29.10.09

अफसर और साहित्यिक आयोजन :भाग एक

::एक अफसर का साहित्यिक आयोजन में आना ::
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पिछले कई दिनों से मेरी समझ में आ रहा है और मैं देख भी रहा हूँ एक अफसर नुमा साहित्यकार श्री रमेश जी को तो जहां भी बुलाया जाता पद के साथ बुलाया जाता है ..... अगर उनको रमेश कुमार को केवल साहित्यकार के रूप में बुलाया जाता है तो वे अपना पद साथ में ज़रूर ले जाते हैं जो सांकेतिक होता है। यानी साथ में एक चपरासी, साहब को सम्हालता हुआ एक बच्चे को रही उनकी मैडम को सम्हालने की बात साहब उन्हें तो पूरी सभा सम्हाले रहती है। एक तो आगे वाली सीट मिलती फ़िर व्यवस्था पांडे की हिदायत पर एक ऐसी महिला बतौर परिचर मिलती जिसे आयोजन स्थली का पूरा भौगौलिक ज्ञान हो ताकि कार्यक्रम के दौरान किसी भी प्रकार की शंका का निवारण सहजता से कराया जा सके। और कुछ लोग जो मैडम की कुरसी के उस सटीक एंगल वाली कुर्सी पर विराजमान होते हैं जहाँ से वे तो नख से शिख तक श्रीमती सुमिता रमेश कुमार की देख भाल करते हैं । उधर कार्यक्रम को पूरे यौवन पे आता देख रमेश जी पूरी तल्लीनता से कार्यक्रम में शामिल रहतें हैं साहित्यिक कार्यक्रम उनके लिए तब तक आकर्षक होता है जब तक शहर के लीडिंग अखबार और केबल टी वी वाले भाई लोग कवरेज़ न कर लें । कवरेज़ निपटते ही रमेश कुमार जी के दिव्य चक्षु ओपन हो जातें हैं और वे अपनी सरकारी मज़बूरी का हवाला देते हुए जनता से विदा लेते हैं । रमेश कुमार जैसे लोगों को इस समाज में साहित्य समागम के प्रमुख बना कर व्यवस्था पांडे जन अपना रिश्ता कायम कर लेतें हैं साहित्य की इस सच्ची सेवा से मित्रों मन अभीभूत है .................शायद आप भी ..........!!
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7 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

ऐसे लोग रिटायर मेंट के बाद भी अफसर बने रहते है जैसे भूतपूर्व कलेक्तर.. आदि ।

Udan Tashtari ने कहा…

रमेश कुमार जी को हाल फिलहाल तो नमन!! कौन जाने क्या काम अटके.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

समीर भाई मिशन धुआंधार निपटाना है
उनको मेरा भी नमन

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

शरद जी
रिटायर्ड तो और खतरनाक
होता है

बवाल ने कहा…

बाप रे !

RAJ SINH ने कहा…

नहीं जनाब रिटायर होने के बाद अच्छों अच्छों की हवा निकलते देखी है.सिर्फ निर्विष सांप रह जाते हैं कई तो .

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सांप तो रहता ही है न

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