला साधिका जिसमें नित नूतन प्रयोग की प्रतिभा थी , जिसमें कत्थक को पूरे उसी अंदाज़ में पेश करने की क्षमता थी जिस अंदाज़ में प्रस्तुति के "शास्त्रीय निर्देश " हैं । साथ ही साथ नृत्य में "फ्यूज़न"का बेहतरीन प्रयोग ,भारत-नाट्यम की प्रस्तुति अधुनातन गीत "आफरीन-आफरीन"पर ! पिछले बरस गणतंत्र दिवस पर ए आर रहमान की रचना "वन्देमातरम" के साथ कत्थकलि,भारत-नाट्यम,राजस्थानी,तथा म प्र के लोक नृत्यों यथा गेढ़ी-नृत्य का एक ही बीत पर प्रस्तुतीकरण "न भूतो न भविष्यति"का सटीक उदाहरण था ।
भारती ने स्कूल,कालेज,अन्तर-कालेज,यूनिवर्सिटी ,स्तर की प्रतियोगिताओं में पारितोषिक ही नहीं पाए वरन भारत भवन रवीन्द्र भवन भोपाल सहित देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर एकल एवं सामूहिक प्रस्तुतियां दीं । निधन के पूर्व वे न्यू जर्सी में प्रोग्राम देने की तैयारी में थीं ।
७०-८० के बीच संस्कारधानी जबलपुर को देश भर में प्रतिष्ठा दिलाने वाली बीना ठाकुर की शिष्या से 200 बच्चों ने नृत्य की शिक्षा ली । साथ ही वे केंदीय विद्यालय वन एस टी सी तथा अरविन्द पाठक संगीत स्कूल की नृत्य गुरु थीं ।
अब अनघ,रुद्राक्ष,अपनी बुआ से नृत्य सीखने की अधूरी अभिलाषा लेकर बड़े होंगे तो भाई आनंद को याद आएगी भारती हर शाद उत्सव पर.... कवि हृदया बहन डाक्टर नूपुर निखिल देशकर -यही कहतीं सोचतीं हैं:-
"ये सच है अब तुम कभी न मुड़कर आओगे : ये भी मिथ्या नहीं की तुम सबको याद आओगे "
" शरदोत्सव की शुरुआत जिस कलाकार के सरस्वती वन्दना नृत्य रचना से होती थी
वो कलाकार आज नहीं है ............समय के प्रवाह के साथ जीवंत होंगे और कई कलाकार किंतु सत्य निष्ठ कलाकारों की सूची में सबसे ऊपर होगी "भारती सराफ "
अशेष-श्रद्धांजलि
[विवरण अपनी स्मृतियों,एवं स्वर्गीया भारती की बहन डाक्टर नूपुर से हुई चर्चा पर आधारित ]

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...