तुम मेरे साथ
एक दो क़दम चलने
का
अभिनय मत करो
एक ही बिंदू
पर खड़े-खड़े
दूरियां तय
मत करो..!
तुमको जानता
हूं
फ़ायदा उठाओगे
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मेरे दुखड़े
गाने का
मुझे मालूम
है
तुम मेरे आंसू
पौंछने को भी
भुनाते हो
तुम सदन में
मेरे
दर्द की दास्तां
सुनाते हो !
तुम जो
हमारी भूख को
भी भुनाते हो !
तुम जो कर रहे
हो
उसे “अकिंचन-सेवा”
का नाम न दो..!!
जो भी तुम करते
हो
उसे दीवारों
पर मत लिखो ..!!
तुम जो करते
हो उसमें
तुम्हारा बहुत
कुछ सन्निहित है
मित्र
ये सिर्फ़ तुम
जानते हो..?
न ये
तो सर्व विदित है…!