10.10.09

क्या ब्लागर्स के सामने भी विषय चुकने जाने का संकट है ?


 


"गौतम"  ने जो चित्र प्रस्तुत किया है उससे भी ज़रूरी विषयों पर अगर हम समय जाया कर और करा रहें हैं तो ठीक है वर्ना सच हमारा मिशन सिर्फ और सिर्फ मानवता के  रक्षण से सम्बंधित होना ज़रूरी है. केवल धार्मिक सिद्धांतों की पैरवी तर्क-कुतर्क /वाद प्रतिवाद / हमारे लिए गैर ज़रूरी इस चित्र के सामने.......!!

का यह चित्र आपने न देखा हो तो अपने शहर के कूड़ा बीनने वाले बच्चों को देखिए जो होटलों से फैंकी जूठन में  भोजन तलाशते बच्चों को सहज देख सकतें हैं
http://www.abroaderview.org/images/vietnam/hanoi/Street_children_in_Sapa.jpgमित्रों  आप भी गौर से देखिये इस चित्र में मुझे तो सिर्फ बच्चे दिख रहें हैं और इधर भी देखिए =>  {यही आज का सबसे  ज़रूरी विषय है }
इसको आप ने नहीं पहचाना..... इस दीन के लिए ही तो देवदूत संदेशा लातें हैं. देववाणी भी इनकी ही सेवा का सन्देश देती है मेरे वेद तुम्हारी कुरान  ....उसका ग्रन्थ .... इसकी बाइबल क्या कुतर्क के लिए है . फिर तुम्हारी मेरी आस्था क्या है ... जिसकी परिभाषा ही हम न जान पाए मेरी नज़र में आस्था 
हम बोलतें हैं क्योंकि बोलना
जानते हैं किंतु आस्था बोलती नहीं
वाणी से हवा में ज़हर घोलती नहीं
सूखे ठूंठ पर होता है जब
बूंद बूंद भावों का छिडकाव
स्नेहिल उष्मा का पड्ता है प्रभाव
तभी होता है उसमें अंकुरण
मेरे भाई
यही तो है आस्था का प्रकरण...!!     


 सच प्रेम ही इस संसार की नींव है इसे सलीम/जोज़फ़/कुलवंत/गिरीश जैसों की क्षमता नहीं की झुठला सकें 

15 टिप्‍पणियां:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपने मर्म को समझा औरो को भी समझना होगा

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक पोस्ट!!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया पोस्ट!

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

महाशक्ति जी
मर्म को को वे समझतें है किन्तु अभागे से हैं
समीर जी परमजीत बाली शुक्रिया

बेनामी ने कहा…

प्रथम चित्र का इतिहास जानते हैं?

इसके फोटोग्राफर को 1994 का पुलित्ज़र पुरस्कार मिला था और फोटो लेने के तीन महीने बाद, और पुरस्कार मिलने के मात्र एक सप्ताह के भीतर उस फोटोग्राफर, केविन कार्टर ने आत्महत्या कर ली थी।

इस चित्र को देखते ही, आज भी मेरी रीढ़ में कंपकपाहट होने लगती है।

बेहद दुखद

बी एस पाबला

अजय कुमार झा ने कहा…

इस पोस्ट को ..इन तस्वीरों को और सबसे अधिक पाबला जी के खुलासे को देख कर ..पता नहीं मन क्या क्या कह और सोच रहा है..शायद लिखने पढने देखने सुनने की दिशा बदल जाये..अभी कुछ कहना नहीं चाहता इससे ज्यादा

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने, और मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूँ।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

पाबाला जी सही कह रहे हैं
झा साहब मैं कह रहा हूँ इस सच्चाई
से अलग कुछ और नहीं जिस पर चर्चा हो

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Thanks mithalesh bhai

बवाल ने कहा…

बस कीजिए मुकुल जी, अब रुलाइएगा क्या ?

G.K.BILLORE ने कहा…

Bawal
sach jeevan our dharm char kitabon
nahee samajha ja sakata neti neti hai prabhoo ka roop tum me karuna jagi mitr karun brahm kee anubhooti huyee yahee sanatan ka satvik swaroop hai
ahm brhmasmi
allah hoo
ekoham
ya sarvam khalvidam brahamam

Sudhir (सुधीर) ने कहा…

दुखद....सार्थक और संवेदना को झकझोरती चर्चा....

Anil Pusadkar ने कहा…

विषय तो ढेरों है मगर धर्म से फ़ुरसत मिले तब ना।बहुत ही सार्थक पोस्ट,बवाल सही कह रहे हैं।

Doobe ji ने कहा…

tippani 13 naheen honee chahiye
Sahee Vishay Sateek post

रामकृष्ण गौतम ने कहा…

Good Sir...

Wow.....New

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