31.10.10

प्रभाष जोशी जी ने कहा :- “.... अपना ईमान बेचा,”

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmQo2w9K7wgTmET_MSeyMSxuJ_lA4qLsd3wcrRAp8fHXhhgc-KtHYTAzY2eYvyGLLAav3N9CtGdB7rJqok8IQCPLQ3hIabj_yh8wLDzpK26jluo-PDmOde9ejU0duuRzJcS959f-yCjaQ/s320/fea5-1_1208628913_m.jpgअपने अंतर्मन की जिज्ञासा  को तृप्त करना चाहता है समाज  उसे चाहिये सकारात्मकता उसे चाहिये व्यापक दृष्टिकोण उसे चाहिये सार्थक नज़रिया. कोई भी यह करने तैयार है तो आगे आये आज एक खबरी चैनल ने अभिषेक- ऐशवर्या  के दाम्पत्य जीवन पर एक खबर प्रसारित की जिसमें पति-प्त्नि के बीच के मन मुटाव को सरे बाज़ार कर दिया. यदि यही है पत्रकारिता तो  अब बस और नहीं इस का अवसान ज़रूरी है  खत्म कर दो ये रवैया वरना ये दुनियां में इतनी नकारात्मकता हो जावेगी कि खुद तुम्हारा जीना और  सांस लेना दूभर हो जाएगा.देश वासियो ये तो उदाहरण मात्र था सर्वत्र  सबसे पहले हमें इस तरह की नकारत्मक्ता को नियंत्रित करना ही होगा.  प्रज़ातंत्र के चारों स्तम्भ  नेगेटिविटी की गिरफ़्त में आ जाएं तो प्रजातन्त्र की समीक्षा अत्यावश्यक हो जाती है.. लोक कल्याणकारी राष्ट्र की कल्पना करते हुए शहीदों ने ये तो न सोचा था न .सेक्स,विवाहेत्तर-संबंध,फ़िल्म,गाशिप, राजनैतिक छीछालेदर,खबरों से सजे मीडिया अनुशासित है क्या..? आपका सोचना जो भी हो मैं सोचता हूं नहीं.ये साजिश है भारतीय सकारात्मक पहलू को खत्म करने की. ये पश्चिमी बुनावट की "पत्रकारिता गणेश शंकर विद्यार्थी, महावीरप्रसाद द्विवेदी ,से प्रभाष जोशी तक    पुरोधाओं ने शायद यह तो न कहा था करने को. प्रभाष जी ने तो यहां तक कहा था:-  ""... ने अपना ईमान बेचा " इसका अर्थ यदि यही है तो है कि मामला शर्मनाक है.  समाज के साथ छल है. यहां उनको नही कुछ सोचना है जो सकारात्मकता के साथ इस नोबल-प्रोफ़ेशन में हैं..उन पर यह बात लागू नहीं है.... सोचना तो उनको है जो नकारात्मकता बो रहे हैं. सचाई दिखाना देखना कोई अपराध नहीं है सत्य सदा उज़ागर हो ये भी ज़रूरी है किंतु "अर्धसत्य" सदा से ही घातक विध्वंसक कभी कभी आत्म घाती भी हो सकता है इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है मित्र.अपने जीवन में आप देखेंगें तो पाएंगे आज़ादी की 25वीं वर्षगांठ के बाद तक या कहें अभी तक मीडिया कर्म आदरस्पद रहा है किंतु जैसे ही विदेशी-मीडिया-सिस्टम ने हमारे देश की ओर मुंह किया हमारे मूल्य अचानक अर्रा के गिर गये ये सब क्या है क्यों है क्या कोई अनुशासन कोई लगाम नहीं होना चाहिये . रोज़ एक पोर्टल रोज़ एक अखबार हज़ारों मीडिया कर्मी लाखों पाठक करो्ड़ों का व्यापार और हासिल क्या "तनाव कुण्ठा,वैमनस्यता, अलगाव, वैचारिक विभ्रम,अलगाव, अविश्वास...! "
                                           अगर आप गिनें तो जो सनसनी फ़ैलाते हैं वो समाचार सर्वाधिक प्रकाशित और प्रसारित हो रहे हैं. प्रतिशत में आप स्वयम गणना कीजिये सत्तर-प्रतिशत  से कम न होगा नकारात्मकता भरी खबरों का प्रतिशत.
   संजीव शर्मा नामक एक स्टिंगर/ पत्रकार ने देह व्यापार पर स्टिंग  के लिये अपने परिवार को दांव पर लगा दिया किंतु फिर उसी एजेंसी  ने   उनको निकाल दिया  किंतु वे डिगे नही उन्हीं के शब्दों में ".. मुझे भी मक्खी की तरह दूध से निकल कर फेंक दिया गया ...... सिर्फ इस लिए क्यूँ की मैं एक मिशन मैं फ़ैल हो गया ...... लेकिन आज मैं ताल ठोक कर कह सकता हूँ .... मैं असल जिंदगी में पास हूँ और रहूँगा क्यूंकि बेईमानी ...चाटुकारिता ...चापलूसी ....मेरी खून मैं नहीं हैं और जिस दिन आएगी उस दिन मीडिया को अलविदा कहूँगा ....आज मैं एक अच्छे चैनल मैं हूँ और पोस्ट मैं भी खुद से ज्यादा मुझे आपने टीम पर भरोसा है ..... बस उस खुदा ये ही दुआ है ..... ऊंचाई तक पहुँचाना जरूर लेकिन ज़मीन से दूर भी ना करना जो कुछ मेरे साथ मेरे चैनल ने उस दौरान किया मैं कभी अपने स्टिंगर के साथ न ऐसा न कर सकूँ .... "

गरीबी रेखा की सूची में सेठ गरीब दास

                             दीवाली के पहले गरीबी से परेशान हमारे गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे ने विचार किया इस बार लक्ष्मी माता को किसी न किसी तरह राजी कर लेंगें . सो बस सारे के सारे लोग माँ को मनाने हठ जोगियों की तरह रामपुर की भटरिया पे हो लिए जहां अक्सर वे जुआ-पत्ती खेलते रहते थे पास के कस्बे की चौकी पुलिस वाले आकर उनको पकड़ के दिवाली का नेग करते ये अलग बात है की इनके अलावा भी कई लोग संगठित रूप से जुआ-पत्ती की फड लगाते हैं….. अब आगे इस बात को जारी रखने से कोई लाभ नहीं आपको तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे की कहानी सुनाना ज़्यादा ज़रूरी है.
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तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम - नौखे की बात की वज़नदारी को मान कररामपुर की भटरियाके बीचौं बीच जहां प्रकृति ने ऐसी कटोरी नुमा आकृति बनाई है बाहरी अनजान समझ नहीं पाता किवहां छुपा जा सकता है. जी हां उसी स्थान पर ये लोग पूजा-पाठ की गरज से अपेक्षित एकांतवासे में चले गए ..हवन सामग्री उठाई तो लंगड़ के हाथौं से गलती से घी ज़मींन में गिर गया . बमुश्किल जुटाए संसाधन का बेकार गिरना सभी के क्रोध का कारण बन गयाकल्लू ने तो लंगड़ को एक हाथ रसीद भी कर दिया ज़मीं के नीचे घी रिसता हुआ उस जगह पहुंचा जहां एक शापित-यक्ष बंधा हुआ था .उसे शाप मिला था की सबसे गरीब व्यक्ति के हाथ से गिरे घी की बूंदें तुम पर गिरेंगीं तब तुम मुक्त होगे सो मित्रों यक्ष मुक्त हुआ मुक्ति दाता लंगड़ का आभार मानने उन तक पहुंचा . यक्ष को देखते ही सारे घबरा गए कल्लू की तो घिग्घी बंध गई. किन्तु जब यक्ष की दिव्य वाणी गूंजीमित्रो,डरो मत, तो सब की जान में जान आई.
यक्ष:तुम सभी मुझे शाप मुक्त किया बोलो क्या चाहते हो…?
मुन्ना: हमें लक्ष्मी की कृपा चाहिए उसी की साधना में थे हम .
यक्ष: ठीक है तुम सभी चलो मेरे साथ
सभी मित्र यक्ष के अनुगामी हुए पीछे पीछे चल दिए पीपल के नीचे बैठ कर यक्ष ने कहा :-”मित्रो,मैं पृथ्वी भ्रमण पर निकला था तब मैनें अपनी शक्ति से तुम्हारे गांव के ज़मींदार सेठ गरीबदास की माता से गंधर्व विवाह किया था उसी से मेरा पुत्र जन्मा है जो आगे चल के सेठ गरीबदास के नाम से जाना जाता है.”
यक्ष की कथा को बडे ही ध्यान से सुन रहे चारों मित्रों के मुंह से निकला :-”तो आप ही हमारे बडे ज़मींदार हैं ?”
हां, मैं ही हूं, घर-गिरस्ति में फ़ंस कर मुझे वापस जाने का होश ही न रहा सो मुझे मेरे स्वामी ने पन्द्र्ह अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस रात जब भारत आज़ाद हुआ था शाप देकररामपुर की भटरिया में कैद कर दिया था और कहा था जब गांव का सबसे गरीब आदमी घी तेल बहाएगा और उसके छींटै तुम पर गिरेंगे तब तुम को मुक्ति-मिलेगी.
आज़ तुम सबने मुझे मुक्त किया चलो…. बताओ क्या चाहते हो ?
सभी मित्रों ने काना-फ़ूसी कररोटी-कपडा-मकानमांग लिए मुक्ति दाताओं के लिये यह करना यक्ष के लिए सहज था. सो उसने माया का प्रयोग कर गाँव के ज़मींदार के घर की लाकर तिजोरी बुला कर ही उन गरीबों में बाँट दी . जाओ सुनार को ये बेच कर रूपए बना लो बराबरी से हिस्सा बांटा कर लेना और हां तुम चारों के लिए मैं हर एक के जीवन में एक बार मदद के लिए आ सकता हूं.
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उधर गांव में कुहराम मचा था. सेठ गरीब दास गरीब हो गया. पुलिस वाले एक एक से पूछताछ कर रहे थे. इनकी बारी आये सभी मित्र बोलेहम तो मजूरी से लौटे हैं.” किन्तु कोई नहीं माने झुल्ला-तपासी में मिले धन को देख कर सबको जेल भेजने की तैयारी की जाने . कि लंगड़ ने झट यक्ष को याद कर लिया . यक्ष एक कार में गुबार उडाता पहुंचा और पुलिस से रौबीली आवाज़ में बोलाइनको ये रूपए मैंने इनाम के बतौर दिए हैं.”ये चोर नहीं हैं.
रहा सवाल सेठ गरीब दास का सो ये तो वास्तव में गरीब हैं
हवालदार ने कहा :-सिद्ध करोगे
यक्ष: अभी लो गाँव के सचिव से गरीबी रेखा की सूची मंगाई गई जिसमें सब से उपर सूची अनुसार सबसे ऊपर सेठ गरीब दास का नाम था
सूची में जो नाम नहीं थे वो लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे के…?

30.10.10

दर्शन बावेजा अनोखे ब्लागर हैं

[1.1.1.jpg] 

नाम -दर्शन लाल बवेजा
पद -विज्ञान आध्यापक,govt.sr.sec.school Alahar ,Yamuna nagar  
पता -यमुना नगर ,हरियाणा
शैक्षिक योग्यता -B.Sc.B.Ed.,MA pol.sc.,eco.,M.Com.
शौंक -विज्ञान संचार,ग्रामीण विद्यार्थीयों को विज्ञान शिक्षा के लिए प्रेरित करना,अंधविश्वास निवारण,विज्ञान कथा लेखन
विशेष -कम लागत के विज्ञान मोडल्स विकसित करना,कम लागत के विज्ञान प्रयोगों की कार्यशाला लगाना,विज्ञान क्लब संचालन 
यमुना नगर हरियाणा आयु मुझसे आठ बरस छोटे यानी चालीस के ज्ञान में बरसों आगे विज्ञान के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ब्लॉग लिखने वाले भाई दर्शन बावेजा  के  ब्लॉग ज़रा हटके और नेट पर हिंदी में विज्ञान संबंधी जानकारियां मुहैया कराते हैं तभी तो मुझे आकृष्ट किया मेरे जैसे पाठकों के लिए यदि तलाश है विज्ञान की बातें सरलतम और सलीके से अंतर्जाल पर मिले तो अवश्य ही दर्शन भाई के ब्लॉग को खंगालें . अक्सर बच्चे जिज्ञासा से सवाल करतें हैं और हम कुछ ज़वाब नहीं दे पाते क्योंकि हमारे पास ज्ञान का अभाव होता है मेरे साथ भी यही हुआ भतीजा चिन्मय पूछ बैठा :- चाचा गिरगिट कैसे रंग बदल लेता है. ? बिटिया श्रद्धा ने पूछा था :-'पापा,जब बालों का रंग काला होता है तो सफ़ेद क्यों हो जाते हैं..?'' इन सवालों के ज़वाब मेरे पास न थे सो कुल मिला कर टाल दिया था उनको मैंने. और जब दर्शन भाई के ब्लॉग पर ज़वाब मिला तो उत्तर दे दिया. एक बोझ हट गया सीने से कि बच्चों की जिज्ञासा शांत तो हुई . सच भूखे को रोटी,रोगी को औषधि,देना जितना ज़रूरी है उतना ही बच्चों की जिज्ञासा को शांत करना भी . 
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  1. क्यों और कैसे विज्ञान में
  2. विज्ञान गतिविधियाँ
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और बाकी सब इधर दर्शन भाई से बाबस्ता बातें "दर्शन बावेजा "

29.10.10

जबलपुर ने रखे क़दम डिज़िटल अखबार की दुनिया में

"jabalpur2day"
[ajay.jpg]


अजय त्रिपाठी => 094253 24174 ajaynews@mail.com
धीरज शाह  => 0925150508

 
संस्कारधानी जबलपुर के दो युवा पत्रकार  अजय त्रिपाठी एवम धीरज़ शाह की वजह से जबलपुर का  डिज़िटल अखबार की दुनियां में पहला क़दम . खबरिया चैनल्स से जुड़े इन युवाऒं के इरादे अभी इतने ही नहीं हैं. वे चाहते हैं अंतर्ज़ाल पर जबलपुर की सही और सटीक खबरों की आमद इसी पोर्टल के ज़रिये ही हो सभी सूचनाएं एवम स्वस्थ्य समाचारों के लिये जबलपुर2डे में ब्लाग एवम स्तरीय हिंदी साहित्य का पन्ना भी जुड़ना लगभग तय है.


27.10.10

हेनरी का हिस्सा

पिता की मौत के बाद अक्सर पारिवारिक सम्पदा के बंटवारे तक काफ़ी तनाव होता है उन सबसे हट के हैनरी  बैचेन और दु:खी था कि पिता के बाद उसका क्या होगा. पिता जो समझाते  वो पब में उनकी बात का माखौल उड़ाता उसे रोजिन्ना-की गई  हर उस बात की याद आई जो पिता के जीवित रहते वो किया करता था. जिसे पापा मना करते रहते थे.सबसे आवारा बदमाश हेनरी परिवार का सरदर्द ही तो था ही बस्ती के लिये उससे भी ज़्यादा सरदर्द था. पंद्रह साल की उम्र में शराब शबाब की आदत दिन भर सीधे साधे लोगों से मार पीट जाने कितनी बार किशोरों की अदालत ने उसे दण्डित किया. पर हेनरी के आपराधिक जीवन  में कोई परिवर्तन न आया. अंतत: उसे पिता ने बेदखल कर दिया कुछ दिनों के लिये अपने परिवार से. पिता तो पिता पुत्र के विछोह  की पीड़ा मन में इतने गहरे पहुंच गई कि बस खाट पकड़ ली पीटर ने. प्रभू से सदा एक याचना करता हेनरी को सही रास्ते पे लाना प्रभु..?
पीटर  ज़िंदगी के आखिरी सवालों को हल करने लगा. मरने से पहले मित्र जान को बुला सम्पदा की वसीयत लिखवा ली पीटर ने. और फ़िर अखबारों के ज़रिये हेनरी को एक खत लिखा.  
प्रिय हेनरी
अब तुम वापस आ जाओ, तुम्हारा निर्वासन समाप्त करता हूं. मेरे अंतिम समय में तुम्हारी ज़रूरत है मुझे .
तुम्हारा पिता 
पीटर
                      हेनरी निर्वासन के दौरान काफ़ी बदल चुका था. दिन भर चर्च के बाहर लोंगों की मदद करना, अंधे-अपहिजों को सड़क पार कराना उसका धंधा अपना लिया था. खबर पढ़ के भी हैनरी वापस तुरंत वापस न गया. जाता भी कैसे उसे जान के बूड़े बाप की मसाज़ करनी थी, सूज़न के बच्चे को हास्पिटल ले जाना था. कुल मिला के अपनी आत्मा को शांत करना और पापों को धोना था. सारे काम निपटा कर जब वो प्रेयर कर रहा था तब  उसे दिखाई दिया  ईशू की जगह क्रास पर पिता पीटर  हैं... और बस प्रभू का संदेश स्पष्ट होते ही तेज़ क़दमों से हेनरी  रेल्वे स्टेशन की तरफ़ भागा. पता नहीं दस मिनट में तीन किलोमीटर का रास्ता किस ताक़त ने तय किया खुद हतप्रभ था.  पिता को क्रास पर देख कितना डरा था उसका आभास बस उसे ही था. देर रात कड़ाके की ठण्ड भोगता अल्ल सुबह ट्रेन में बैठ रवाना हो गया. दोपहर पिता के पास पहुंचा तो देखा कि पिता अब आखिरी सांसें गिन रहे हैं पिता पीटर अपलक उसे निहारते और यक़ायक चीखे ..."हेनरी.........!" इस चीख के साथ पिता के प्राणांत हो चुके थे. 
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http://top-10-list.org/wp-content/uploads/2009/08/The-Catholic-Church.jpgघर में पिता के अन्य सारे सफ़ल पुत्र बैंजामिन,स्टीफ़न,सभी बहनें धनवान बाप की सम्पत्ति के बंटवारे की राह देख रहे थे आशंकित संताने सोच रहीं थीं कि कहीं पिता की वसीयत में सबसे ज़्यादा हिस्सा नक़ारा हेनरी को न मिले. स्टीफ़न तो बीवी के साथ चर्च भी हो आया प्रेयर भी कर आया .गोया प्रभू वसीयत ही बदल देंगे .सभी औलादों के मन अपनी रुचि की सम्पदा मिलेगी या नहीं इस बात को लेकर काफ़ी तनाव था कईयों को इस बात का तनाव था :-"शायद उनको पिता हिस्सा दें भी न.
स्टीफ़न ने अपनी बीवी से कहा:-"पिता का मुझसे कोई लगाव न था रोज़ी पता नहीं क्यों वे मुझसे हमेशा अपमानित करते थे मुझे नहीं लगता कि मुझे मेरा मिलेनियर बाप कुछ दे जायेगा "
सारे कयास बेरिस्टर जान के आते ही खत्म हो गये वसीयत खोली गई , किसी को फ़ार्म हाउस, किसी को फ़ेक्ट्री, किसी को सोना बेटियों को बेंक में जमा रकम बराबर बराबर मिली आखिरी में लिखा था मैं अपनी सबसे प्यारी ज़मीन जो दस हेक्टर है हेनरी के नाम करता हूं. हेनरी ने खुशी खुशी उसे स्वीकारा. जान ने पूछा:-हेनरी , उस ज़मीन पर तो सांपों की बांबियां है..?
स्टीफ़न:- "भाई मुझे बहुत दु:ख है पिता ने न्याय नहीं किया !"
 बैंजामिन:- ”हेनरी, तुम चाहो तो मेरे साथ रह सकते हो ...?”
सारा:-"घोर अन्याय मैं तुम्हारी मदद करूं क्या...!"
    हैनरी ने कहा:- "पिता कभी ग़लत नही करते जो किया वो सही किया मैं खुश हूं तुम सब चिंता मत करो बस चिंतन करो मिलते रहना दु:ख दर्द आये तो एक दूसरे की मदद करना मैं एक बरस बाद वापस आऊंगा

http://hindi.webdunia.com/samayik/bbchindi/bbchindi/1004/19/images/img1100419060_1_1.jpg एक साल बाद हेनरी वापस लौटा सबसे पहले उस ज़मीन पर गया जो उसे वसीयत में मिली थी उसके साथ में था बैग जिसमें सांप पकड़ कर रखे जाते हैं. और घर लौटा तो उसके बैग में पांच सांप थे. वो भी तेज़ ज़हरीले. घर आकर इन सांपों से  ज़हर निकाला.  और बाटल में भर के विष रोधी दवा कम्पनी को बेच आया. धीरे विषधरों से इतनी दोस्ती हो गई हर सांप उसे पहचानने लगा. सबको उसने नाम दिये उनसे बात करता घायल सांपों क इलाज़ करता . अब उसका नाम देश के सबसे प्रतिष्ठित विष उत्पादकों की सूची में था . उसका संदेश वाक्य था :-"पिता किसी से अन्याय नहीं करते "
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पोस्ट एक कथानक मात्र है इसका नाट्य-रूपांतरण शीघ्र प्रकाशित करूंगा जो विक्रय हेतु होगा उपयोगकर्ता से प्राप्त राशी का प्रयोग एक नेत्र-हीन बालक मंगल के भविष्य के लिये किया जावेगा शायद सफ़ल हो सकूं इस संकल्प में 
छवियां:- गूगल से साभार
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25.10.10

"जन्म दिन मुबारक़ हो अर्चना चावजी !!"

अर्चना चावजी
एक ब्लागर एक गायिका एक संघर्ष शील नारी जो दृढ़्ता का पर्याय है.... उनके ब्लाग "मेरे मन की " में वो सब है जो उनका एक परिचय यहां भी दर्ज़ है यानि उनकी बहन रचना बजाज  के ब्लाग "मुझे भी कुछ कहना है " पर. अर्चना जी, रचना जी, भाई देवेन्दर  जी , सबको गोया  शारदा मां ने कंठ वाणी में खुद शहद से "मधुरता" लिख दी है. मेरे ब्लाग की सह लेखिका अर्चना जी को हार्दिक शुभ कामनाएं.
                                                      
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            TO "ARCHANA CHAVAJI"

24.10.10

विश्व कवि मुक्तिबोध का स्मरण

गजानन माधव 'मुक्तिबोध',मुक्तिबोध की रचनाएँ कविता कोश में,भूरी-भूरि खाक धूलितो अंतर जाल पर उपलब्ध हैं उससे हटके मेरी नज़र में गजानन माधव "मुक्तिबोध" सदकवियों, विचारकों सामान्य-पाठकों , शोधार्थियों के लिए अनवरत ज़रूरी है.  मुझे जो रचनाएं  बेहद पसंद है वे ये रहीं जो विकी से साभार लीं जाकर सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है,
http://4.bp.blogspot.com/_lxzqs1Yxoss/SYA04D-9m_I/AAAAAAAAAjg/Vc7FpWIDHD8/s200/gajanan_madhav_muktibodh.jpg
मुक्ति बोध का य चित्र जबलपुर में शशिन जी ने उतारा था
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3_TWTGM8U5lr0iScgo5rFbvEkYyiEuQofss4ucM1L0gGYLkZf4BJ6E2n1RdN6H8c_LmpH4orH7D4UQZGTVYAxXNrtgEH5s5GYBNy4UMmna1me_pcCFNjXnjbc3wWmMlDsgfekN-1sueU/s320/jayprakash.jpgरायपुर की संस्था प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छत्तीसगढ़ का आभार ज़रूरी है जो  अ. भा. रचना शिविर मुक्तिबोध की कर्मस्थली में आयोजित कर रहा है इस विस्तृत विवरण यहां और सृजनगाथा के इस पन्ने पर उपलब्ध है.साथ ही अपना मेल बाक्स खोलिये शाय जयप्रकाश मानस का मेल आपके मेल बाक्स में हो . 
रायपुर । रचनाकारों की संस्था, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, रायपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा देश के उभरते हुए कवियों/लेखकों/निबंधकारों/कथाकारों/लघुकथाकारों/ब्लॉगरों को देश के विशिष्ट और वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा साहित्य के मूलभूत सिद्धातों, विधागत विशेषताओं, परंपरा, विकास और समकालीन प्रवृत्तियों से परिचित कराने, उनमें संवेदना और अभिव्यक्ति कौशल को विकसित करने, प्रजातांत्रिक और शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति उन्मुखीकरण तथा स्थापित लेखक तथा उनके रचनाधर्मिता से तादात्मय स्थापित कराने के लिए अ.भा.त्रिदिवसीय/रचना शिविर (18, 19, 20 दिसंबर, 2010) सृजनात्मक लेखन कार्यशाला का आयोजन विश्वकवि गजानन माधव मुक्तिबोध की कार्यस्थली(त्रिवेणी परिसर), राजनांदगाँव में किया जा रहा है । इस अखिल भारतीय स्तर के कार्यशाला में देश के 75 नवोदित/युवा रचनाकारों को सम्मिलित किया जायेगा ।
संक्षिप्त ब्यौरा निम्नानुसार है-
प्रतिभागियों को 20 नवंबर, 2010 तक अनिवार्यतः निःशुल्क पंजीयन कराना होगा । पंजीयन फ़ार्म संलग्न है ।
प्रतिभागियों का अंतिम चयन पंजीकरण में प्राप्त आवेदन पत्र के क्रम से होगा ।
पंजीकृत एवं कार्यशाला में सम्मिलित किये जाने वाले रचनाकारों का नाम ई-मेल से सूचित किया जायेगा ।
प्रतिभागियों की आयु 18 वर्ष से कम एवं 45 वर्ष से अधिक ना हो ।
प्रतिभागियों में 5 स्थान हिन्दी के स्तरीय ब्लॉगर के लिए सुरक्षित रखा गया है ।
प्रतिभागियों को संस्थान/कार्यशाला में एक स्वयंसेवी रचनाकार की भाँति, समय-सारिणी के अनुसार अनुशासनबद्ध होकर कार्यशाला में भाग लेना अनिवार्य होगा ।
प्रतिभागी रचनाकारों को प्रतिदिन दिये गये विषय पर लेखन-अभ्यास करना होगा जिसमें वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा मार्गदर्शन दिया जायेगा ।

कार्यशाला के सभी निर्धारित नियमों का आवश्यक रूप से पालन करना होगा ।
प्रतिभागियों को सैद्धांतिक विषयों के प्रत्येक सत्र में भाग लेना अनिवार्य होगा । अपनी वांछित विधा विशेष के सत्र में वे अपनी इच्छानुसार भाग ले सकते हैं । प्रतिभागियों के आवास, भोजन, स्वल्पाहार, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह की व्यवस्था संस्थान द्वारा किया जायेगा ।
प्रतिभागियों को कार्यशाला में संदर्भ सामग्री दी जायेगी ।
प्रतिभागियों को अपना यात्रा-व्यय स्वयं वहन करना होगा ।
                        प्रतिभागियों को 17 दिसंबर, 2010 दोपहर 3 बजे के पूर्व कार्यशाला स्थल त्रिवेणी परिसर/सिंधु सदन, जीई रोड, राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ में अनिवार्यतः उपस्थित होना होगा । पंजीकृत/चयनित प्रतिभागी लेखकों को कार्यशाला स्थल (होटल) की जानकारी, संपर्क सूत्र आदि की सम्यक जानकारी पंजीयन पश्चात दी जायेगी ।
संपर्कसूत्र
जयप्रकाश मानस
कार्यकारी निदेशक
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छत्तीसगढ़
एफ-3, ..माशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ – 492001
ई-मेल-pandulipipatrika@gmail.com
मो.-94241-82664
पंजीयन हेतु आवेदनपत्र नमूना
01. नाम -
02.
जन्म तिथि व स्थान (हायर सेंकेंडरी सर्टिफिकेट के अनुसार) -
03.
शैक्षणिक योग्यता
04.
वर्तमान व्यवसाय -
05.
प्रकाशन (पत्र-पत्रिकाओं के नाम)
06.
प्रकाशित कृति का नाम
07.
ब्लॉग्स का यूआरएल – (यदि हो तो)
08.
अन्य विवरण ( संक्षिप्त में लिखें)
09.
पत्र-व्यवहार का संपूर्ण पता (ई-मेल सहित)
हस्ताक्षर

20.10.10

एक अपसगुन हो गया. सच्ची...!

                                   दो तीन दिन के लिए कल से प्रवास पर हूँ अत: ब्लागिंग बंद क्या पूछा न भाई टंकी पे नहीं चढा न ही ऐसा कोई इरादा अब बनाता बस यात्रा से लौटने तक  . न पोस्ट पढ़ पाउंगा टिपिया ना भी मुश्किल है. सो आप सब मुझे क्षमा करना जी . निकला तो कल था घर से किंतु एक  अपसगुन हो गया. सच्ची एक अफसर का फून आया बोला :-"फलां केस में कल सुनवाई है आपका होना ज़रूरी है.  कल निकल जाना ! सो सोचा ठीक है. पत्नी ने नौकरी को सौतन बोला और हम दौनों वापस . सुबह अलबेला जी का फून आया खुशी  हुई जानकर कि  उनसे जबलपुर स्टेशन पे मुलाक़ात हो जाएगी. किंतु अदालत तो अदालत है. हमारे केस की  बारी आई तब तक उनकी ट्रेन निकल चुकी थी यानी कुल मिला कर इंसान जो सोकाता है उसके अनुरूप सदा हो संभव नहीं विपरीत भी होता है. श्रीमती जी को समझाया.  वे मान  गईं . उनकी समझ में आ गया. आज ट्रेन से हरदा के लिए रवानगी डालने से पेश्तर मन में आया एक पोस्ट लिखूं सो भैया लिख दी अच्छी लगे तो जय राम जी की अच्छी न लगे तो राधे राधे 
  तो  "ब्लॉगर बाबू बता रए हैं कि "Image uploads will be disabled for two hours due to maintenance at 5:00PM PDT Wednesday, Oct. 20th" सो आप सब ने देख ही लिया होगा.

17.10.10

मानव-अधिकारों का हनन क्यों ?

भड़ास वाले ब्लॉगर यशवंत जी की माता जी के साथ जो भी हुआ है उचित कदापि नहीं. अब एक माँ  को चाहिए न्याय...एक बेटी से अपेक्षा है कि वे यशवन्त जी ने पूरे आत्म नियंत्रण के साथ जो पोस्ट लिखी घटना के 72 घंटे बाद देखिये क्या हुई थी घटना :-"वो मायावती की नहीं, मेरी मां हैं. इसीलिए पुलिस वाले बिना अपराध घर से थाने ले गए. बिठाए रखा. बंधक बनाए रखा. पूरे 18 घंटे. शाम 8 से लेकर अगले दिन दोपहर 1 तक. तब तक बंधक बनाए रखा जब तक आरोपी ने सरेंडर नहीं कर दिया. आरोपी से मेरा रिश्ता ये है कि वो मेरा कजन उर्फ चचेरा भाई है. चाचा व पिताजी के चूल्हे व दीवार का अलगाव जाने कबका हो चुका है. खेत बारी सब बंट चुका है. उनका घर अलग, हम लोगों का अलग. उस शाम मां गईं थीं अपनी देवरानी उर्फ मेरी चाची से मिलने-बतियाने. उसी वक्त पुलिस आई. ये कहे जाने के बावजूद कि वो इस घर की नहीं हैं, बगल के घर की हैं, पुलिस उन्हें जीप में बिठाकर साथ ले गई. (आगे यहां से )."इस घटना का पक्ष ये है कि किन कारणों से किसी भी अपराध के आरोपी को तलाशने का तरीक़ा कितना उचित है.जबकी कानून इस बात की कितनी इज़ाज़त देता है इसे  "Legal Provision regarding arrest-detention" आलेख पर देखा जा सकता है. अमिताभ ठाकुर ने अपने आलेख में कानूनी प्रावधान की व्याख्या की है. व्याख्या के अलावा सामान्य सी बात है कि किसी अपराध के आरोपी की तलाश में किसी अन्य नातेदार को जो एक प्रथक इकाई का सदस्य है वृद्ध है को पुलिस-स्टेशन में रख उसके मानव-अधिकारों का हनन किस आधार पर  किया जा सकता है. ? पुलिस की  इस प्रक्रिया से हम असमत हैं. 
 

12.10.10

महफ़ूज़ खतरे से बाहर

जो भी कुछ महफ़ूज़ के साथ घटा वो  समाज के लिये शर्मनाक़ है इसमें कोई दो राय नहीं. सभी चिंतित हैं. कल तय शुदा सरकारी  प्रसारण के चलते आज़ मुझे रिकार्डिंग पर जाना था . रिकार्डिंग रूम में घुस ही रहा था की ललित जी जी ने अपुष्ट खबर की मुझसे पुष्टि चाही. किंतु तब सम्भव न था फ़िर भी फ़ोन बुक में मौज़ूद नम्बर्स पर सीधे महफ़ूज़ को काल किया कोई बात न हो सकी. पाबला जी से चर्चा हुई पर पुष्टि नहीं हम भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि वो खबर झूठी हो . परंतु खबर सच निकली अब संतोष इस बात का है कि उनके शरीर से गोलियां निकाल दी गईं है  वे बात कर पा रहें है शिवम मिश्रा जी ने बताया वे बता रहे थे कि :-"तीन जगह गोली लगी "
कल से आज़ तक सब बेचैन पागल से उनकी बेहतरी की दुआ कर रहे हैं . हो भी क्यों न सबका अपना सा है महफ़ूज़. आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति",इंदु  पूरी  गोस्वामी संगीता  पूरी ,अजय  झा  ,पद‍्म सिंह Padm Singh ,प्रतिभा  कटियार  ,प्रशांत  प्रियदर्शी  ,ललित शर्मा -,राजीव  ओझा  ,आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति" ,Dr. Mahesh Sinha ,शिवम्  मिश्रा  ,अनूप शुक्ला - प्रवीण त्रिवेदी  ,  

आ भा  मिश्र ,विवेक  रस्तोगी  ,शरद कोकास,रश्मि  रविजा  ,समीर  लाल ,Swapna Shail,Dr RC Mishra ,Satish Saxena ,Shivam Misra, राज भाटिय़ा . शिखा वार्षणेय सहित सारा ब्लॉग जगत स्तब्ध है और दुआ कर रहा है 

आईये दुआ करें

आईये दुआ करे
उनके लिये जो
अपनों से
महफ़ूज़ न हो...!!
जो
सदा दर्द के सागर में तैरता हो
वो जिससे
कईयों का नेह भरा नाता हो
वो जो दुश्मन के भी गुण गाता हो ?
जी हां उसी अपने से पराये-आदमी की
बेहतरी के लिये
आईये दुआ करे

10.10.10

कौन है जो

साभार :गूगल बाबा के ज़रिये 
कौन है जो
आईने को आंखें तरेर रहा है
कौन है जो सब के सामने खुद को बिखेर रहा है
जो भी है एक आधा अधूरा आदमी ही तो
जिसने आज़ तक अपने सिवा किसी दो देखा नहीं
देखता भी कैसे ज्ञान के चक्षु अभी भी नहीं खुले उसके
बचपन में कुत्ते के बच्चों को देखा था उनकी ऑंखें तो खुल जातीं थी
एक-दो दिनों में
पर...................?

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...