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फ़रवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यहां चंदा मांगना मना है !

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साभार नवभारत टाइम्स                        पिछले कई बरस से एक आदत लोगों में बदस्तूर देखी जा रही है. लोग हर कहीं चंदाखोरी ( बिलकुल हरामखोरी की तरह ) के लिये निकल पड़ते हैं. शाम तक जेब में उनके कुछ न कुछ ज़रूर होता है. भारत के छोटे-छोटे गांवों तक में इसे आसानी से देखा जा सकता है.                 कुछ दिन पहले एक फ़ोन मिला हम पारिवारिक कारण से अपने कस्बा नुमा शहर से बाहर थे ट्रेन में होने की वज़ह से सिर्फ़ हमारे बीच मात्र हलो हैल्लो का आदान-प्रदान हो पा रहा था. श्रीमान जी बार बार इस गरज़ से फ़ोन दागे जा रहे थे कि शायद बात हो जावे .. क़रीबन बीसेक मिस्ड काल थे. डोढी के जलपान-गृह में रुके तो  फ़ुल सिगनल मिले तो हम ने उस व्यक्ति को कालबैक किया. हमें लग रहा था कि शायद बहुत ज़रूरी बात हो  सो सबसे पेश्तर हम उन्हीं को लगाए उधर से आवाज़ आई -भैया, आते हैं रुकिये.. भैया.!  भैया..!! जे लो कोई बोल रहा है ? कौन है रे..? पता नईं कौन है..  ला इधर दे.. नाम भी नईं बताते ससुरे.......! हल्लो......  जी गिरीश बोल रहा हूं.. नाम फ़ीड नहीं है क्या.. बताएं आपके बीस मिस्ड काल हैं..                   

आतंकवाद क्या ब्लैकहोल है सरकार के लिये

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                                                                                                           उसे मालूम न था कि हर  अगला पग उसे मृत्यु के क़रीब ले जा रहा है. अपने कल को सुंदर से अति सुंदर सिक्योर बनाने आया था वो. उस जानकारी न थी कि कोई भी सरकार किसी हादसे की ज़िम्मेदारी कभी नहीं लेती ज़िम्मेदारी लेते हैं आतंकी संगठन सरकार तो अपनी हादसे होने की वज़ह और  चूक से भी मुंह फ़ेर लेगी. संसद में हल्ला गुल्ला होगा राज्य से केंद्र पर केंद्र से राज्य पर बस एक इसी  आरोप-प्रत्यारोप के बीच उसकी देह मर्चुरी में ढेरों लाशों के बीच पड़ी रहेगी तब तक जब तक कि उसका कोई नातेदार आके पहचान न ले वरना सरकारी खर्चे पे क्रिया-कर्म तो तय है.     काजल कुमार  जी की आहत भावना                                  आम भारतीय अब समझने लगा है कि  आतंकवाद से जूझने शीर्षवालों के पास कोई फ़ुल-प्रूफ़ प्लान नहीं है. यदि है भी तो इस बिंदु पर कार्रवाई के लिये कोई तीव्रतर इच्छा शक्ति का आभाव है. क्यों नहीं खुलकर जनता के जानोमाल की हिफ़ाज़त का वादा पूरी ईमानदारी से किया जा रहा है या फ़िर  कौन सी मज़बूरिया

अधमुच्छड़ ज़ेलर जो आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.

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                     कई वर्षों से हमारी समझ में ये बात क्यों न आ  रही है कि दुनिया बदल रही है. हम हैं कि अपने आप को एक ऐसी कमरिया से ढांप लिये है जिस पर कोई दूजा रंग चढ़ता ही नहीं. जब जब हमने समयानुसार खुद को बदलने की कोशिश की है या तो लोग   हँस दिये यानी हम खुद मिसफ़िट हैं बदलाव के लिये .    शोले वाले अधमुच्छड़ज़ेलर और उनका  डायलाग याद है न ... "हम अंग्रेजों  के ज़माने के जेलर हैं  "                         अधमुच्छड़  ज़ेलर ,  आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.  सचाई यही है मित्रो, स्वयं को न बदलने वालों के साथ निर्वात (वैक्यूम) ही  रहता है.                               इस दृश्य के कल्पनाकार एवम  लेखक की मंशा जो भी हो मुझे तो साफ़ तौर यह डायलाग आज़ भी किसी भी भौंथरे व्यक्तित्व को देखते आप हम दुहराया करते हैं.       आज़ भी आप हम असरानी साहब पर हँस  देते हैं. हँसिये  सलीम   जावेद  ने बड़ी समझदारी और चतुराई  से कलम का प्रयोग किया  ( जो 90 % दर्शकों के श्रवण- ज़ायके से वे वाक़िफ़ थे ) और असरानी साहब से कहलवाया

अमिताभ बच्चन पर आरोप है कि उनने स्तर मैंटेन नहीं किया ..?

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बीमार हूं सोचा आराम करते  करते सदी के महानायक यानी  अमिता-अच्चन- और रुखसाना सुल्ताना की बिटिया अमृता सिंह  अभीनीत फ़िल्म देख डालूं जी हां पड़े पड़े  मैने फ़िलम देखी  बादल-मोती वाली फ़िलम देखी नाम याद आया न हां वही 1985 में जिसे मनमोहन देसाई ने बनाई थी      मर्द      जिसको दर्द नहीं होता ..बादल यानी सफ़ेद घोड़ा जो अमिताभ को अनाथाश्रम से लेकर भागता है वही अमिताभ जब जवान यानी बीसपच्चीस बरस का होने तक युवा  ही पाया .            मित्रो हिंदी फ़िल्मो   को आस्कर में इसी वज़ह से पुरस्कार देना चाहिये.. पल पल पर ग़लतियां करने वाली फ़िल्में.. श्रेणी में  सदी का महानायक कहे जाने  का दर्ज़ा  अमिताभ बच्चन जी को ऐसी ही फ़िल्मों के ज़रिये मिला.       उस दौर की फ़िल्में  ऐसी ही ग़लतियों से अटी पड़ीं हुआ करतीं थीं. भोले भाले दर्शकों की जेब से पैसे निकलवाने और टाकीज़ों में चिल्लर फ़िंकवाने अथवा  दर्शकों की तालियां बजवाने के गुंताड़े में लगे ऐसे निर्माताऒं ने  भारत को कुछ दिया होगा.आप सबकी तरह ही  मैं बेशक अमिताभ की अभिनय क्षमता फ़ैन हूं.. अदभुत सम्मोहन है उनमें आज़ भी पर  आनंद  1971    मिली

महिला सशक्तिकरण सह सुशासन सम्मेलन में शिवराज सिंह ने खोला पिटारा

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·                      प्रदेश के हर विकास खंड में अंग्रेजी माध्यम की स्कूल होंगे. ·                      विदेश जाने वाले विद्यार्थियों को 15 लाख की राशि ब्याज मुक्त लोन ·                      एक बेटी वाले परिवार को पेंशन मिलेगी ·                      डिंडोरी शहपुरा नगरीय क्षेत्र की विकास गतिविधियों के लिये 11 करोड़ की राशि दी             जावेगी ·                      महिला बाल विकास विभाग अंतर्गत शहपुरा एवम डिंडोरी में बहुउद्देश्यीय भवन बनेंगे. ·                      वाहन-चालन प्रशिक्षण , मोर डुबुलिया कार्यक्रम नवाचारों की मिक्तकंठ सराहना की बेटी-बचाओ अभियान एवम बाल विवाह रोकथाम को गति देने किया आह्वान   मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि जिन दम्पतियों के केवल बेटी हैं उन्हें वृद्धावस्था पेंशन दिये जाने की योजना प्रारंभ की जायेगी। मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में 65 साल से अधिक उम्र के वृद्ध की देखभाल के लिए एक व्यक्ति साथ में जायेगा उसका व्यय भी म.प्र. शासन द्वारा वहन किया जायेगा। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आज डिण्डौरी जिले के शहपुरा में महिल

उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी .

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             सच बताएं आज का वैलेंटाइन हमको सूट नहीं किया अखबार में राशिफ़ल वाले कालम में यही तो लिखा था . सुबह सवेरे हमारी शरीक़े-हयात ने हमसे कहा उपर गमलों से कुछ फ़ूल तोड़ लाएं . राजीव तनेजा जी की तरह हमने  वी आर द बेस्ट कपल  बने रहने के लिये उनकी हरेक बात मानने की कसम खाई थी. सो बस छत पर जा पहुंचे. जहां हमारे  बाबूजी ने बहुत खूबसूरत बगीचा लगवाया है.  हमने उसी बगीचे से खूब सारे फ़ूल तोड़े सीढ़ीयों से उतर ही रहे थे कि बाजू वाले घर  में  वाली गुजराती परिवार की  सलोनी भाभी ने देखा बोली:- अरे वाह, इतने गुलाब..किस लिये ले जा रहें हैं ?  जी, पूजा के लिये ले जा रहा हूं...? वो हमारे भोंदूपने पे ठिलठिला के हंस दीं बोली :- भाई साब, बड़े भोले हो या हमको मूर्ख समझते हो.  हम:-"न भाभी सच पूजा के लिये ही हैं ! यक़ीन कीजिये "  हां हां पूजा के लिये ही तो ले जाओगे कोई राखी के लिये थोड़े न ले जाओगे ... अर्र भाभी सा’ब, आप भी हमारी श्रीमति जी पूजा कर रहीं हैं उनके लिये ही लाया हूं.  ओह समझी मुझे लगा कि आप प्यारी सी भाभी को फ़ूल देने के बज़ाय किसी पूजा को .... मुहल्ले में पूजाओं

एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का..

        जाने कितने चूल्हे जलाता है   पान  ..   कटक.. कलकतिया..बंगला. सोहागपुरी.. नागपुरी. बनारसी   पान .  किमाम.. रत्ना तीन सौ भुनी सुपारी और रगड़े वाला पान.. ऊपर गोरी का मकान नीचे पान की दुकान वाला पान जी हां मैं उसी पान की बात कर रहा हूं   जो नये पुराने रोजिया मिलने वाले दोस्तों को श्याम टाकीज़ ,  करम चंद चौक ,  मालवीय चौक अधारताल   ,  घमापुर ,  रांझी ,  इनकमटेक्स आफ़िस के सामने   ,  रसल-चौक ,  प्रभू-वंदना टाकीज़   ,  गोरखपुर ,  ग्वारीघाट ,  यानी हर खास - ओ- आम ज़गह पर मिलता है. जबलपुर की शान पहचान है पान..!!   एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा   घर के लिये .............बिना सुपारी का.. जबलपुर    वाले रात आठ के बाद पान की दूक़ान पर अक्सर यही तो कहते हैं.. बड्डा हम जेई सुन के बड़े हुए और अब पान की दूकान में जाके जेई बोलते  हैं       कॉलेज़ के ज़माने से    हम पान चबाने का शौक रखते हैं. चोरी चकारी से हमने पान में रगड़ा खाना शुरु किया. डी.एन.जैन कालेज़ में पढ़ने के दौर से अब तक  हमने जाने कितने पान चबाए   हैं हमें तो याद नहीं.. याद करके भी क्या करेंगें. हम को  तो यह भी याद

पता नहीं बांछैं होतीं कहां हैं पर खिल ज़रूर जातीं हैं

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पुरातत्व विषाधारित ब्लाग लेखक ललित शर्मा की प्रसन्नता का अर्थ मूंछों  के विस्तार से झलकी तो लगा कि बांछैं यानी मूंछ  हर कोई  कहता फ़िरता है भई क्या बात है मज़ा आ गया उसे उसने सुना और उसकी बांछैं खिल गईं.        " बांछैं" शब्द का अर्थ पूछियेगा तो अच्छे अच्छों के होश उड़ जाते हैं . अर्थ तो हमको भी नहीं मालूम रागदरबारी  का एक  सँवाद जो हमारे तक  हमारे श्री लाल शुक्ल जी ने  व्हाया    मित्र मनीष शर्मा  के भेजा की " बाछैं शरीर के किस भाग में पाई जातीं हैं. पर इस बात से सहमत नज़र आते हैं कि बाछैं खिलती अवश्य हैं.  यानी कि जब वो नहीं जानते तो किसी और के जानने का सवाल ही नहीं खड़ा होता ".   इसका अर्थ तपासने जब हम गूगल बाबा के   पास गये तो हिंदी में लिख के सर्च करने पर गूगल बाबा ने हमको ठैंगा दिखा दिया. तब हमने प्रसन्नता के लिये इमेज सर्च  की तो पाया कि   पुरातत्व विषाधारित ब्लाग लेखक   ललित शर्मा     किन्ही महाशय के साथ हंस रहें हैं. तो हम समझ गये कि बांछौं का अर्थ मूंछ होता है . किंतु दूसरे ही छण याद आया कि पल्लवी मैडम एक बार  कह रहीं थीं कि खबर सुन कर ह

इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत

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इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तकाज़ा है बहुत इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत  !                           बहुत उम्दा कहा है कृष्ण बिहारी नूर ने. एक अदद  बेचारा  दिमाग उस पर बाहरी वाहियाद बातों का दबाव तो ऐसा होना लाज़िमी भी है. आज़ का आदमी फ़ैंटेसी में जी रहा है वो खुद को धर्मराज और दूसरों को चोर मानता है.   इस बात को नक़ारना नामुमक़िन है. किसी से किसी को कुछ भी लेना देना न हो फ़िर भी अपेक्षाएं उफ़्फ़ यूं कि गोया आपस में एक दूसरे के बहुत बड़ा लेन-देन बाक़ी है गोया. कल दफ़्तर पहुंचते ही एक बीसेक बरस का नौजवान हमारे कमरे में तांक झांक कर रहा था पर हमें मीटिंग लेता देख वापस जाने लगा.  हमने सोचा इस युवक को हमारी ज़रूरत है सो बस हमने उसे बुला लिया. बिना दुआ सलाम किये लगभग टिर्राते हुए युवक ने सामने  हमारे सामने टेबल के उस पार वाली कुर्सी पर  अपना दक्षिणावर्त्य टिका दिया. हाथ से एक मैगजीन निकाली बिना कुछ कहे हमारे सामने पटक दी.                  हमने सोचा चलो छोटी सी जगह में  कोई तो है जो मैगजीन लाएगा हमारी अध्ययन वृत्ति के लिये .                  पहला पन्ना पलटते