अमित जी के करीब कुत्ते को देख कर जाने कितनों के सीने पर कल्लू चाचा लोटते हैं यहां कल्लू उर्फ़ कालिया जिसके मान का मर्दन हमारे श्रीकृष्ण ने किया था.यानी सांप वो जिसके दिल में नकारात्मकता के ज़हर से भरा हो. जन्तुओं-जीवों की वृत्ति की वज़ह से उसे स्वीकार्य या अस्वीकार्य किया जाता है इतनी सी बात कालिया उर्फ़ कल्लू क्यों नहीं समझता.समझेगा कैसे सांप मूलत: नकारात्मकता का प्रतीक है. उसे सकारात्मकता का पाठ समझाना भी समय की बरबादी है.
कुत्ते और सांप की की समझ में हल्का सा फ़र्क ये है कि कुत्ता सभी को शत्रु नहीं मानता किंतु सांप अपने मालिक को भी शत्रु समझता है. ज़हर से भरे दौनों होते हैं किसी को भी उनके ज़हर से कोई एतराज़ नहीं. किंतु ज़हर के प्रयोग के तरीके से सभी भयभीत होते हैं.काफ़ी दोषों से युक्त होने के बावज़ूद कुत्तों को समाज मे स्वीकार लिया गया क्योंकि उनमें केवल क्षणिक नैगेटिविटी पाई गई. किंतु सांपों में केवल नकारात्मकता ही नकारात्मकता. तभी तो आप अपने घर की रक्षा के लिये सांप नहीं कुत्ते को पालतें हैं. जो परिचित के आगमन पर प्रारम्भ में भयातुर होकर भौंकता बस है यकायक़ काटता नहीं. और उसका यही गुण मानव किंतु मानवीय-बस्तियों और घरों में रक्षक के रूप में रहने की योग्यता तय करता है. मानव जाति के बीच रहने की कुछ शर्तें हैं इन शर्तों को समझ पाने की क्षमता कुत्तों में बढ़ती नज़र आ रही है किंतु स्वयम इन्सानों में ?
जी हां ! कम होती जा रही है. सकारात्मक सोच. लोग कानों से देख रहें हैं. नाक से सूंघ कर सोचने लगे हैं. आंखें पता नहीं क्या देखतीं हैं अब हमारी..... शायद सांप सरीखे अंधे हम लोग समाज को जीने के लायक न रहने देंगें कुछ ही दिनों में. देखना चाहते हैं तो नग्नता,सुनना चाहतें है तो निदा और चुगलखोरियां, पढ़ना चाहते हैं तो बस ऐसे ही कुछ जो वर्ज़ित हैं.क्यों बढ़ रही है नकारात्मकता कभी गौर कीजिये तो हम पातें हैं हमारी धारण शक्ति में कमी आई है. हम न तो मानव रह जावेगें न ही सकारातमक सोच वाला जीव होने की स्थिति में रह सकेंगे . शायद कुत्तों से बदतर सोच यानी सांपों के सरीखी सोच लेकर अपनी अपनी बांबी में पड़े ज़हर की फ़ैक्ट्री बन जावेंगे...!! ये तय है.....
19 टिप्पणियां:
देखो सभी जगह अच्छाई
ऐसी दृष्टि सदा सुखदाई।
umda
गिरीश जी, बहुत सधा हुआ आलेख है। मनुष्य में भी यदि नकारात्मकता ही नकारात्मकता हो तो वह समाज के लिए असहनीय हो जाता है। अच्छा विश्लेषण किया है। बधाई।
सार्थक आलेख...
बढ़िया विश्लेषण किया है दादा ... आभार !
"देखना चाहते हैं तो नग्नता,सुनना चाहतें है तो निदा और चुगलखोरियां, पढ़ना चाहते हैं तो बस ऐसे ही कुछ जो वर्ज़ित हैं"
अच्छाई की अपेक्षा बुराई में बहुत आकर्षण होता है। इसीलिए तो कहा गया हैः
बुरे लगत सिख के बचन, हियै विचारौ आप।
करुवी भेषज बिन पियै मिटैन न तन की ताप॥
गिरीश सुपुत्र
आशीर्वाद
बहुत सुंदर लेख हमारी सोच है
समय अच्छा याद करना चाहिए मन बहुत शांत
बेहद सुन्दर विश्लेषण. सर्पों की तरफ से मान हानि का दावा बन सकता है. नव वर्ष मंगलमय हो.
bahut badhiya post.आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ..
bahut badhiya vichaar hain...
sarthak vishleshan.
bahut umda!
sundar aalekh..bahai hamnaam ko....
सार्थक आलेख। धन्यवाद।
girishji kya bat hai,aalekh ke liye thanks
Jai ho Manish Seth Maharaj
aapakaa aabhaar
aagla lekh aasteen ke saapo par ho jaye guru
अच्छा विश्लेषण
बजा फ़रमाया गुरू
बहुत सही विश्लेषण!
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