28.5.20

कोरोना काल मे लिखी एक कविता


नर्मदा के किनारे
ध्यान में बैठा योगी
सुनता है
अब रेवा की धार से
उभरती हुई कलकल कलकल
सुदूर घाट पर आते
गाते जत्थे लमटेरा
लमटेरा सुन जोगी
भावविह्लल हो जाता
अन्तस् की रेवा छलकाता
छलछल....छलछल .
हो जाता है निर्मल...!
नदी जो जीवित है
मां कभी मरती नहीं !
सरिता का सामवेदी प्रवाह !
खींच लाता है...
अमृतलाल वेगड़ की
यादों को वाह !
सम्मोहित कर देता है
ऐसा सरित  प्रवाह..!!
नदी नहीं बूंदों का संग्रह है..!
यह आपसी अंतर्संबंध और
प्रेम और सामंजस्य भरा अनुग्रह .. है..!
 है न ?
शंकर याचक सा करबद्ध..!
न मन में क्लेश न क्रोध ....!
अंतत से निकली प्रार्थना
गुरु को रक्षित करने का अनुरोध त्वदीय अपाद पंकजम
करते हो न तुम सब ?
सच कहा
मां है ना रुक जाती है
माँ ही
बच्चे की पुकार सुन पाती है
मां कभी नहीं मरती मां अविरल है !
माँ जो शास्वत निश्छल है !
मां रगों में दौड़ती है जैसे
बूंदें मिलकर दौड़ती हैं
रेवा की तरह आओ चलें
इस कैदखाने से मुक्त होते ही
नर्मदा की किनारे मां से मिलने

#फोटोग्राफ Mukul Yadav
#वीडियो #आशीष_पटेल
लमटेरा (Lamtera Bundeli Folk Song) का अर्थ होता है एक लंबी गायकी बुंदेलखंड महाकौशल हिस्से में नर्मदा की यात्रा करते समय लमटेरा गीत गाया जाता है।

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