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7.3.11

औरत जो दुनियां चलाती है चुपचाप

साभार:पलकों के सपने से 
बचपन से बोझ उठाती देखता था उन औरतों को जो सर पर पीतल की कसैड़ी (गघरी ) रख  मेरे घर के सामने से निकला करतीं थीं बड़ी बाई राम राम हो का हुंकारा भरके. घर के भीतर से मां सबकी आवाज़ पर जवाब दे पाती न दे पाती पर तय यही था. कभी कभार  कोई-कोई औरत घर के आंगन में डबल डेकर पानी का कलशा रख मां से मिलने आ जातीं थीं. हालचाल जान लेने के बाद फ़िर घर को रवाना. रेलवे में नौकरी करते गैंग-मैन,पोर्टर,खलासियों की औरतें हर तीज त्यौहार पर मां से मिलने ज़रूर आती. हां तीज से याद आया मां के नेतृत्व में फ़ुलहरे के नीचे हरतालिका तीज का व्रत रखीं औरतैं पूजा करतीं थीं.रतजगा होता. बाबूजी पूरे आंगन में बिछायत करवा देते थे. देर रात तक पुरुषों की भजन-मंडलियां लोक भजन गातीं.भीतर शिव पूजन जारी रहता. हमारे जुम्मे हुआ करती थी चाय बना के पिलाने की ड्यूटी. मां डांट कर औरतों को भूखा न रहने की हिदायत देंतीं. यह भी कि किसी भी क़िताब पुराण में नही लिखा कि भूखा ही रहा जाये. सब औरतें इतना जान चुकीं थीं कि "बड़ी-बाई यानि मेरी मां"झूठ नहीं कहेंगी.रात भर जागती औरतों में फ़ल बाटती मां याद आ रही है आज खूब. जाने कितने शराबी कर्मचारियों को बेटे की तरह फ़टकार लगाया करती थी मां. कईयों ने शराब छोड़ी, कई मां के सामने कसम उठाते कि अब जुए में पैसा न गंवाएंगे. हां तो ऐसी ही तीजा की रात गंदी सी गांव की कोई औरत भी आई मां पूछा -कौन हो..?
"इतै पास के गांव में रहत हूं बड़ी बाई" 
ट्रेन छूट गई क्या..?
नईं बाई, घर से भाग-खैं (भागकर) आई हूं, मरनें है मोहे. मेरो अदमी खूब मारत है, 
मां को माज़रा समझ आ गया था मानो. उसे स्नेह से बेटी कहा. पूछा उपासी हो ?
हां,..यह सुनते ही करुणा से भर आई थी मां .और भाव भरे भावुक मन से उसे बेटी संबोधित क्या किया बस जैसे मृत-प्राय: देह में प्राण वायु का संचार कर दिया मां ने. उसे भरपेट केले-सेव देने देने का आदेश मिला. फ़िर पूजन में शामिल किया . साहस का उपदेश देती रही उस रात सारी औरतों को. किसी को बताया कै घर का बज़ट बनाओ तो किसी को बेटी की शादी १८ के बाद करने की समझाइश दी.उस औरत में रात भर मां के साथ रहने का असर ये हुआ कि अल्ल-सुबह उसे घर जाने की याद आ गई. शायद साहस भी समस्याओं से जूझने का.मां सबसे कहती थी :-"तुम दुनिया चलाती हो, तो साहस से चलाओ, मन से पावन रहो बच्चों की देख भाल ऐसे करो जैसे कि कोई गोपाल की पूजा अरचना कर रही हो एक दिन आएगा जब  औरत को आदर-मान मिलेगा पर साहस ज़रूरी है"
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
 "सविता बिटिया का कम्प्यूटर ज्ञान "
  मेरे घर में दो किशोरियां झाड़ू-पौंछा,बरतन साफ़ करती हैं. कल ज़रूरी काम से मुझे निकलना पड़ा. सो पी०सी० पर एक आलेख सेव कर घर से बाहर निकल गया. सीढ़ीयों पर याद आया कि पी०सी० चालू है सो श्रीमति जी से बंद करने को कहा और निकल गया. शाम को श्रीमति जी बोलीं आज़ सविता से तुम्हारा कम्प्यूटर बंद कराया ! यह सुनते ही मुझे  लगा कि शायद ही उसने पूरे प्रोसिस से बंद किया हो. घटना मेरे लिये चकित करने लायक थी.  गुस्सा भी आया श्रीमती जी पर जिसे जप्त कर गया. शाम जब घर आया तो सविता को देख पूछा:-"बेटी तुमको कम्प्यूटर बंद करना आता है"
"हां मामाजी"
"और चालू करना "
"वो भी आता है.."
कैसे, शिवानी (मेरी बेटी) ने सिखाया क्या...?
"न, मैं सीखतीं हूं, कम्प्यूटर क्लास में..
        दिन भर में दो दो बार घर घर जाकर बरतन साफ़ करने वाली इन बेटियों की साधना सीखने नया कुछ करने की ललक से प्रभावित हूं , इस माह से उसका कम्प्यूटर क्लास का खर्च उठाने और खाली समय में पी०सी० चलाने की अनुमति तो दे ही सकता हूं अपनी सविता-बिटिया को.         

15.3.10

लावण्या शाह जी से मुलाक़ात और जबलपुर में हुई ''प्रेस-ब्लागर्स-भेंट''

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https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihxIMF81RAYebtvk_8oBgoVj9jcfYPsPMPkhl82D5seMxtUs7OPorGIHY2KskY9y4Fze8d9DUklHvwrrqVHwhjS4HnD_4p9m0VPn-6UToicfDrWSbtSE-XxHDAMHlR5bOm_8I4WLdldv3M/s320/family.jpghttps://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimW8zTv0JIdWtRlMoXHuw9eJM3fAWPVaWWJd5NuqYkZxuFBwUyBXccOlK-bnfMY47yfz5JEr5w_dfnsUYAswMMNarDtX0vS6qkGw4DzmHsyiu-JVyqgAVya41fZo6dfZAJaUTyNK0PRp0/s320/untitled%E0%A5%A7.bmp



जबलपुर में हुई ब्लागर्स-मीडिया कर्मियों की मेल मुलाकात की रिपोर्ट ऊपर है  
अब सुनिए लावण्या शाह जी से हुई बातचीत के दौरान  लावण्या जी ने पंडित नरेद्र शर्मा जी के संस्मरण एवं लता जी के बारे में खूब और खुल के बातचीत की फ्रीज़ वाला संस्मरण खुर्जा के संत की दिव्यता को उजागर करता है . फिल्म सत्यम सुन्दरम के कालजयी गीत 'सत्यम-शिवम् सुन्दरम' लावण्या जी रिकार्ड होते सुना  है लावण्या जी ने बताया कि यह गीत लता जी ने एक ही बार में लगाता रिकार्ड करा दिया था बिना किसी संशोधन के . इस गीत का अध्यात्मिक पहलू भी है जिसका ज़िक्र भी इस चर्चा में उजागर हुआ. तो सुनिए यह मेरे लिए ऐतिहासिक पाडकास्ट 
एक गीत जो रेडियोनामा से साभार लिया गया पेश है
नाच रे मयूरा!
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगन
देख सरस स्वप्न, जो कि
आज हुआ पूरा !
नाच रे मयूरा !

गूँजे दिशि-दिशि मृदंग,
प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर
छिड़े तानपूरा !
नाच रे मयूरा !

सम पर सम, सा पर सा,
उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान
क्यों रहे अधूरा ?
नाच रे मयूरा !

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पंडित नरेंद्र शर्मा का साहित्य यहाँ देखिये 
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सुनिये सत्यम शिवम् सुन्दरम यू ट्यूब पर
 

letter to lavanya shah from lata ji

18.12.09

इस वर्ष का हीरा लाल गुप्त "मधुकर" स्मृति सम्मान श्री गोकुल शर्मा दैनिक भास्कर जबलपुर ,सव्यसाची अलंकरण श्री सनत जैन भोपाल को तथा श्रेष्ट ब्लॉगर सम्मान श्री महेंद्र मिश्र को


                                                                                            स्वर्गीय श्री हीरा लाल गुप्ता  पत्रकारिता के क्षितिज पर एक गीत सा , जिसकी गति रुकी नहीं जब वो थे ..तब .. जब वो नहीं है यानी कि अब । हर साल दिसंबर की 24 वीं तारीख़ को उनको चाहने वाले उनके मित्रों को आमंत्रित कर सम्मानित करतें हैं । यह सिलसिला निर्बाध जारी है 1998 से शुरू किया था मध्य-प्रदेश लेखक संघ जबलपुर एकांश के सदस्यों ने । संस्था तो एक प्रतीक है वास्तव में उनको चाहने वालों की की लंबी सूची है । जिसे इस आलेख में लिख पाना कितना संभव है मुझे नहीं मालूम सब चाहतें हैं कि मधुकर जी याद किये जाते रहें । मधुकर जी जाति से वणिक , पेशे से पत्रकार , विचारों से विप्र , कर्म से योगी , मानस में एक कवि को साथ लिए उन दिनों पत्रकार हुआ करते थे जब रांगे के फॉण्ट जमा करता था कम्पोजीटर फिर उसके साथ ज़रूरत के मुताबिक ब्लाक फिट कर मशीनिस्ट  को देता जो समाचार पत्र छपता था । प्रेस में चाय के गिलास भोथरी टेबिलें खादी के कुरते पहने दो चार चश्मिश टाइप के लोग जो सीमित साधनों में असीमित कोशिशें करते नज़र आते थे । हाँ उन दिनों अखबार का दफ्तर किसी मंदिर से कमतर नहीं लगता था . मुझे नहीं मालूम आप को क्या लगता होगा ये जान कर ......?क्योंकि, उस दौर के प्रेसों के प्रवेश-द्वार से ही स्याही की गंध नाक में भर जाती थी... को मेरा मंदिर मानना । अगर अब के छापाखाने हायटेक हों गए हैं तो मुझे इसमें क्यों एतराज़ होने चला ..... भाई मंदिर भी तो हाईटेक हैं । चलिए छोडें इस बात को "बेवज़ह बात बढाने की ज़रूरत क्या है...?" हम तो इस बात कि पतासाज़ी करनी है "आखिर कौन हैं ये -हीरालाल जी जिनको याद करता है जबलपुर "
गुप्ता जी को जानने प्रतीक्षा तो करनी होगी ..... तब तक सुधि पाठक ये जान लें कि मधुकर जी जबलपुर की पत्रकारिता की नींव के वो पत्थर हैं जिनको पूरा मध्य-प्रदेश संदर्भों का भण्डार मानता था । सादा लिबास मितभाषी , मानव मूल्यों का पोषक , रिश्तों का रखवाला, व्यक्तित्व सबका अपना था , तभी तो सभी उनको याद कर रहें है.
जन्म:- मधुकर जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर जिले के बिन्दकी ग्राम में हुआ । जन्म के साल भर बाद पिता लाला राम जी को जबलपुर ने बुलाया रोज़गार के लिए । साथ में कई और भी परिवार आए जो वाशिंदे हों गए पत्थरों के शहर जबलपुर के । जबलपुर जो संतुलित चट्टानों का शहर है.... जबलपुर जो नर्म शिलाओं का नगर है । फूताताल हनुमान ताल सूपाताल मढाताल, देवताल , खम्बताल के  इर्द गिर्द लोग बसते थे तब के जबलपुर में लालाराम जी भी बस गए खम्बताल के नजदीक जो अब शहर जबलपुर का सदर बाज़ार है। मायाराम सुरजन जी ने गुप्त जी को 1992 के स्मृति समारोह के समय याद करते हुए बताया की "1950 में नव-भारत के दफ्तर में कविता छपवाने आए सौम्य से , युवक जिसने तत्समय छपने योग्य छायावादी रचना उन्हें सौंपी , रचना से ज़्यादा मधुकर उपनाम धारी गुप्ता जी ही पसंद आ गए. बातों -बातों मायाराम जी जान गए की गुप्ता जी बी॰ए॰ पास हैं . पत्रकारिता में रूचि देखते हुए उन्हें नवभारत में ही अवसर दिया
उनको चाहने वालों में मायाराम जी सुरजन ,दुर्गाशंकर शुक्ल ,कुञ्ज बिहारी पाठक , जीवन चंद गोलछा, पं.भगवतीधर बाजपेई,डॉ. अमोलक चंद जैन,मेरे गुरुदेव हनुमान वर्मा,विजय दत्त श्रीधर,अजित भैया[अजित वर्मा] श्याम कटारे , गोकुल शर्मा , फ़तेहचंद,गोयल,विश्व नाथ राव , फूल चंद महावर, निर्मल नारद , शरद अग्रवाल,पुरंजय चतुर्वेदी, माता प्रसाद शुक्ल आदि ने मिलकर उनकी पुण्य तिथि 23 मई 1992 को स्मृति दिवस मनाया उन्हें याद किया .
फ़िर चाहने वालों ने मध्य प्रदेश लेखक संघ के साथ मिलकर मधुकर जी का जन्म दिवस स्मृति दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया . 24 दिसम्बर को हर साल शहर के लोग याद गुप्त जी के बहाने जुड़्तें ही हैं . परिजन उनकी याद में किसी प्रतिष्ठित पत्रकार को बुलाकर सम्मानित करतें  है । उनकी स्मृति में 1992....के बाद 1997 से लगातार गुप्त जी के जन्म दिन पर लोग एकत्र हों कर सम्मानित करतें है उनकी पीडी के सम्मानित पत्रकारों को । इस क्रम में
  • श्री ललित बक्षी जी 1998,
  • "बाबूलाल बडकुल 1999,
  • "निर्मल नारद       2000,
  • "श्याम कटारे        2001
  • "डाक्टर राज कुमार तिवारी "सुमित्र" 2002
  • "पं ० भगवती धर बाजपेयी                  2003,
  • "मोहन "शशि"                                     2004
  • "पं ० हरिकृष्ण त्रिपाठी एवं प्रो० हनुमान वर्मा   2005 (को संयुक्त )
  • " अजित वर्मा                                        2006
  • "पं०दिनेश् पाठक                                  2007
  • श्री सुशील तिवारी                                 2008

हमारी इस पहल को माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे ने नयी पीड़ी के लिए भी प्रोत्साहन के उद्देश्य 
अपने परिवार से सम्मान देने की पेशकश की और पिता जी श्री काशी नाथ बिल्लोरे ने
युवा पत्र कार को सम्मानित करने की सामग्री मय धनराशी के दे दी वर्ष 2000 से
  • श्री मदन गर्ग                   2000
  • " हरीश चौबे                   2001
  • " सुरेन्द्र दुबे                   2002
  • " धीरज शाह                 2003
  • " राजेश शर्मा                2004,
माँ प्रमिला देवी के अवसान 28 /12 /2004 के बाद  मित्रों ने इस सम्मान का कद बढाते हुए
"सव्यसाची प्रमिला देवी अलंकरण " का रूप देते हुए निम्नानुसार प्रदत्त किये

  • श्री गंगा चरण मिश्र    2005
  • " गिरीश पांडे             2006
  • " विजय तिवारी        2007
  • '' श्री पंकज शाह         2008
दिनांक 24 दिसंबर 2009 को हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह समिति  एवं सव्यसाची कला ग्रुप जबलपुर  द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित होने वाले कार्यक्रम में "मधुकर" स्मृति सम्मान श्री गोकुल शर्मा दैनिक भास्कर जबलपुर ,सव्यसाची अलंकरण श्री सनत जैन भोपाल को तथा श्रेष्ट ब्लॉगर सम्मान श्री महेंद्र मिश्र को प्रदान किया जावेगा .कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय भातखंडे संगीत महाविद्यालय 
                                इ-पत्रकारिता की प्रारम्भिक अवस्था ब्लागिंग को समीर लाल के बाद जबलपुर के  सबसे पहले    ब्लॉगर  के रूप में बंद कमरे में बैठ कर दुनिया जहान को जबलपुर से रू-ब-रू कराने वाले
महेंद्र मिश्र जी अब केवल ब्लॉगर है शासकीय सेवा से मुक्त हुए मिश्र जी अब शुद्ध ब्लॉगर हैं . 

9.11.08

एक थे तिरलोक सिंग जी

एक व्यक्तित्व जो अंतस तक छू गया है उनसे मेरा कोई खून का नाता तो नहीं किंतु नाता ज़रूर था कमबख्त डिबेटिंग गज़ब चीज है बोलने को मिलते थे पाँच मिनट पढ़ना खूब पङता था लगातार बक-बकाने के लिए कुछ भी मत पढिए ,1 घंटे बोलने के लिए चार किताबें , चार दिन तक पढिए, 5 मिनट बोलने के लिए सदा ही पढिए, ये किसी प्रोफेसर ने बताया था याद नहीं शायद वे राम दयाल कोष्टा जी थे ,सो मैं भी कभी जिज्ञासा बुक डिपो तो कभी पीपुल्स बुक सेंटर , जाया करता था। पीपुल्स बुक सेंटर में अक्सर तलाश ख़त्म हों जाती थी, वो दादा जो दूकान चलाते थे मेरी बात समझ झट ही किताब निकाल देते थे। मुझे नहीं पता था कि उन्होंनें जबलपुर को एक सूत्र में बाँध लिया है। नाम चीन लेखकों को कच्चा माल वही सौंपते है इस बात का पता मुझे तब चला जब पोस्टिंग वापस जबलपुर हुयी। दादा का अड्डा प्रोफेसर हनुमान वर्मा जी का बंगला था। वहीं से दादा का दिन शुरू होता सायकल,एक दो झोले किताबों से भरे , कैरियर में दबी कुछ पत्रिकाएँ , जेब में डायरी, अतरे दूसरे दिन आने लगे मलय जी के बेटे हिसाब बनवाने,आते या जाते समय मुझ से मिलना भूलने वाले व्यक्तित्व ..... को मैंने एक बार बड़ी सूक्ष्मता से देखा तो पता चला दादा के दिल में भी उतने ही घाव हें जितने किसी युद्धरत सैनिक के शरीर,पे हुआ करतें हैं। कर्मयोगी कृष्ण सा उनका व्यक्तित्व, मुझे मोहित करने में सदा हे सफल होता..... ठाकुर दादा,इरफान,मलय जी,अरुण पांडे,जगदीश जटिया,रमेश सैनी,के अलावा,ढेर सारे साहित्यकार के घर जाकर किताबें पढ़वाना तिरलोक जी का पेशा था। पैसे की फिक्र कभी नहीं की जिसने दिया उसे पढ़वाया , जिसके पास पैसा नहीं था या जिसने नही दिया उसे भी पढवाया कामरेड की मास्को यात्रा , संस्कार धानी के साहित्यिक आरोह अवरोहों , संस्थाओं की जुड़्न-टूटन को खूब करीब से देख कर भी दादा ने इस के उसे नहीं कही। जो दादा के पसीने को पी गए उसे भी कामरेड ने कभी नहीं लताडा कभी मुझे ज़रूर फर्जी उन साहित्यकारों से कोफ्त हुई जिनने दादा का पैसा दबाया कई बार कहा " दादा अमुक जी से बात करूं...? रहने दो ...? यानी गज़ब का धीरज सूरज राय "सूरज" ने अपने ग़ज़ल संग्रह के विमोचन के लिए अपनी मान के अलावा मंच पे अगर किसी से आशीष पाया तो वो थे :"तिरलोक सिंह जी " इधर मेरी सहचरी ने भी कर्मयोगी के पाँव पखार ही लिए। हुआ यूँ कि सुबह सवेरे दादा मुझसे मिलने आए किताब लेकर आंखों में दिखना कम हों गया था,फ़िर भी आए पैदल सड़क को शौचालय बनाकर गंदगी फैलाने वाले का मल उनके सेंडील मे.... मेन गेट से सीदियों तक गंदगी के निशान छपाते ऊपर गए दादा. अपने आप को अपराधी ठहरा रहे थे जैसे कोई बच्चा गलती करके सामने खडा हो. इधर मेरा मन रो रहा था की इतना अपनापन क्यों हो गया कि शरीर को कष्ट देकर आना पड़ा दादा को .संयुक्त परिवार के कुछ सदस्यों को आपत्ति हुयी की गंदगी से सना बूडा आदमी गंदगी परोस गया गेट से सीडी तक . सुलभा के मन में करूणा ने जोर मारा . उनके पैर धुलाने लगी .

12.10.08

"संस्कारधानी जबलपुर की चर्चित कोरीओग्राफ़र :स्वर्गीय भारती सराफ "




14 अक्टूबर 1976 को पिता श्री भगवान दास सराफ - माता श्रीमती विमला देवी के घर दूसरी बेटी को रूप में जन्मी " भारती सराफ " जो एक दिन कत्थक का माइल -स्टोन बनेंगी कोई नहीं जानता था.... ! किंतु पत्थरों के इस शहर की तासीर गज़ब है कला साधना करते यहाँ कोई हताश कभी न हुआ था न होगा ये तो तय शुदा है......!
कुमारी भारती सराफ का जीवन कला साधना का पर्याय था ।शरदोत्सव 07 की एक शाम मुझे अच्छी तरह याद है जब मुझे भी ज़बावदारी का एहसास करा गयी थी भारती जी हाँ ......मुझे याद आ रहा है वो चेहरा सांवली गुरु गंभीर गहरी आंखों वाली भारती पिछले बरस अपने कलाकारों को इकट्ठा कर साधन का इंतज़ार कर रही थी मैंने उसे उस बस में बैठा ना चाहा जो कलाकारों को लाने ले जाने मुझे लगा भारती के चेहरे पर कोई चिंता है सो पूछ ही लिया -क्या,कोई परेशानी है ?
"सर,बस तो गलियों में नहीं जाएगी "
"हाँ,ये बात तो है...! फ़िर क्या करुँ.....?"
"................"एक दीर्घ मौन गोया कह रही हो की सर कोई रास्ता निकालें...?
मैंने आगापीछा कुछ न सोचते हुए अपनी सरकारी जीप में बैठने को कहा । क्षमता से ज़्यादा लोगों के बैठनै से गाड़ी चलाने में रोहित को असुविधा तो हो रही थी लेकिन भारती की चिंता अब मेरे चितन का विषय बन चुकी थी सो मेरे कारण मातहत ड्रायवर भी आसन्न संकटों से बचाने मान नर्मदा को प्रणाम कर जबलपुर शहर को चल पडा आख़िर जिम्मेदारी भी कोई चीज़ है...!
जब सारे कलाकार बच्चे छोड़ दी गए उनके-अपने अपने घरों में तब राहत मिली थी भारती को । किंतु बार बार मुझे कृतज्ञ भाव से देखती भारती की आँखें विनम्र थीं ।
आख़िर कह उठी "आपका आभार कैसे कहूं ?"
मुझे लगा कह दूँ की जिम्मेदारी का एहसास कराने वाला व्यक्तित्व तुझे मै प्रणाम करता हूँ किंतु मैंने उससे बस इतना कहा था:"बेटे,इसकी कोई ज़रूरत नहीं ?"
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पाँच अप्रेल 2008 को जाने किस तनाव ने भारती सराफ को "आत्म हन्ता बना दिया ?"
उस कला साधिका जिसमें नित नूतन प्रयोग की प्रतिभा थी , जिसमें कत्थक को पूरे उसी अंदाज़ में पेश करने की क्षमता थी जिस अंदाज़ में प्रस्तुति के "शास्त्रीय निर्देश " हैं । साथ ही साथ नृत्य में "फ्यूज़न"का बेहतरीन प्रयोग ,भारत-नाट्यम की प्रस्तुति अधुनातन गीत "आफरीन-आफरीन"पर ! पिछले बरस गणतंत्र दिवस पर ए आर रहमान की रचना "वन्देमातरम" के साथ कत्थकलि,भारत-नाट्यम,राजस्थानी,तथा म प्र के लोक नृत्यों यथा गेढ़ी-नृत्य का एक ही बीत पर प्रस्तुतीकरण "न भूतो न भविष्यति"का सटीक उदाहरण था ।
भारती ने स्कूल,कालेज,अन्तर-कालेज,यूनिवर्सिटी ,स्तर की प्रतियोगिताओं में पारितोषिक ही नहीं पाए वरन भारत भवन रवीन्द्र भवन भोपाल सहित देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर एकल एवं सामूहिक प्रस्तुतियां दीं । निधन के पूर्व वे न्यू जर्सी में प्रोग्राम देने की तैयारी में थीं ।
७०-८० के बीच संस्कारधानी जबलपुर को देश भर में प्रतिष्ठा दिलाने वाली बीना ठाकुर की शिष्या से 200 बच्चों ने नृत्य की शिक्षा ली । साथ ही वे केंदीय विद्यालय वन एस टी सी तथा अरविन्द पाठक संगीत स्कूल की नृत्य गुरु थीं ।
अब अनघ,रुद्राक्ष,अपनी बुआ से नृत्य सीखने की अधूरी अभिलाषा लेकर बड़े होंगे तो भाई आनंद को याद आएगी भारती हर शाद उत्सव पर.... कवि हृदया बहन डाक्टर नूपुर निखिल देशकर -यही कहतीं सोचतीं हैं:-
"ये सच है अब तुम कभी न मुड़कर आओगे : ये भी मिथ्या नहीं की तुम सबको याद आओगे "
" शरदोत्सव की शुरुआत जिस कलाकार के सरस्वती वन्दना नृत्य रचना से होती थी
वो कलाकार आज नहीं है ............समय के प्रवाह के साथ जीवंत होंगे और कई कलाकार किंतु सत्य निष्ठ कलाकारों की सूची में सबसे ऊपर होगी "भारती सराफ "
अशेष-श्रद्धांजलि
[विवरण अपनी स्मृतियों,एवं स्वर्गीया भारती की बहन डाक्टर नूपुर से हुई चर्चा पर आधारित ]

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...