3.12.18

अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस 2018 पर विशेष आलेख



आज भी दिव्यांगों के लिए केवल संवेदन शीलता का भाव तो देखता हूँ परन्तु जब कभी प्रथम पंक्ति में खड़े होने की बात होती है अधिकांश नाक भौं सिकोड़ते  नजर आते हैं इसके मैंने कई उदाहरण देखें हैं भुक्तभोगी भी रहा हूं कुछ लोगों का शिकार भी बना हूं मैं जानता हूं कि यह कह कर मैं बहुत बड़ा खतरा मोल ले रहा हूं लेकिन यह भी सत्य है कि इसे बड़ी संख्या उन लोगों की है जो दिव्यांग ता को एक बाधा नहीं मानते .
मित्रों ने मुझे बहुत शक्ति दी है परिवार ने बहुत शक्ति दिए लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर पाते की मैं उनके बराबर खड़ा हो सकता आप भी देखें सोचें सशक्तिकरण का अर्थ क्या है कुछ लोग इतने नकारात्मक होते हैं वे हताशा के कुएं में ढकेलने  के के लिए पूरी तरह कोशिश किया करते हैं ।
 यद्यपि मैं यह बात इसलिए सामने नहीं रख रहा हूं यह हाथ से मेरे साथ हुए बल्कि यह इसलिए सामने रखा जा रहा है कि अगर एक ही व्यक्ति किसी दिव्यांग के प्रति ऐसा भाव रखता है तो वह वास्तव में दिव्यांग है ।
पिछले 2 महीनों में  मुझे  बहुत अच्छे अनुभव हुए हैं जिससे मैं अभिभूत हूं ।
पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कुछ लोग ठीक उसी दौर में नकारात्मक वातावरण बनाने से ना
चूके जो कि सामान्यत है कोई भी व्यक्ति नहीं बनाता है ।  कुछ तो इस बात को स्वीकार ने के लिए भी तैयार नहीं कि वे मेरे मार्गदर्शन में भी काम करें ।
लेकिन अच्छे लोगों की कमी नहीं है अच्छे और बुरे लोगों के बीच एक रास्ता गुजरता है उस रास्ते का नाम है साहस का रास्ता साहस के रास्ते पर चलते हुए मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं हुआ कि मैं यहां सही हूं या वहां गलत था ।
सही और गलत के इस अनुक्रम में पहचाने गए बहुत से  वो लोग जिनकी कथनी और करनी के बीच एक बड़ी विचित्र सी दूरी है ।
 सूरदास प्रोफेसर हॉकिंस और भी कई इतना अधिक संघर्ष कर  दिलों में बस गए जो संघर्ष सामान्य आदमी नहीं कर पाता ।
 सच कहूं जब हमें कुछ करना होता है तो हम बेहद युक्तियों का सहारा लेते हैं हमें बहुत सारी व्यवस्थाएं उस काम तक पहुंचने के लिए करनी होती है उसके बाद काम आसान हो जाता है सामान्य के साथ में यह संभव नहीं है वे सामान्य परिस्थिति में ही काम कर सकते हैं सच मानिए दिव्यांग असामान्य परिस्थिति में कार्य करने के लिए अपने आप को तैयार कर लेते हैं ।
आप जानते हैं क्यों ऊंट की गर्दन लंबी क्यों होती है ?
 सच बताऊं कटीली झाड़ियां ऊंचाई पर होती थी और ऊंट ने परिस्थिति को अपने कंट्रोल में किया ना कि वह परिस्थिति से नियंत्रित रहा । अगर परिस्थिति से नियंत्रित होता तो कोई भी ऊंट जिंदा नहीं रह पाता एक समूची प्रजाति का अंत जाता लेकिन सदियों से विश्व में सी फॉर कैमल के नाम से पहचानी जा रही है बच्चे पढ़ रहे हैं ,  अगर आर्केटिक के भालूओं के बारे में सोचें  तो आप समझ जाएंगे की ऐसी जगहों पर जहां हम जा नहीं सकते वहां कोई प्रजाति इतराती इठलाती जीवित है ।
मित्रों असामान्य शारीरिक परिस्थितियों को कमतर नापना घोर मानवीय भूल है अष्टावक्र पर हंसकर समाज को एक अद्भुत ग्रंथ उपहार स्वरूप मिला ।  अष्टावक्र की तरह असामान्य से दिखने वाले ब्राम्हण चाणक्य ने क्या कर डाला आप खुद ही समझ सकते हैं ।
 मैं असामान्य नहीं पर मैं सामान्य भी नहीं मुझे सामान्य लोगों से स्पर्धा भी नहीं है पर अपेक्षा अवश्य है और वह है साम्य की अपेक्षा  वैसे आप चाहे तो दे चाहे तो ना दे हासिल तो हम कर ही लेंगे हमें किसी से भय नहीं है चलिए ठीक है उन मित्रों को मैं आज अपनी यह पोस्ट ट्रेक कर रहा हूं जिन्होंने मुझे बनाया है और उन मित्रों को भी चेक करने की कोशिश करूंगा जिनके दिल में कहीं ना कहीं एक काला चोर बसता है दिव्यांगों के सशक्तिकरण को लेकर वे तो स्वयं के अलावा किसी को श्रेष्ठ नहीं मानते दिव्यांगों में श्रेष्ठता साबित करने की लालसा नहीं होती लेकिन मानसिक दिव्यांग बेशक श्रेष्ठता की ओर बिना किसी कारण दौड़ते हैं ईश्वर उन सबको माफ करना जिन्होंने मुझे यह लेख लिखने के लिए बाद किया विश्व दिव्यांग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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