29.9.23

गुज़रात का गरबा विश्व-व्यापी हो गया

 



जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर
जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर


`गुजरात के व्यापारियों एवं प्रवासियों  ने सम्पूर्ण भारत ही नहीं बल्कि  विश्व को अपनी संस्कृति से परिचित कराया इतना ही नहीं  उसे  सर्व प्रिय भी बना दिया.

गरबा गुजरात से निकल कर भारत के सुदूर प्रान्तों तथा विश्व के उन देशों तक जा पहुंचा है जहाँ भी गुजराती परिवार जा बसे हैं , 

एक  महिला मित्र प्रीती गुजरात सूरत से हैं उनको मैंने कभी न तो देखा किंतु   कला रुझान को परख कर पहले आरकुट फिर फेसबुक पर  मित्र बन गयीं हैं ,वे मुझसे अक्सर गुजरात के  सूरत, गांधीनगर, भरूच, आदि के बारे में अच्छी जानकारियाँ देतीं है . मेरे   विशेष आग्रह पर मुझे सूरत में   हुए गरबे का फोटो सहजता से भेज दिए .

एक लेखिका  गायत्री शर्मा बतातीं हैं कि  "गरबों की शान पारंपरिक पोशाकों से  चार-गुनी हो जाती है. इनमें महिलाओं के लिए चणिया-चोली और पुरुषों के लिए  केडि़या" गरबा आयोजनों में देखी जा सकती  है।

आवारा बंजारा ब्लॉग  पर प्रकाशित  पोस्ट गरबा का जलवा  में लेखक ने स्पष्ट किया है :-" गुजरात नौवीं शताब्दी में चार भागों में बंटा हुआ था, सौराष्ट्र, कच्छ, आनर्ता (उत्तरी गुजरात) और लाट ( दक्षिणी गुजरात)। इन सभी हिस्सों के अलग अलग लोकनृत्य लोक नृत्यों  गरबा, लास्या, रासलीला, डाँडिया रास, दीपक नृत्य, पणिहारी, टिप्पनी और झकोलिया की मौजूदगी गुजरात के सांस्कृतिक वैभव को मज़बूती प्रदान करती है । 

अब सवाल यह उठता है कि करीब करीब मिलती जुलती शैली के बावजूद  सिर्फ़ गरबा या डांडिया की ही नेशनल या इंटरनेशनल छवि क्यों बनी। शायद इसके पीछे इसका – गरबे के आकर्षक परिधान एवं नवरात्री पूजा-पर्व है।"

एक दूसरा  सच यह भी है कि- व्यवसायिता का तत्व गरबा को प्रसिद्द कर रहा है. फिल्मों में गरबे को , एवं चणिया-चोली केडि़या के आकर्षक उत्सवी परिधान की मार्केटिंग रणनीति ने गरबे  को वैश्विक बना दिया है.”

दूसरी ओर अंधाधुंध व्यवसायिकता से नाराज  ब्लॉग लेखक संजीत भाई की पोस्ट में गरबे की व्यावसायिकता से दूर रखने की वकालत की गई है. 

ब्लॉग पोस्ट पर  भाई संजय पटेल की  टिप्पणी उल्लेखनीय है कि  "संजीत भाई;गरबा अपनी गरिमा और लोक-संवेदना खो चुका है । उनका कहना है कि मैने तक़रीबन बीस बरस तक मेरे शहर के दो प्रीमियम आयोजनो में बतौर एंकर शिरक़त की . अब दिल खट्टा हो गया है. सारा तामझाम कमर्शियल दायरों में सिमटा हुआ लगता  है. पैसे का बोलबाला है इस पूरे खेल में और धंधे साधे जा रहे हैं.'' 

संजय जी की टिप्पणी एक हद तक सही किंतु मैं थोडा सा अलग  सोच रहा हूँ कि व्यवसायिकता में बुराई क्या अगर गुजराती परिधान लोकप्रिय हो रहें है , 

गरबा ही नहीं गिद्दा,भांगडा,बिहू,लावनी,सभी को सम्पूर्ण भारत ने सामूहिक रूप से स्वीकारा है केवल गरबा ही नहीं ये अलग बात है कि गरबा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के सहारे सबसे आगे हो गया ।

इन दिनों अखबार  समूहों  ने भी  गरबे को गुजरात से बाहर अन्य प्रान्तों तक ले जाने की सफल-कोशिश की हैं । 

इंदौर के  गरबा दल की 2008 में  , मस्कट में हुई प्रस्तुति गज़ब थी. . अब कनाडा, बेल्जियम, यूएसए, सहित विश्व के कई देशों में लोकप्रिय हुआ  तो यह भारत के लिए गर्व की बात है ।

सुना है कि- अब तो गरबे के लिए महिला साथी की व्यवस्था भी फीस देकर प्राप्त की जाने लगी है. ।

संजय पटेल जी की शिकायत जायज है. वे गुजराती हैं तथा  गरबे के बदले  स्वरुप से नाराज हैं उनका मत है कि- "चौराहों पर लगे प्लास्टिक के बेतहाशा फ़्लैक्स, गर्ल फ़्रैण्डस को चणिया-चोली की ख़रीददारी करवाते नौजवान,  देर रात को गरबे के बाद (तक़रीबन एक से दो बजे के बीच) मोटरसायकलों की आवाज़ों के साथ जुगलबंदी करते चिल्लाते नौजवान, घर में माँ-बाप से गरबे में जाने की ज़िद करती कमसिन-जवान बेटियाँ इसके अलावा गरबे  के नाम पर लाखों रूपयों की चंदा वसूली, इवेंट मैनेजमेंट के चोचले,  रोज़ अख़बारों में छपती गरबा कर रही लड़के-लड़कियों की रंगीन तस्वीरें, देर रात गरबे से लौटती हुड़दंग मचाती नौजवान पीढी और तो और  डीजे की  कानफ़ोडू आवाज़ें जिनमें से  गुजराती लोकगीतों की मधुरता गुम है. मुम्बईया  फ़िल्मी स्टाइल का संगीत,  बेसुरा संगीत संजय पटेल जी की नाराज़गी की मूल वज़ह है. 

गरबे  के नाम पर बेतहाशा भीड़ से ट्रैफिक जाम,  ...लोगों के लिए कष्ट देने वाला साबित हुआ है.

 रिहायशी इलाक़ों के मजमें धूल,ध्वनि और प्रकाश का प्रदूषण बीमारों, शिशुओं,नव-प्रसूताओं को तकलीफ़ देता है. उस पर नेतागिरी के जलवे । मानों जनसमर्थन जुटाने  के लिये एक राह  खुल गई हो 

नवरात्रों में देवी की आराधना प्रमुख है .अब यह भक्ति-आराधना आयोजनों की चमक-दमक के बीच खो सी गई है.  

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न्यूयार्क के ब्लॉगर भाई चंद्रेश जी ने इसे अपने ब्लॉग Chandresh's IACAW Blog (The Original Chandresh), गरबा शीर्षक से पोष्ट छापी है जो देखने लायक है कि न्यूयार्क के भारत वंशी गरबा के लिए कितने उत्साही हैं

27.9.23

आर एल वी का परीक्षण कर इसरो ने भारत को गौरवान्वित किया था


* चंद्रयान 3 लॉन्चिंग के पहले आर एल वी का परीक्षण कर इसरो ने भारत को गौरवान्वित किया*
*गिरीश बिल्लौरे मुकुल*
इन दिनों chandrayaan-3 चर्चा में है इसके पूर्व सबसे कम खर्च पर मंगल की भूमि पर यान पहुंचाकर इसरो ने विश्व को चकित कर दिया था। आप भी चकित हो जाएंगे यह जानकर कि एक और कारण है जो इसरो को यशस्वी बनाता है । जी हां
2 अप्रैल 2023 प्रातः 7:15 पर इसरो ने एक प्रयोग किया।  जो री यूजेबल लॉन्च व्हीकल RLV के नाम से जाना जाता है, को सफलतापूर्वक आकाश से जमीन पर उतारा। यद्यपि इस तरह का प्रयोग एलन मस्क ने नासा के सहयोग से 2018 में कर दिया था।
  भारत के इसरो ने यह प्रयोग इस उद्देश्य से किया है ताकि  भारत द्वारा भेजे गए एसएलवी रॉकेट का कचरा अंतरिक्ष में बेकार न जाए। भारत के इसरो ने   एक प्रोटोटाइप लॉन्चिंग व्हीकल को कर्नाटक के चित्रदुर्ग नामक स्थान से 2 अप्रैल 2023 प्रातः 7:15 पर आकाश में चिनूक हेलीकॉप्टर के माध्यम से भेजा। यह प्रयोग  डीआरडीओ भारतीय एयर फोर्स कब संयुक्त प्रयोग था।
  आपने चंद्रयान में दो साइड बूस्टर देखे होंगे इन बूस्टर्स का कार्य है मुख्य रॉकेट एवम उस पर लगे यंत्र को आकाश में  निर्धारित स्थान तक भेजा जाना। वर्तमान में ये केवल एक बार प्रयोग में लाए जा सकते हैं।  इसके बाद इन बूस्टर्स को अंतरिक्ष में कचरे के रूप में बिखर जाना होता है।
    हाल के दिनों में विश्व के 12 प्रक्षेपण स्टेशन इस चिंता से परेशान है कि अंतरिक्ष कुछ ही वर्षों में सैटेलाइट भेजने अथवा अन्य ग्रहों पर अपने रोवर लैंडर भेजने तथा अन्य वैज्ञानिक प्रयोगों से कचरा घर बन जाएगा। इससे अन्य कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होना स्वभाविक होंगी।
   भारतीय वैदिक दर्शन स्पष्ट रूप से अंतरिक्ष की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस क्रम में नासा के बाद इसरो ने प्रोटोटाइप को आकाश में लगभग 5 किलोमीटर ऊंचाई पर भेजकर वापस जमीन पर गिराया फिर ये प्रोटोटाइप अपने प्रयोग स्थल पर सीधा वापस आता है । कंप्यूटर कमांड के सहारे इस प्रोटोटाइप को प्रयोग स्थल के रनवे पर उतारा गया। इसकी स्पीड कम करने के लिए पैराशूट का भी उपयोग किया गया। इसरो प्रयास में है कि भविष्य में इस तरह के यान बनाए जाएं जो मूल रॉकेट को सपोर्ट करके वापस भूमि पर लौटे और उनका पुन: उपयोग किया जा सके
भविष्य में भारत का इसरो निश्चित रूप से कम खर्च में ऐसे बूस्टर व्हीकल जिन्हें री यूजेबल लॉन्चिंग व्हीकल RLV बनाने में सफल होने वाला देश बन सकता है। इस दिशा में अमेरिका की नासा तथा चीन की स्पेस एजेंसी भी कार्य कर रही है।

रेवा टी वी के लिए सिमरन जी द्वारा मेरा साक्षात्कार

 

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