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गुरुवार, मार्च 18, 2010

आडियो कांफ्रेंस: सुनिये पंडित रूप चन्द्र शास्त्री मयंक [खटीमा,उत्तरांचल ],स्वप्न--मंजूषा[कनाडा],कार्तिक-अग्निहोत्री[सहारा-समय,जबलपुर],और गिरीश


 अभी  आप  ने सुनिये  पंडित रूप चन्द्र शास्त्री मयंक [खटीमा,उत्तरांचल ],स्वप्न--मंजूषा[कनाडा],कार्तिक-अग्निहोत्री[सहारा-समय,जबलपुर],तथा मेरी वार्ता.
शास्त्री जी की कविता जो संभवत: स्पष्ट न सुनाई दे रही हो अत: पाठ्य-रूप में देखिये
नही जानता कैसे बन जाते हैं,


मुझसे गीत-गजल।


जाने कब मन के नभ पर,


छा जाते हैं गहरे बादल।।


ना कोई कापी या कागज,


ना ही कलम चलाता हूँ।


खोल पेज-मेकर को,


हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।


देख छटा बारिश की,


अंगुलियाँ चलने लगतीं है।


कम्प्यूटर देखा तो उस पर,


शब्द उगलने लगतीं हैं।।


नजर पड़ी टीवी पर तो,


अपनी हरकत कर जातीं हैं।


चिड़िया का स्वर सुन कर,


अपने करतब को दिखलातीं है।।


बस्ता और पेंसिल पर,


उल्लू बन क्या-क्या रचतीं हैं।


सेल-फोन, तितली-रानी,

इनके नयनों में सजतीं है।।

कौआ, भँवरा और पतंग भी,

इनको बहुत सुहाती हैं।

नेता जी की टोपी,

श्यामल गैया बहुत लुभाती है।।
सावन का झूला हो'

चाहे होली की हों मस्त फुहारें।

जाने कैसे दिखलातीं ये,

बाल-गीत के मस्त नजारे।।
मैं तो केवल जाल-जगत पर

इन्हें लगाता जाता हूँ।
                                                                  क्या कुछ लिख मारा है,


मुड़कर नही देख ये पाता हूँ।।


जिन देवी की कृपा हुई है,


उनका करता हूँ वन्दन।


सरस्वती माता का करता,


कोटि-कोटि हूँ अभिनन्दन।।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
फोनः05943-250207, 09368499921, 09997996437

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