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दिसंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम मेरे साथ एक दो क़दम ........

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तुम मेरे साथ एक दो क़दम चलने का अभिनय मत करो एक ही बिंदू पर खड़े-खड़े दूरियां तय मत करो..! तुमको जानता हूं फ़ायदा उठाओगे - मेरे दुखड़े गाने का मुझे मालूम है तुम मेरे आंसू पौंछने को भी भुनाते हो तुम सदन में मेरे दर्द की दास्तां सुनाते हो ! तुम जो हमारी भूख को भी भुनाते हो ! तुम जो कर रहे हो उसे “अकिंचन-सेवा” का नाम न दो..!! जो भी तुम करते हो उसे दीवारों पर मत लिखो ..!! तुम जो करते हो उसमें तुम्हारा बहुत कुछ सन्निहित है मित्र ये सिर्फ़ तुम जानते हो..?       न ये तो सर्व विदित है…!

मां ने कहा तो था .... शत्रुता का भाव जीवन को बोझिल कर देता है : मां यादों के झरोखे से

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मां बीस बरस पहले  मां निधन के एक बरस पहले  यूं तो तीसरी हिंदी दर्ज़े तक पढ़ी थीं मेरी मां जिनको हम सब सव्यसाची कहते हैं क्यों कहा हमने उनको सव्यसाची क्या वे अर्जुन थीं.. कृष्ण ने उसे ही तो सव्यसाची कहा था..? न तो क्या वे धनुर्धारी थीं जो कि दाएं हाथ से भी धनुष चला सकतीं थीं..? न मां ये तो न थीं हमारी मां थीं सबसे अच्छी थीं मां हमारी..! जी जैसी सबकी मां सबसे अच्छी होतीं हैं कभी दूर देश से अपनी मां को याद किया तो गांव में बसी मां आपको सबसे अच्छी लगती है न हां ठीक उतनी ही सबसे अच्छी मां थीं .. हां सवाल जहां के तहां है हमने उनको सव्यसाची   क्यों कहा..! तो याद कीजिये कृष्ण ने उस पवित्र अर्जुन को "सव्यसाची" तब कहा था जब उसने कहा -"प्रभू, इनमें मेरा शत्रु कोई नहीं कोई चाचा है.. कोई मामा है, कोई बाल सखा है सब किसी न किसी नाते से मेरे नातेदार हैं.." यानी अर्जुन में तब अदभुत अपनत्व भाव हिलोरें ले रहा था..तब कृष्ण ने अर्जुन को सव्यसाची सम्बोधित कर गीता का उपदेश दिया.अर्जुन से मां  की तुलना नहीं करना चाहता कोई भी "मां" के आगे भगवान को भी महान नहीं

रवींद्र बाजपेई सकारात्मक पत्रकारिता के संवाहक : श्री अनिल शर्मा

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मंचासीन अतिथिगण जबलपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा सरस्वती पूजन करते हुए  विद्युत मंडल के पी आर ओ श्री राकेश पाठक  वरिष्ठ पत्रकार श्री रवींद्र बाजपेई  जबलपुर 24 दिसम्बर 2011 को स्थानीय फ़न-पार्क में जबलपुर का प्रतिष्ठापूर्ण समारोह    स्वर्गीय हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह 2011  सम्पन्न हुआ. मुख्य अथिति के रूप में बोलते हुए सम्मान का आधार ही त्याग और तपस्या है. आज़ जिनकी स्मृति में सम्मान दिया जा रहा है वे पत्रकारिता एवम सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा के लिये कृत संकल्पित थे मैं ऐसे व्यक्तित्वो को नमन करते हुए  मित्र रवींद्र बाजपेई को शुभकामनाएं देता हूं कि वे मूर्धन्य पत्रकार हीरालाल गुप्त स्मृति प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित हुए हैं. युवा पत्र-संचालक भाई आशीष शुक्ल को मेरी अशेष शुभकामनाएं हैं जिन्हैं त्याग की मूर्ति सव्यसाची मां प्रमिला देवी की स्मृति में सम्मानित किया .  अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए समाज सेवी एवम जबलपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा ने कहा:- "रवींद्र बाजपेई सकारात्मक पत्रकारिता के संवाहक हैं उनका सम्मान करना

ओबामा के पुनर्निर्वाचन का तुरुप का पत्ता तेहरान के पास है :डैनियल पाइप्स ( हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी)

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15 दिसम्बर को इराक में औपचारिक रूप से युद्ध की समाप्ति के पश्चात पडोसी ईरान 2012 के अमेरिकी राष्ट्रपतीय चुनाव में एक प्रमुख अनिश्चित तत्व हो गया है। पहले सिंहावलोकन कर लें : 1980 में ईरान के मुल्लाओं को अमेरिकी राजनीति प्रभावित करने का अवसर पहले ही प्राप्त हो चुका है। तेहरान में अमेरिकी दूतावास को 444 दिनों तक बंधक बनाने से राष्ट्रपति जिमी कार्टर के पुनर्निर्वाचन के अभियान को गहरा धक्का लगा था इसके साथ ही कुछ अन्य घटनाक्रम के चलते जैसे बंधकों को छुडाने का असफल प्रयास और एबीसी चैनल द्वारा  America Held Hostage  कार्यक्रम के प्रसारण ने उनकी पराजय में योगदान किया। अयातोला खोमेनी ने कार्टर की सम्भावनाओं को धता दिया कि आश्चर्य ढंग से बंधकों को अक्टूबर में मुक्त करा लिया जाये और रही सही कसर तब पूरी कर दी जब रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय ही इन बंधंकों को मुक्त कर दिया। आज एक बार फिर ओबामा के पुनर्निर्वाचन में ईरान की दो प्रमुख भूमिका है एक तो इराक में बाधक की भूमिका या फिर अमेरिका के आक्रमण का शिकार बनना। आइये दोनों पर ही विचार करते हैं। किसने इराक गँवाया?  हालाँकि

हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह् आज :पण्डित रवींद्र बाजपेई एवं आशीष शुक्ला सम्मानित होंगे

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स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त मधुकर     हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह्  में आज हिंदी एक्सप्रेस जबलपुर के पण्डित रवींद्र बाजपेई को स्व० हीरालाल गुप्त स्मृति अलंकरण  एवं आशीष शुक्ला  यश भारत को सव्यसाची प्रमिला देवी  स्मृति अलंकरण   से विभूषित किया जा रहा है. वर्ष 1997 से जारी  हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह् प्रति वर्ष 24 दिसंबर को जबलपुर में आयोजित होता है.                                                                                                             मधुकर अलंकरण  श्री ललित बक्षी जी 1998, बाबूलाल बडकुल 1999, निर्मल नारद 2000, श्याम कटारे 2001, डाक्टर राज कुमार तिवारी "सुमित्र"2002, पं ० भगवती धर बाजपेयी 2003, मोहन "शशि" 2004 "पं०हरिकृष्ण त्रिपाठी एवं 2005,प्रो० हनुमान वर्मा को (संयुक्त रूप से सम्मानित)अजित वर्मा 2006,पं०दिनेश् पाठक 2007,सुशील तिवारी 2008, श्री गोकुल शर्मा दैनिक भास्कर जबलपुर 2009, श्री महेश मेहेदेल स्वतंत्र-मत,जबलपुर,  एवं श्री कृष्ण कुमार शुक्ल   2010 सव्यसाची  प्रमिला देवी बिल्लोरे                          हमारी इस पहल को म

मेरी कविता - मेरी आवाज

पिछले दिनों बेटे ने ये करवाया मुझसे .....कहता है कभी खुद का भी पढ़ो....तो ये पॉडकस्ट उसी का नतीजा है...अब सुनिये..... मेरी कविता -- मेरी आवाज में

ब्लाग क्यों बांचें भई ?

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साभार: रायटोक्रेट कुमारेंद्र जी के ब्लाग से  हिंदी ब्लागिंग अब व्यक्तिगत-डायरी की संज्ञा से मुक्ति की पक्षधर नज़र्  आ रही है. इस विषय की पुष्टि इन दिनों आ रही पोस्ट से सहज ही हो जाती है . कुछ ब्लाग्स पर गौर करें तो बेशक वे सामयिक परिस्थितियों पर त्वरित अभिव्यक्ति की तरह सामने आ रहे हैं. इतना ही नहीं कुछ ब्लाग्स अपनी विषय परकता के कारण पढ़े जा रहे हैं.    यानी  एक ग़लत फ़हमी थी बरसों तक कि ब्लाग केवल व्यक्तिगत मामला है किंतु हिन्दी ब्लागिंग में माइक्रो ब्लागिंग साइट ट्विटर को छोड़ दिया जाए तो अब ऐसी स्थिति नहीं अब तो ट्विटर पर भी विषय विस्तार लेते नज़र आ रहे हैं. हिंदी ब्लागिंग का सकारात्मक पहलू ये है कि अब लोग स्वयम से आगे निकल कर बेबाक़ी से अपनी बात सामाजिक राजनैतिक वैश्विक मामलों पर रखने लगे हैं. ज़ी-न्यूज़ दिल्ली के सीनियर प्रोड्यूसर खुशदीप सहगल के ब्लाग देशनामा www.deshnama.com  पर समसामयिक मसलों पर  आलेखों की भरमार है तो दिल्ली के मशहूर व्यवसायी राजीव तनेजा आम जीवन से जुड़ी घटनाऒं एवम परिस्थियों से उपजे हास्य को पेश करते नज़र आते हैं अपने ब्लाग “ हंसते-रहो ” ( http://www.h

अन्ना गए नेपथ्य में आज तो दिन भर वीना मलिक को तलाशते रहे लोग !!

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खबरों ने इन्सान की सोच का अपहरण कर लिया वीना मलिक का खो जाना  सबसे हाट खबर  खबरिया चैनल्स के ज़रिये समाचार मिलते ही बेहद परेशान लोग " आसन्न-स्वयम्बर " के लिये चिंतित हो गये. एक खबर जीवी प्राणी कटिंग सैलून पे बोलता सुना गया:-"बताओ, कहां चली गई वीना ?" भाई इतना टेंस था जैसे वीना मलिक के  क़रीबी रिश्तेदार  हों. जो भी हो एक बात निकल कर सामने आई ही गई कि "मीडिया जो चाहता है वही सोचतें हैं लोग...!"    आप इस बात से सहमत हों या न हों मेरा सरोकार था इस बात को सामने लाना कि हमारे आम जीवन की ज़रूरी बातौं से अधिक अगर हम जो कुछ भी सोच रहें हैं वो तय करता है मीडिया..? ये मेरी व्यक्तिगत राय है. रहा बीना मलिक की गुमशुदगी का सवाल वो एक आम घटना है जो किसी भी मिडिल-क्लास शहर, कस्बे, गांव में घट जाती है वीना मलिक जैसी कितनी महिलाएं ऐसी अज्ञात गुमशुदगी का शिक़ार गाहे बगाहे हो ही जाती हैं. आप को याद भी न होगा अक्टूबर माह में  अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग जिले के सेपा में कामेंग नदी पर बने पुल के ढह जाने के बाद  25 लोग लापता हो गए थे.  मेरे हिसाब से हम असामान्य घटन

एक बार फ़िर आओ कबीर

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                              दिशा हीन क्रांतियां, क्रांतियों में भ्रांतियां.. एक अदद क़बीर की ज़रूरत है.कबीर जो क्रांतियों को एक दिशा देगा कबीर जो बिगड़ते आज को सजा देगा  हां उसी क़बीर की जिसने राम रहीम का तमीज़ सिखाया बेशक़ उसी कबीर की बात कर रहा हूं जो अहर्निश चिंतन करघे से बुनता रहा सम्वेदनाओं आसनी.और चदरिया . जी हां उसी क़बीर की प्रतीक्षा है.   कबीर मुझे सुनो मेरी चादर तार तार है.. आसनी उफ़्फ़ क़बीरा वो तो बैठने लायक न रही. जिसे देखो कोई मेरी चादर कोई मेरी आसनी खैंच रहा है अबकी ऐसी बुन देना कि अमर हो जाए.. मैं मर जांऊं पर न आसनी फ़टे न चादर झीनी हो. क्या सम्भव है ये..?   आओ जुलाहे एक बार आ ही जाओं सब राम रहीम सब को भूल गये इनके राम को ये भूल गए उनके उनको याद दिलाओ कबीर कि " राम रहीमा  बंदूक बम तलवार में नहीं बसते "      कुछ मूरख "अल्ला" की हिफ़ाज़त करने निकले हैं बन्दूकें हाथ लिये क़बीर तुम भी हंसोगे इन मूर्खों की करतूतों पे ये मूरख नहीं जानते  परमपिता को कोई मार सका है..? न ये मनके मनके फ़ेर न पाए अब तक बस दिये जा रहे हैं बांग और पिता तो...!और हा

जी रहे हैं हम सिग्मेंट में

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पृथ्वीराज चौहान "क्या खबर लाए हो खबरची...!" मोहम्मद गोरी ने पूछा खबरची-ज़नाब, हिंदुस्तानी राजा की फ़ौज में खाना चल रहा किस तरह खाना खा रहे हैं..? गुस्ताख़ी माफ़ हो हुज़ूर...! आम इंसान जैसे फ़िर से जाओ.. गौर से देखो..    खबरची फ़िर गया.. और फ़िर अबकी बार वो बता पाया कि सैनिक अपने अपने ओहदों के हिसाब से खेमों में भोजन कर रहे हैं..     खाने के लिये बिछे दस्तरख़ान पर गोरी ने उस खबरी को अपने क़रीब बैठाया सभी ने बिस्मिल्लाह की खाते खाते गोरी  तेज़ आवाज़ में बोला-’दोस्तो, इस बात को मैं पहले से ही जानता हूं. ये लोग खा-पी एक साथ नहीं रहे हैं.. इनको हराना उतना मुश्कि़ल नही है. तभी तो मैं बार बार कहता हूं हम ज़रूर जीतेगें.. हुआ भी यही.                      यही है आज़ का  सच !  आज़ भी हम हमेशा हार जाते हैं,एक नहीं हैं न..? हममें ऐसा भारत पल रहा है जो हमने खुद अपने लिये बनाया है. ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों के अपने अपने भारत हैं, हिंदी वाला,मराठी वाला, गुजराती वाला, मद्रास वाला, जाने कितने भारत बना लिये इतने तो महाभारत में भी न थे. तभी तो   कसाब-अफ़ज़ल हमारे आं

अपनों के प्रति 'क्रूर ज्ञानरंजन - मनोहर बिल्लौरे

   ज्ञान जी पचहत्तर  साल के हो गये। एक ऐसा कथाकार जिसने कहानी के अध्याय में एक नया पाठ जोड़ा। अपना गुस्सा ज्ञान जी ने किस तरह अपनी कहानियों में उकेरा है। पढ़ने-लिखने वाले सब जानते हैं। उसके समीक्षक उसमें खूबियाँ-खमियाँ तलाशेंगे। उत्साह की बात यह है कि आज भी वे पूरे जवान हैं और स्फूर्त भी. उनके साथ सुबह की सैर करने में कभी-हल्की सी दौड़ लगाने जैसा अनुभव होता है। वे अब भी मतवाले हैं जैसे कालेज दिनों में जैसे बुद्धि-भान विधार्थी रहते हैं। साहित्य, समाज, संस्कृति - यदि साहित्य को छोड़ दिया जाये तो अन्य सभी कलाओं के लिये उन्होंने क्या किया, यह बखान करने की बहुत आवश्यकता  मु्झे अभी इस समय नहीं लगती. यह काम कोर्इ लेख या कोइ   एक किताब कर पाये यह संभव भी नहीं। बीते 75 सालों में बचपन और किशोरावस्था को छोड़ दिया जाये (किशोर को कैसे छोड़ दें वह तो उनकी एक कहानी में जीवित मौजूद है - समीक्षकों-आलोचकों ने उसे 'अतियथार्थ कहा है...) तो - उन्होंने 'सच्चे संस्कृति-कर्मी और - धर्मी भी - के जरिये जो कुछ किया उसका बहुत सारा अभी भी छुपा हुआ है, ओट से झांक कर भी जाना नहीं जा सका है - क्योंकि वह इस त

बाल-गीत

आज एक बाल-गीत उच्चारण ब्लॉग से -----

कापी पेस्ट फ़्रोम नुक्कड़ : आल द बेस्ट

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राष्ट्रीय सेमिनार लाइव... डेटलाइन- कल्याण (मुम्बई) भाग-II अविनाश वाचस्पति   ON  FRIDAY, DECEMBER 09, 2011 भोजनावकाश के बाद प्रथम चर्चा सत्र प्रारम्भ हो चुका है। मंच पर विशिष्ट जन आसन जमा चुके हैं। इस सत्र में चर्चा का विषय है- हिंदी ब्लॉगिंग : सामान्य परिचय पूरी जानकारी के लिए और टिप्‍पणी देने के लिए यहां पर क्लिक की... मुबई में हिन्‍दी चिट्ठाकारों ने नहीं मचाया धमाल : खूब गंभीरता से विमर्श हुआ अविनाश वाचस्पति   ON  FRIDAY, DECEMBER 09, 2011 आज हम मुम्बई पहुँच गये हैं। यह ब्लॉगरी जो न जगह दिखाए। जी हाँ, हम ब्लॉगरी की डोर पकड़कर अपने घर से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कल्याण इलाके में एक महाविद्यालय में अपने ब्लॉगर मित्रों के साथ कुछ खास चर्चा के लिए इकठ्ठा हो गये हैं। किस-किसका जुटान हो चुका है यह बाद में। उद्‌घाटन सत्र शुरू होने जा रहा है। उसके पहले पहली  पूरा पढ़ने और टिप्‍पणी... अविनाश वाचस्पति   ON  THURSDAY, DECEMBER 08, 2011   |  27 COMMENTS देश-विदेश के हिन्‍दी चिट्ठाकारों का मुंबई में जमावड़ा :क्‍या आप भी इसमें द

कापी पेस्ट फ़्रोम नुक्कड़ : आल द बेस्ट

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राष्ट्रीय सेमिनार लाइव... डेटलाइन- कल्याण (मुम्बई) भाग-II अविनाश वाचस्पति   ON  FRIDAY, DECEMBER 09, 2011 भोजनावकाश के बाद प्रथम चर्चा सत्र प्रारम्भ हो चुका है। मंच पर विशिष्ट जन आसन जमा चुके हैं। इस सत्र में चर्चा का विषय है- हिंदी ब्लॉगिंग : सामान्य परिचय पूरी जानकारी के लिए और टिप्‍पणी देने के लिए यहां पर क्लिक की... मुबई में हिन्‍दी चिट्ठाकारों ने नहीं मचाया धमाल : खूब गंभीरता से विमर्श हुआ अविनाश वाचस्पति   ON  FRIDAY, DECEMBER 09, 2011 आज हम मुम्बई पहुँच गये हैं। यह ब्लॉगरी जो न जगह दिखाए। जी हाँ, हम ब्लॉगरी की डोर पकड़कर अपने घर से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कल्याण इलाके में एक महाविद्यालय में अपने ब्लॉगर मित्रों के साथ कुछ खास चर्चा के लिए इकठ्ठा हो गये हैं। किस-किसका जुटान हो चुका है यह बाद में। उद्‌घाटन सत्र शुरू होने जा रहा है। उसके पहले पहली  पूरा पढ़ने और टिप्‍पणी... अविनाश वाचस्पति   ON  THURSDAY, DECEMBER 08, 2011   |  27 COMMENTS देश-विदेश के हिन्‍दी चिट्ठाकारों का मुंबई में जमावड़ा :क्‍या आप भी इसमें द