धन को तरसता पूंजी-बाज़ार और जबलपुर जैसे कस्बाई शहर 500 के आसपास कारों का बिकना.एक अजीबोगरीब अर्थशास्त्रीय संरचना को देखकर आप भौंचक न हों समयांतर में इस आर्थिक संरचना को आप समझ पाएंगे की कहीं यह महामंदी एक आर्टिफीशियल तो नहीं ?
कल जब मुझे धन को तरसाती तेरस के अवसर पर टेलीफोन कंपनियों ,व्यावसायिक प्रतिष्ठानों,और अमीर मित्रों ने “धन-तेरस ” की शुभकामनाएं दीं तो मुझे लगा आज़कल आमंत्रण के तरीके कितने अपने से हो गए हैं चलो किसी एक प्रतिष्ठान पे चलें सो फर्निचर वाले भाई साहब की दूकान पे पहुंचा जो मुझे जानता था । यानी की उसे मालूम था कि मैं ओहदेदार हूँ सो मुझे देखते ही सपने सजाने लगा मैंने पूछा : भई,पलंग ……….?
मेरे पीछे चिलमची लगा दिए गए पलंग दिखाने पूरी इस हिदायत के साथ कि :-”भई,घर में जाएगा पलंग बिल्लोरे जी कस्टमर नहीं हैं हमाए मित्र “
मालिक के मित्र के रूप में हमको 5000/_ से 50000/_ वाले एक से एक पलंग दिखाए गए सबकी विशेषताएं गिनें गईं और हर बार कहा सा‘ब “फ़िर आप सेठ जी के मित्र हैं हम कोई ग़लत चीज़ थोड़े न बताएंगे “
हम ठहरे निपट गंवार सो हमको घर में पड़े पुराने पलंग की याद आ गयी आनन् फानन हम बोल पड़े :-यार जैन साब,पिछले बार जो पलंग हम ले गए थे तीन साल पहले उसको वापस ले लो डिफरेंस दे देता हूँ ?
ये पूछते ही मेरा रेपो रेट धडाम से नीचे । कुछ कस्टमर मुझे घूर के देखने लगे । एक महिला जिनको मैं अच्छी तरह से जानता था कि वे किस अफसर की बीवी हैं मुझे लगभग घूर रहीं नज़र आयीं जैसे उनके मुंह में मछली के स्वादिष्ट व्यंजन के साथ मछली का काँटा आ गया हो । हमारे प्रति दुकान के सारे लोगों का नज़रिया ही बदल गया ।
मनीष शर्मा,जहाँ रहतें हैं वहाँ की सुन्दरता देखने कालेज के दिनों में हमारा खूब आना जाना हुआ करता था , वहीं उसी गली में चौरे फुआजी जब तक रहे तब तक अपन बच्चे थे जब वे रिटायर होकर हरदा के वाशिंदे हुए तो अपन कालेज में आ गए थे और मित्र अरविन्द सेन के घर आने जाने लगे .बिना डरे श्रीनाथ की तलैया के नुक्कड़ पे चाय के टपरे से “गंजीपुरा के चूढ़ी मार्केट के अनिद्य सौन्दर्य का रसास्वादन करते निगाहें से “
हम मित्रों को वो दिन याद आ ही जाते हैं आवारा गर्दी के वे दिन और अपनी बेवकूफ़ियों पे ठहाका लगाते हम लोग अब उन दिनों को याद करते हैं . क्या सही कहा है पंडित केशव पाठक ने
” ये आई जवानी , वो छाई जवानी ,
जवानी,- के दरिया की जिसमें रवानी !!
खानी ! के जिसकी हर एक मौजे,-तूफ़ान,
किया करती,पत्थर के दिल को भी पानी !!
[स्वर्गीय केशव प्रसाद पाठक,एम. ए.]
यहीं रहने वाले मनीष शर्मा को लेकर हम निकले सदर काफी हाउस के लिए गोरखपुर से“ओशो”को पकड़ना था !
“सदर का काफी हाउस में”
मनीष शर्मा जी और मेरे कामन मित्र सलिल समाधिया के साथ तय था आज का दिन कई पुराने हिसाब चुकाने थे इस धनतेरस को पड़े रविवार का फायदा उठाए बिना हम भी न रह सके सारे मसाले टच किए चर्चा मंडली ने उसमें प्रमुख मसला था “बावरे-फकीरा एलबम “की लांचिंग ।
मित्रों को मैंने बताया :- एक बरस से ज़्यादा टाइम खोटी करके आज जब भी मैं एलबम की लांचिंग की बात करता हूँ तो हमेशा कोई न कोई नकारात्मक कारण सामने आ जाता [ला दिया जाता..?] यहाँ तक ठीक है किंतु जब मस्तिष्क ने सारे एंगल से देखा तो लगा करता था -कहीं पप्पू फ़ैल न हो जाए ? तभी टी. वी . पर विज्ञापन गूंजा “पप्पू,पास हो गया ” सच,जिसे आप पप्पू समझ के माखौल उडातें हों तो सतर्क हो जाइए “पप्पू ही पास होते हैं !” किंतु अब जिस रात से मन ने संकल्प ले ही लिया कि चाहे कुछ भी हो हम तो कर गुज़रेंगेउस रात मैं गहरी नींद सोया .
दिवाली के बारे में सलिल भाई के विचार बिलकुल साफ़ हैं …..”मुझे बचपन से ही ये त्यौहार,………….! “क्योंकि यह केवल आत्म प्रदर्शन , लक्ष्मी की वृद्धि के लिए किया जाने वाला त्यौहार है . गरीब के लिए इसमें केवल पीडा ही होती है, मुझे लगता है की कोई क्रिया यदि विध्वंसक प्रतिक्रया को जन्म दे तो मानिए क्रिया का उद्येश्य जो भी हो उसमें हिंसा का तत्व मौजूद है .
जबकि मनीष शर्मा जी का मानना था की -”हर त्यौहार के साथ एक अर्थ-तंत्र “संचालित होता है . जिससे जुड़े होते हैं रोज़गार .
उधर दो सेट युवक युवतियों के पधारने से काफी हाउस का मौसम रोमांटिक सा होता जा रहा था जोड़े दो थे फ़िर धीरी-धीरे जोड़े पे जोड़े “धूम एक, धूम दो, धूम तीन………………. “आते चले गए चालीस के पार वाले आहें भर रहे थे तो पचपन वालों नें तो समय को गरियाना शुरू कर दिया :-”क्या ज़माना आ गया है .बताओ………..?” उसका वो साथी जो मुफ्त-काफी का स्वाद ले रहा था बोला:-”क्या कहें भैया, ज़माना ख़राब है “
समय आगे खिसक रहा था , पहले आए दो जोड़े में से एक युवती आगे आकर पचपन वाले दादू के पास पहुँची दादू घबरा गए सोचने लगे इसने सुन ली लगता है उनकी बात .“दादू,प्रणाम,पहचाना नहीं ?”
“……………………………?”
“दादू,मैं, अनुजा,आपके कजिन की बेटी , मिलिए ये मेरे एम. डी. समीर जी ये दीपा,ये कौशिक दीपा के हसबैंड “
दादू जिस ऊंचाई से गिरे हैं हजूर हम तीनों मित्रों ने देखा ! जोडों के जाने के बाद दादू ने कहा “अनुजा समीर की जोड़ी कैसी रहेगी ?”
मुफ्त खोर साथी बोला :-”गज्जू से बात करो दादा,ये ठीक है, “
****************************************
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं
****************************************
14 टिप्पणियां:
आपके पूरे परिवार और मित्रगण सहित आपको भी परम मंगलमय त्यौहार दीपावलि की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
संगीता जी
प्रथम टिप्पणी के लिए आभार
आपको भी दीवाली की शुभ कामनाएं
आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभकामनाएं।
सभी जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें यही प्रभू से प्रार्थना है।
आप को भी
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीपावली आप और आपके परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए!
दीपावली के पावन पर हार्दिक शुभकामना .
acha hai,ummed hai charcha main koi oujale kee kiran is diwali ko jagmag karengi,apan to kanhte din main holi rat diwali roj manayen matwale.
गगन शर्मा जी, दिनेशराय जी महेद्र मिश्रा,मनीष शर्मा जी ,सभी को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं
भाई गिरीश जी
एकल यात्रा का कुछ और ही आनंद है
आपने एक साथ कित्ते तीर चला दिए समझ आ तो रहा है
दीपावली के बाद ही चीर फाड़ करूंगा अभी तो काम में व्यस्त हूँ
दीपावली की शुभ कामनाएं
ब्लॉग पत्रकार जी
एक बात कहूं आप ही नहीं आज मेरे कई मित्रों ने फोन कर
मुझसे गहरी बातों की तपास की है
सभी मित्र प्रतीक्षा करें समय शायद आ जाएगा जल्द ही दीवाली की शुभ कामनाएं
हमें भी मिला देना जबलपुर के ओशो महाराज जी से...
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
बड़े वो तो जबलईपुर में मिलेगें
आना तो हम लोग द्वारका के समोसे
राम भरोसे की रसमलाई बडकुल की
जलेबी खाएंगे
ओशो से मिलेंगे
परसाई के नाम
जय दीवाली
bhai
kamal kar diya
heppy bhai dooj
wah bhai wah
aap unheen salil ji kee baat kar rahen hain jo gorakhpur men rahaten hain
sahee gazab aadamee hai
एकदम बजा फ़रमाया सलिल जी और गिरीश जी। सबको दीपावली की शुभकामनाएँ।
एक टिप्पणी भेजें