13.10.20

कोविड19 टोटल लॉक डाउन संस्मरण भाग 01


न दैन्यं न पलायनम्
आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में —
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’
महात्मा अटल की यह कविता मन से भय का अंत कर देती है ।  
   महासंकट का दौर जिसे हम अज़नबी शत्रु कह सकते हैं कोविड19 का दौर है। इसके पहले हम बहुत सामान्य जीवन में  थे । सामान्यता इतनी कि समझ ही नहीं पा रहे थे कि जीवन क्या है ? 
वास्तव में जिसे हम अपना अधिकार समझने की भूल कर बैठे थे वह प्रकृति का उपहार था। एक सुबह अचानक 4:17 पर नींद खुलती है खुली हुई खिड़की शरीर को तुरंत ताजगी का एहसास कराती है।
ब्रह्ममुहूर्त कि इस अवधि में सुबह का आनंद कुछ इस तरह मिला...
अचानक संपूर्ण वातावरण चिर परिचित सा लग रहा था जिसका एहसास हमने कभी  किया फिर अचानक उस प्रकार की सुहानी सुबहों के एहसासों का याद आने लगा जिसे हम भूल गए थे रात देर तक सोना स्वाभाविक रूप से नींद सूर्योदय के उपरांत खुलने का अभ्यास सा हो गया था कोविड के पहले ।
  लाला रामस्वरूप पंचांग के अनुसार निश्चित  समय पर पूर्व दिशा का आकाश लालिमा लेने लगता था। घर के सामने से खड़खड़ करती हुई साइकिल पर सवार पेपर वाला हर घर के आंगन में पेपर पटक रहा था.. किसी आँगन में खट्ट तो किसी छत पर टप की आवाज के साथ अखबार गिरते तो कहीं  गेट में फंसा कर आगे बढ़ जाता अखबार वाला । न कोई अखबार उठाने की जल्दबाजी में देखा गया न कोई बेताब नज़र आया खबर के वास्ते । सब को डर था पेपर में कोरोना वायरस तो नहीं आया ? 
   काली नन्ही चिडियों वाला जोड़ा अपने अंडे सेता था । ड्रॉइंग रूम के बाएं जंगले के एन  सामने ! उनसे मुझे संवेदित प्रेम हो गया उनके अंडे भी स्नेह की वजह बने । पत्नी और बेटी को ज्यों ही बताया कि काली चिड़िया या चिड़े  में से कोई एक को दाना लेने जाना होता है । तब कोई दूसरा उस घोंसले की तकवारी करता है । यह सुनते ही दौनों ने एसी के ऊपरी भाग में पानी दाना की व्यवस्था सुनिश्चित कर दी । ताकि चिड़ा चिड़िया दाना लेने न जाएं । पर ऐसा इस लिए न हुआ क्योंकि जोड़ा मांसाहारी भी था कुछ दिन में बच्चों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं थीं । अन्न से अधिक प्रोटीनयुक्त आहार बच्चों को देना शायद ज़रूरी ही होगा । तभी तो उड़ती हुई तितलियाँ या उन जैसे कीट को कलाबाजियां खाकर चिड़ियों वाला जोड़ा लपक लेता था । कई बार उनको दूर जाना ही  पड़ता था । 
  वकील साहब के आंगन वाले आम के पेड़ से आने वाली गिलहरियों से लॉक डाउन के अगले दो तीन दिन में लगभग दोस्ती हो गई मुझे देखते ही चुखर चुखर चीखतीं । एक दिन देर रात तक जागने की वजह से उनका इतना अधिक शोर सुना तब अचानक 7:30 बजे नींद खुली पता लगा गिलहरियां बार बार छत की बाउंड्री वाल पर हुल्लडबाज़ी कर रहीं थीं । उनके लिए पानी और बिस्किट के टुकड़े कुछ अनाज रखते ही वे दूर से टकटकी लगाए देखतीं रहीं । देखना क्या मुझे कह रहीं थीं अब रास्ता नापो पर हटो हमें खाना है । 
मेरे दूर हटते ही एक साथ 4 गिलहरियां दाने-पानी पर टूट पड़ीं ।
 कुत्ते मोहल्ले वाले मित्र बन गए थे सच आज भी हैं । टोटल लॉक डाउन में  अपने छत से 7 बजे तक गली के कुत्तों के लिए रोटी फैंकता और पुकारता - काय इतै आओ जे रोटी खालो !
   वे फौरन मेरी ओर देखते अंगुली का इशारा समझते कि रोटियां किधर फैंकी हैं  और  वहीं लपकते जहाँ मैं रोटी फैंकता । 
 एक जोड़ा काली चिड़ियों, गिलहरियां, कुत्तों, से संवादी होना कोविड19 टोटल लॉक डाउन में ही हुआ । अच्छा लगा । प्रेम बंटा विश्वास बढ़ा । 
   हम तुम ये वो यानी हम सब निर्विकारी हो गए थे । ध्यान की क्रिया को बल मिला । मेरे गुरुभाई अनन्त पांडेय कहते हैं कि - दिन भर में 16 हज़ार विचार आते हैं ध्यान भंग हो जाता है... ! अंतू भाई दुनियादारी के चक्कर में आध्यात्मिक चिंतन भूले हुए हम कोविड19 में पुनर्जागरण के दौर में आए हैं । 30 बरस बाद...सच यही था । लोग भी यही कह रहे हैं । 
सलिल सहमत हैं कि - "मौन रहकर बहुत कुछ हासिल किया सबने मिलकर !"
   सलिल आगे कहते हैं- खोया भी बहुत संवाद सम्प्रेषण खो दिया । भाई आपने भी सृजन कम ही किया है इस दौर में ?
हाँ, बहुत कम हुआ था सृजन पर इस दौर में कुछ नया भी मिला जैसे साग में दाल में हींग और हल्दी क्यों जरूरी है । किचिन सीखा, टॉयलेट की सफाई सीखी, उपेक्षित कागज़ों तक पहुंचा ये सत्य है कि लिखा कम गया । उतना अवश्य लिखा जितना पी आर ओ आनंद जैन साहब को भेजना चाहा ! 
  मौलिक सृजन 10 फीसदी तक रह गया । मौन का प्रतिशत 50% से कुछ अधिक बढ़ गया था उन दिनों । कोरोना के दुनियाँ भर के आंकड़े भयानक रूप से डरा रहे थे । 
  कनाडा वाला भतीजा अमेरिका में रह रही बहू और उनकी बेटी, एम्स्टर्डम वाला भतीजा उसकी बहू और अपनी  बेटी भतीजी सबके बारे में चिंता उतनी ही थी जितनी सड़क पर पैदल लौटते मज़दूरों की । 
  फिर सोचने लगता कि- ईश्वर इन सबका रास्ता छोटा हो सकता है क्या । 
  फिल्मी कलाकार को मज़दूरों की मदद करते देख जगत बहादुर अन्नू सुबोध पहारिया जी और मुहल्ले वाले  आरएसएस के स्वयम सेवकों की बिना प्रचार की सेवा देखी तो पता चला कि हमारे रिश्तेदार भी चुपचाप भोजन बना बना कर भाई आशीष दीक्षित जी (ज्वॉइंट डायरेक्टर सोशल जस्टिस)  को दे रहे हैं । प्रवासियों को भोजन कराना प्रशासन की ज़िम्मेदारी थी । लेकिन अचानक कब जनता ने इसे अंगीकार किया समझने में समय लग गया । हमने क्या किया इसका उल्लेख नहीं कर सकता । हाँ तो बता रहा था कि - इंसानियत का सबसे आइकॉनिक दौर था कोविड का सम्पूर्ण लॉक डाउन । लग रहा था सतयुग आ गया क्या ? या हम बहुत ईमानदार हो गए । अचानक भावुक होना । अश्रुपूरित भाव से महान अवतार को याद करना । ब्रह्म की कल्पना में रोंगटे खड़े हो जाना आम बात हो गई । 
अक्सर सुबह से महामृत्युंजय मंत्र का MP3  साउंड बॉक्स से कनैक्ट कर  लोगों के लिए छज्जे पर बजाना लगभग रोजिन्ना की आदत सी हो गई थी । हम सब पर रोज़ विचारों का उतरना होता है । यह अवस्था वैचारिक अवतरण की अवस्था है । इसे रोज़ उसी गति से अगर लिखो तो आकाशी पुस्तक तुम हम सब बना सकते हैं । 
अब कुछ दिनों के बाद ध्यानस्त होना आसान हो गया था । कई बार लगा मृत्यु कभी भी आ सकती है । छोड़ दो विकारों को छूटे भी विकार.. ! 
  श्मशान का वैराग्य क्षणिक से दीर्घकालिक हुआ । जो साहजिक होता चला गया । अब पद प्रतिष्ठा नाम कुल श्रेष्ठता के भाव पता नहीं किस पोटली में बंध गया  मुझे नहीं मालूम भगवान न करे वो मुझे वापस मिले।
इस बीच सुशांत ने मृत्यु का वरण किया या जो भी हो वो हमारे बीच से गया बुरा इस लिये लगा कि MS Dhoni इस दौरान दूसरी बार देखी थी । अभिनय अच्छा लगा फैन हो गया था । सुशांत सिंह के लिए चैनल्स बावले हो गए रहा सहा टीवी से मोहभंग हो गया । पर यूट्यूब पर ताहिर गोरा डॉक्टर शारदा  से भेंट हुई बेहतरीन समाचार एवम समीक्षाऐं मेरी रुचि के अनुकूल यानी  साउथ एशियन राष्ट्रों पर केंद्रित सोशियो इकोनॉमिक मुद्दे  । ये बावले टीवी चैनल्स जब भारत चीन को मुगलिया दौर की तरह मुर्गों की मानिंद  लड़वा रहे थे मुझे मन ही मन तो कभी खुलकर हंसी आ जाती थी । सिर्फ हंसने के लिए टीवी चलाता था । वरना स्मार्ट tv पर यूट्यूब देखने का मज़ा ही कुछ और है ।
   सुधिजन आपके एहसास इसी के इर्दगिर्द थे न । कोविड आज भी डराता है । मृत्यु से भय नहीं है पर दुःख ये रहेगा कि अगर कुछ हुआ तो मित्रों को शमशान वैराग्य की अनुभूति न हो सकेगी । अरे हाँ बेफिक्र रहो सबकी सलामती के लिए काल से प्रार्थनारत रहो । 
 दुर्भाग्य के दौर में सौभाग्य के पथ मिलते हैं । कुछ अहंकारी परिजन टूट गए छिटककर दूर करना हम भी चाहते थे । जो हुआ अच्छा हुआ । 
         कृष्ण ने शास्त्र सुनाकर शस्त्र उठाने को कहा पार्थ ने वही किया । 
न दैन्यम न पलायनम एक अटल सत्य है मुझे लगता है कि फ़िज़ूल में रिसते हुए रिश्तों की पोटली सर पर मैंला ढ़ोने जैसी कुप्रथा है । 
   आईना भी दिखाते चलो - एक घटना अभी अभी घटी ... अनावश्यक एकात्मता का अभियान छेड़ दिया कुछ परतें उधेड़ दीं बुरा लगा कुछ लोगों को । लामबंद जत्था आक्रामक हो गया तो "इहाँ कुम्हड़ बतियाँ कोउ नाहीं , जो तर्जनी देखहिं मर जाहिं ।।" की तर्ज़ पर अडिग रहा आज भी हूँ । आप भी अडिग रहें भारत की एकात्मता पर किसी आक्रमण को मत सहो । तुम्हारी सनातनी संस्कृति अखण्ड है अविरल है । कह दो फैसला तो ब्रह्म करेगा न वही सबसे बड़ा निर्णायक है । "एकात्म भारत ही विश्वगुरु के पथ पर फिर से चलेगा वर्ना असंभव है ।"

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