26.6.11

वीरांगनाएं हीं तो हैं सशक्ति करण का सर्वोच्च उदाहरण

एक  बार  फिर  मिला  मौका मुझे माता गुज़री कालेज में बेटियों से सशक्तिकरण के परिपेक्ष्य में संवाद करने का.अधिकांश चेहरे अवाक से देख रहे थे तब जब मैंने बताया कि भारतीय नारियां इतिहास में कभी  भी  कमजोर न थीं वीरांगनाएं हीं तो  हैं सशक्ति करण का सर्वोच्च उदाहरण हमारे पास आत्म चिंतन  के लिये एक समृद्ध इतिहास तो है. झांसी की रानी लक्ष्मी बाई,जबलपुर की रानी दुर्गावति, और डिण्डौरी में शहीद हुई रानी अवंती बाई ने मुगलों एवम अंग्रेजों को छटी का दूध याद दिलाया. क्यों तलाशें हम पश्चिम से सशक्ति करण के तरीके... जो जानना है वो हमारे इतिहास में है तो. 
             

25.6.11

अखिल-भारतीय मुशायरा एवम कवि सम्मेलन


देर रात तक चले मुशायरे एवम कवि सम्मेलन के बाद मे मुझे काफ़ी देर बाद रचना पाठ के लिए बुलाया. यद्यपि शुरुआत में नव रचित सरस्वती वंदना "शारदे मां शारदे मन को धवल विस्तार दे" के पाठ का अवसर मुझे दिया. फ़िर मेरा गीत तुम चुप क्यों हो कारन क्या है हुआ. बहुत पसंद आया मित्रों श्रोताओं को यह गीत..!!

23.6.11

वे आँखें------मेरे गीत...अर्चना चावजी

एक रचना सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग से 

यह दर्द उठा क्यों दिल से है 
यह याद कहाँ की आई है  !
लगता है कोई चुपके से 
दस्तक दे रहा चेतना की 

वे भूले दिन बिसरी यादें 
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी 
लगता कोई अपराध मुझे 
है, याद दिलाये करमों की 
उनके ब्लाग मेरे गीत पर  पोस्ट पढ़ने के लिये  "यहां " क्लिक कीजिये 




सतीष सक्सेना 


21.6.11

सावधान....चमचों के साथ छुरी-कांटे भी होते हैं...!!


चमचों के बिना जीना-मरना तक दूभर है. खास कर रसूखदारों-संभ्रांतों के लिये सबसे ज़रूरी  सामान बन गया है चम्मच. उसके बिना कुछ भी संभव नहीं चम्मच उसकी पर्सनालिटी में इस तरहा चस्पा होता है जैसे कि सुहागन के साथ बिंदिया, पायल,कंगन आदि आदि. बिना उसके रसूखदार या संभ्रांत टस से मस नहीं होता. 
       एक दौर था जब चिलम पीते थे लोग तब हाथों से आहार-ग्रहण किया जाता था तब आला-हज़ूर लोग चिलमची पाला करते थे. और ज्यों ही खान-पान का तरीक़ा बदला तो साहब चिलमचियों को बेरोज़गार कर उनकी जगह चम्मचों ने ले ली . लोग-बाग अपनी  आर्थिक क्षमतानुसार चम्मच का प्रयोग करने लगे. प्लैटिनम,सोने,चांदी,तांबा,पीतल,स्टेनलेस, वगैरा-वगैरा... इन धातुओं से इतर प्लास्टिक महाराज भी चम्मच के रूप में कूद पड़े मैदाने-डायनिंग टेबुल पे. अपने अपने हज़ूरों के सेवार्थ. अगर आप कुछ हैं मसलन नेता, अफ़सर, बिज़नेसमेन वगैरा तो आप अपने इर्द गिर्द ऐसे ही विभिन्न धातुओं के चम्मच देख पाएंगे. इनमें आपको बहुतेरे चम्मच बहुत पसंद आएंगे. कुछ का प्रयोग आप कभी-कभार ही करते होंगे. 
      चम्मच का एक सबसे महत्वपूर्ण और काबिले तारीफ़ गुण भी होता है कि वो सट्ट से गहराई तक चला जाता है. यानी आपके कटोरे के बारे में और आपके मुंह  के बारे में, आपके हाथों के बारे में 
                                              अब आप डायनिंग टेबल पर सजे चम्मच देखिये और याद कीजिये उस दौर को जब हमारे खाने-खिलाने के तरीके़ में "छुरी-कांटे" का कोई वज़ूद न था.केवल चम्मच से ही काम चलाया जाता था... हज़ूर आप बे-खौफ़ थे अभी भी हैं बे-खौफ़ तो आज़ आपको खबरदार किये देता हूं... अब हर जगह एक से बढ़कर एक "चम्मच" मौज़ूद मिलेंगे... पर छुरी-कांटों के साथ अब तय आपको करना है कि "चम्मच-बिरादरी" का उपयोग आप कितना और कैसे करना है. जैसे भी करें पर "खाते-वक़्त" इस बात का ध्यान भी रखें कि आप सिर्फ़ चम्मच से नहीं खाएंगे. उसके साथ छुरी-कांटों का प्रयोग भी करेंगे. और आप तो जानते हैं कि छुरी-कांटा तो छुरी-कांटा है .......
इसे भी कभी देख लीजिये जी जब फ़्री हों 

हमें हर मामले में उंगली करनें में महारत हासिल है .



20.6.11

41 बरस के बालक का बर्थ डे

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आज़ एक  41 बरस के बालक का जनम दिन मनता देख मन में ईर्ष्या कुंठा एक साथ समंदर में उभरे ज्वार की तरह उभर जातीं हैं.कुछ भी गुड फ़ील नईं होता...अब ऐसी चाइल्ड केयर भी किस काम की कि इकतालीस बरस तक की जाये अरे हम लोग तो 25 के हुए इस बच्चे के पापा के जमाने के पहले की बात है .. घर में जो भी आता पूछता :-"क्या कर रये हो , बस कविता से काम न चलेगा कुछ करो भई "
अपुन भी ऐसे रिश्तेदारों की एक कान से सुनसुना दूसरे से निकाल देते थे. किसी  के घर जाओ तो भी यही सवाल -"भाई कुछ करने लगे कि नहीं" उत्तर हो यदि-”ट्यूशने कर रहा हूं..! तो प्रतिप्रश्न ये होता यार कुछ नौकरी वौकरी के लिये ट्राय करो" अब हम क्या बताएं चुप्पी साथ लेते थे. जैसे नौकरी पेड़ पे लगती हो ऊंची एड़ी की और लपक ली. फ़लां का सलेक्शन इधर ढिकां का उधर हुआ तो जानो एक लम्बी तक़रीर कोई न कोई सुना ही देता था. पंद्रह सौ की ट्यूशन से मुझे संतोष मिलता था पर दुनिया को नहीं. छब्बीस बरस का होते ही नौकरी मिली तो सबके मुंह बंद. पर तारीफ़ कम लोगों ने ही की थी. वो भी मज़बूरी में की गई साफ़ झलकती थी.दिन भर बच्चों को पढ़ाना थक के देर रात तक काम्पिटीशन एक्ज़ाम की तैयारी करना हमारे लिये आम बात थी. ऐसा सभी करते थे.
                      उन दिनों एक  ड्रेस मुझे बहुत लुभाती थी, परंतु जब खरीदने गया तो पाया आठ सौ की है..उल्टे पांव वापस आने लगा तो दूकानदार बोला -”अरे,पैसे दे देना ?” पर इस फ़िज़ूल खर्ची की अपेक्षा अन्य मदों के लिये वो पैसे सम्हालना ज़रूरी था. सो मन में कसक रह गई .कई बार तो किताबों के लिये जुगाड़ करना मेरे लिये सरदर्द हो जाता था...सारे मध्यम वर्गी युवा उन दिनों इसी तरह के संघर्ष भरा जीवन बिताते थे . आज़ भी कमो-बेश यही स्थिति है. तीस बरस ही तो बीते हैं. ये बाबा दस बरस का रहा होगा. पर इसके बच्चे के भाग्य में सुनिश्चितता लिखी थी. आज़ भी जो जनम दिन की खुशियां मना रहा है. एक हम हैं कि इकतालीसवें जन्म दिन पर अफ़सर से छुट्टी मांगने पर झिड़के गये थे .
                    तुम्हारे हाथ में देश की रास  सौंपने की जुगत है मेरे दिमाग में बच्चों को स्कूल कालेज  भेजने के लिये भारी भरकम  फ़ीस के जुगाड़ की चिंता. फ़िर भी तुमको जन्म-दिन मुबारक़ बोल ही देता हूं         
    

19.6.11

भ्रष्टाचार कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं वो सच में एक सामाजिक विषय है.


इस कुत्ते से ज़्यादा समझदार कौन होगा जो अपने मालिक के दक्षणावर्त्य को खींच रहा है ताकि आदमी सलीब पे लटकने का इरादा छोड़ दे. वरना आज़कल इंसान तो "हे भगवान किसी का वफ़ादार नहीं !"
इस चित्र में जो भी कुछ छिपा है उसे कई एंगल से देखा जा सकता है आप चित्र देख कर कह सकते हैं:-

  1. कुत्ते से बचने के लिये एक आदमी सूली पे लटकना पसंद करेगा..!
  2. दूसरी थ्योरी ये है कि कुत्ता नही चाहता कि यह आदमी सूली पे लटक के जान दे दे  
  3. तीसरा कुत्ता आदमी के गुनाहों की माफ़ी नहीं देना चाहता
  4. चौथी बात कुत्ता चाहता है कि इंसान को सलीब पर लटक के जान देने की ज़रूरत क्या है... जब ज़िंदगी खुद मौत का पिटारा है
                   तस्वीर को ध्यान से देखते ही आपको सबसे पहले हंसी आएगी फ़िर ज़रा सा गम्भीर होते ही आपका दिमाग  इन चार तथ्यों के इर्द गिर्द चक्कर लगाएगा मुझे मालूम है.
                     हो सकता है कि आप रिएक्ट न करें यदी आप रिएक्ट नहीं करते हैं तो यक़ीनन आप ऐसे दृश्यों के आदी हैं या आप को दिखाई नहीं देता. दौनों ही स्थितियों में आप अंधे हैं. यही दशा समूचे समाज की होती नज़र आ रही है. रोज़ सड़कों पर आपकी कार के शीशे पर ठक ठक करता बाल-भिक्षुक आपको नज़र नहीं आता. न ही आपकी नज़र पहुंच पाती है होटलों ढाबों में काम करते बाल-श्रमिकों पर. रामदेव,  चिंता यही है कि यथा संभव ज़ल्द ही देश का धन देश में वापस आ जाये ताक़ि भारतीय अर्थतंत्र में वो रौनक लौटे जो कभी हुआ करती थी. कितने बच्चे बिना पढ़े जवान हो जाते हैं, कितनी लड़कियां कच्ची उमर में ब्याह दी जातीं हैं. कितनी बहुएं दहेज़ की बलि चढ जातीं हैं... कितने कुंए, तालाब पटरियां नवजात बच्चों के खून से सिंचतीं हैं... कितनी बार कीमतें अचानक आग सी बढ़ जातीं हैं...? ये है मुद्दे क्रांति के जिनको हम अनदेखा करते जा रहे हैं . इन पर हो प्रभावी जनक्रांति पर होगी नहीं .
    भ्रष्टाचार कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं वो सच में एक सामाजिक विषय है... क्योंकि कुछ बरसों पूर्व तक बेटी ब्याहने निकला पिता यही देखता था कि प्रत्याशी की ऊपरी कमाई भी हो. यानी भ्रष्टाचार हमारी घुट्टी में पिलाया गया है. यह एक सामाजिक मुद्दा है इसे हम आप ही हल कर सकतें हैं.तो आओ न हाथ बढ़ाओ न नई क्रांति के लिये एक हो जाओ न ... देर किस बात की है उठो भाई ज़ल्द उठो !                     

18.6.11

आज़ दो प्रेम गीत इधर भी

तुम बात करो मैं गीत लिखूं
*************************
कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
कुछ ताने बाने अब तो बुनो
जो बीत गया वो सपना था-
जो आज़ सहज वो अपना है
तुम अलख निरंजित हो मुझमें
मन चाहे मैं तुम को भी दिखूं
            तुम बात करो मैं गीत लिखूं
*************************
तुम गहराई  सागर सी
भर दो प्रिय मेरी गागर भी
रिस रिस के छाजल रीत गई
संग साथ चलो दो जीत नई
इसके आगे कुछ कह न सकूं
         तुम बात करो मैं गीत लिखूं
*************************
तुमको को होगा इंतज़ार
मन भीगे आऎ कब फ़ुहार..?
न मिल मिल पाए तो मत रोना
ये नेह रहेगा फ़िर उधार..!
मैं नेह मंत्र की माल जपूं
         तुम बात करो मैं गीत लिखूं
*************************

रुक जाओ मिलना है तुमसे , मत जाओ यूं जाल बिछाके


तुम संग नेह के भाव जगाके
बैठ थे हम   पलक भिगाके
कागा शोर करे नीम पर -
मीत मिलन की आस जगाके
*******************
नेह निवाले तुम बिन कड़्वे
उत्सव सब सूने लगते हैं,
तुम क्या जानो विरह की पीडा
मन रोता जब सब हंसते हैं.
क्यों आए मेरे जीवन में- आशाओं का थाल सजाके.
*******************
ज़टिल भले हों जाएं हर क्षण
पर  तुम  हो मेरे  सच्चे  प्रण..!
जब भी मुझको स्वीकारोगे-
तब होंगे मदिर मधुर क्षण..!!
रुक जाओ मिलना है तुमसे , मत जाओ यूं जाल बिछाके

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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