मेरी पीठ पर लदे बैतालो
तुम जो मेरी पीठ पर लदे हो
तुम जो,
मुझसे सवालों पे सवाल किया करते हो
तुम एक नहीं हो
आज़ के दौर में
तुम्हारा
एक रैकेट है
मुझे मालूम है
तुम मुझे कहानी सुनाओगे हर बार
एक नई कहानी
तब तुम मुझे दिखाई दोगे
पास आती मौत के से
मुझे बोलना होगा
सच की खातिर जिसका सामना तुम
नहीं कर पाते हो
कसाब को बिरयानी
मुझे डंडॆ खिलाते हो
तुम जो सत्ता हो
तुम जो आकण्ठ...?
खैर छोड़ो
तुम्हारा क्या दोष तुम
जन्मे ही उसी तरीके से हो
जिन को तुम मुझ पर आज़माते हो
जिस दिन हमने चाहा उस दिन शायद
तुम तबाह हो ही जाओगे
वैतालो बताओ :-"मैं क्यों हूं आज़ाद भारत में आज़ादी की तलाश में ?
बोलो बोलो ज़ल्दी बोलो वरना तुम्हारे टुकड़े टुकड़े !!