आ मीत लौट चलें
आ ओ मीत लौट चलें गीत को सुधार लें वक़्त अर्चना का है -आ आरती संवार लें । भूल हो गई कोई गीत में कि छंद में या हुआ तनाव कोई , आपसी प्रबंध में भूल उसे मीत मेरे सलीके से सुधार लें ! छंद का प्रबंध मीत ,अर्चना के पूर्व हो समेटी सुरों का अनुनाद भी अपूर्व हो, अपनी एकता को रेणु-तक प्रसार दें । राग-द्वेष,जातियाँ , मानव का भेद-भाव भूल के बुलाएं पार जाने एक नाव ! शब्द-ध्वनि-संकेत सभी आज ही सुधार लें ! इस गीत में सच आज जो बात कहनी चाही थी कौन सुनता इस गीत का संदेश खो गया था कुछ ने वाह वाह करके मेरी आवाज़ भुला दी कुछ अर्थ खोजते रहे फ़िर निरर्थक समझ के छोड़ दिया . कुछ के लिए तो फिजूल था कवि । मेरी यानी कवि की आत्मा को मारने वालो "तुम समझो देश तुम्हारे लिए खिलौना कतई न बने इस बात का तमीज इस भारत नें सीख लिया है " आज मैं एक सूची जारी करना चाहता हूँ :- इसे स्वीकारना ही होगा भारत में कोई भी व्यक्ति या समुदाय किसी भी स्थिति में जाति, धर्म,भाषा,क्षेत्र के आधार पर बात करे उसका बहिष्कार कीजिए । लच्छेदार बातों से गुमराह न हों । कानूनों को जेबी घड़ी बनाके चलने वालों को सबक सिखाएं ख़ुद भी भारत के संविधा