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गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

शुक्रिया "नईदुनिया"जबलपुर


नारी के बारे में विमर्श किया जाना जितना सहज सरल है उतना कठिन है  उसे ह्रदय से सम्मानित करना . स्त्रि विमर्श के नाम पे जो कुछ जारी है मुझे नही लगता उसमें नारी को स्थान दिलाने का भाव झलकता है बल्कि बहुधा बहस में विमर्श में नारी को आहत ही किया जाता है

धूप से बचाए जो वो  छावा यही तो हैं 
                         यह सत्य है आज एक ऐसा सत्य भी उज़ागर हुआ जब एक ऐसी महिला को नगर के अखबार नई-दुनिया ने नायिका-सम्मान २०१० से सम्मानित किया जिसने जीवन का विवरण सिर्फ़ संघर्ष की कलम से मानस-फ़लक दर्ज़ किया.. सीमित साधन और जीवन को जीने की सफ़लता और सुफ़लता से जीने की ललक की मूर्ति  नारी के इस शक्तिरूपा स्वरूप को नई-दुनियां जबलपुर ने विशेष सम्मान देकर सभी की आंखें नम कर दीं वो हैं श्रीमति माया राय.... रामपुर निवासी माया राय, बराट रोड पर चाय की दुकान चलाती हैं। घर पर मां और छोटी बेटी साथ हैं। 17 साल पहले पति का स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके व्यवसाय (चाय की दुकान) को खुद संभाला और अपने चार बेटियों का भरण पोषण करने लगीं। सबसे बड़ी बेटी को बीकॉम तक पढ़ाया और उसका विवाह कर दिया। उससे छोटी बेटी रोशनी को भी बीकॉम कराया और वर्तमान में वह रायपुर से सीएस की कोचिंग कर रही है। तीसरे नंबर की पुत्री का दो साल पूर्व भेड़ाघाट में पानी में डूब जाने से निधन हो गया। सबसे छोटी बेटी मोनिका अभी दसवीं में पढ़ रही है। सभी बेटियों अंग्रेजी माध्यम स्कूलों से पढ़ाई कराई। चाय की दुकान के अतिरिक्त आजीविका का कोई साधन नहीं। कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा, लेकिन एक शिक्षित व जिम्मेदार महिला का दायित्व निभाया। 
के गहन-विमर्श के साथ आज़ देर रात तक समदडिया-माल की विशाल छत  पर अपने अपने अपने क्षेत्र  की श्रेष्ट ”नायिकायें” सम्मानित की गईं

शिक्षा-विद श्रीमति विमला मेबेन के विद्द्यार्थी आज़ विश्व के कई कोने में शहर-देश-प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं जी हां जाय-सीनियर सेकेन्ड्री स्कूल की स्थापना करने वाले उनके दो बेटों क्रमश: प्रवीण एवम अखिलेश मेबेन आज़ रोमांचित थे उन्हौनें शायद ही सोचा होगा कि उनकी संघर्ष शील  मां जो  एक छोटे से कमरे से कुछ बच्चों को शिक्षित कर रहीं मां क्या चमत्कार करने जा रही हैं... या आने वाले बीस-तीस बरस की संरचना कैसी होगी उनके लिये ........ सीमित साधनों में असीमित कोशिश कर श्रीमति विमला मेबेन ने सीमित साधनो में असीमित कोशिशें कर जिस अदभुत शिक्षा प्रणाली को गढा उसकी लकीर पर चलते-चलाते जाय सीनियर सेकण्डरी स्कूल आज खास स्कूल बन चुका है..... उनको सम्मान के लिये चयनित  कर ज्यूरी ने कोई गलती नहीं की ........आयु की अधिकता वश अस्वस्थ्य  श्रीमति विमला जी .की ओर से सम्मान ग्रहण किया उनकी पुत्रवधु ने  ...सच वे शिक्षा के क्षेत्र की "नायिका " हैं ओर सदैव रहेंगी . . 
                                                                    
आलेख-प्रस्तुति सहयोग हेतु आभार   श्री राजेश दुबे एवम प्रिय भाई राम कृष्ण गौतम

मंगलवार, मार्च 30, 2010

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।


स्वर्गीय भवानी दादा का यह गीत उनके जन्म  दिवस पर 
पूर्णिमा जी के प्रयास से भवानी दादा की स्मृतियां 
उपलब्ध है
मेरी आवाज़ में सुनिए गीत फरोश 
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मैं तरह-तरह के
गीत बेचता हूँ ;
मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत
बेचता हूँ ।
जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा;
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने;
यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा;
यह गीत पिया को पास बुलायेगा ।
जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को
पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को ;
जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान ।
जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान ।
मैं सोच-समझकर आखिर
अपने गीत बेचता हूँ;
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
यह गीत सुबह का है, गा कर देखें,
यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे;
यह गीत ज़रा सूने में लिखा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिखा था ।
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है
यह गीत बढ़ाये से बढ़ जाता है
यह गीत भूख और प्यास भगाता है
जी, यह मसान में भूख जगाता है;
यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर
यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर ।
मैं सीधे-साधे और अटपटे
गीत बेचता हूँ;
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ ;
जी, छंद और बे-छंद पसंद करें –
जी, अमर गीत और वे जो तुरत मरें ।
ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,
मैं पास रखे हूँ क़लम और दावात
इनमें से भाये नहीं, नये लिख दूँ ?
इन दिनों की दुहरा है कवि-धंधा,
हैं दोनों चीज़े व्यस्त, कलम, कंधा ।
कुछ घंटे लिखने के, कुछ फेरी के
जी, दाम नहीं लूँगा इस देरी के ।
मैं नये पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ ।
जी हाँ, हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
जी गीत जनम का लिखूँ, मरन का लिखूँ;
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरन का लिखूँ ;
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का ।
कुछ और डिजायन भी हैं, ये इल्मी –
यह लीजे चलती चीज़ नयी, फ़िल्मी ।
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत,
यह दुकान से घर जाने का गीत,
जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात ।
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत ।
जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ
गाहक की मर्ज़ी – अच्छा, जाता हूँ ।
मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ –
या भीतर जा कर पूछ आइये, आप ।
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप
क्या करूँ मगर लाचार हार कर
गीत बेचता हँ ।
जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।

अश्लीता को बढा रहा है इलैक्ट्रानिक मीडिया :लिमिटि खरे पुनर्प्रस्तुति


प्रहरी लाइव के परिकल्पनाकार कनिष्क जी ने सुझाया है ये प्लेयर देखिये और बताइये कैसा लगा

शनिवार, मार्च 27, 2010

सफ़ेद मुसली खिलाडियों के वरदान और खिलाड़ी अनजान : अलका सरवत मिश्रा

अलका सरवत मिश्रा 
 भारत में जडी-बूटियों का अनुप्रयोग औषधि के रूप में किया जाना सदियों से ज़ारी है किंतु उपेक्षा की सुईंयां अक्सर चुभा दीं जाती हैं  इन कोशिशों और कोशिश में लगे लोंगों को....! फ़िर भी हौसलों के ज़खीरे लिये ये लोग अपने अपने मोर्चे पर तैनात हैं. चाहे बाबा रामदेव अथवा अलका सरवत मिश्रा ............ जो  जडी-बूटियों से जीवन को बेहतर बनाने की कोशिशे जारी रखे हुये हैं  अलका जी एक ऐसे विषय पर लिखतीं हैं जिसकी ज़रुरत आज हर व्यक्ति को है वे अपने सारे शोध-आलेख ब्लॉग  मेरा समस्त पर पोस्ट करतीं हैं तथा आभार व्यक्त करतीं हैं हिंद युग्म वाले शैलेश भारतवासी का जिन्हौने उनको एक   लोक प्रिय ब्लॉगर बनाया. इसी दौरान हमसे रहा न गया हमने ज़नाब सरवत ज़माल जी से बात चीत भी की 

              
सरवत ज़माल साहब 
                              

शुक्रवार, मार्च 26, 2010

तापसी नागराज नई-दुनिया द्वारा नायिका 2010 अवार्ड हेतु नामांकित













Tapsi Nagraj nominated for Naika Award in Art  & Culture category by NAI-DUNIYA JABALPUR kindly suport send your  vote by your  sms
type  NVJ22 & send it to 53434

अनिता कुमार जी को जन्म-दिवस का संगीत भरा उपहार

अनिता कुमार जी का  जन्म-दिवस 18 मार्च 2010 को आया किन्तु व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण वे आन लाइन नहीं हुईं थी. फिर एम टी एन एल की ब्राड-बैंड सेवा ने उनको नेट पर आने न दिया और आज जब वे नेट पर आई तो हमने थमा दिया ये उपहार आप भी खो जायेंगे इस उपहार मंजूषा को खुलता देख मुझे यकीन है ......आपको यकीन न हो तो लगाइए एक चटका नीचे डिव-शेयर प्लेयर पर या एक क्लिक संवाद एवं विमर्श पर किन्तु एक महत्त्व पूर्ण सूचना यह देनी ज़रूरी कि अनिता जी का सबसे  मनपसंद गीत फिल्म मेरे महबूब फिल्म से है  जिसे यहां यू-ट्यूब पर देखा-सुना जा सकता है

आभारी  हूँ :-इन डाट काम का और श्री बी एस पाबला जी के इस प्रयास का  और  अब आपका जो इसे सुन रहे हैं 

बुधवार, मार्च 24, 2010

समयचक्र को निरंतरता देता एकलव्य बनाम महेन्द्र मिश्र पाड्कास्ट भाग एक

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy5SwRFbp0nznkVpVPX8pgjd5QplXWFIQFT2_ugqhdeoL4Isbnf8EC99qnjtkqjhutmI31jqChUgYg5N-9rrfxOV1ixq5AwKMJmJvxbdJQe9wRvbvAQw-ptekfj0JePgCxr-ZNiGb_FiMV/s45/DSCN0032.jpgऐसा नहीं है कि आज एकलव्य की अनुकृतियां न हों  अन्तस से भावुक, सदैव तत्पर महेन्द्र मिश्र अपने आप में एक जोरदार व्यक्तित्व को जी रही हैं.... आप सुनिये उनसे उनके दिल की बात आज़ उनकी वसीयत ज़रूर देखिये उनके ब्लाग ”समयचक्र” पर.......शहीद भगत सिंह को याद किया उनने निरंतर पर . मिश्र जी में  भोले भाले शिव के अंश को नकारना गलत होगा........... किंतु शान्त चित्त हो कर जब वे सृजन करतें हैं तो बस भूल जाते हैं समय को भूलें क्यों न समयचक्र चला भी तो रहे हैं वे ही. 

मंगलवार, मार्च 23, 2010

अश्लीता को बढा रहा है इलैक्ट्रानिक मीडिया :लिमिटि खरे

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लिमिटि खरे का कथन गलत है ऐसा कहना भूल होगी रोज़नामचा वाले लिमिटि जी के बारे में जो प्रोफ़ाइल में है ठीक वैसा ही व्यक्तित्व जी रहे.
लिमटी खरे LIMTY KHARE
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किया है। हमने पत्रकारिता 1983 में सिवनी से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर में अनेक अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा
इस प्रोफ़ाइल से इतर तेवर नहीं है लिमिटि जी के. यकीं न हो तो आप खुद सुनिये

रविवार, मार्च 21, 2010

आभास जोशी से एक मुलाक़ात


29 मार्च 2010 आभास  के  जन्म दिवस पर अग्रिम रूप से हार्दिक-शुभ कामनाओं के साथ आज का पाडकास्ट प्रस्तुत है.आभास ने साक्षात्कार के दौरान बताया कबीर को गायेंगे आभास संगीतकार होंगें श्रेयस  जी
   
भावों की हाथ सलाई ले हम शब्द बुने तुम सुर देना
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जीवन के सफर में हमने भी  भी
कुछ सपन बुनें तुमको लेकर .
कुछ स्वपन मेरे थे मुक्त गीत
कुछ सपनों के तीखे तेवर ..?
मन की पीडा जब गीत बने श्रेयस होगा तुम सुर देना ...!!
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आभास मुझे था जीवन में
कुछ ऐसा हम कर जाएंगे
देंगें इक मुट्ठी दान कभी
भर-भर के झोली पाएँगें ..!
जब मन इतराए बादल सा तुम सावन का रिम झिम सुर देना !!
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आभास और मेरे साथ हिंद युग्म पाडकास्ट [पृष्ठ आवाज़ पर ] की बातचीत सुनने यहाँ क्लिक कीजिये
my singer

शनिवार, मार्च 20, 2010

जाग उठा मातृत्व उसका अमिय-पान भी कराया उसने

रेखा श्रीवास्तव जी की कहानी उनके ब्लॉग यथार्थ पर अमृत  की  बूंदे  पढ़कर  मन के एक कोने में  छिपी कहानी उभर आई ..यह कथा बरसों से मन के कोने में .छिपी थी  उसे  आज आप-सबसे  शेयर कर रहा हूँ.
दुनियाँ भर की सारी बातें फ़िज़ूल हैं कुछ भी श्रेष्ठ नज़र नहीं आती जब आप पुरुष के रूप में शमशान में अंतिम विदा दे रहे होते हैं....... तब आप सारी कायनात  को एक न्यायाधीश की नज़र से देखते हैं खुद को भी अच्छे बुरे का ज्ञान तभी होता है . और नारी को अपनी  श्रेष्टता-का अहसास भी तब होता है जब वह माँ बनके मातृत्व-धारित करती है. कुल मिला कर बस यही फर्क है स्त्री-पुरुष में वर्ना सब बराबर है हाँ तो वाकया उस माँ का है जो परिस्थित वश एक ही साल में दूसरी बार माँ बन जाती है कृशकाय माँ पहली संतान के जन्म के ठीक नौ माह बाद फिर प्रसव का बोझ न उठा सकी. और उसने  विदा ले ही ली इस दुनिया से . पचपन बरस की विधवा दादी के सर दो नन्हे-मुन्ने बच्चों की ज़वाब देही ...........उम्र के इस पड़ाव पर कोई भी स्त्री कितनी अकेली हो जाती है इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं किन्तु ममतामयी देवी में मातृत्व कभी ख़त्म नहीं होता. उस स्त्री का मातृत्व भाव दूने वेग से उभरा. मध्यम आय वर्गीय परिवार की महिला एक दिन जब नवजात बच्चे को लेकर डाक्टर के पास गई तो डाक्टर ने उसे सलाह दी कि पूरे चार  माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग पर रखवाईये कोई बाहरी आहार नहीं वरना बच्चे को नुकसान होगा बार बार इसी तरह बीमार होता रहेगा. इस सवाल का हल उस महिला के पास कहाँ. बस भीगी आँखों से टकटकी लगाए पीडियाट्रीशियन  को देखती रही. फीस दी और घर आ गयी. शिशु के जीवन को बचाने की ललक रात को भूख से बिलखते बच्चे को कैसे संतुष्ट करे बार बार डाक्टर की नसीहत याद आती थी. देर तक कभी शिशु को दुलारती पुचकारती एक बार फिर नव-प्रसूता-धात्री माँ बन जाने की ईश्वर से प्रार्थना करती कभी कोरें भिगोती. कभी अकुलाती. व्याकुल आकुल सी वो माँ एक पल के लिए भी ना सो सकी..... तीस बरस पहले के दिन याद करती उन्हीं दिनों को वापस देने ईश्वर से याचना करती उस ममतामयी  की झपकी लगी तब सारे लोग एक बार झपकी ज़रूर लेते है हैं हाँ वो समय रहा होगा सुबह सकारे ४ से ५ बजे का. अचानक उसने शिशु के मुंह  से  अमिय-पात्र लगा दिया. सुबह सवेरे देर आठ बजे जागी वो माँ बन चुकी थी. उसे लगा सच मैं वो माँ है उसे अमृत-आने लगा है . दूध की धार बह निकली अमिय पात्रों से ............उसने   पूरे चार  माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग कराई शिशु को अन्न-प्राशन के दिन अपने भाई को बुलाया. चंडी के चम्मच   से पसनी की गई शिशु की ...... आपको यकीं नहीं होगा किन्तु यह सत्य है इसका प्रमाण दे सकता हूँ फिर कभी ........

गुरुवार, मार्च 18, 2010

आडियो कांफ्रेंस: सुनिये पंडित रूप चन्द्र शास्त्री मयंक [खटीमा,उत्तरांचल ],स्वप्न--मंजूषा[कनाडा],कार्तिक-अग्निहोत्री[सहारा-समय,जबलपुर],और गिरीश


 अभी  आप  ने सुनिये  पंडित रूप चन्द्र शास्त्री मयंक [खटीमा,उत्तरांचल ],स्वप्न--मंजूषा[कनाडा],कार्तिक-अग्निहोत्री[सहारा-समय,जबलपुर],तथा मेरी वार्ता.
शास्त्री जी की कविता जो संभवत: स्पष्ट न सुनाई दे रही हो अत: पाठ्य-रूप में देखिये
नही जानता कैसे बन जाते हैं,


मुझसे गीत-गजल।


जाने कब मन के नभ पर,


छा जाते हैं गहरे बादल।।


ना कोई कापी या कागज,


ना ही कलम चलाता हूँ।


खोल पेज-मेकर को,


हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।


देख छटा बारिश की,


अंगुलियाँ चलने लगतीं है।


कम्प्यूटर देखा तो उस पर,


शब्द उगलने लगतीं हैं।।


नजर पड़ी टीवी पर तो,


अपनी हरकत कर जातीं हैं।


चिड़िया का स्वर सुन कर,


अपने करतब को दिखलातीं है।।


बस्ता और पेंसिल पर,


उल्लू बन क्या-क्या रचतीं हैं।


सेल-फोन, तितली-रानी,

इनके नयनों में सजतीं है।।

कौआ, भँवरा और पतंग भी,

इनको बहुत सुहाती हैं।

नेता जी की टोपी,

श्यामल गैया बहुत लुभाती है।।
सावन का झूला हो'

चाहे होली की हों मस्त फुहारें।

जाने कैसे दिखलातीं ये,

बाल-गीत के मस्त नजारे।।
मैं तो केवल जाल-जगत पर

इन्हें लगाता जाता हूँ।
                                                                  क्या कुछ लिख मारा है,


मुड़कर नही देख ये पाता हूँ।।


जिन देवी की कृपा हुई है,


उनका करता हूँ वन्दन।


सरस्वती माता का करता,


कोटि-कोटि हूँ अभिनन्दन।।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
फोनः05943-250207, 09368499921, 09997996437

'' कुपोषण कोई बीमारी नहीं, बल्कि बीमारियों को भेजा जा रहा निमंत्रण पत्र है

जी हाँ एक अखबार में प्रकाशित  समाचार में  शिशु उत्तर जीविता के मसले पर सरकार द्वारा उत्तरदायित्व पालकों का नियत करना अखबार की नज़र में गलत है. इस सत्य को   अखबार चाहे जिस अंदाज़ में पेश करे  यह उनके संवाद-प्रेषक की निजी समझ है तथा यह उनका अधिकार है......! .  किन्तु यह सही है  कि अधिकाँश भारतीय ग्रामीणजन/मलिन-बस्तियों के निवासी  लोग महिलाओं के प्रजनन पूर्व  स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण के मामलों में अधिकतर उपेक्षा का भाव रखते हैं . शायद लोग इस मुगालते में हैं कि सरकार उनके बच्चे की देखभाल के लिए  एक एक हाउस कीपर भी दे ...? बच्चे को जन्म देकर सही देखभाल करना पालकों की ज़िम्मेदारी है अब तो क़ानून भी स्पष्ट है  . वर्ष 1990 में मेरे एक पत्रकार मित्र ने मुझसे यही कहा था.मित्र को मैंने कहा था कि पिताओं और परिवार के मुखिया की प्राथमिकता में  ''महिलाओं के प्रजनन पूर्व  स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण सबसे आख़िरी बिंदु है...! उनको यकीं न हुआ तब  हमने संयुक्त रूप से कांचघर चुक जबलपुर की पहाड़ी पे बसी  शहरी गन्दी बस्ती का संयुक्त भ्रमण किया दूसरे दिन उनने छै कालमी रिपोर्ट का शीर्षक दिया 'उनकी प्राथमिकता है शराब न कि अपनी मासूम संताने' परन्तु पालकों के प्रति व्याकुल मन की तासीर बदलने वाली कहाँ ..? जिद ठान ली कि कम से कम अपनी कोशिश पूरी करूंगा पिछले चार साल से गाँवों के लिए काम कर रहा हूँ अपने मेरे प्रोजेक्ट क्षेत्र में मेरी पर्यवेक्षिका श्रीमती सुषमा नाईक  ने सूचना -संचार-प्रणाली , का विकास किया जिसके सहारे आँगनवाड़ी केन्द्रों की संचालिकाएं [जिनको  आँगनवाड़ी कार्यकर्ता कहा जाता है ] कुपोषण के शिकार बच्चों की प्रतीक तस्वीरों के ज़रिये बतातीं हैं कि आपका शिशु/बच्चा किस पोषण स्तर पर है . नीचे ग्राम देवरी पंचायत बहोरीपार, जनपद जबलपुर ग्रामीण से  चिन्हित सात गंभीर कुपोषित बच्चों के तीन माह के वज़न आधारित पोषण स्तर को दिखाया जा रहा है. पहले माह माह  में सातों प्रतीक बच्चे खतरनाक ज़ोन यानि लाल ज़ोन में थे . जिनमें से तीन बच्चे उबर आये हैं खतरे से और कम खतरे  वाले क्षेत्र में आ गए हैं . पर्यवेक्षिका,आंगनवाडी-कार्यकर्ताऑ के साथ   मेरी चिंता अभी बरकरार है कि  कब ये बच्चे हरे-क्षेत्र में आ जावेंगे.  यानि खतरे से बाहर
इस चित्र में श्रीमती नाईक बता रहीं हैं कि लाल पुतले जो गाँव विशेष के गंभीर कुपोषित बच्चों के प्रतीक हैं जिनको  पहले पीले फिर धीरे-धीरे हरे ज़ोन में लाना हर माँ-बाप की ज़िम्मेदारी है. !''-इस तरह चार्ट का अनुप्रयोग कर  जाग्रतिलाने की कोशिशें जारी हैं पिछले तीन माहों से गाँव गाँव में . इस प्रयोग से मुझे और मेरी टीम को जो सफलता मिली उसे एक अखबार ने कुछ ऐसे बयाँ किया 
इस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक  हमारा  लक्ष्य था कि हम 175 बच्चों को पोषण पुनर्वास केन्द्रों में दाखिल करा कर उनको  लाभ दिला देंगें और उनकी माताओं को बच्चों के पोषण स्तर सुधार हेतु पोषण पुनर्वास केन्द्रों से 14 दिन का आवासीय प्रशिक्षण दिला देंगे किन्तु श्रीमती नाईक के खोजे गए इंस्ट्रूमेंट ने कमाल कर दिया कल और आज तक सुदूर गाँव से आने वाले बच्चों की तादात 194 हो गई है. सुधि पाठक यदि आप भी कुपोषण के खिलाफ मुहिम में सहयोग देना चाहते हैं तो महिलाओं में खून की कमीं रोकने रोज़ गुड खाने की सलाह दे सकतें हैं ताकि मज़बूत संतानें इस धरती पर आयें और यह भी बताना न भूलिए कि-'' कुपोषण कोई बीमारी नहीं, बल्कि बीमारियों को भेजा जा रहा निमंत्रण पत्र है. इससे बचाव के लिए बस माताओं किशोरियों में रक्त-अल्पता न आनें दें ...... यह एक उम्दा स्त्री-विमर्श है कहिये  कौन है हमारे साथ   
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सोमवार, मार्च 15, 2010

मीडिया का अनुपूरक है ब्लॉग : पियूष पांडे

चैत्र-नवरात्रि साधना पर्व पर सभी का हार्दिक अभिनन्दन है . मित्रों कल मेरे एलबम बावरे-फकीरा को  रिलीज़ हुए पूरा एक वर्ष हो गया है. इस सूचना के साथ बिना आपका समय जाया किये सीधे आदरणीय पियूष पांडे जी से आपकी मुलाक़ात कराना चाहूंगा हिन्दी ब्लागिंग को लेकर कतिपय साहित्यकारों की टिप्पणियों को उनकी व्यक्तिगत राय मानने वाले पांडे जी से उनकी कविताएँ भी इस पाडकास्ट में उपलब्ध हैं.


  हिन्दी लोक के प्रस्तोता की पसंद शायद आपकी  पसंद भी हो 
                

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