19.8.11

ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!


साभार : आई बी एन ख़बर

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआं,पण्डित भया न कोय
ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!

वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये
तू कितने सर अब क़लम करेगा, ये जो कटा तो वो इक उठा है
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तेरी हक़ीक़त  तेरी तिज़ारत  तेरी सियासत, तुझे मुबारक़--
नज़र में तेरी हैं हम जो तिनके,तो देख ले अब हमारी ताक़त !!
कि पत्ता-पत्ता हवा चली है.. तू जा निकल जा बदन छिपा के !!
                          वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये
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थी तेरी साज़िश कि टुकड़े-टुकड़े हुआ था भारत, वही जुड़ा है
तेरे तिलिस्मी भरम से बचके, हक़ीक़तों की तरफ़ मुड़ा है....!!
                         अब आगे आके तू सर झुक़ा ले..या आख़िरी तू रज़ा बता दे ..?
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ये जो हक़ीक़त का कारवां हैं,तेरी मुसीबत का आसमां है
कि अपनी सूरत संवार आके, हमारे हाथों में आईना है..!
                        अग़रचे तुझमें नहीं है हिम्मत,तो घर चला जा..या मुंह छिपा ले !
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17.8.11

इतिहास तमाशबीनों का नहीं होता…. ..अविनाश दास


   मेरे नेटिया मित्र अविनाश दास ने अपनी बात में सभी को सजग कर दिया कि किसी भी स्थिति में तमाशबीन महत्व हीन हो जाते हैं इतिहास के लिये.. अविनाश की बात के पीछे से एक ललकार सुनाई दे रही है कि... आंदोलन यानी बदलाव के लिये की गई कोशिश कमज़ोर न हो..
यह किसी आंदोलन में विश्‍वास करने या न करने का समय नहीं है। समय है, इस उबाल को व्‍यवस्‍था के खिलाफ एक सटीक प्रतिरोध में बदल देने का । जिन्‍हें अन्‍ना से दिक्‍कत है, वे अन्‍ना का नाम न लें, लेकिन सड़क पर तो उतरें । जिन्‍हें लोकपाल-जनलोकपाल से दिक्‍कत है, वे इस जनगोलबंदी को एक नयी दिशा देने के लिए तो आगे बढ़ें। इतिहास तमाशबीनों का नहीं होता….” अविनाश का कथन एक वास्तविकता है.
अनपढ़ ग़रीब तबका जिसे ये बात समझने का सामार्थ्य नहीं रखता पर वो ये बात जानता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक जुट होना ज़रूरी है ऐसा जैसे आज़ादी के वक़्त हुआ था वही सब हो रहा है. गांधी सहित सभी समकालीन आईकान्स के संदेशों में क्या था यही न कि :-अंग्रेज़ों से मुक्ति के लिये एकता ज़रूरी है बस इसी संदेश ने एक तार में पिरो दिया लोग गोलबंद हो गए.. और शुरु हो गया परदेशियों को भगाने का अभियान.
सूरत वाली नेटिया मित्र से मिली खबर में पता चता चला कि रविशंकर भी दूसरी पारी के लिये सहयोगियों को बुला रहें हैं. यानी सिलसिला जारी रहेगा. रुकेगा नहीं. सवाल तो ये भी होंगे कि (कदाचित हैं भी ) : क्या अन्ना के जनलोक पाल बिल से तस्वीर बदल जाएगी..?’
सच तो ये है कि अन्ना एण्ड कम्पनी के बिल से तस्वीर बदलने न बदलने पर परिसंवाद से ज़्यादा ज़रूरत इस बात को समझ लेने की है कि:-अब जनता भ्रष्ट आचरण से मुक्ति चाहती है..! इतना ही काफ़ी है. इस गोलबंदी में जो तस्वीर उभर के आ रही है उससे साफ़ है कि- आंदोलित किया नहीं जा रहा बल्कि भारत के उजले कल की तस्वीर देखने वाली आम जनता को रास्ता मिल गया.इतना ही काफ़ी था . उसे (जनता को ) न तो अन्ना ने भड़काया न केजरीवाल ने उकसाया, किरण बेदी और रविशंकर जी का हाथ है इसमें.. बस इतना जानिये ये आवाज़ बरसों से दिल में गूंज रही थी.. खासकर मध्यम वर्ग के जो मुखर हो गई है अब.
            संसद को क़ानून बनाने के अधिकार की बात को आधार बनाया गया जनता के इस आंदोलन के संदर्भ में. सही है तो ये भी सही है कि प्राप्त अधिकार जेबी घड़ी नहीं हो सकते. एक पिता अगर अपनी संतान को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त होने के बावज़ूद उपेक्षित करे तो पिता के खिलाफ़ की गई बग़ावत को रोकना असंभव है. 
            मेरी नज़र में जो भी चल रहा है  अन्ना वर्सेस सरकार जैसा कोई भी झगड़ा नहीं है बल्कि एक जनजागरण है एक सिंहनाद है एक हुंकार है जो देर सबेर सामने आती ही . 

16.8.11

अन्ना गांधी वर्सेस ..अदर.गांधी....भाग दो

अन्ना की कहानी अन्ना की जुबानी
वो लोग जो  लोग को पसंद नहीं करते हैं वो मानतें हैं कि अन्ना हज़ारे "व्यक्तिवादी हैं." अन्ना की शिक़ायत करते हुए कोई कह रहें हैं कि अन्ना एक  के इर्द गिर्द अराज़कों का जमवाड़ा है..
आप खुद देखिये यहां  
अन्ना के लिये लोग जो भी कहें या अन्ना अपने बारे में जो भी कहें.. एक बात तो सही है
"होना तय है क्योंकि भ्रष्टाचार है ही अति संवेदन शील मुद्दा "

15.8.11

अन्ना हज़ारे को समर्पित समर्थन-गीत : वो जो गा रहा है वह भी तो है राष्ट्र गीत..!



आज़ वक़्त है सही.......
हज़ारों को तू पाठ दे .
सोच मत कि क्या बुरा 
क्या भला है मेरे मीत
हिम्मतवर की ही 
होती  है सदा ही जीत.!

सोच मत कि क्या
                                                          करेगा  लोकपाल 
                                                          सोच मत कि
इंतज़ाम झोल-झाल ,
ऊपरी कमाई बिन
कैसा होगा अपना हाल !
वक़्त शेष है अभी 
सारे काम टाल दे !
जेब भर तिज़ोरी भर
बोरे भर के नोट भर ,
खैंच हैंच फ़ावड़े से
या यंत्र का प्रयोग कर !
सवाल पे भी नोट ले
जवाब के भी नोट ले !
ले सप्रेम भेंट मीत -
परा ज़रा सी ओट से !
किसने धन से जीतीं है
हज़ारों दिल की धड़कनें.!
मुफ़लिसी के दौर में 
पुख़्ता होती हैं जड़ें..!!
मेरी बात मान ले ...
मीत अब तू ठान ले
क्यों अभी तलक तू चुप
आगे आ उफ़ान ले..
क्यों तुझे देश के दुश्मनों
से प्रीत मीत
वो जो गा रहा है
वह भी तो है राष्ट्र गीत..!!
न ओट से तू नोट ले
न बोरे भर के नोट ले
न सवाल न ज़वाब
किसी वज़ह से नोट ले
न वोट के तू नोट ले
न खोट के तू वोट ले..!
न किसी ग़रीब को
लूट ओ’ खसोट ले..!!
भोर पहली बार की
भोर तेरे द्वार की
आज़ देश में हुई
भोर मददगार सी..!!
भूमिका में आजा मीत
अब तो समझदार की..!!

लोकतंत्र को आलोक-तंत्र बनाने की कवायद

लोकतंत्र को 

आलोक-तंत्र बनाने की कवायद करता.
भारत पैंसठ साल का  बुड्ढा..  हो गया..
अपनी पुरानी यादों में खो गया.......!!
दीवारों पर कांपते हाथों से लिख रहा था 
"आलोक-तंत्र"
लोग भी आये आगे 
बूढ़े का मज़ाक  उड़ा कर भागे..!!
कुछ खड़े रहे मूक दर्शक बन ..!
कुछ गा रहे थे बस हम ही हम..!! 

कोलाहल तेज़ हुआ फ़िर बेतहाशा 
हर ओर नज़र छाने लगी निराशा !
सबकी अलग थलग थी भाषा-
कांप रही थी बच्चों की जिग्यासा !!
कल क्या होगा.. सोच रहे थे बच्चे 
एक बूड़ा़ बोला :-"भागो किसी लंगड़े की पीठ पे लद के ही "
जान बचाओ.. छिप छिपाकर.. 
हमें नहीं चाहिये न्याय
क्या करेंगें स्विस का पैसा लेकर 
फ़हराने दो उनको तिरंगा ये
है उनका
संवैधानिक अधिकार...
रामदेव..अन्ना... सब कर रहे
शब्दों का व्यापार..
अरे छोड़ो न यार
फ़िज़ूल में मत करो वक्त बरबाद..
गूंगे फ़रियादीयो कैसे बोलोगे
बहरी व्यवस्था की भी तो कोई मज़बूरी है
वो कानों से देखेगी...!!
सदन में चीत्कारेंते हैं..
हमारे लिये हां..ये वही लोग हैं जो
सड़क पर दुत्कारतें हैं...
पूरे तो होने दो पांच साल
बदल देना
इस बरगद की छाल...
अभी चलो घर चलतें हैं..

14.8.11

अन्ना गांधी वर्सेस ..अदर.गांधी.....?


गुज़रात वाले गांधी के चेले अन्ना के बारे में जो कुछ जाना तो लगा कि अन्ना को अन्ना गांधी बोल देने में कोई हर्ज़ नहीं..! अन्ना के किसे क्या नज़र आ रहे हैं  इस मसले पर मुझे ज़्यादा कुछ कहना नहीं है. परंतु अन्ना मेरी नज़र में एक ताक़त तो ज़रूर बन गए हैं. कुछ लोगों को भ्रम है कि अन्ना केवल एक वर्ग विशेष का नेतृत्व कर रहे हैं.. ऐसा सोचना ग़लत है मुझे लगता है (सत्य भी यही है) अन्ना वाक़ई दिलों में स्थान बना चुके हैं. गांधी देश  की नज़र में कितना आदरस्पद थे इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि  मेरी नानी अपनी संध्या आरती के समय जिन देवी देवताओं का जयकारा करतीं थीं उसमें "गांधी बाबा की जय" भी शामिल था.यानी एक आयकान की स्थिति तक पहुंचना आदर्श बन जाना अपढ़ गंवारों के दिल में बैठना.. किसी साधारण सख्सियत के बूते की बात नहीं. तब तो शहर भी आज के कस्बे की तरह हुआ करते थे गांधी ने कोई एस एम एस , फ़ेसबुक,ट्वीटर का सहारा न लिया था फ़िर भी देश के दिल में बसे थे . अन्ना भी गांधी की तरह देश के आम आदमी को पसंद आ रहे हैं. कारण ये कि "हर भारतीय भ्रष्टाचार से मुक्ति का मार्ग खोज रहा है..!" जैसा कि गांधी के दौर में हर भारतीय अंग्रेजों से भारत की आज़ादी की बाट जोह रहा था. 
आज़ ही मैने एक रिक्शे वाले से पूछा "अन्ना हज़ारे को जानते हो ..?"
"जी,साहब कौन नहीं जानता.. वो ही तो है जो ईमान का राज लाएगा.."
              ईमान के राज़ के लिये छटपटाता भारत एस एम एस , फ़ेसबुक,ट्वीटर की वज़ह से नहीं छटपटाता वो यक़ीन कीजिए सियासी दांवपेंच और सफ़ेद झूटों से उकता चुका है.. उसे एक आयकान की तलाश थी जो मिला अन्ना के रूप में. उसे अब स्विस बैंक का मामला भी समझ आ गया. उसे अखबार पढ़ना आए न आए रेडियो सुनना टी वी देखना आता है .. बेशक़ अन्ना का अनुयायी हो गया है.. अन्ना वाक़ई गांधी है.. विचार से तो बताएं जिनने गांधी को पहन रखा है वो कहां तक इस गांधी के मुक़ाबिल खड़े रहेंगें जो गांधी को जी रहा है उसका शक्तिवान होना अवश्यंभावी है. सवाव अब ये है कि :-"

  • क्या अन्ना अन्ना हजारे देश के दूसरे गांधी हैं..?"
सख्त लोकपाल विधेयक के लिए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का आमरण अनशन बुधवार को दूसरे दिन भी जारी रहा। अन्ना के गांव में राले गांव सिद्धी में भी प्रदर्शन जारी है। वहां भी लोगों ने सरकार के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। मंगलवार का अन्ना का पूरा गांव भूखा था। अन्ना के गांव में नारे गूंज रहे हैं अन्ना हजारे आंधी है...देश का दूसरा गांधी है....।देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को मिल रहे समर्थन के बीच जाने-माने गांधीवादी हजारे ने कहा है कि सरकार भ्रष्टाचार रोकने को लेकर गम्भीर नहीं है। उन्होंने कहा कि राजनेताओं पर अब विश्वास नहीं किया जा सकता।इस बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (युनाइटेड) ने हजारे के अनशन को अपना समर्थन दिया है जबकि कांग्रेस ने हजारे के उपवास को 'असामयिक' करार दिया है।5 April 2011 मंगलवार को महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद हजारे ने जंतर-मंतर पर अपना अनशन शुरू किया। अनशन पर बैठने से पहले हजारे ने कहा, ‘यह दूसरा 'सत्याग्रह' है।हजारे समर्थक लोकपाल विधेयक के समर्थन में राष्ट्र ध्वज और तख्तियों के साथ राजघाट और जंतर-मंतर पर एकत्रित हैं। हजारे के समर्थन में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल, स्वामी अग्निवेश, मैगसेसे पुरस्कार विजेता किरन बेदी, संदीप पांडे सहित अन्य लोग शामिल हुए ।( स्रोत : विकी पीडिया से )

  • अन्ना क्या तालिबानी गांधी है..? कुछ लोग कहते हैं कि अन्ना तालिबान गांधी हैं .. हंसी आती है ऐसे वक्तव्य वीरों के विचार पर लगता है कि गांधी की चीरफ़ाड़ का इससे अनोखा अवसर उनको कब मिलता ... 
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यक़ीन  तो होने लगा है कि अन्ना-हजारे नहीं अन्ना गांधी है..  उसे अनदेखा अनसुना करना ज़ायज़ नहीं.. अब तो सबसे पहले सरकारी मशीनरी को  आत्म चिंतन करना है कि क्या बिना भ्रष्ट हुए जीना संभव है..? मेरे ख्याल से अवश्य जिया जा सकता है . अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करो बस इच्छाओं लालसाओं के पीछे मत भागो.. ज़रूरत तो भिक्षुक की भी पूरी हो जाती है लेकिन लालसा किसी सम्राठ की भी पूरी नहीं होती. ये सही है...
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जी आपको यक़ीन हो न हो मुझे यक़ीन है. सुन्दर लाल बहुगुणा ने भोपाल प्रशासन अकादमी में अधिकारीयों को सम्बोधित करते हुये  ये शब्द कहे थे (वर्ष मुझे याद नहीं आ रहा) :- ”प्रकृति और चरित्र दौनों की रक्षा आप सादगी के आयुध से कर सकतें हैं.."
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आप यक़ीन करें न करें इस जन क्रांति के सामने सारी दलीलें बेहद लाचार साबित हो जाएंगी अन्ना को गलत और गै़रजरूरी करार देने वाली.. 

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इस आलेख का किसी भी सियासी संकल्प से कोई लेना देना नहीं वरन इस बात की पतासाजी करना है कि क्या वाक़ई अन्ना अब के दौर के आईकान हैं.. महसूस तो हो रहा है कि सही है वे एक आईकान हैं...  
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11.8.11

मित्र जिसका विछोह मुझे बर्दाश्त नहीं

   
                   ख़ास मित्र के लिए ख़ास पोस्ट प्रस्तुत है.. आप लोग चाहें इसे अपने ऐसे ही किसी ख़ास मित्र को सुनवा  सकते .... 




ऐसे मित्रों का विछोह मुझे बर्दाश्त नहीं. आप को भी ऐसा ही लगता होगा.. चलिये तो देर किस बात की
ये रहा मेरा मित्र जो नाराज़ है मुझसे यह एक मात्र तस्वीर है  इनके पास जिनका हार्दिक आभारी हूं.

10.8.11

बधाईयां अर्चना चावजी संगीता पुरी, घुघूती बासूती, रश्मि स्वरूप,निर्मला कपिला जी को ..

हिन्दी की मशहूर ब्लागर वेबकास्टए पाडकास्टर मेरे मन की..स्वामिनी एवम मिसफ़िट की सहभागी ब्लागर  तथा  ब्लाग  अर्चना चावजी  सौम्य एवम सतत कर्मशील ब्लागर हैं.. आवाज़ पर इनका हालिया प्रसारण हवा महल आकाशवाणी के आडियो सीरियल  "हवा महल" की याद दिलाता है..


ब्लाग इन मीडिया पर प्रकाशित सूचना के अनुसार,
9 अगस्त 2011 को The New York Times के इंटरनेट संस्करण में संगीता पुरीघुघूती बासूतीअर्चना चावजीरश्मि स्वरूप,निर्मला कपिला का उनके ब्लॉगों के नाम सहित तथा रवि रतलामी का उल्लेख करते हुए भारत में महिला ब्लॉगरों पर आधारित लेख
.
यही आलेख प्रिंट में, The New York Times के एशियाई संस्करण The International Herald में 10 अगस्त 2011 को पृष्ठ 2 पर छपा है. यहाँ उसका सांकेतिक प्रस्तुतिकरण है क्योंकि वह पृष्ठ नहीं मिल सका, केवल मुख्य पृष्ट ही मिल सका
.
                                     संगीता पुरीघुघूती बासूतीअर्चना चावजीरश्मि स्वरूप,निर्मला कपिला को 
मिसफ़िट की ओर से  हार्दिक बधाईयां 
भवदीय
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"


8.8.11

"ज़रा सी विकृति जायज़ है वरना आप जितने सहज होंगे कुत्ते उतना ही आपका मुंह चाटेंगें"

                            "आप जितने सहज होंगे कुत्ते उतना ही आपका मुंह चाटेंगें" इस बात से कई दिनों तक मेरी असहमति थी. हो भी क्यों न सहजता ज़िंदगी में वो रंग भरती है जो केवल प्रकृति ही दे सकती है हमारे जीवन को.. हुआ भी यही जीवन भर की सादगी सहजता के सहारे जीवन में  रंग भरता इंसान..  
मेरा  एक कपटी मित्र जिसकी असलियत से वाकिफ़ तो था पर आज़ मित्रता दिवस पर मैने उससे रिश्ता तोड़ लिया वो एक शातिर शिक़ारी है..एक ऐसा शिक़ारी जो मासूमियत और नेक़ी का लबादा ओढ़ के दुनियां के सामने बड़ी बेहरहमी से मानवाधिकारों का अंत किया  मेरे .भी...
    पर क्या हम खुद पर  हिंसक आघातों को  जारी रहने दें .... कदापि नहीं..हमको विद्रूपता का सहारा लेना ही होगा.. वरना कुत्तों से आपका मुंह यूं ही चटवाया और नुचवाया जाता रहेगा ..  चेहरे पर विद्रूपता लानी ही होगी.. पर इस विद्रूपता को व्यक्तित्व पर हावी न होने दिया जाए.. 
 कैसे ..?
                       इस सवाल का ज़वाब दिया था एक दिन मेरे मित्र  सलिल समाधिया ने :-... अगर आप सांस्कृतिक नहीं तो आप के काबिल दुनियां नहीं.. दुनियां के काबिल कौन है..? वही जो गाता है... नैसर्गिक संगीत के साथ सरस भावों वाले गीत गाता है.. !!   जो सांस्कृतिक है , 
                                    आज़ गुरुदेव ने अनंत जी से इच्छा व्यक्त की कि वे मुझसे बात करेंगें.. गुरु की महिमा देखें ब्रह्मचारी अनंत बोध जी ने बताया होगा उनसे कि "गिरीष कवि है.." वो बोले.. हृदय से निर्मल होगा ..!! यहां यह स्पष्ट है कि :- "सर्जक को सभी दुलारतें हैं" विध्वंसक की सहज सराहना.. नहीं होती..
लोग आज़कल इस ज़द्दो ज़हद में लगें हैं कि उनकी अमुक से तमुक नातेदारी है.. लोग अपने बाप दादों के किये का गीत गा गा कर आपके बीच होते हैं कुछेक लोग ऐसों से प्रभावित हो जाते हैं.. मुझे ऐसे लोग उस भिखारी से नज़र आते हैं जो किसी का गीत गा गा कर भूख से बचने की जुगत लगाते हैं.. सच ऐसे लोग लोकेषणा की क्षुदा तृप्ति के अलावा क्या कर रहे होते हैं ध्यान से देखिये..!!
     एक क्या ऐसे लोगों की भरमार है .. आपके हमारे इर्दगिर्द
   एक मित्र ने बताया की वे फलां के ढिकां हैं दूसरे ने बताया की अमुक सेली ब्रिटी से उनका ये रिश्ता है.. तो हम बोले एक बात मैं भी जानता हूम ...!
मित्र बोले:-क्या.. बताओ बताओ..!!
हमने कहा :-"मैथुनी सृष्टि के पूर्व ब्रह्मा जी ने सप्तर्षियों का उल्लेख करते हुए कहा था कि:- 

मरीची अत्रि, भवान अंगिरा, पुल: कृतु
पुलतश्च्य  वशिष्ठ्श्च, सप्तैते ब्राह्मणा सुता   
और अंगिरा कुल के तीन प्रवर हुए विश्वामित्रे मधुछंदा  अघमर्षण
और वे पूर्व स्व. राष्ट्रपति महामहिम  शंकर दयाल के नाते दार हैं.. "  
     मूर्खों की जमात को ऐसे ही बहलाते हुए हम  निकल लिए.. ..  

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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