30.9.08

युद्ध ज़रूरी है.....

"कुरान " में गीता में रामायण में
सभी में लिखा है -युद्ध ज़रूरी है ?
जी हाँ युद्ध ज़रूरी है लगातार ज़रूरी है
कितनी भी संकरीं क्यों न हो
इस ज़रूरी जंग में
विचारों की सेना इन्हीं गलियों से निकलें
यहीं से शुरू होगा युद्ध
दिलों को जीतने का
हताशा के रीतने का
"कबीर" से पूछो युद्ध के लिए
साखियाँ कितनी ज़रूरी हैं
युद्ध के लिए कितना ज़रूरी है जुड़ना
सारथि भी कृष्ण का सा सर्वहारा हो
####
कुछ भी अन्तिम सत्य नहीं है
तो युद्ध ही क्यों .....?
धर्म-युद्ध,
युद्ध-धर्म
की परिभाषा जाने बगैर हम युद्ध रत क्यों
युद्ध ही ज़रूरी है
तो चलो बचपन
किसी बचपन के आँसू पौंछें
किसी जवानी की सिसकन को रोकें

29.9.08

लावण्यम्` ~अन्तर्मन्` पर लता जी का जन्म दिन










<=स्वर्गीय इश्मित सिंह और लता मंगेशकर जी







भारत रत्न लता जी

: लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`पर प्रकाशित पोस्ट ,सुश्री लता मंगेशकर जी , , के ७९ वें जन्म दिन पर बेहद भावपूर्ण,सूचना प्रद,संस्मरण,सा मनोहारी बन पड़ी है।

दीदी लता जी के प्रति आपकी भावनाएं एक करोड़ भारतीयों की भावनाएं हैं आपको सादर नमन

मेरी और से स्वर साधिका को समर्पित कविता
सुर सरगम से संयोजित युग
तुम बिन कैसे संभव होता ?
कोई कवि क्यों कर लिखता फिर
कोयल का क्यों अनुभव होता...?
****************
विनत भाव से जब हिय पूरन
करना चाहे प्रभु का अर्चन.
ह्रदय-सिन्धु में सुर की लहरें -
प्रभु के सन्मुख पूर्ण समर्पण ..
सुर बिन नवदा-भक्ति अधूरी - कैसे पूजन संभव होता ?
*********************
नव-रस की सुर देवी ने आके
सप्तक का सत्कार किया !
गीत नहीं गाये हैं तुमने
धरा पे नित उपकार किया!!
तुम बिन धरा अधूरी होती किसे ब्रह्म का अनुभव होता ..?

**गिरीश बिल्लोरे मुकुल

25.9.08

पता नहीं उनको ज़टिल क्यों लगे मलय ?

जिनको मलय जटिल लगें उनको मेरा सादर प्रणाम स्वीकार्य हो मुझे डाक्टर साहब को समझाने का रास्ता दिखा ही दिया उन्होंने जिनको मेरे पड़ोसी मलय जी जटिल लगते हैंलोगो का मत था की मलय जी पक्के प्रगतिशील हैं वे धार्मिक सामाजी संसकारों की घोर उपेक्षा करतें हैं .....हर होली पे मलय को रंग में भीगा देखने का मौका गेट नंबर चार जहाँ मलय नामक शिव की कुटिया है में मिलेंगे इस बार तो गज़ब हो गया मेरी माता जी को पितृ में मिलाना पिताजी ने विप्र भोज के लिए मलय जी को न्योत लिया मुझे भी संदेह था किंतु समय पर दादा का आना साबित कर गया की डाक्टर मलय जटिल नहीं सहज और सरल है
अगर मैं नवम्बर की २९वीं तारीख की ज़गह १९ को पैदा होता तो हम दौनो यानी दादा और मैं साथ-साथ जन्म दिन मनाते हर साल खैर..........!
हाँ तो जबलपुर की लाल मुरम की खदानें जहाँ थीं [अभी कुछ हैं शायद ]उसी सहसन ग्राम में १९ -११-१९२९ को जन्में मलय जी की जीवन यात्रा बेहद जटिल राहों से होकर गुज़री है किंतु दादा की यात्रा सफल है ये सभी जानते हैंदेश भर में मलय को उनकी कविता ,कहानी,की वज़ह से जाना जाता हैजो इस शहर का सौभाग्य ही तो है की मलय जबलपुर के हैंवे वास्तव में सीधी राह पे चलते हैं , उनको रास्तों में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के
प्रबंध करते नहीं बनतेवे भगोडे भी नहीं हैं सच तो ये है कि "शिव-कुटीर,टेली ग्राफ गेट नंबर चार,कमला नेहरू नगर निवासी कोई साहित्यिक सांस्कृतिक टेंट हाउस नहीं चलाते , बस पडतें हैं लिखतें हैं जैसे हैं वैसे दिखतें हैं
उनसे मेरा वादा है "दादा,आपके रचना संसार पर मुझे काम करना है "
उन्होंने झट कहा "आप,जैसा चाहो ......................!"
ज्ञानरंजन जी के पहल प्रकाशन से प्रकाशित मलय जी की पुस्तक ''शामिल होता हूँ '' में ४२ कवितायेँ इस कृति से जिसमें उनकी १९७३ से १९९१ के मध्य लिखी गई कविताओं से एक कविता के अंश का रसास्वादन आप भी कीजिए
"पानी ही बहुत आत्मीय "
पानी
अपनी तरलता में गहरा है
अपनी सिधाई में जाता है
झुकता मुड़ता
नीचे की ओर
जाकर नीचे रह लेता है
अंधे कुँए तक में
पर पानी
अपने ठंडे क्रोध में
सनाका हो जाता है
ठंडे आसमान पर चढ़ जाता है
तो हिमालय के सिर पर
बैठकर
सूरज के लिए भी
चुनौती हो जाता है
पर पानी/पानी है
बहुत आत्मीय
बहुत करोड़ों करोड़ों प्यासों का/अपना
रगों में खून का साथी /हो बहता है
पृथ्वी-व्यापी जड़ों से होकर
बादल की खोपडी तक में
वही होता है-ओर अपने
सहज स्वभाव के रंगों से
हमको नहलाता है
सूरज को भी/तो आइना दिखाता है
तब तकरीबन पानी
समय की घंटियाँ बजाता है
और शब्दों की
सकेलती दहार में कूदकर
नदी हो जाने की /हाँक लगाता है
पानी बहा जा रहा है
पिया जा रहा है जिया जा रहा है

मलय जी की यह रचना लम्बी है पाठकों के लिए एक अंश छाप रहा हूँ आप सुधि पाठक चाहेंगे तो शेष भाग अगली पोस्ट में प्रकाशित कर ही दूंगा,
मुझे यकीन है कि "रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ..."को विस्तार देती या रचना आपको पसंद आयी होगी ............और हाँ मलय जी जटिल नहीं हैं इस बात की पुष्टि आप ख़ुद ही कर सकतें हैं.......


23.9.08

आ ओ ! मीत लौट चलें




आ ओ मीत लौट चलें गीत को सुधार लें
वक़्त अर्चना का है -आ आरती संवार लें ।
भूल हो गई कोई गीत में कि छंद में
या हुआ तनाव कोई , आपसी प्रबंध में
भूल उसे मीत मेरे सलीके से सुधार लें !
छंद का प्रबंध मीत ,अर्चना के पूर्व हो
समवेती सुरों का अनुनाद भी अपूर्व हो,
अपनी एकता को रेणु-रेणु तक प्रसार दें ।
राग-द्वेष,जातियाँ , मानव का भेद-भाव
भूल के बुलाएं पार जाने एक नाव !
शब्द-ध्वनि-संकेत सभी आज ही सुधार लें !

आतंक वाद कबीलियाई सोच का परिणाम है

इस पोस्ट के लिखने के पूर्व मैंने यह समझने की कोशिश की है कि वास्तव में किसी धर्म में उसे लागू कराने के लिए कोई कठोर तरीके अपनाने की व्यवस्था तो नहीं है........?किंतु यह सत्य नहीं है अत: यह कह देना कि "अमुक-धर्म का आतंकवाद" ग़लत हो सकता है ! अत: आतंकवाद को परिभाषित कर उसका वर्गीकरण करने के पेश्तर हम उन वाक्यों और शब्दों को परख लें जो आतंकवाद के लिए प्रयोग में लाया जाना है.
इस्लामिक आंतकवाद , को समझने के लिए हाल में पाकिस्तान के इस्लामाबाद विस्फोट ,पर गौर फ़रमाएँ तो स्पष्ट हो जाता है की आतंक वाद न तो इस्लामिक है और न ही इसे इस्लाम से जोड़ना उचित होगा । वास्तव में संकीर्ण कबीलियाई मानसिकता का परिणाम है।


भारत का सिर ऊँचा करूँगा-कहने वाले आमिरखान,आल्लामा इकबाल,रफी अहमद किदवई,और न जाने कितनों को हम भुलाएं न बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे घटना क्रम को बारीकी से देखें तो स्पष्ट हो जाता है की कबीलियाई समाज व्यवस्था की पदचाप सुनाई दे रही थी जिसका पुरागमन अब हो चुका है, विश्व की के मानचित्र पर आतंक की बुनियाद रखने के लिए किसी धर्म को ग़लत ठहरा देना सरासर ग़लत है । हाँ यहाँ ये कहा जा सकता है की इस्लामिक-व्यवस्था में शिक्षा,को तरजीह ,देने,संतुलित चिंतन को स्थापित कराने में सामाजिक एवं धार्मिक नेतृत्व असफल रहा है जिससे अच्छी एवं रचनात्मकता युक्त सोच का अभाव रहा इस्लामिक-देशों की आबादी के । डैनियल पाइप्स.की वेब साईट http://hi.danielpipes.org/ पर काफी हद तक स्पस्ट आलेख लिखे जा रहे हैं जिसका अनुवाद अमिताभ त्रिपाठी कर रहें हैं । अब भारत को ही लें तो भारत में पिछले दशकों में प्रांतीयता,भाषावाद,क्षेत्र-वाद की सोच को बढावा देने की कोशिश की जा रही है इस पर आज लगाम न लगाई गयी तो तय शुदा बात है भारतीय-परिदृश्य में भी ऐसी घटनाएं आम समाचार होंगी।


आतंक को रोकने किसी भी स्थिति में किसी साफ्ट सोच का सहारा लेने की कोई ज़रूरत नहीं,आतंक वाद को रोकने बिना किसी दुराग्रह के कठोरता ज़रूरी है चाहे जितनी बार भी सत्ताएं त्यागनी पड़ें , हिंसा को बल पूर्वक ही रोका जाए।


डेनियल की वेब साईट पर बेहद सूचना परक आलेख देखे जा सकतें है


मुस्लिम दृष्टि में बराक ओबामा25 अगस्त, 2008, FrontPageMagazine.com
इस्लामवादी वामपंथी गठबन्धन का खतरा14 जुलाई, 2008, नेशनल रिव्यू
इस्लामवादी आतंकवाद कहाँ अधिक है यूरोप में या अमेरिका में?3 जुलाई, 2008, जेरुसलम पोस्ट
शत्रु का एक नाम है19 जून, 2008, जेरुसलम पोस्ट
ईरान पर आक्रमण को तैयार रहो11 जून, 2008, यू.एस.ए.टुडे
मध्यपूर्व पर ओबामा बनाम मैक्केन
इधर हमारे अंतरजाल के साथी भी को इस प्रकार का माहौल बनाएं बार-बार ,बैठक कर ,
आतंक की , सही परिभाषा ,को आम आदमीं के सामने रखना ही होगा

22.9.08

प्रीति का चित्रहार






अहमदाबाद,नहीं सूरत से प्रीति हैं
बेहद गंभीर चित्रकार
गहनों की डिजायनर समय निकाल के नेट पर आकर मित्रों से चर्चा में व्यस्त हो जातीं हैं
ब्लॉग पर कविताओं की तलाश करते करते उनने मुझे मित्र बना लिया
हार्दिक शुभ कामनाएँ
कवि,चित्रकार एवं एक आत्म विश्वाशी मौन साधिका
"प्रीति को "

19.9.08

रिएलटी शो के फंडे

मीडिया व्यूह:,की पोस्ट बेहद समयानुकूल पोस्ट है,भारत में बुद्धू बक्से की उलज़लूल से अब ज़ल्द निजात दिलाने अब सरकार को आगे आना ही होगा । मेरे दृष्टिकोण से हिन्दी के अहर्निश जारी रहने वाले चैनल्स को सरकारी लगाम लगानी बेहद ज़रूरी है, मनोरंजन के नाम पे देश में चलाए जा रहे नोट-कमाओ अभियान के कई पहलू जब आम दर्शक के सामने आएँगे तो सब के सामने इस व्यापार में संलग्न व्यक्तियों की घिग्घी बंधना तय शुदा है ।
जहाँ तक मुझे ज्ञात है अब टेलिविज़न के कई चैनल केवल व्यापारी से हो गए हैं , इनको न तो सामाजिक न आर्थिक और न ही किसी नैतिक मूल्यों की रक्षा से कोई लेना देना है । समय आ गया है अब की सरकार कठोरता से बिना किसी पूर्वाग्रह के एक आचार संहिता बनाए जो इन वाहियाद हरक़तों पे सख्त नज़र रखे। चैनल'स की गला काट स्पर्धा के चलते कलाकारों की कला घुटन का शिकार हुईं है कई एस० एम० एस० के ज़रिए वसूली न करा पाए वे नकार दिए गए कहीं-कहीं यहाँ तक हुआ की जिनको हम महान कलाकार समझतें हैं वे ठेठ गंवारूपन का एहसास दिला गए खुदा इन्हें नसीहत दें

आइए इधर भी, भैया

चिट्ठा चर्चा, में स्वर्गीय-श्री प्रह्लाद नारायण मित्तल से मुलाक़ात कीजिए,उड़न तश्तरी ब्लॉग-"आलसी काया पर कुतर्कों की रजाई" डाल कर गज़ब तीर चला दियामुझको नहीं पता कविता क्या हैं फ़िर भी लिखे जा रहे हैं उधर लोग बाग़ एक परम स्वादिष्ट कविता , परोसे जा रहें हैं साक़ी शराब दे दे .----कुछ लोग ये गा-गा कर दिन को नशीला बनाने आमादा हैं.बेट्टा, ब्लागिंग छोड़ो ,मौज से रहो, अब भैया का नारा देकर पंडित जी ने गज़ब ढा दिया आँख की किरकिरी-की ताज़ा पोस्ट की "ईश्वर धर्म और आस्था के सहारे मृत्यु का इंतज़ार ही क्या हमारे बुज़ुर्गों के लिए बच गया काम है ?" की इस पंक्ति ने आंख्ने भिगो दीं .शीतल राजपूत के चिट्ठे का स्वागत ज़रूरी है,कुछ दिनों से ब्लॉगन-ब्लागन वार देख के मन खट्टा तो हुआ था किंतु जब ये मारें लातई-लात कहावत देखी तो लगा शायद कोई रास्ता काढ़ लिया जाएगामाँ कविता प्रति इसे मेरा आभार मानिए .तैयार रहिये अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों की बरसात के लिए , बांचते ही अपन की बांछें खिल गई अपन भी टिप्पणी पाने की दावेदारी बनाम लालच से भरा ब्लागिया दिल लेकर आज की पोस्ट लिख रहें हैं

16.9.08

चलो इश्क की इक कहानी बुनें


हंसी आपकी आपका बालपन
देख के दुनिया पशीमान क्यो...?

रूप भी आपका,रंग भी आपका
फ़िर दिल हमारा पशीमान क्यों।

निगाहों की ताकत तुम्हारी ही है
इस पे मेरी ये आँखें निगाहबान क्यों..?
तुम यकीनन मेरी हो शाम-ए-ग़ज़ल
इस हकीकत पे इतने अनुमान क्यों ?
चलो इश्क की इक कहानी बुनें
जान के एक दूजे को अंजान क्यों ?

15.9.08

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी
गली गली को छान रहें हैं ,देखो विष के व्यापारी,
************************************************
मुखर-वक्तता,प्रखर ओज ले भरमाने कल आएँगे
मेरे तेरे सबके मन में , झूठी आस जगाएंगे
फ़िर सत्ता के मद में ये ही,बन जाएंगे अभिसारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
************************************************
कैसे कह दूँ प्रिया मैं ,कब-तक लौटूंगा अब शाम ढले
बम से अटी हुई हैं सड़कें,फैला है विष गले-गले.
बस गहरा चिंतन प्रिय करना,खबरें हुईं हैं अंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
************************************************

लिप्सा मानस में सबके देखो अपने हिस्से पाने की
देखो उसने जिद्द पकड़ ली अपनी ही धुन गाने की,
पार्थ विकल है युद्ध अटल है छोड़ रूप अब श्रृंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,

14.9.08

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी











अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी
गली गली को छान रहें हैं ,देखो विष के व्यापारी,
************************************************
मुखर-वक्तता,प्रखर ओज ले भरमाने कल आएँगे
मेरे तेरे सबके मन में , झूठी आस जगाएंगे
फ़िर सत्ता के मद में ये ही,बन जाएंगे अभिसारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
************************************************
कैसे कह दूँ प्रिया मैं ,कब-तक लौटूंगा अब शाम ढले
बम से अटी हुई हैं सड़कें,फैला है विष गले-गले.
बस गहरा चिंतन प्रिय करना,खबरें हुईं हैं अंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
************************************************

लिप्सा मानस में सबके देखो अपने हिस्से पाने की
देखो उसने जिद्द पकड़ ली अपनी ही धुन गाने की,
पार्थ विकल है युद्ध अटल है छोड़ रूप अब श्रृंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,

हिन्दी-दिवस



आप भी इसका इस्तेमाल करें

हिन्दी,मराठी,गुजराती,बंगाली,कन्नड़,तमिल,उर्दू,उड़िया,पंजाबी,
इन भाषाओं को लेकर कोई भी बच्चा कभी किसी अन्य
बच्चे से नहीं लड़ा,"
बच्चों से सीखने के इस दौर में
आप भी इन के बीच जाइए
सदभाव के सत्य से परिचय पाइए
################
देश में लिंग परीक्षण,दहेज़ सामाजिक असमानता जैसे कई विषय हैं जिन पर आज से ही आन्दोलन चालू करने ज़रूरी हैं, किंतु भारतवासियों राज़ की बात है हमारे लोग स्थान,भाषा,धर्म,रंग,के लिए आंदोलित हैं .... ईश्वर इनको सुबुद्धि दे जो हमारे देश में कई देश बना रहें हैं .....हमारे तुम्हारे का बेसुरा राग गा रहे हैं
################
माँ, यकीन करो,मुझे अपनी किसी भी मौसी की भाषा से कोई गुरेज़ नहीं है माँ वो भी तो माँ...सी ही है....!
है न......?
माँ,
यू पी का भैया,मराठी काका,पंजाबी पापाजी,सब आएं है तुम्हें देखने जब से तुम बीमार हो माँ इन से इनकी भाषा में ज़बाब दूँ कैसे ...?
माँ बोली-बेटे,संवेदना,की कोई बोली भाषा नहीं होती उनको मेरे पास भेज दो मैं बात कर लूँ ज़रा उनसे ?
फ़िर सारे लोग मेरी मरणासन्न माँ के पास आए किस भाषा में कुशल-क्षेम की कामना व्यक्त हुई मुझे समझ में नहीं आई....!
#################
सव्यसाची अब मेरे साथ नहीं हमारे साथ नहीं हैं राज़ की बात ये है की वे सब लोग मेरी माँ को आज भी याद करतें हैं !
#################
भारत के निर्माण में बिहार,यू.पी.मध्य-प्रदेश,पंजाब,महाराष्ट्र,गुजरात,यानी सभी राज्यों का योगदान है आप को ऐसा क्यों लग रहा है कि केवल आप ही.....!
गाड़ीवान रात भर के सफर पर बैलों से पूछता है:-भाई,नंदियो रात में तुमको बेहद थकान हो गयी लगता है..?
बैल इस बात का ज़बाव देते इसके पहले उसका चितकबरा संकर नस्ल का स्वामी-भक्त बोल पडा-"स्वामी ये तो सो गए थे मैं जागा था....गाड़ी तो.....मैं ही "
###############




आप भी इसका इस्तेमाल करें

13.9.08

रोको उसे वो सच बोल रहा है


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इस नोटिस को देख कर मुझे लग रहा है आजाद भारत में सिर्फ़ सत्य कहना अपराध है ....?

जी हाँ वेब दुनियाँ के इस यू आर एल =>http://savysachi.mywebdunia.com/2008/09/12/1221160980000.html , पर पोस्ट किए गए आलेख -"राज़ ठाकरे जी "सादर-अभिवादन" " जो मेरे सव्यसाची ब्लॉग पर प्रकाशित है ..... किसी ने सच ही कहा है

"उसे रोको वो सच बोल रहा है,कुछ पुख्ता मकानों की छतें खोल रहा है

अगर माफी मागने और अपनी पोस्ट हटाने में इस देश का कोई भला हो रहा है तो मैं तुरंत ही माफ़ी मांग लूंगा , अभी तो मेरा दिमाग इस गुमान में है कि रोको इस आग को... के आव्हान को वैचारिक सहयोग दे सकूं .यदि एक भारतीय को सच बोलने का अधिकार नहीं हो तो .......? फ़िर उसे क्या करना चाहिए ....मेरी समझ से परे है।

मुझे तो लग रहा है गोया मित्र आस्तीन के साँपों को भी सूंघ गए साँप

12.9.08

आस्तीन के साँपों को भी सूंघ गए साँप

तस्वीर उसने मेरी बनाई कुछ इस तरह
हर आदमी मेरे शहर मुझसे दूर था
आस्तीन के साँपों को भी सूंघ गए साँप
उनको भी मुझसे ज़ल्द छिटकना कुबूल था
*******************
वो मुझसे दौड़ में हारा हुआ जो था
वो हार की चुभन का मारा हुआ जो था
वो शख्स जो आइना दिखाता रहा मुझे
मुझको उसका ऐसा बालपन कुबूल था
*******************

राज़ ठाकरे जी, सादर अभिवादन

आप के दिमाग में हिन्दी के लिए जो ज़हर भरा है उसके लिए हम आपको साफ़ तौर पर बता देना उचित समझतें हैं कि-"भारत-माता की छवि आप जैसे महानुभावों की वज़ह से विश्व में कितनी ख़राब हो रही है उसका अंदाज़ आपको नहीं है "भारत की महान धरती पर आप जैसों की नकारात्मक विचार धारा कितने दु:खद पलों को जन्म दे रही है इसका अंदाज़ आपको नहीं हैं राज जी मराठी मानस और शेष भारत के मानस में आप कोई फर्क कैसे कर सकतें हैं ? यह हक आपको किस ने दिया ये आम भारतीय सोच रहा है.साफ़ तौर पर आप को समझना ज़रूरी है कि भारत की अखण्डता पे किसी की भी उद्दंडता का दीर्घ प्रभाव नहीं होता,सम्पूर्ण सकारात्मकता की पुख्ता बुनियाद पर बनी "भारतीयता" किसी भी एक भाषा,जाति,रंग,वर्ण,से सदा ही अप्रभावित रहती है ,
आप जिस देश में रहतें हैं वो भारत है जो शिवाजी का देश है जो लक्ष्मी बाई ,दुर्गावती,तुलसी,कबीर,मीरा का देश है यहाँ का गांधी,आज भी विश्व को एक चिंतन देता है, यहाँ का दीनदयाल आज भी अन्त्योदय का माइल-स्टोन बन गया,यहाँ गालिब,दादू,ज्ञानेश्वर,नानक जैसों ने बिना ख़बर रटाऊ चैनल'स के सामने आए गाँव गाँव तक अंगूठा छाप किसान,मजूरों के दिल में ज़गह बना ली .............ये भारत ऐसे सकारात्मक ऊर्जा वानों का भारत है न कि किसी एक प्रदेश,यथा तमिलनाडु, महाराष्ट्र,बिहार,गुजरात,उत्तरांचल,आदि ,प्रदेशों का ..............मित्र मेरा भारत आपकी भाषाई राजनीति का शिकार हो यह कोई भी कब तक और कैसे सहेगा . आपको ईश्वर साद-बुद्धि दे , आप हिन्दी भाषियों से जितना विद्वेष रूपी ज़हर रखना चाहें रखें भारतीय औदार्य आपको एक सीमा तक क्षमा करेगा वरना इस देश के संविधान में सारी व्यवस्थाएं हैं , जिसने आप को अपनी वाणी से विचार व्यक्त करने की अनुमति दी है न कि ज़हर उगलने की, फ़िर आप तो महाराष्ट्र के विद्वान वक्ता हैं ये जानते ही होंगें कि ज़हर किस प्राणी की किस ग्रंथि में संचित रहता है . और कब तक "हाँ,तब तक संचित रहता है जब तक किसी यायावर सपेरे की नज़र उस जीव पर नहीं जाती "


6.9.08

श्रीमती तारा काछी : पथ-प्रदर्शिका

ये आरती संजोई है उन बेटियों ने जो चाहतीं हैं कि उनसे उनका बचपन न छीन
ग्राम पंचायत तिलहरी,में मेरे विभाग की आँगनवाडी का कामकाज देखतीं हैं तारा काछी ,जो हमेशा अपने गाँव को ऊँचाइयों पर देखना और रखना चाहतीं हैं ....इस गाँव में शिशु,बाल,और मात्र मृत्यु की डर पिछले कई वर्षों से शून्य पर स्थिर है ...........हो भी क्यों न तारा जो है वहाँ
अपनी पर्यवेक्षक दीदी कुमारी माया मिश्रा से सलाह कर तारा ने इस बार बाल विवाह रोकने बेटियों से वो करवाया जो रक्षा-बंधन पर बहने अपने भाइयों के साथ करतीं हैं .जी हाँ ......रक्षा-सूत्र बंधन
बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी थी माताओं,बहनों बेटियों की
उत्सव सा था पूरे गाँव में
और बारी बारी से बेटियों ने अपनी माँ,दादी,बुआ,चाची,के हाथों में बाँध दी
"राखियाँ "
ये कहा
"मेरा,बचपन मत छीनना "
बाल विकास परियोजना बरगी में संचालित इस केन्द्र में गोद-भराई,जन्म-दिवस, की रस्में मनाई जातीं रहीं जिसे हू बहू हू विभाग ने पूरे प्रदेश में लागू कर दिया

4.9.08

मिसफिट-चिंतन: बसंत मिश्रा की टेस्ट पोस्ट "।। श्री गणेशाय नम:।। "

मिसफिट-चिंतन: बसंत मिश्रा की टेस्ट पोस्ट से
"।। श्री गणेशाय नम:।।
नामक एक ब्लॉग आज से शुरू हो गया है ।
बसंत मिश्रा
ने
आज से शुरू किए
अपने ब्लॉग का नाम
रखके मुझे अभिभूत कर दिया
उनका आभारी हूँ ...!!

2.9.08

सुबह,-"सुबह" उदास सी

जो जिया वो प्रीत थी ,अनजिया वो रीत है
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है
######################
प्रीत के प्रतीक पुष्प -माल मन है गूंथता
भ्रमर बागवान से -"कहाँ है पुष्प ?" पूछता !
तितलियाँ थीं खोजतीं पराग कण
पुष्प वेणी पे सजा उसी ही क्षण ,!
कहो ये क्या प्रीत है या तितलियों पे जीत है…….?
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है !
######################
सुबह,-"सुबह" उदास सी,उठी विकल पलाश सी
चुभ रही थी वो सुबह,ओस हीन घास सी
हाँ उस सुबह की रात का पथ भ्रमित सा मीत है
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है !
######################
तभी तो हम हैं हम ज़बाँ को रात में तलाशते
मिल गए तो खुश हुए,मिले न तो उदास से
यही तो जग की रीत है हारने में जीत है
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है !
######################

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...