27.7.23

मानवता के आइकॉन कलैक्टर टी अंबाजगेन : श्री महेन्द्र शुक्ला की फेसबुक पोस्ट

टी अंबाजगेन कलेक्टर साहब ,धन्य है वे माता-पिता  जिन्होंने इन्हे मानव सेवा के संस्कार दिए .!

80 साल की बूढ़ी माता घर में बिल्कुल अकेली। कई दिनों से भूखी। बीमार अवस्था में पड़ी हुई। खाना-पीना और ठीक से उठना-बैठना भी दूभर। हर पल भगवान से उठा लेने की फरियाद करती हुई .!

 खबर तमिलनाडु के करूर जिले के कलेक्टर टी अंबाजगेन के कानों में पहुंचती है। दरियादिल यह आइएएस अफसर पत्नि से खाना बनवाते है फिर टिफिन में लेकर निकल पड़ते है, वृद्धा के चिन्नमालनिकिकेन पट्टी स्थित झोपड़ी में .!

जिस बूढ़ी माता से पास-पड़ोस के लोग आंखें फेरे हुए थे, कुछ ही पल में उनकी झोपड़ी के सामने जिले के सबसे रसूखदार अफसर मेहमान के तौर पर खड़ा नजर आता है .!

 वृद्धा समझ नहीं पातीं क्या मामला है डीएम कहते हैं-माता जी आपके लिए घर से खाना लाया हूं, चलिए खाते हैं .!

वृद्धा के घर ठीक से बर्तन भी नहीं होते तो वह कहतीं हैं साहब हम तो केले के पत्ते पर ही खाते हैं। डीएम कहते हैं-अति उत्तम। आज मैं भी केले के पत्ते पर खाऊंगा .!

 किस्सा यही खत्म नहीं होता चलते-चलते डीएम वृद्धावस्था की पेंशन के कागजात सौंपते हैं। कहते हैं कि आपको बैंक तक आने की जरूरत नहीं होगी, घर पर ही पेंशन मिलेगी डीएम गाड़ी में बैठकर चले जाते हैं, आंखों में आंसू लिए वृद्धा आवाक रहकर देखती रह जातीं हैं .!

18.6.23

अफगानी तालिबान को बुद्ध याद आए ...!

 

 साभार गूगल फोटो 


मुल्ला उमर अब एक इतिहास बन कयामत के फैसले का इंतज़ार कर रहा है, उधर तालिबान कुछेक पुराने कामों पर पुनर्विचार कर रहा है. इस क्रम में 5वीं सदी में बने बामियान के बुद्ध इनको याद आ रहे हैं हैं. बामियान में दो बुद्ध मूर्तियाँ 2001 तक मोजूद थीं.   मूर्तियों में पहली बड़ी मूर्ती 55 फीट  जिसे सलसल कहा  गया तथा दूसरी मूर्ती समामा जो 37 फीट की  थी. इन पहाड़ियों  में अनेकों गुफाएं हैं जिनका उपयोग यात्री गण (व्यापारी एवं बौद्ध भिक्षुक तथा अन्य लोग ) आश्रय स्थल के रूप में करते थे.

इससे पहले कि हम इस विषय पर कुछ बात करें सबसे पहले बुद्ध का बामियान से सम्बन्ध कैसे बना इस इतिहास पर एक दृष्टि डालते हैं.

*बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं का  इतिहास*

माना जाता है कि सिल्क रोड जिसकी लम्बाई 65000 किलोमीटर है  का निर्माण 130 ईसा पूर्व किया गया था.  यह मार्ग चीन से भारत होते हुए अफगानस्तान, ईरान(बैक्ट्रिया जिसे बाख़्तर या तुषारिस्तानतुख़ारिस्तान और तुचारिस्तान भी कहा गया है  ) , तुर्की होते हुए यूरोप पहुंचता है. इस मार्ग का निर्माण किसने कराया इस की पुष्टि हेतु कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं हैं.

इस मार्ग ने अंतर महाद्वीपीय संबंध को स्थापित किया है. सिल्क रुट का चीनभारतमिस्रईरानअरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा। 

 इस मार्ग से व्यापार के अलावा,  ज्ञानधर्मसंस्कृतिभाषाएँविचारधाराएँभिक्षुतीर्थयात्रीसैनिकघूमन्तू जातियाँऔर बीमारियाँ भी फैलीं। व्यापारिक नज़रिए से चीन रेशमचाय और चीनी मिटटी के बर्तन भेजता थाभारत मसालेहाथीदांतकपड़ेकाली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोनाचांदीशीशे की वस्तुएँशराबकालीन और गहने आते थे। हालांकि 'रेशम मार्गके नाम से लगता है कि यह एक ही रास्ता था वास्तव में बहुत कम लोग इसके पूरे विस्तार पर यात्रा करते थे। अधिकतर व्यापारी इसके हिस्सों में एक शहर से दूसरे शहर सामान पहुँचाकर अन्य व्यापारियों को बेच देते थे और इस तरह सामान हाथ बदल-बदलकर हजारों मील दूर तक चला जाता था। शुरू में रेशम मार्ग पर व्यापारी अधिकतर भारतीय और बैक्ट्रियाई थेफिर सोग़दाई हुए और मध्यकाल में ईरानी और अरब ज़्यादा थे। रेशम मार्ग से समुदायों के मिश्रण भी पैदा हुएमसलन तारिम द्रोणी में बैक्ट्रियाईभारतीय और सोग़दाई लोगों के मिश्रण के सुराग मिले हैं।

इस रोड माध्यम से एशियाई अखंड भारत से सर्वाधिक व्यापार हुआ करता था। किंतु हिंदूकुश पहाड़ी के क्षेत्र में  जनजाति कबीलो द्वारा व्यापारियों के साथ लूटपाट की जाती थी। भारतीय एवं चीनी व्यापारियों ने इन लोगों को भी अपने व्यापार का साझीदार बनाया। बौद्ध मत  के प्रचार प्रसार से प्रभावित होकर हिंदूकुश पहाड़ी के क्षेत्र में लोगों ने बुद्ध की दो बड़ी प्रतिमाएं स्थापित कर दी इससे व्यवसायिक एवं सांस्कृतिक एकात्मता का सिलसिला भी प्रारंभ हो गया। कहते हैं कि कुषाणों ने बुद्ध की प्रतिमाओं को स्थापित कराया था ताकि भारतीय एवं चीनी व्यापारियों के साथ संबंध प्रगाढ़ हो सके ।      

 विश्व धरोहर को पुन: 2022   संरक्षित करने की पेशकश करने की इच्छा नए तालिबान ने की है, जबकि तालिबान का पुरोधा मुल्ला उमर इन मूर्तियों को खत्म करके बेहद प्रसन्न हुआ था.

*क्या वजह है इस पेशकश की ..!*

दरअसल इस क्षेत्र में स्थित मैंस अनसक इलाके में  में तांबे का भंडार है. नए तालिबान अपनी सत्ता चलाने तथा रियाया के लिए रोटी की व्यवस्था करने के लिए धन जुटाना चाहता है. चीन इस के लिए विनियोजन को तैयार है अत: धन कमाने के लिए चीन के सामने तालिबान ने यह पेशकश की है.   

*कैसा  है भारतीयों के प्रति तालिबानों का नजरिया एवं व्यवहार ..!*

इसमें को दो राय नहीं कि अफगानी अवाम एवं स्वयम तालिबान भारत के साथ अपनापन रखते हैं. वे भारतीयों से जिस गर्मजोशी एवं आत्मीयता से मिलते हैं उतनी गर्म जोशी उनके दिल में पाकिस्तानियों के लिए नहीं हैं. हाल में यू ट्यूब पर कुछ भारतीय व्लागर्स के वीडियो देख कर तो यही लगा.

*कुल मिला कर श्री नरेन्द्र मोदी का रूस के राष्ट्रपति पुतिन को दी गई सलाह है जिसमें वे कहते हैं कि – “आज का दौर युद्धों के लिए नहीं है.*  

     


5.6.23

बालासोर रेल हादसा: दुर्घटना या साजिश ?


आलेख : गिरीश बिल्लोरे 
  बालासोर रेल हादसे के बाद चर्चा यह है कि यह हादसा दुर्घटना है अथवा यह किसी साजिश का परिणाम है । लगातार चलने वाले चैनलस, अपना अपना कैलकुलेशन अपने-अपने एंगल से आपके सामने रख रहे हैं । अखबार अपनी अपनी बात अपने अपने तरीके से कह रहे हैं।
    सबको अपनी अपनी बात कहने का हक है परंतु सबको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की विषम परिस्थिति में किसी भी तरह का पैनिक जनता के बीच में न फैले।
   इस संबंध में रेलवे  के सुरक्षा आयुक्त द्वारा अपने हिस्से का कार्य पूर्ण किया जा चुका है अथवा नियमानुसार पूर्ण होगा भी ऐसा सबको भरोसा है। परंतु रेलवे बोर्ड की सलाह पर जांच सीबीआई को करने के लिए सौंपा जाना किस बात की संभावना की ओर संकेत है कि-" इस घटना में कोई न कोई संदिग्ध परिस्थिति अवश्य ही उत्पन्न हुई है या आंतरिक सुरक्षा में कोई सेंधमारी की  संभावना व्यक्त की गई है , मीडिया समाचारों की माने तो आगे रेलवे बोर्ड इस घटना की जांच सीबीआई से कराने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा है । 
  इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि-" मौजूदा टेक्निकल फैलयुर तकनीकी असफलता / किसी न किसी टेंपरिंग या बाहरी हस्तक्षेप से होना संभव माना जा रहा है।" 
  और अगर ऐसा हुआ तो ऐसी घटना विश्व की सबसे व्यवस्थित एवं बड़ी रेल संचालन प्रणाली के लिए खतरे की घंटी है। अर्थात भारतीय रेल परिचालन प्रणाली में आतंकवादी गतिविधियों का प्रवेश संभव है। यह तो भविष्य में स्पष्ट होगा परंतु 8 फरवरी 2023 को मैसूर डिविजन में एक गाड़ी 12649 के कुलीज़न की  ऐसी ही घटना पर समय रहते नियंत्रण करने की जानकारी प्राप्त हुई है। 
यहां बालासोर पहुंचने वाली ट्रेन अपने को छोड़कर लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी वाली ट्रैक पर चली जाती है। जिससे उसके डब्बे एक अन्य मेन लाइन तक बिखर जाते हैं। जिससे कोलकाता जाने वाली एक ट्रेन को गुजारना था। और हुआ वही
बेंगलुरु कोलकाता सुपरफास्ट एक्सप्रेस उस ट्रक से गुजरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गई तथा दुर्घटनाग्रस्त बोगियों में सवार पैसेंजर्स को और अधिक नुकसान पहुंचा।
मालगाड़ी से टकराने वाली पैसेंजर ट्रेन किन कारणों से अपना ट्रैक बदलती है  इस पर अपना मत व्यक्त करते हुए रेल विभाग के एक इंजीनियर सुधांशु मणि बताते हैं कि-
[  ] रेलगाड़ी केवल रेल लाइन की सेटिंग के अनुसार चलती है। ड्राइवर यानी लोको पायलट अपने मन से किसी भी ट्रैक पर गाड़ी को नहीं ले जा सकते।
[  ] यह अवश्य है कि आसन्न खतरे को देखकर रेल ड्राइवर अर्थात लोको पायलट गाड़ी की गति को कम या स्थिर अवश्य कर सकते हैं।
[  ] इस दुर्घटना का प्रारंभिक कारण ट्रेन का मालगाड़ी वाले ट्रैकिंग प्रवेश कर जाना रहा है। वास्तव में ट्रेन लूप लाइन में रेल की पटरी के सेट हो जाने के कारण चली गई। अर्थात पटरी की सेटिंग में किसी भी तरह की मानवीय अथवा यांत्रिकीय त्रुटि के कारण अथवा जानबूझकर किए गए प्रयास से दुर्घटना हुई।
[  ] यह सच है कि-" लूप लाइन में ट्रेन को ले जाने के लिए ड्राइवर को सिग्नल नहीं था। परंतु दुर्घटना के फुटेज देखने से लगता है कि-" ड्राइवर अपनी गाड़ी को रोक पाने में असफल रहे ।
[  ] परंतु अभी तक यह तथ्य सामने नहीं आया है कि-" इनकी गति कितनी थी?" स्टेशनों पर न रुकने वाली ट्रेन की गति के संबंध में विमर्श आवश्यक है।लोको पायलट को भी इसी आधार पर क्लीन चिट नहीं दी जा सकती 
  आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2021 तक भारत में पटरी को छोड़ने के मामले 1127 रिपोर्ट हुए हैं। भारतीय रेल परिचालन व्यवस्था को दुर्घटना रहित बनाने के लिए कवच नामक एक कार्यक्रम को भारतीय रेल बजट में स्थान दिया गया है . यह कार्यक्रम रिसर्च एवं डेवलपमेंट के साथ-साथ उन सभी प्रयासों को लागू करेगा जिससे कुलिजन यानी आमने-सामने की भिड़ंत अथवा अन्य दुर्घटनाओं को रोका जा सके। इस कार्यक्रम में तेजी लाना आवश्यक है।
   अंततः भारत सरकार एवं भारतीय रेल विभाग को सुरक्षा के लिए r&d Research And Development तथा टेक्निकल सपोर्ट देने वाले ऐसे संस्थान की आवश्यकता पर कार्य करना चाहिए जो रेल दुर्घटनाओं को रोक सके। वैज्ञानिकों शोधकर्ताओं को भी इस दिशा में निरंतर काम करने की तथा सरकार को मदद करने की जरूरत है।

   
  

15.5.23

शिक्षा परीक्षा, रुजल्ट पर पत्रकार श्री शम्भूनाथ शुक्ला जी



एक बार अपन ११वीं में लुढ़के और एक बार १२वीं में। क्योंकि साइंस और मैथ्स अपने पल्ले नहीं पड़ती थी। अगर आर्ट्स में होते तो अपन पक्का फर्स्ट क्लास निकल जाते। फिर साइंस से मन उचट गया। लेकिन घर में एक ही रट कि “साइंस नहीं पढ़ी तो क्या घंटा पढ़ा!” 
कुछ दिन पंक्चर जोड़ने की दूकान खोली। नाम रखा, पप्पू पंक्चर। हम गोविंद नगर में CTI के पास बैठते। वहाँ ढाल थी। लोग आते और पंप से हवा ख़ुद भर कर चले जाते। तीन दिन में एक चवन्नी कमाई वह भी खोटी निकली। फिर क़ुल्फ़ी बेची। कुछ में हम टका भरते और पाँच पैसे की बेचते लोगों से कहते कि क़ुल्फ़ी ख़ुद निकालो। दुर्भाग्य कि सारी टका वाली क़ुल्फ़ी ही निकल गईं। पास धेला नहीं आया। फिर बकरमंडी में कार की बैटरी रिचार्ज करने का काम सीखा पर एक दिन छुट्टन मियाँ, जो अपने उस्ताद थे, ने गरम-गरम तारकोल हाथ पर डाल दिया। चमड़ी जल गई। वह भी छोड़ दिया। वहाँ जितना वेतन मिला, उससे बाटा की एक सैंडल ख़रीदी, जो 1973 में 26.99 रुपए की आई थी। इसके बाद दैनिक जागरण में एक बाबू टाइप जॉब निकली, इंटरव्यू के बाद पाया कि किसी अग्र-बाल का चयन हो गया। वेतन 200 रुपए था। तीन साल बाद उसी दैनिक जागरण में मुझे बुला कर सब एडिटर की जॉब दी गई। वेतन 700 रुपए था। 
इसलिए भेड़ की तरह डिग्री लेने से कुछ नहीं होता, बच्चे पर दबाव मत डालो। उसे कुछ मन का करने दो। कम वेतन पाएगा, लेकिन ख़ुश तो रहेगा। हमारे दोस्त लाजपत सेठी के बेटे ने दो-तीन साल पहले एक स्टार्टअप खड़ा किया। आज की तारीख़ में उसका टर्न ओवर 2800 करोड़ का है।
जिनके बच्चे फेल हो गये हों, वे दुःखी न हों। वह हो सकता है उन टॉपर बच्चों से अधिक योग्य निकले, जिनके कल फ़ोटो छपेंगे। न भी निकला तो संतोष करो कि बुढ़ापे में वही श्रवण कुमार बन कर सेवा तो करेगा।

12.5.23

एक सच्चा इंसान : तारेक फतेह

एक सच्चा इंसान : तारेक फतेह
जन्म 20 नवम्बर 1949
कराची, सिंध, पाकिस्तान
मृत्यु 24 अप्रैल 2023 (उम्र 73)
राष्ट्रीयता: कनाडाई
जातीयता: पंजाबी
व्यवसाय- राजनैतिक कार्यकर्ता, लेखक, प्रसारक
तारिक फतेह जी से मेरी ट्विटर पर ही संक्षिप्त बातचीत कुछ ही दिनों पहले शुरू हुई थी अक्सर ट्विटर स्पेस पर उनका मिलना अच्छा लगता था। इतना तो स्पष्ट व्यक्ति कभी भी पाकिस्तान जैसे मुल्क में रह ही नहीं सकता।
वे धर्म के प्रति बेहद तत्व ज्ञानी की तरह थे। और विशेष रुप से पाकिस्तान की जनता के जीवन स्तर उठाने के लिए सतत कोशिशें करते रहे किंतु पाकिस्तान की प्रोआर्मी राज्य प्रबंधन ने उनको ही उठाने के लिए बंदोबस्त कर दिए।
मैं उन पर इसलिए आकर्षित नहीं था कि वे किसी धर्म विशेष के संदर्भ में बात करते हैं बल्कि इस कारण आकर्षित था, क्योंकि  कि वे चाहते थे सांस्कृतिक निरंतरता जब एक सी है तो हमें साथ साथ चलने में क्या आपत्ति है ? 
     सनातनी व्यवस्था के प्रति बेहद सकारात्मक रूप से संवेदनशील थे । 13 अप्रैल से 29 अप्रैल 2023 तक मैं स्वयं परेल मुंबई स्थित ग्लोबल  अस्पताल में आईसीयू में भर्ती था दुनिया में क्या चल रहा है इसकी जानकारी न मिल सकी। बेहद दुख हुआ यह जानकर....
    अनवरत श्रद्धांजलि ओम शांति शांति

11.5.23

केदारनाथ मंदिर : अलौकिक स्थापत्य का नमूना लेखिका पूर्णिमा सनातनी


केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक।
आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था।
यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है।
केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है।
एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है।
इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं।
यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर एक कलाकृति है I कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नही जा सकते I
फिर इस मन्दिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया?
ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है ?
1200 साल बाद, भी जहां उस क्षेत्र में सब कुछ हेलिकॉप्टर से ले जाया जाता है I JCB के बिना आज भी वहां एक भी ढांचा खड़ा नहीं होता है। यह मंदिर वहीं खड़ा है और न सिर्फ खड़ा है, बल्कि बहुत मजबूत है।
हम सभी को कम से कम एक बार यह सोचना चाहिए।
वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि यदि मंदिर 10वीं शताब्दी में पृथ्वी पर होता, तो यह "हिम युग" की एक छोटी अवधि में होता।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, देहरादून ने केदारनाथ मंदिर की चट्टानों पर लिग्नोमैटिक डेटिंग का परीक्षण किया। यह "पत्थरों के जीवन" की पहचान करने के लिए किया जाता है। परीक्षण से पता चला कि मंदिर 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी के मध्य तक पूरी तरह से बर्फ में दब गया था। हालांकि, मंदिर के निर्माण में कोई नुकसान नहीं हुआ।
2013 में केदारनाथ में आई विनाशकारी बाढ़ को सभी ने देखा होगा। इस दौरान औसत से 375% अधिक बारिश हुई थी। आगामी बाढ़ में "5748 लोग" (सरकारी आंकड़े) मारे गए और 4200 गांवों को नुकसान पहुंचा। भारतीय वायुसेना ने 1 लाख 10 हजार से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया। सब कुछ ले जाया गया। लेकिन इतनी भीषण बाढ़ में भी केदारनाथ मंदिर का पूरा ढांचा जरा भी प्रभावित नहीं हुआ।
भारतीय पुरातत्व सोसायटी के मुताबिक, बाढ़ के बाद भी मंदिर के पूरे ढांचे के ऑडिट में 99 फीसदी मंदिर पूरी तरह सुरक्षित है I 2013 की बाढ़ और इसकी वर्तमान स्थिति के दौरान निर्माण को कितना नुकसान हुआ था, इसका अध्ययन करने के लिए "आईआईटी मद्रास" ने मंदिर पर "एनडीटी परीक्षण" किया। साथ ही कहा कि मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित और मजबूत है।
यदि मंदिर दो अलग-अलग संस्थानों द्वारा आयोजित एक बहुत ही "वैज्ञानिक और वैज्ञानिक परीक्षण" में उत्तीर्ण नहीं होता है, तो आज के समीक्षक आपको सबसे अच्छा क्या कहता ?
मंदिर के अक्षुण खड़े रहने के पीछे :
जिस दिशा में इस मंदिर का निर्माण किया गया है व जिस स्थान का चयन किया गया है I
ये ही प्रमुख कारण हैं I 
दूसरी बात यह है कि इसमें इस्तेमाल किया गया पत्थर बहुत सख्त और टिकाऊ होता है। खास बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया पत्थर वहां उपलब्ध नहीं है, तो जरा सोचिए कि उस पत्थर को वहां कैसे ले जाया जा सकता था। उस समय इतने बड़े पत्थर को ढोने के लिए इतने उपकरण भी उपलब्ध नहीं थे। इस पत्थर की विशेषता यह है कि 400 साल तक बर्फ के नीचे रहने के बाद भी इसके "गुणों" में कोई अंतर नहीं है।
आज विज्ञान कहता है कि मंदिर के निर्माण में जिस पत्थर और संरचना का इस्तेमाल किया गया है, तथा जिस दिशा में बना है उसी की वजह से यह मंदिर इस बाढ़ में बच पाया।
केदारनाथ मंदिर "उत्तर-दक्षिण" के रूप में बनाया गया है। जबकि भारत में लगभग सभी मंदिर "पूर्व-पश्चिम" हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि मंदिर "पूर्व-पश्चिम" होता तो पहले ही नष्ट हो चुका होता। या कम से कम 2013 की बाढ़ में तबाह हो जाता। लेकिन इस दिशा की वजह से केदारनाथ मंदिर बच गया है।
इसलिए, मंदिर ने प्रकृति के चक्र में ही अपनी ताकत बनाए रखी है। मंदिर के इन मजबूत पत्थरों को बिना किसी सीमेंट के "एशलर" तरीके से एक साथ चिपका दिया गया है। इसलिए पत्थर के जोड़ पर तापमान परिवर्तन के किसी भी प्रभाव के बिना मंदिर की ताकत अभेद्य है।
टाइटैनिक के डूबने के बाद, पश्चिमी लोगों ने महसूस किया कि कैसे "एनडीटी परीक्षण" और "तापमान" ज्वार को मोड़ सकते हैं। 
लेकिन भारतीय लोगों ने यह सोचा और यह 1200 साल पहले परीक्षण किया I
क्या केदारनाथ उन्नत भारतीय वास्तु कला का ज्वलंत उदाहरण नहीं है?
2013 में, मंदिर के पिछले हिस्से में एक बड़ी चट्टान फंस गई और पानी की धार विभाजित हो गई I मंदिर के दोनों किनारों का तेज पानी अपने साथ सब कुछ ले गया लेकिन मंदिर और मंदिर में शरण लेने वाले लोग सुरक्षित रहे I जिन्हें अगले दिन भारतीय वायुसेना ने एयरलिफ्ट किया था।
सवाल यह नहीं है कि आस्था पर विश्वास किया जाए या नहीं। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि मंदिर के निर्माण के लिए स्थल, उसकी दिशा, वही निर्माण सामग्री और यहां तक ​​कि प्रकृति को भी ध्यान से विचार किया गया था जो 1200 वर्षों तक अपनी संस्कृति और ताकत को बनाए रखेगा।
हम पुरातन भारतीय विज्ञान की भारी यत्न के बारे में सोचकर दंग रह गए हैं I शिला जिसका उपयोग 6 फुट ऊंचे मंच के निर्माण के लिए किया गया है कैसे मन्दिर स्थल तक लायी गयी I
आज तमाम बाढ़ों के बाद हम एक बार फिर केदारनाथ के उन वैज्ञानिकों के निर्माण के आगे नतमस्तक हैं, जिन्हें उसी भव्यता के साथ 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा होने का सम्मान मिलेगा।
यह एक उदाहरण है कि वैदिक हिंदू धर्म और संस्कृति कितनी उन्नत थी। उस समय हमारे ऋषि-मुनियों यानी वैज्ञानिकों ने वास्तुकला, मौसम विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, आयुर्वेद में काफी तरक्की की थी।

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...