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बिना रीढ़ वाले जन्तु

लगातार होती  बारिश भिगो देती है  उन घरों को जमीन के भीतर  बने होते हैं. निकल आते है उन से  बिना रीढ़ वाले  जन्तु  सरे राह  डस लेते हैं  तभी उनको  पूजने का त्यौहार आता है अब तो  जी हां रोज़ पूजता हूं  शायद बारिश  बंद नही होती  रात-दिन आज़कल ..!!

हर दिल अज़ीज़ समीरलाल को बधाईयां

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"*****"    जबलपुर की सड़कों पर लम्ब्रैटा पर चलने वाला एक गोलमटोल  फ़ुर्तीला व्यक्ति अचानक गुम हो जाता है..सोचा कि मित्रों की चौकियों पर उसकी रपट लिखा दूं. लिखवाई भी तब किसी ने बताया .."अच्छा वो, हां फ़ारेन निकल गया "            भाग्यवान लोग फ़ारेन जाते थे तब, हवाई जहाज़ में उड़कर विदेश जाना एक बड़ी बात होती थी. उससे भी बड़ी बात भारत में ही नौकरी लगना रात दिन एक करके हम भी नौकरी शुदा हो गये.शहर से बाहर हुए हम सच  भूल चुके थे कई लोगों को .भुलावे वाली उस सूची में ये गोल मटोल टाइप के महाशय भी शुमार हैं.न तो नाम याद रहा न पता बस इतना याद रहा कि एक अफ़सर का लड़का जो गोल मटोल शांत टाईप का आता था मित्र मंडलीयों में वो बाहर है.     जबलपुर के  सदर काफ़ी हाउस,सिटी काफ़ी हाउस,अन्ना वाला सदर का काफ़ी हाउस,   में पाई जाने वाली इस शख्शियत से मुलाक़ात कराने की ज़िम्मेदारी जबलपुरिया दोस्तों के सर रही है 87 से 89 के बीच किंतु 2007  में तो कमाल हो गया नेट से जुड़ा ब्लागिंग के साथ मेरा नाता कायम हुआ कि भाई से मुलाक़ात एक टिप्पणी ने कराई जो उडनतश्तरी की जानिब से थी. विदेश में बसी यह तश

सन्नाटा...ख़ामोशी के संग

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सन्नाटा बैठा हुआ .लिये..ख़ामोशी के संग . तय मानो नज़दीक है.. सोच सोच में जंग सोच सोच हो जंग, तभी सूरत बदलेगी गुमसुम आंखों की, बाहें युद्ध की ख़ातिर मचलेगीं कहें मुकुल कवि, युद्ध सदा बरकाओ कानन देखी नाय, आंख से सब पढ़ आओ..!! ******************** ऊसर बोई आस्था,  हरियाए हर बाग, स्वेद बूंद से जागते-अपने अपने भाग. अपने-अपने भाग जगा के सब केऊ जागौ. मीत अकारथ इतै उतै नै भागो. कहैं मुकुल कविराय छोड़ दो आपा धापी एक साध लौ आप सधैगी दुनियां बाक़ी.. 

सुनो छोटी सी गुड़िया की कहानी--

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 आज पल्लवी का जन्मदिन है ..कौन पल्लवी ?? नहीं जानते ??? देखिये कहीं ये तो नहीं "......"  या ये है पल्लवी   स्नेहिल मुस्कान बिखेरती पल्लवी सच बहुत गम्भीर भी है. उत्साह से भरी पल्लवी बिटिया से मिल कर ही जान पाएंगे

हमारी खामोशी के पीछे पनपता क्रांति का वातावरण..!!

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भारत में आतंकवादियों को सज़ा के लिये लम्बी प्रकिया से एक ओर समूचा  हिंदुस्तान हताश  है तो दूसरी ओर  आतंकवाद को शह मिल रही है ,  तो इस मसले को गर्माए रखने के लिये काफ़ी है.यह सवाल भी भारतीय व्यवस्था  के सामने है कि क्या आतंकवादीयों के लिये ऐसे क़ानून नहीं बनाए जा सकते जिससे उनका तुरंत सफ़ाया हो सके. अब कसाब को ही लीजिये   राजेश चौधरी   (नवभारत-टाइम्स)  की माने तो दस बरस और ज़िंदा रह सकता है कसाब   ..?    यदी  आम आदमीयों से ज़्यादा ज़रूरी है कसाब का  जीना तो   होने दीजिये धमाके हमारी कीमत की क्या है. फ़िर दाग दीजिये एक जुमला "हम आतंकियों को नहीं छोड़ेंगे " हम अपनी व्यवस्था के दयालू होने की क़ीमत भी चुका देंगे...आपके इस  भारतीय-फ़लसफ़े को नुकसान न पहुंचाएंगे.  क्योंकि आप को हमारी बड़ी चिंता है जिसका उदाहरण ये भी है. हम तो वोट हैं जो एक टुकड़ा है कागज़ का, हम तो बाबू,मास्टर,स्कूली बच्चे, मिस्त्री, मुंशी, वगैरा वगैरा, हमारी कीमत ही क्या है.. हो जाने दो हमारी देह को चीथड़ों में तक़सीम किसी  हम जो रोटी के लिये पसीने को बहा देना अपना धर्म मानते हैं हम जो तुम सब की नीयत को पहचानते ह

वेड्नेस डे : "स्टुपिट कामन मैन की क्रांति "

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w ednesday     फ़िल्म को देखते ही अहसास हुआ  एक कविता का एक क्रांति का एक सच का  जो कभी भी साकार हो सकता है.अब इन वैतालों का अंत अगर व्यवस्था न कर सके तो ये होगा ही   " अपनी पीठ पर लदे बैतालो   को सब कुछ सच सच कौन बताएगा शायद हम सब .. तभी एक आमूल चूल परिवर्तन होगा... चीखने लगेगी संडा़ंध मारती व्यवस्था , हिल जाएंगी   चूलें जो कसी हुईं हैं... नासमझ हाथों से . अब आप और क्या चाहतें हैं ?  अब भी हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठ जाना. ..? सच तो ये है कि अब आ चुका है वक़्त सारे मसले तय करने का  हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठना अब सबसे बड़ा पाप होगा        

मेरी पीठ पर लदे बैतालो

मेरी पीठ पर लदे बैतालो तुम जो मेरी पीठ पर लदे हो तुम जो, मुझसे सवालों पे सवाल किया करते हो तुम एक नहीं हो आज़ के दौर में तुम्हारा एक रैकेट है मुझे मालूम है  तुम मुझे कहानी सुनाओगे हर बार एक नई कहानी  तब तुम मुझे दिखाई दोगे पास आती मौत के से मुझे बोलना होगा  सच की खातिर जिसका सामना तुम  नहीं कर पाते हो कसाब को बिरयानी  मुझे डंडॆ खिलाते हो तुम जो सत्ता हो तुम जो आकण्ठ...? खैर छोड़ो तुम्हारा क्या दोष तुम  जन्मे ही उसी तरीके से हो जिन को तुम मुझ पर आज़माते हो जिस दिन हमने चाहा उस दिन शायद  तुम तबाह हो ही जाओगे  वैतालो बताओ :-" मैं क्यों हूं  आज़ाद भारत में आज़ादी की तलाश में ? बोलो बोलो ज़ल्दी बोलो वरना तुम्हारे टुकड़े  टुकड़े !!    

मेरा डाक टिकिट : गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

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                    इस स्टैम्प के रचयिता हैं  ब्ला० गिरीश के अभिन्न मित्र राजीव तनेजा वो दिन आ ही गया जब मैं हवा में उड़ते हुए अपना जीवन-वृत देख रहा था..              मुद्दत    से मन में इस बात की ख्वाहिश रही कि अपने को जानने वालों की तादात कल्लू को जानने वालों से ज़्यादा और जब मैं उस दुनियां में जाऊं तब लोग मेरा पोर्ट्फ़ोलिओ देख देख के आहें भरें मेरी स्मृति में विशेष दिवस का आयोजन हो. यानी कुल मिला कर जो भी हो मेरे लिये हो सब लोग मेरे कर्मों कुकर्मों को सुकर्मों की ज़िल्द में सज़ा कर बढ़ा चढ़ा कर,मेरी तारीफ़ करें मेरी याद में लोग आंखें सुजा सुजा कर रोयें.. सरकार मेरे नाम से गली,कुलिया,चबूतरा, आदी जो भी चाहे बनवाए.  जैसे....? जैसे ! क्या जैसे..! अरे भैये ऐसे "सैकड़ों" उदाहरण हैं दुनियां में , सच्ची में .बस भाइये तुम इत्ता ध्यान रखना कि.. किसी नाले-नाली को मेरा नाम न दिया जाये.         और वो शुभ घड़ी आ ही गई.उधर जैसे ही गैस सिलेंडर के दाम बढ़े इधर अपना बी.पी. और अपन न चाह के भी चटक गए. घर में कुहराम, बाहर लोगों की भीड़,कोई मुझे बाडी तो कोई लाश, तो स

जब हिंदी ब्लाग बंद हो जाएंगे तो क्या होगा...?

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ब्लागस्पाट के ज़ीरो पाईंट बनते ही सारे हिंदी ब्लाग जो ब्लाग स्पाट पे हैं कपूर हो जाएंगें...अगर आज़ देर रात तक ये हो गया तो... ? तो क्या " असली वारिस " की सेवा में लग जाएंगे छाछ -माछ सब हासिल होगा उधर. अपने पाबला जी ने बचाव का तरीक़ा बता दिया..   इधर देखिये   तो ज़रा ! हिंदी ब्लागिंग के बंद होते ही विश्व में हिंदी ब्लागिंग का जो होगा सो होगा अपने ललित भैया बोले:-डोमिन व्यापार फ़ल फ़ूल जाएगा.. ? कनिष्क भाई   बोले :- " दूसरी सबसे अहम बात यह है हर रोज का डर . कभी कोई बोलता है , कि भैया .. ब्लॉग बंद होने जा रहा , कोई गूगल ग्रुप पर आश्रित है. कोई फेसबुक पर ही दिन , रात और आंदोलन छेड़ता है और देश बदल देता है. कहाँ है हम लोग ? किस कुएं में . चुकि  परिकल्पना की उपलब्धि यह रहीं कि वह हम सब को एक मंच पर लाने में कामयाब रही है. अतः इस मंच से मैं अपनी व्यथा जाहिर कर रहा हूँ . रविन्द्र जी और तमाम वरिष्ठ जन , जिन्हें दुनियादारी और व्यवस्था की समझ कबीले तारीफ है , उनसे आग्रह करता हूँ , कि हिंदी ब्लॉग के समक्ष कुछ उद्देश्य रखे जाए . कुछ रणनीति बने और कुछ ठोस पहल हो. यह नहीं चलेगा , जिसे

बाप कर्ज़दार न हो शराब के ठेके के..

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  सैलानियों ने देखी नर्मदा की ताक़त  खूबसूरत संग-ए-मरमरी रास्ता नर्मदा का... खूबसूरत पहाड़ियां  अठखेलियां करती नर्मदा की लहरें उसी नर्मदा में जो जीवन दात्री है मेरी तुम्हारी हम सबकी सच  यहीं नर्मदा की भक्ति से सराबोर आस्थाएं  बह बह कर आतीं हैं.. नारियलों के रूप में  उस सफ़ेद पालीथिन में समेट लाते हैं ये नंगे-अधनंगे बच्चे स्कूल से गुल्ली मार के देर शाम तक बटोरे नारियल बनिये को बेच  धर देते हैं हाथ में बाप के पैसे जो नारियल बेच के लातें हैं ताकि बाप कर्ज़दार न हो  शराब के ठेके के.. 

कहिए ----एक और,एक और....

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                                कविता पद ओहदे डिग्री  किसी भी चीज़ से प्रतिबंधित नहीं कविता कविता है... उसमें बनने और फिर  बने रहने की क्षमता होती है. कविता क्या है शब्दों का संयोजन ही है न..? न भाव बिना कविता संभव कहाँ ..? भाव  शब्दों के साथ इतने बहुत करीब होते हैं की दिखाई नहीं देते कभी शब्द कभी भाव ... तभी तो कविता का एहसास करते हैं हम आइये जस्टिस कुमार शिव की शब्द संयोजना '' तुमने छोड़ा शहर  '' को सुने अर्चना चावजी के स्वरों में  जिसे हमने लिया है उनके ब्लॉग '' अमलतास' ' से ...... गिरीश बिल्लोरे मुकुल     कुमार शिव का गीत सुनिए    संक्षिप्त परिचय जन्म 11 अक्टूबर 1946 को कोटा में। वहीं शिक्षा और वकालत का आरंभ, राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर बैंच और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत, अप्रेल 1996 से अक्टूबर 2008 तक राजस्थान उच्चन्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए 50,000 से अधिक निर्णय किए, जिन में  10 हजार से अधिक निर्णय हिन्दी में । वर्तमान में भारत के विधि आयोग के सदस्य। साहित्य सृजन किशोरवय से ही जीवन का एक हिस्सा रहा। यह ब्लाग 'अमलतास&

परिकल्पना ब्लागोत्सव की एक झलक जीवन के रंगमंच से ...चाँद के पार ....

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वेब दुनिया इंदौर की वरिष्ठ सदस्या   स्मृति जोशी   को हिंदी जगत में एक प्रखर लेखिका के रूप में जाना जाता है . अपने आलेखों में नए और लालित्यपूर्ण विंबों के माध्यम से सामाजिक जनचेतना को आयामित करने में इन्हें महारत हासिल है . विगत दिनों उनके बेस्ट वेब फीचर “ कठोर परंपरा का भीना समापन ” के लिए उन्हें लाडली मीडिया अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें दूसरी बार प्राप्त हुआ है . चाँद के पार स्तंभ के अंतर्गत प्रस्तुत है उनका एक चर्चित ललित निबंध बदली से निकला है चाँद ….! ============================================================= नहीं जानती अं‍तरिक्ष के इस चमकीले चमत्कार से मेरा क्या संबंध है लेकिन जब भी कुछ बहुत अच्छा लिखने का मन होता है चाँद मेरी लेखनी की नोंक पर बड़े अधिकार के साथ आ धमकता है। यूँ तो मेरी लेखनी की कुछ बातें खुद मुझे हैरत में डाल देती है। ब्लागोत्सव 2011 में प्रकाशित प्रसारित हो रही पोस्ट की इन दिनों उसी तरह प्रतीक्षा की जा रही है जैसे कोई पहुना की बाट जोहता हो. यही तो एक अदभुत परिकल्पना है जो अनेकों को एक सूत्र में पिरोती है.   देखिये ये पोस्ट   जीवन के रंगमंच