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11.4.11

हजारीलाल के डरावने सपने आने लगे करोड़ी को

काजल भाई के  कार्टून बैंक से चुरा के लाया गया है  
                              सेठ करोड़ी मल के कारखाने में जो भी कुछ बनता बाज़ार जाता गांधी छाप रुपए की शक्ल में वापस आता. तिजोरी में फ़िर बैंक में बेनामी खातों में... फ़िर और जब सेठ करोढ़ी मल सौ करोड़ी हुए तो क्या था स्विस बैंक के बारे में ब्रह्म-ज्ञान मिला. सो भाई उधरईच्च निकस गये. उधर हज़ारी की को भी बहुत दिनों से कोई खास काम न था सो आराम का जीवन ज़ारी था. कि  अचानक एक दिन हजारीलाल को का सूझी कै बो बस करोड़ी के पीछे लग गिया. 
 करोड़ी बोला:-"भई, कोई रोको उसे..?"
  रोकता कौन  कैसे.... उसे... दरबार में भी हज़ारी लाल की ही सुनाई हुई. फ़रमान आया. सबने एक दूसरे का मुंह मिठाया और का बस सब अपने अपने घर को निकस गये. करोड़ी लाल की सांसें फ़ूल रहीं हैं कि इब का होगा . हजारी जीत गिया उसके पास ताक़त है फ़िर मन इच्च मन बोला :-"दिल्ली दूर है.. देखतें हैं" 
     बड़ी मुश्किल से एक दिन बीता हता कि भैया रात करोड़ी मल उस सपने के बाद सो न पाया.... उस सपने के बाद  क्या था उसका भयानक सपना सो बतातें है एक ब्रेक के बाद यानी कल न भाई परसों तब तलक आप इंतज़ार कीजिये
क्रमश:.....

17.11.10

सटायर : कृष्ण--क्यों जनम लेते हो तुम

हे कॄष्ण ------

सुनिये एक व्यंग रचना---अरविंद झा जी के ब्लॉग क्रांतिदूत से ---


 


                 अब कौन सी देवकी इतना रिस्क लेकर तुम्हे जनम देगी ? जिस मां लक्ष्मी से तुम्हें जन्म के साथ ही एक्सचेंज किया गया था उसे भ्रुण में ही मार नहीं दिया गया होगा..?. अब तो गायों के चारे लोग खुलकर खाने लगे हैं. क्या खिलाओगे अपनी गैया को ? राधा जैसी हजारो गोपियों के साथ जात और उम्र की परवाह किये बगैर इश्क करने पर चौराहे पर टांगकर जिंदा नहीं जला दिये जाओगे?. आज की औरतें जो फ़िगर के लिये अपने बच्चों को भी अपना दूध नहीं पिलाती , मक्खन चोरी करने पर तुम्हारा फ़िगर नहीं बिगार देंगी....? उपर से मक्खन आइ एस ओ सर्टिफ़ाइड तो होगा नहीं.मिलावट भी हो सकती है...यदि जहरीला निकला तो...? सुदामा जैसे जो छोकङा लोग तुम्हारे साथ गायें चराया करते थे..आज के डेट में चाइल्ड लेबर बने हुए हैं, जो अच्छे घर के थे ईंगलिश स्कूल में पढ रहे हैं. किसके साथ खेलोगे..? तुम्हीं बताओ तुम्हारा एडुकेशन कैसे होगा..? तुम्हारे पापा बसुदेव के पास कोई खजाना तो है नहीं कि लाखो रुपये डोनेशन दे देंगे..रही बात नन्दराज की तो सुन लो आजकल पूरे भारत में राजा कंस की चलती है.(आगे इधर से )

20.9.10

अरे दिमाग पे असर कैसे होगा तुम्हारे दौनो कानों की घुटने से दूरी नापी कभी ?

हरिवंशराय जी के पोते हैं जो कहेंगे वो हम सुनेंगे बोलते हैं अब बोलने के लिये किसी भाषा की ज़रूरत नहीं "What an idea sir ji...!!"  इस बिन्दु पर मन में विचार चल रहा था कि अचानक एक अज़नवी मेरे एन सामने आ खड़ा हुआ बोलने लगा तुमाए मन की बात का खुलासा कर दूं...?
मुझे लगा परम ज्ञानी की परीक्षा क्यों न लूं सो हां कर दी 
वो बोला :- सेलवा के एड की बात सोचत हौ न बाबू...?
हां लोग काहे इन झूठी बात को मानत ह्वें  दादू....? इ झुट्टा ह्वै ... कम्पनी जुट्ठी ह्वे हामाए फ़ोनवा का मीटर ऐसने घूमत है कि बस बिना बात कै ४०० सौ रुपिया ज़ादा का बिल थमा देवत है कम्पनी ?
दादू बोला :- मूरुख ब्लागर उही तो वो बोलत ह्वै...? वो चेतावनी दैके समझा रहा है  कम्पनी का फ़ण्डा ''अब बोलने के लिये किसी भाषा की ज़रूरत नहीं समझे बिना बोले का पैसा लगेगागुरु ''
हम चकरा गये कि कित्ती दूर से दादू कौड़ी लाया होगा सो हमने पूछा :- दादू, आप ओकर हर बात मानत  हौ ...
हम उसकी का उसके बाप दादा सबकी मानत हैं मधुशाला से शराबी तक दादू ने ये कहते हुए कांधे पे टंगे खादी के झुल्ले से बाटल निकाली और पूछा:- पियोगे..?
”न..”
न सुनते ही गटगट अद्धी .... आधी कर दी  और टुन्न होके बोला :-उनकी बात हम न सुनें ऐसा हो ही नहीं सकता . दिलो दिमाग पर छा जाने वाले इस एड में बिटवा जो कहा ओकर बहुतै बड़ा अर्थ निकलत है..... पिछले दिन आप कौ याद आवे ज़रा फ़्लेश बेक म जावें .... संसद मा यही तो हुआ था "........जी " के बोलने जौन  ज़रूरत थी वो पूरी हुई..... अब उकील साहबान को लेओ बोलने की खातिर जितना दिये उससे कम बोले हम बोले हज़ूर थोड़ा अऊर बोलते हमारी तरफ़ से कोरट को समझ आ जाती बात ...?
उकील साब बोले:- अगली बार बोलेंगे, समझत नाईं हौ अरे अभी सगरा बोल देते तो अगल पेशी म का बोलते बोलो..?
सुन कय हज़ूर हमाई तौ बोलती बंद हवे लगी... हम का बोलते बोलो भैया..
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पीछा छुड़ाने की गरज़ से हम बोले दादू तुम जाओ हम को भी जाने दो हमको काम है... दादू फ़ुर्र से गायब तभी समीर लाल का फ़ोन बज़ा बोले:- गिरीश भाई, नवम्बर में आ रहा हूं..."
”जी स्वागत है, और बैटरी लो क्या पूरी बंद हो गई ” हम बिना किसी विचार को लिये घूमने की गरज़ से आगे बड़ने ही वाले थे कि मुआं दादू फ़िर आ टपका आते ही पूछने  लगा :-"काहे बायें कान में फ़ुनवा काहे चिपकाए थे "
.हम बोले:- एक शोध से पता चला है कि ’दाएं कान में फ़ोन लगाने से दिमाग़  पर नेगैटिव रेज़ का असर होता है..?
दादू:- अरे दिमाग पे असर कैसे होगा तुम्हारे दौनो कानों  की घुटने से दूरी नापी कभी ?
हम गरियाने ही वाले थे कि फ़िर दादू फ़ुर्र ...
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वैसे दादू ने ठीक ही कहा हम ज़्यादातर इधर उधर की बातों जैसे सियासत, नेता, धार्मिक उन्माद जैसे विषयों भोंथरी चिन्ता करते हैं.... जबकी खुशहाल वतन के बारे में शायद कम सोचते हैं. ज़रा सोचिये कित्ता वक्त ज़ाया करतें  हैं हम सियासी दांवपेंच , व्यवस्था को गरियाने , फ़िल्मी सितारों की गासिप, अड़ोसी-पड़ोसी रिश्तेदारों की निन्दा आदि पर लनभग नब्बे प्रतिशत है न .. तब हम यक़ीन कीजिये घुटने से सोचतें हैं.....

29.10.09

अफसर और साहित्यिक आयोजन :भाग एक

::एक अफसर का साहित्यिक आयोजन में आना ::
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पिछले कई दिनों से मेरी समझ में आ रहा है और मैं देख भी रहा हूँ एक अफसर नुमा साहित्यकार श्री रमेश जी को तो जहां भी बुलाया जाता पद के साथ बुलाया जाता है ..... अगर उनको रमेश कुमार को केवल साहित्यकार के रूप में बुलाया जाता है तो वे अपना पद साथ में ज़रूर ले जाते हैं जो सांकेतिक होता है। यानी साथ में एक चपरासी, साहब को सम्हालता हुआ एक बच्चे को रही उनकी मैडम को सम्हालने की बात साहब उन्हें तो पूरी सभा सम्हाले रहती है। एक तो आगे वाली सीट मिलती फ़िर व्यवस्था पांडे की हिदायत पर एक ऐसी महिला बतौर परिचर मिलती जिसे आयोजन स्थली का पूरा भौगौलिक ज्ञान हो ताकि कार्यक्रम के दौरान किसी भी प्रकार की शंका का निवारण सहजता से कराया जा सके। और कुछ लोग जो मैडम की कुरसी के उस सटीक एंगल वाली कुर्सी पर विराजमान होते हैं जहाँ से वे तो नख से शिख तक श्रीमती सुमिता रमेश कुमार की देख भाल करते हैं । उधर कार्यक्रम को पूरे यौवन पे आता देख रमेश जी पूरी तल्लीनता से कार्यक्रम में शामिल रहतें हैं साहित्यिक कार्यक्रम उनके लिए तब तक आकर्षक होता है जब तक शहर के लीडिंग अखबार और केबल टी वी वाले भाई लोग कवरेज़ न कर लें । कवरेज़ निपटते ही रमेश कुमार जी के दिव्य चक्षु ओपन हो जातें हैं और वे अपनी सरकारी मज़बूरी का हवाला देते हुए जनता से विदा लेते हैं । रमेश कुमार जैसे लोगों को इस समाज में साहित्य समागम के प्रमुख बना कर व्यवस्था पांडे जन अपना रिश्ता कायम कर लेतें हैं साहित्य की इस सच्ची सेवा से मित्रों मन अभीभूत है .................शायद आप भी ..........!!
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