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5.6.23

बालासोर रेल हादसा: दुर्घटना या साजिश ?


आलेख : गिरीश बिल्लोरे 
  बालासोर रेल हादसे के बाद चर्चा यह है कि यह हादसा दुर्घटना है अथवा यह किसी साजिश का परिणाम है । लगातार चलने वाले चैनलस, अपना अपना कैलकुलेशन अपने-अपने एंगल से आपके सामने रख रहे हैं । अखबार अपनी अपनी बात अपने अपने तरीके से कह रहे हैं।
    सबको अपनी अपनी बात कहने का हक है परंतु सबको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की विषम परिस्थिति में किसी भी तरह का पैनिक जनता के बीच में न फैले।
   इस संबंध में रेलवे  के सुरक्षा आयुक्त द्वारा अपने हिस्से का कार्य पूर्ण किया जा चुका है अथवा नियमानुसार पूर्ण होगा भी ऐसा सबको भरोसा है। परंतु रेलवे बोर्ड की सलाह पर जांच सीबीआई को करने के लिए सौंपा जाना किस बात की संभावना की ओर संकेत है कि-" इस घटना में कोई न कोई संदिग्ध परिस्थिति अवश्य ही उत्पन्न हुई है या आंतरिक सुरक्षा में कोई सेंधमारी की  संभावना व्यक्त की गई है , मीडिया समाचारों की माने तो आगे रेलवे बोर्ड इस घटना की जांच सीबीआई से कराने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा है । 
  इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि-" मौजूदा टेक्निकल फैलयुर तकनीकी असफलता / किसी न किसी टेंपरिंग या बाहरी हस्तक्षेप से होना संभव माना जा रहा है।" 
  और अगर ऐसा हुआ तो ऐसी घटना विश्व की सबसे व्यवस्थित एवं बड़ी रेल संचालन प्रणाली के लिए खतरे की घंटी है। अर्थात भारतीय रेल परिचालन प्रणाली में आतंकवादी गतिविधियों का प्रवेश संभव है। यह तो भविष्य में स्पष्ट होगा परंतु 8 फरवरी 2023 को मैसूर डिविजन में एक गाड़ी 12649 के कुलीज़न की  ऐसी ही घटना पर समय रहते नियंत्रण करने की जानकारी प्राप्त हुई है। 
यहां बालासोर पहुंचने वाली ट्रेन अपने को छोड़कर लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी वाली ट्रैक पर चली जाती है। जिससे उसके डब्बे एक अन्य मेन लाइन तक बिखर जाते हैं। जिससे कोलकाता जाने वाली एक ट्रेन को गुजारना था। और हुआ वही
बेंगलुरु कोलकाता सुपरफास्ट एक्सप्रेस उस ट्रक से गुजरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गई तथा दुर्घटनाग्रस्त बोगियों में सवार पैसेंजर्स को और अधिक नुकसान पहुंचा।
मालगाड़ी से टकराने वाली पैसेंजर ट्रेन किन कारणों से अपना ट्रैक बदलती है  इस पर अपना मत व्यक्त करते हुए रेल विभाग के एक इंजीनियर सुधांशु मणि बताते हैं कि-
[  ] रेलगाड़ी केवल रेल लाइन की सेटिंग के अनुसार चलती है। ड्राइवर यानी लोको पायलट अपने मन से किसी भी ट्रैक पर गाड़ी को नहीं ले जा सकते।
[  ] यह अवश्य है कि आसन्न खतरे को देखकर रेल ड्राइवर अर्थात लोको पायलट गाड़ी की गति को कम या स्थिर अवश्य कर सकते हैं।
[  ] इस दुर्घटना का प्रारंभिक कारण ट्रेन का मालगाड़ी वाले ट्रैकिंग प्रवेश कर जाना रहा है। वास्तव में ट्रेन लूप लाइन में रेल की पटरी के सेट हो जाने के कारण चली गई। अर्थात पटरी की सेटिंग में किसी भी तरह की मानवीय अथवा यांत्रिकीय त्रुटि के कारण अथवा जानबूझकर किए गए प्रयास से दुर्घटना हुई।
[  ] यह सच है कि-" लूप लाइन में ट्रेन को ले जाने के लिए ड्राइवर को सिग्नल नहीं था। परंतु दुर्घटना के फुटेज देखने से लगता है कि-" ड्राइवर अपनी गाड़ी को रोक पाने में असफल रहे ।
[  ] परंतु अभी तक यह तथ्य सामने नहीं आया है कि-" इनकी गति कितनी थी?" स्टेशनों पर न रुकने वाली ट्रेन की गति के संबंध में विमर्श आवश्यक है।लोको पायलट को भी इसी आधार पर क्लीन चिट नहीं दी जा सकती 
  आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2021 तक भारत में पटरी को छोड़ने के मामले 1127 रिपोर्ट हुए हैं। भारतीय रेल परिचालन व्यवस्था को दुर्घटना रहित बनाने के लिए कवच नामक एक कार्यक्रम को भारतीय रेल बजट में स्थान दिया गया है . यह कार्यक्रम रिसर्च एवं डेवलपमेंट के साथ-साथ उन सभी प्रयासों को लागू करेगा जिससे कुलिजन यानी आमने-सामने की भिड़ंत अथवा अन्य दुर्घटनाओं को रोका जा सके। इस कार्यक्रम में तेजी लाना आवश्यक है।
   अंततः भारत सरकार एवं भारतीय रेल विभाग को सुरक्षा के लिए r&d Research And Development तथा टेक्निकल सपोर्ट देने वाले ऐसे संस्थान की आवश्यकता पर कार्य करना चाहिए जो रेल दुर्घटनाओं को रोक सके। वैज्ञानिकों शोधकर्ताओं को भी इस दिशा में निरंतर काम करने की तथा सरकार को मदद करने की जरूरत है।

   
  

7.5.10

श्री जब्बार ढाकवाला एवम मोहतरमा तरन्नुम का दुख़द निधन

मप्र  के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एवं साहित्यकार श्री  जब्बार ढाकवाला और उनकी पत्नी मोहतरमा तरन्नुम की शुक्रवार 7 मई 2010 को उत्तराखंड के पास जब वे  उत्तर काशी से चंबा की ओर लौट रहे थे, अचानक  उनकी कार गहरी खाई में गिर गई। एम.ए. एल-एल.बी. तक शिक्षित श्री ढाकवाला शेर—शायरी, उपन्यास व व्यंग्य लिखने के शौकीन थे। वे संचालक पिछड़ा वर्ग कल्याण,संचालक आयुर्वेद एवं होम्योपैथी,संचालक रोजगार एवं प्रशिक्षण,संचालक लघु उद्योग तथा बड़वानी कलेक्टर रहे है।जबलपुर में  जब भी उनका निजी अथवा सरकारी प्रवास होता तो वे स्थानीय साहित्यकारों से अवश्य ही मिला करते थे . विगत वर्ष   जबलपुर में 25/09/09 को :श्री जब्बार ढाकवाला साहब की सदारत  में एक गोष्ठी का आयोजन "सव्यसाची-कला-ग्रुप'' की ओर से किया गया .  श्री बर्नवाल,आयुध निर्माणी,उप-महाप्रबंधक,जबलपुर के आतिथ्य में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया  थे.गिरीश बिल्लोरे मुकुल के  संचालन में  होटल कलचुरी जबलपुर में आयोजित कवि-गोष्ठी में इरफान "झांस्वी",सूरज राय सूरज,डाक्टर विजय तिवारी "किसलय",रमेश सैनी,एस ए सिद्दीकी, और विचारक सलिल समाधिया  के साथ स्वयम ज़ब्बार साहब ने भी रचना पाठ किया 
जिंदगी के हर लमहे का मज़ा लीजिये
यहाँ पर टेंसन की जेल में, उम्रकैद की सजा लीजिये



मूक अभिनय करते करते बोलने लगे हैं वो
सूत्रधार की उपेक्षा कर मुँह खोलने लगे हैं वो
तरक्की के नाम पर इतने धोखे खाए हैं कि
अपने रहनुमाओं के बीच के दिल टटोलने लगे हैं वो
मन में मेरे अदालत जिन्दा है
क्या करुँ अन्दर छिपा एक परिंदा है
नहाता तो हूँ नए नए हम्मामों में आज भी
गुनाह नहीं मगर जेहन शर्मिंदा है
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आईएएस अधिकारी एवं साहित्यकार श्री  जब्बार ढाकवाला और मोहतरमा तरन्नुम के असामयिक निधन पर हम सब स्तब्ध हैं.  हमारी श्रद्धांजलियां
 

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...