12.9.08

आस्तीन के साँपों को भी सूंघ गए साँप

तस्वीर उसने मेरी बनाई कुछ इस तरह
हर आदमी मेरे शहर मुझसे दूर था
आस्तीन के साँपों को भी सूंघ गए साँप
उनको भी मुझसे ज़ल्द छिटकना कुबूल था
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वो मुझसे दौड़ में हारा हुआ जो था
वो हार की चुभन का मारा हुआ जो था
वो शख्स जो आइना दिखाता रहा मुझे
मुझको उसका ऐसा बालपन कुबूल था
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3 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

bahut badhiya abhivyakti . badhai girish ji

शोभा ने कहा…

वो मुझसे दौड़ में हारा हुआ जो था
वो हार की चुभन का मारा हुआ जो था
वो शख्स जो आइना दिखाता रहा मुझे
मुझको उसका ऐसा बालपन कुबूल था
अच्छा लिखा है. बधाई

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

आप की टिप्पणियों ने मुझे उत्साहित किया है
आभार

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