यहां चंदा मांगना मना है !
साभार नवभारत टाइम्स पिछले कई बरस से एक आदत लोगों में बदस्तूर देखी जा रही है. लोग हर कहीं चंदाखोरी ( बिलकुल हरामखोरी की तरह ) के लिये निकल पड़ते हैं. शाम तक जेब में उनके कुछ न कुछ ज़रूर होता है. भारत के छोटे-छोटे गांवों तक में इसे आसानी से देखा जा सकता है. कुछ दिन पहले एक फ़ोन मिला हम पारिवारिक कारण से अपने कस्बा नुमा शहर से बाहर थे ट्रेन में होने की वज़ह से सिर्फ़ हमारे बीच मात्र हलो हैल्लो का आदान-प्रदान हो पा रहा था. श्रीमान जी बार बार इस गरज़ से फ़ोन दागे जा रहे थे कि शायद बात हो जावे .. क़रीबन बीसेक मिस्ड काल थे. डोढी के जलपान-गृह में रुके तो फ़ुल सिगनल मिले तो हम ने उस व्यक्ति को कालबैक किया. हमें लग रहा था कि शायद बहुत ज़रूरी बात हो सो सबसे पेश्तर हम उन्हीं को लगाए उधर से आवाज़ आई -भैया, आते हैं रुकिये.. भैया.! भैया..!! जे लो कोई बोल रहा है ? कौन है रे..? पता नईं कौन है.. ला इधर दे.. नाम भी नईं बताते ससुरे.......! हल्लो...... जी गिरीश बोल रहा हूं.. नाम फ़ीड नहीं है क्या.. बताएं आपके बीस मिस्ड काल हैं..