1.1.13

और शारदा महाराज खच्च खच्च खचा खच बाल काटने लगे बिना पानी मारे....

रायपुर के सैलून में प्रसिद्ध
लेखक ललित शर्मा 

सैलून में कटवाते कटवाते  जेब कटवाना अब हमें रास न आ रहा था। आज़कल सैलून वाले लड़के बड़ी स्टाइल से बाल काटतेजेब काटने की हुनर आज़माइश करने लगे हैं. हमारे टाइप के अर्ध बुढ़ऊ में अमिताभी भाव जगा देते है.. सर फ़ेसियल भी कर दूं..?, फ़ेसमसाज़  करूं ? स्क्रब  कर दूं ब्लीच   करूं.. किसी एक पे आपकी हां हुई कि आपकी जेब कटी.. किस्सा चार-पांच सौ पे सेट होता है. अपन ठहरे आग्रह के कच्चे इसी कच्चेपन से  मंथली बज़ट बिगड़ने लगा तो हमने भी एकदम तय कर लिया कि बाल तो घर में ही कटवाएंगे वो भी क्लासिक स्टाईल में. हम ने फ़ैमिली-बारबर शारदा परसाद जी से कटिंग कराएंगे वो भी अपने घर में. खजरी वाले खवास दादा की यादैं भी उचक उचक कर कहतीं भई, कटिंग घर में शारदा सेईच्च बनवाओ. सो हम ने शारदा जी को हुकुम दे डाला- हर पंद्राक दिन में हमाई कटिंग करना !
वो बोले न जी हम औजार लेके किधर किधर घूमेंगे वो तो मालिश वालिश तक ठीक है. 
 बिलकुल डिक्टेटर बन हमने फ़ैमिली-बारबर को हिदायत दी - शारदा तुम अस्तुरा-फ़स्तुरा, कैंची-वैंची" लेके आना अगले संडे .  
सा’ब जी-"जे काम न कहो अब , जमाना बदल गया  आप किस जमाने में हो. ?
हम हैं तो इसी जमाने में पर हमाई आदतें पुरानी हैं.. पटे पे बैठ के बनवाने की. 
शारदा बोले- हम बैठ के न बना पाँ  हैं.. ..पटा पै.. आ  तो जैं हैं हपता पंद्रा दिन मैं  मनौ कुरसी मंगा लय करौ  यानी  शारदा जी सशर्त हमसे  सहमत हो ही गए वैसे हमाई हजामत कई लोग बनाने का शौक रखते हैं कुछ अधीनस्त, कुछ वरिष्ट कुछ अशिष्ठ तो कुछ अपषिष्ठ.. लोग आजकल पता नई क्यों हज़्ज़ामी पे उतारूं हैं.पर हम बनवाना तो शारदा महाराज से चाहते हैं.     अब वे हर पखवाड़े हमारी हजामत बनाने आ जाते हैं.
  दुनियां जहान  को गरियाते रहे पुराने दिनों की याद दिलाई उनको.. बाम्हन-नाई के अंतर्संबंधों पर एक अच्छा सा भाषण पिलाया कि भाई राजी हो गये. बोले ठीक है सा’ब आऊंगा  . अब पखवाड़े के पखवाड़े शारदा परसाद उसरेठे जी हमाई हजामत बनाने आते हैं. दुनियाँ  जहान के समाचार हम हासिल कर लेते हैं. वैसे शारदा हरीराम नहीं हैं. पर जो दुनियां-जहान में चल रहा है उन सारी खबरों पर शारदा जी की पैनी नज़र होती है. उनका अपना नज़रिया भी होता है जैसे मोदी सा’ब के लिये पी एम की कुर्सी फ़िट है कि उनको बड़ी होगी या छोटी पड़ेगी अन्ना के बिना केज़रीवाल का क्या होगा. क्रेन बेदी की हैसियत क्या होगी.. अमिताभ को सन्यास के लिये न उकसाया जाना उनके मन को खल रहा है. .. बोल रहे थे-"सचिन ने क्या बिगाड़ा लता जी आशा जी आड़वानी (वे आडवानी को आड़वानी जी बोलते हैं. ) और खासकर अमिताभ बच्चन (जो उनकी नज़र में  खूब कमा रहे है) को हटने की नही बोलते बेचारे सचिन को सचिन के पीछे फ़ालतुक में पड़ी है जनता  " यह कहते उनके चेहरे पर काटजू भाई सा’ब वाला भाव था.कुछ ऐसी ही बाते  बाक़ायदा हमसे शेयर करते हैं.
                  हमारे बाल कुछ ज़्यादा कड़े थे. पानी लगाने से भी नर्म न पड़े सो शारदा ने युक्ति निकाली . वो विषय छेड़े कि हमको गुस्सा आए और गुस्सा इतना कि हमारे रोयें स्टैंडअप हों........और  उनका
काम सरल हो जाए.
बोले "सा’ब सुना है गैस की कीमत सरकार गिराने वाली है..?"
उनका सरकार बोलना था कि हमारा रोयां-रोयां  खड़ा हो गया और भाई शारदा ने खच्चखच्च खचाक दाईं तरफ़ के बालों को निपटा कर दिया.
शारदा दाई बाजू के बाल काटते हुए..
    अब बारी थी बाईं तरफ़ के बालों की. इस बार भाई ने फ़िर शहर में बढ़ती अराजक यातायात व्यवस्था को निशाना बनाया मुये रोयों पर कोई असरईच्च न हुआ.
शारदा - साब जी जे बाल और गीले करूं..?
हम- क्यों.. इत्ती ठंड में गीले पे गीला किये जा रहे हो ? मरवाना है क्या... शारदा हमाई हालत ठंड में जानते हो अस्थमा का दौरा पड़ जाएगा समझे ....?
शारदा- "बाल कड़े हैं.."
हम- ’वो तो जनम जात कड़े हैं..
शारदा बाएं बाजू के बाल काटते हुए..
शारदा-"..............?"(बिन बोले मानो कह गया - सुअर के जैसे..! )
उसकी अनकही बात को हम ताड़ गये थे हमने प्रति प्रश्न किया - दाईं तरफ़ के काटे थे वो कैसे कट गये ?
शारदा-"वो कड़े थे पर खड़े थे .. !"
हम- "तो ?"
शारदा-"सा’ब, का बताएं.."
     तभी श्रीमति जी घर के भीतर से चिल्लाईं - बच्चों की फ़ीस भरना है, बिजली का बिल देना है कल तुम रुक जाना डिंडोरी न जाना .. इसी बीच बास का फ़ोन आ गया ... कल पहुंच रहे हो न आफ़िस.... ?
 बस क्या था हमारे रोयें रोयें में तनाव भर गया......... और शारदा महाराज खच्च खच्च खचा खच बाल काटने लगे बिना पानी मारे...........

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

चलिए …… छूराधारी शारदा कृपा से साप्ताहिक बाल दिवस मनाते रहें।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…


यह तो मैंने भी नोट किया है कि आजकल बाल काटने से कहीं ज़्यादा रूचि वे जेब की चंप्पी करने में लेते हैं

Wow.....New

आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश

The last infidel. : Kalash of Hindukush"" ہندوکش کے آخری کافر کالاشی لوگ ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदूकुश पर्वत श्रृंख...