12.6.21

दिशा विहीन होता हिंदी साहित्यकार

साहित्य का सृजन करना और साहित्य की सृजन का अभिनय करना जगह-जगह सृजन करने वालों गिरोहबाज़ी 100 साल से भी कम उम्र के "अल्पवय-हिंदी-भाषा" के साहित्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। मुझे मालूम है कि यह टिप्पणी मिर्ची वाला असर पैदा करेगी। पर ध्यान रखिए साहित्यकार होने की नौटंकी मत कीजिए वास्तव में पढ़िए उसके बाद लिखिए । 
  कल आप-हम जब मरखप जाएंगे हमारी संतानें हमारी आत्मा से पूछेगी - "संस्कृत ने बहुत कुछ दिया है.. आपने क्या किया..? 
   यही  होंगे ... अदेह के सदेह प्रश्न..? बहुतेरी हस्तियां मंच पर चुटकुले सुनाती बहुत सारी हस्तियां विषय को अपने शब्दों में नए सिरे से लिख देती हैं.. ! 
   आयोजन और फर्जी जुड़ाव साहित्यिक नेतागिरी साहित्य में राजनीतिक मक्कारियाँ, पक्षपाती लेखन किस दिशा में जा रहा है हिंदी साहित्यकारों का झुंड मुझे तो दूर से भेड़ों का झुंड नजर आ रहा है। अब तो आत्मचिंतन की जरूरत है अब रामधारी सिंह दिनकर को नकारने की जरूरत है अब जरूरत है वर्ग बनाकर वर्गीकरण करके वर्ग संघर्ष पैदा करने वालों के मुंह पर ताला लगाने की वरना वरना साहित्य के सर्जक साहित्य के सृजनकर्ता ना होकर साहित्य के सपोले कहलाएंगे।
फोटो Mukul Yadav से साभार

3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

यही सत्य है।

अजय कुमार झा ने कहा…

सच कहते लिखते रहिए वक्त अपने आप सब तय करेगा। साहित्य भी समाज की कुरीतियों की संगत में बिगड़ गई गई

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सही है।

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